इधर तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका जंगल के रास्ते से आ रही होती है कि तभी रास्ते में सभी ऐसा कुछ देखते है कि सभी की सभी हैरान और परेशान हो जाती है।
तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका देखते है एक किन्नर की शव यात्रा का रही होती है जिससे तीनों राजकुमारियां घबरा जाती है और तभी दासी कृतिका बोलती है, "यह क्या देख लिया हमने यह तोह बहुत बड़ा अपशगुन होता है।"
राजकुमारी सुंदरा ने ऐसा खौफनाक मंजर पहली बार देखा होता है जिसकी वजह से वो रोने लगती है।
दासी कृतिका बोलती है, "चलिए हमें यहां से तुरंत चलना चाहिए।"
तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका महल की और चलने लगते है।
इधर रानी कला अपने दो प्रिय कबूतरों के पैरों में चिट्ठी बांधती है और दोनों कबूतरों को आकाश की ओर उड़ा देती है। एक कबूतर उत्तर दिशा में और एक कबूतर पूर्व दिशा में उड़ जाता हैं।
जब कबूतर उड़ जाते है तोह उसके बाद काल ऋषिका महामाया, रानी कला और अंकन से बोलती है, "अब हमें अपना पहला षडयंत्र चलना चाहिए जिसकी वजह से हमारे योजनाओं के अनुसार बनाए मकसदों में कोई भी बाधा न आए।"
इधर महल में ही रानी शुभांगी और राजा सत्यम के पास महान ऋषिका सुमन्या आती है और राजा और रानी से बोलती है, "महाराज और महारानी हमारी गणनाओं के अनुसार तीनों राजकुमारियों पर बहुत बड़ी विपदा आने वाली जैसे षड्यंत्रों का तूफान तीनों राजकुमारियों की जिंदगी पर छाने वाला हो इसलिए अब हमें शीघ्र अति शीघ्र राजकुमारी मुंद्रा और राजकुमारी सुंदरा का विवाह कर देना चाहिए और राजकुमारी कुंद्रा के लिए हमें उसको बुलाना ही पड़ेगा वरना जो राजकुमारी कुंद्रा की कुंडली पर जो लिखा है वो बेहद ही खतरनाक होगा क्योंकि तीनों राजकुमारियों के हाथों में भविष्य रेखाएं नहीं है, महाराज आपको फैसला जल्द से जल्द लेना होगा।"
तभी रानी शुभांगी बोलती है, "जब इस श्राप की चर्चा सभी राज्यों में फैलेगी तोह कोई यह जानकर हम पर हमला न करे कि केशवापुर में तोह कोई सिंहासन पर बैठने वाला बचा ही नहीं है।"
तभी राजा सत्यम बोलते है, "इसकी चिंता मत कीजिए रानीसाहिबा हमारे होते कोई हम पर आंख उठा कर नहीं देख सकता और रही बात उसको बुलाने की तोह वह कल तक इस महल में आ जाएंगे।"
अचानक एक दास एक संदेश पत्र लेकर आता है और राजा सत्यम को पत्र देते हुए बोलता है, "महाराज हमें यह संदेश पत्र बाज के जरिए प्राप्त हुआ है।"
पत्र लेकर राजा सत्यम उस दास को बाहर जाने का इशारा करते है।
फिर राजा सत्यम पत्र को पढ़ते है और हैरान हो जाते है। राजा सत्यम की हैरानी को देखकर रानी शुभांगी बोलती है, "क्या हुआ महाराज, आप इस पत्र को पढ़कर इतने हैरान और परेशान क्यों है। आखिर क्या लिखा है इस पत्र में ?"
राजा सत्यम बोलते है, "कल हमारे बड़े भाई श्री और भाभी श्री आने वाले साथ अपने छोटे पुत्र और पुत्री को लाने वाले है।"
इतना सुनकर ऋषिका सुमन्या बोलती है, "महाराज आपके बड़े भाई श्री का आना को बड़े षडयंत्र का आगाज होने वाला है क्योंकि जिस भाई ने आपको कभी याद नहीं किया आज उन्हें आपसे क्या कार्य आपको महाराज काफी सतर्क रहना होगा। हमें शीघ्र अति शीघ्र उसको यहां बुलाना होगा।"
इतना कहकर ऋषिका सुमन्या वहां से चली जाती है और राजा सत्यम के चेहरे पर चिंता के घोर बादल छाए हुए थे।
थोड़ी देर बाद रानी कला और काल ऋषिका महामाया, राजा सत्यम के कक्ष में आते है।
रानी कला, राजा सत्यम से बोलती है, "महाराज आज जो हुआ उसके लिए हम अंकन की तरफ से माफी मांगते है।"
राजा सत्यम गुस्से में रानी कला पर चिल्लाकर बोलते है, "क्या आपको अपने ऊपर शर्म का थोड़ा भी अहसास नहीं है आपके अंदर क्या एक मां की ममता है आपको भी पता है कि आपके पुत्र ने क्या किया है एक ब्रह्म हत्या और तोह और आपको ज्ञात भी था कि आपका पुत्र मदिरा का आदि हो गया है और आपको इसकी थोड़ी सी भी भनक नहीं थी सच में आप पर तोह मां बनने के गुण भी नहीं है।"
रानी कला को गुस्सा आ रहा था और वोह भी महराज पर चिल्लाकर बोलती है, "आप हमसे नफरत करते है इसलिए तोह आपने सारा कसूर हमारा ठहरा दिया लेकिन जो कुंद्रा ने किया है उसका कसूरवार बड़ी रानी आपकी प्रिय पत्नी से कुछ कहा। नहीं कहा होगा कहते भी तोह कैसे कहते क्योंकि आपकी प्रिय जो और हम अप्रिय इसलिए सारा कसूर और सारी गलती बस हमारी है और किसी की नहीं क्यों महाराज बोलिए अब क्या आपके मुख में दही जम गया बोलिए महाराज है कोई जबाव आपके पास।"
इतना कहकर गुस्से में रानी कला, राजा सत्यम के कक्ष में से चली जाती है।
रानी कला के जाने के बाद ही काल ऋषिका महामाया, राजा सत्यम से बोलती है, "महाराज आपने रानी कला से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी वोह आपसे माफी मांगने आई थी वोह भी क्या करे उनके पुत्र भी एक नपुंसक बन गए है जब एक मां के सामने एक पुत्र को ऐसा श्राप मिलता है तोह उस मां पर क्या बीतेगी यह तोह आप भली भांति परिचित है फिर भी आपने ऐसा कहा, लगता है महाराज आपको अभी थोड़ा आराम करना चाहिए।"
इतना कहकर काल ऋषिका महामाया भी राजा सत्यम के कक्ष से चली जाती है।
इधर महल में तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका आती है। महल में आते ही तीनों राजकुमारियाँ अपने अपने कक्ष में चली जाती है।
सुबह होने के बाद,
जैसे ही सुबह होती है राजा सत्यम, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष में आते है और बोलते है, "हमें केवल सच सुनना है इसलिए हमें सच बताओ कि तुम्हारा प्रतियोगिता में आने का क्या अर्थ था क्या तुम्हे किसी ने उकसाया था या किसी ने तुम्हे मीठा पानी पिलाया और तुमने उसे मीठा पानी समझ कर पी लिया हमें केवल सच सुनना है कुंद्रा।"
राजकुमारी कुंद्रा थोड़ा सा हिचकिचाते हुए बोलती है, "नहीं पिता श्री वोह हमें किसी ने नहीं उकसाया और हम तोह आपका मान ऊंचा करने गए थे लेकिन सब कुछ गलत हो गया हमारी वजह से।"
राजा सत्यम बोलते है, " नहीं इसमें तुम्हारी गलती तोह है लेकिन सबसे ज्यादा गलती अंकन की है और तुम्हे अपने श्राप का पश्चाताप भी करना होगा।"
इतना कहकर राजा सत्यम, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष से चले जाते है।
इधर रानी कला, अंकन से बोलती है, "अब हम इस महल में षड्यंत्रों का तूफान लाने वाले है और तुम्हे इसमें कोई भी, किसी भी प्रकार की हरकत नहीं करनी है अब हम जोह भी करेंगे तुम्हारे भले के लिए करेंगे।"
इतना कहकर रानी कला महल की मुख्य छत पर चली जाती है।
इधर महल में राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में ऋषिका सुमन्या आती है, और राजकुमारी मुंद्रा से बोलती है, "अब आपको अधिक से अधिक सतर्क रहना होगा क्योंकि अब इस महल में षड्यंत्रों का तूफान आने वाला है और तोह और तुम्हारे ताऊ श्री इस महल में पधारेंगे इसलिए सतर्क रहना उनसे।" इतना कहते ही ऋषिका सुमन्या, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष से चली जाती है।
इधर कृतिका गुप्त तरीके से काले कौवे के जरिए एक चिट्ठी भेजती है। आखिर किसको चिट्ठी भेजती है कृतिका ?"
तभी महल में ढोल नगाड़ों के साथ राजा सत्यम के बड़ी भाई राजा भूरान और रानी किरन साथ ही उनके छोटे बेटे राजकुमार बृजेश और राजकुमारी ब्रजा का आगमन होता है।
वैसे राजा भूरान एक बेहद ही छोटे से राज्य के राजा रह गए है और राजा सत्यम में राजा भूरान के इरादों से अवगत है और रानी किरन तंत्र टोटकों के लिए प्रसिद्ध है इसलिए रानी शुभांगी को डर है कि वोह राजकुमारियों को हानि न पहुंचाएं।
तभी रानी शुभांगी स्वागत के लिए हाथ में पूजा का बड़ा सा थाल लेकर आती है लेकिन राजा सत्यम नहीं आते हैं। रानी शुभांगी अपने जेठ और जेठानी का स्वागत करती है।
तभी रानी किरन कुटिलता भरे शब्दों में कहती है, "हमारे आने से क्या देवर श्री डर गए क्या कही हम याद पास के सत्तर राज्यों में सबसे बड़ा केशवापुर न हथिया ले, वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
रानी शुभांगी हल्का सा हिचकिचाते हुए बोलती है, "ऐसा कुछ नहीं है बस महाराज का कुछ विशेष कार्य था इसलिए वह नहीं आ पाए।"
रानी किरन, रानी शुभांगी को ताना मारते हुए बोलती है, "विशेष कार्य कितना भी विशेष हो लेकिन हमारे लिए आ तोह सकते थे, वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
इतना कहकर सभी महल में प्रवेश करते है तभी पीछे से एक आवाज आती है, "क्या आप हमारा स्वागत नहीं करोगी रानी जी।"
जैसे ही रानी शुभांगी पीछे मुड़कर देखती है वह उनको देखकर हैरान हो जाती है और उनके हाथ से स्वागत का थाल गिर जाता है और वोह काफी परेशान हो जाती है।
आखिर किसके आने से रानी शुभांगी हो गई भयभीत ?
आखिर दासी कृतिका क्या योजना बना रही है ?
आखिर रानी कला कैसा षड्यंत्रों का तूफान लाने वाली है ?