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Chapter 4 - महल के श्राप का अतीत

राजकुमारी कुंद्रा की आंखों में आंसू थे वो बोलती है, "यह सब रानी कला की बातों में आ गए उन्होंने हमें ऐसा बहकाया जिसकी वजह से हम भी बहक गए उन्होंने ने अपनी बातों की चाशनी इस तरीके से डुबोया की हम भी उस चाशनी में डूब गए और हमने यह फैसला किया कि हम प्रतियोगिताओं में भाग लेंगे और पिता श्री का नाम रोशन करेंगे लेकिन सब उल्टा हो गया।"

तभी दासी कृतिका, तीनों राजकुमारियों से बोलती है, "इसमें आपकी कोई गलती नहीं है राजकुमारी कुंद्रा, यह सब तोह पहले से महल के भाग्य में लिखा है।"

तभी राजकुमारी सुंदरा बोलती है, "महल के भाग्य में श्राप, आपका कहने का अर्थ क्या है हमारा मतलब आप क्या कहना चाहती है जोह भी बोलना है तोह उसमें डरने की कोई बात नहीं है।"

क्योंकि दासी कृतिका काफी डरी हुई थी उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे साफ साफ झलक रही थी। दासी कृतिका डरते हुए बोलती है, "यह जगह सुरक्षित नहीं है आप हमारे साथ चलिए।" इतना कहकर दासी कृतिका, तीनों राजकुमारियों को महल से कही दूर एक जंगल में बनी एक कुटिया में ले जाती है और पत्थरों को घिसकर आग का निर्माण करती है और उस आग से कुटिया में रखी मशाल को जलाती है और उस अंधेरी कुटिया में रोशनी का निर्माण करती है।

तब राजकुमारी मुंद्रा बोलती है, "आप जो बताना चाहती है बताइए।"

दासी कृतिका, तीनों राजकुमारियों से बोलती हैं, "मैं आपको महल के श्राप के बारे में अवगत कराना चाहती हूं।"

राजकुमारी सुंदरा बोलती हैं, "कैसा श्राप ?"

फिर दासी कृतिका बोलती है, "आज से लगभग अट्ठाइस साल पहले जब राजा सत्यम सिंह राठौड़ जी को विवाह के दो साल के बाद भी कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी तोह ऋषिका सुमन्या जी ने राजा को सलाह दी कि वे पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रब्धि यज्ञ करवाए। ऋषिका सुमन्या की सलाह से राजा सत्यम जी ने एक महान यज्ञ एवं समारोह का आयोजन किया पूरे केशवापुर की प्रज्ञा को खाने का न्यौता दिया गया लेकिन राजा सत्यम ने निम्न जातियों के लिए अलग और उच्च जातियों के लिए अलग अलग खाने की व्यवस्था की थी। समारोह में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन केशवापुर की प्रजा को यह व्यवस्था पसंद नहीं आई क्योंकि केशवापुर में लोग भेद भाव नहीं करते थे प्रजा में जाति धर्म का कोई विचार या भेदना नहीं थी। इस बात को देखकर गांव के पुजारियों को गुस्सा आ गई और उनने राजा सत्यम सिंह राठौड़ को श्राप दिया कि, राजा सत्यम सिंह राठौड़ की संतान ही उनका नाम डुबाएगी उनके बच्चों में भेद भाव की स्थिति बन जाएगी और जिस पुत्र के लिए यह यज्ञ किया है वोह नपुंसक बन जाएगा उनके बीच जो प्यार है वह सब मिट जाएगा इस राज्य में खुशियां कभी नहीं मनाई जाएगी लेकिन रानी शुभांगी के मनाने और क्षमा मांगने पर पुजारियों का क्रोध थोड़ा शांत हुआ और उन पुजारियों ने कहा, "श्राप को हम वापस नहीं ले सकते लेकिन इसे कम कर सकते है तुम्हारे बच्चों में फुट तोह अवश्य पड़ेगी लेकिन सुलह भी हो जाएगी और जो संतान तुम्हारा नाम डुबाएगी वही संतान तुम्हारी खोई हुई इज्जत को वापस लाएगी" यही था राजा सत्यम सिंह राठौड़ पर लगा श्राप का कलंक।"

कृतिका द्वारा बताए गए महल के श्राप के अतीत के बारे में जानकार तीनों राजकुमारियाँ हैरान और परेशान हो जाती है।

थोड़ी देर बाद राजकुमारियाँ और दासी कृतिका उस कुटिया से निकलकर महल की और चल देते है।

इधर महल में रानी कला अपने पुत्र को कक्ष में लाती है और उसका यानी राज कुमार अंकन के सिर को दीवार में मारती है तब कही जाकर राजकुमार मदिरा के नशे से थोड़े बाहर आते है।

रानी कला गुस्से में राजकुमार अंकन पर चिल्लाकर बोलती है, "मूर्ख, तूने ये क्या किया हमारे बदले की आग में तुमने हमारे आंसुओं की चिता क्यों जलाई, आज तेरी वजह से सब कुछ बर्बाद हो गया सब कुछ तूने अपने हाथों से बर्बाद कर दिया आज तेरी वजह से तू एक नपुंसक हो गया और अब तू राजा बनने के सपने को छोड़ दे, मन तोह करता है तुझे तेरी प्यारी मदिरा में डुबोकर तुझमें आग लगा दे लेकिन हमने तुमको जन्म दिया तोह एक पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन एक माता कुमाता नहीं होती है और तेरी वजह आज हमारे सपनो की चिता जल गई हमारे राजरानी बनने के सपने की गर्दन को काट दिया।"

तभी कक्ष में कालदर्शी ऋषिका महामाया आती है और रानी कला से बोलती है, "माफ करना रानी जी हम समझते कि इस समय आप पर क्या बीत रही है लेकिन अगर अभी भी उन सब ऋषियों से राजकुमार अंकन स्वयं माफी मांग ले तोह शायद हमें राजकुमार अंकन के श्राप को कम करने का कुछ उपाय मिल जाए।"

तभी रानी कला बोलती है, "शायद मिल जाए लेकिन अंकन ने ब्रह्म हत्या की और अपमान अलग से जिस ऋषिका ने इन्हें श्राप दिया उसी ऋषिका का खून कर दिया इस नालायक पुत्र ने अब हमारे पास कोई चारा नहीं है अब हम कुछ नहीं कर सकते।"

तभी काल ऋषिका महामाया कुटिलता भरे शब्दों में बोलती है, "एक उपाय है अगर हम अपने काले जादू से या फिर हथियारों से तीनों राजकुमारियों को मृत्यु के घाट उतार दे तोह हमारे राजकुमार अंकन ही सिंहासन के अधिकारी होंगे।"

राजकुमार अंकन गुस्से में बोलते है, "फिर यह शुभ कार्य तोह हम ही करेंगे और वोह भी आज रात्रि को।"

राजकुमार अंकन की बात सुनकर रानी कला को गुस्सा आ जाता है और वोह गुस्से राजकुमार अंकन के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारती है और चीख़कर बोलती है, "तुम यह कार्य नहीं करोगे क्योंकि हम अच्छे से जानते है कि तुम यह कार्य करने में असमर्थ हो और तुम पर भरोसा करना हमारी सबसे बड़ी बेवकूफी होगी इसलिए यह कार्य अब हम करेंगे और यह कार्य कैसे किया जाएगा इसके बारे में भी अब हम तय करेंगे समझे तुम।"

इधर राजा सत्यम सिंह राठौड़ अपने कक्ष में रो रहे थे और रोते हुए स्वर में बोलते है, "यह सब हमारी गलती अगर हम उस समय उच्च जाति और निम्न जाति में अंतर न किया होता तोह आज हमको यह सब भुगतना पड़ रहा है।"

रानी शुभांगी, राजा सत्यम से कहती हैं, "नहीं महाराज शायद यह हमारे इसी जन्म या पिछले जन्म के पापों का घड़ा है जो समय के साथ भरता जाता है और साथ ही साथ फूटता जाता है इसमें किसी की गलती नहीं है महाराज इसमें हमारे भाग्य की कमी हैं।"

इधर तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका जंगल के रास्ते से आ रही होती है कि तभी रास्ते में सभी ऐसा कुछ देखते है कि सभी की सभी हैरान और परेशान हो जाते है।

आखिरकार क्या चाल चलेंगी रानी कला ?