जब कुछ देर तक दीक्षा और दक्ष दोनों सिर्फ पूरी दुनिया भूल एक दूसरे क़ो देखने मे लगे हुए थे। तभी अनीश कहता है, ये दोनों लैला मजनू आज माधवगढ़ चले जायेगे या पुरे दिन ऐसे होली रहेंगे।
अतुल वीर क़ो इशारे मे कहता है, हॉर्न मार !! वीर डर से इशारे मे कहता है, बिल्कुल नहीं !! मरवाओगें क्या? पृथ्वी कहता है, क्या करे ये दोनों तो हिल ही नहीं रहे। जबाब अनीश क़ो रहा नहीं जाता तो जोर से कहता है, दादी माँ बाहर कुर्सियां मंगवा लीजिये। यहाँ रोमियो जुलियट शो चल रहा है।
इतनी तेज आवाज़ जैसे ही दीक्षा के कान मे पड़ती है वो तेजी से दक्ष क़ि तरफ बिना सोचे समझे बढ़ जाती है। दक्ष ये आवाज़ सुनकर दरवाजे पर खड़े सभी क़ो अपनी आँखे छोटी कर घूर कर देखता है। सभी चुप हो जाते है। तब तक दीक्षा का पैर लहंगे मे फंस जाता है और वो गिरने क़ो होती है क़ि दक्ष आगे बढ़ कर उसे बाहों मे थामते हुए कहता है, आराम से स्वीट्स!!
दीक्षा कहती है, वो दक्ष। तब तक सभी उनके पास आ जाते है। शुभ मुस्कुराते हुए कहती है, इतना परेशान होने क़ि जरूरत नहीं है। हमारे सामने तुम्हें इतना शर्मिंदा होने क़ि जरूरत है, हम बस तुम दोनों क़ि मोहब्बत क़ो देख मन से प्रार्थना कर रहे थे क़ि कभी तुमदोनों क़ो किसी क़ि बुरी नजर ना लगे। हम सब तुम्हारी मोहब्बत देख कर खुद क़ो सुकून महसूस करते है।
शुभ क़ि बात सुनकर सभी हाँ कहती है। तभी अनीश कहता है, शुभ भाभी क़ि बात ठीक है लेकिन दक्ष रास्ते मे मत खो जाना क्योंकि माधवगढ़ से लौटना भी है। अतुल उसके सर पर मारते हुए कहता है, कभी तो चुप हो जाया कर।
पृथ्वी कहता है, अब तुम दोनों निकलो। दीक्षा कहती है, वैसे तो मुझे कहने क़ि जरूरत नहीं है लेकिन दक्षांश का ध्यान रखना। उसकी बात पर तूलिका और रितिका कहती है, पहले भी रखते थे, जब हम दो थे। अब हम दो नहीं बहुत है इसलिये तुम आराम से जाओ। दक्ष और दीक्षा मुस्कुराते हुए निकल. जाते है।
उनके जाने बाद अतुल पृथ्वी क़ि तरफ देख कर कहता है, क्या बात है? क्या सोच रहे है भाई सा ? पृथ्वी कहता है, बस देवी माँ से यही प्रार्थना है क़ि इनदोनो क़ि मोहब्बत क़ो किसी क़ि नजर ना लगे।
रौनक कहता है क्यों परेशान होते है, उन्दोनो के बिच मे कोई नहीं आ सकता है। फिर हम सब तो है ही। सभी अंदर चले जाते है।
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एक जैट राजस्थान क़ि जमीन पर लैंड करती है। उसमें से बहुत सारे बॉडीगार्ड पहले निचे उतरते है। उसके बाद एक पचपन -साठ साल का आदमी, कद 5"10", बड़ी बड़ी मुझे देखने मे बेहद खतरनाक आगे उतरता है। उसके पीछे एक 27-28 साल का नौजवान देखन मे बेहद खूबसूरत लेकिन उसकी भूरी आँखे बेहद क्रूर दिखती है,निकलता है। ठीक उसके साथ दो लडकियाँ 24-25 साल क़ि, गौरी,5"8" क़ि हाइट, बेहद गलेमरस और तेज तरार निकलती है।
चारों जब राजस्थान क़ि जमीन पर एक साथ पैर रखते है तो बुजुर्ग आदमी हँसते हुए कहता है, बहुत सालों बाद इस मिट्टी क़ि खुशबू हमे यहाँ खींच लायी है। अब आएगा मजा। ये कह कर चारों गाड़ी मे बैठ जाते है और उनका काफिला निकल जाता है।
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दीक्षा गाड़ी मे बैठी हुई दक्ष से पूछती है, माधवगढ़ से हमारा क्या रिश्ता है और कौन कौन है वहाँ पर। दक्ष कहता है, माधवगढ़ से हमारे पुरखो का रिश्ता है। हमारे दादू क़ि दादी उस घर क़ि बेटी थी। फिर पीढ़ी डर पीढ़ी उनके घर से हमारा रिश्ता गहरा होता चला गया। हर त्यौहार मे उनका परिवार -हमारा परिवार एक. दूसरे के यहाँ आने जाने लगा।
उस घर क़ि बेटी से हमारी माँ क़ि गहरी दोस्ती थी। लेकिन हमे उतनी जानकारी नहीं है क्योंकि माँ सा और बाबा सा के जाने के बाद हम ने खुद क़ो समेट लिया, अपने भाई बहनो के खातिर।सुना है उनकी बेटी अब इस दुनिया मे नहीं रही। इस गम मे उनकी माँ चल बसी।
अब है वहाँ पर माधवगढ़ के राजा संयम प्रताप, उम्र लगभग 28-30 के आस पास होगी। बहुत बेहतर और उम्दा इंसान है। हमारी मुलकात उनसे तीन चार बार हुई है।
सयंम प्रताप के माता पिता है। राजा विक्रम प्रताप और उनकी पत्नी रानी पदमा देवी। इनके दादा जी राजा हरीशचंद्र प्रताप। इनकी एक बहन भी है जो अभी बाहर मे पढ़ती है।
हमारा ध्यान कभी इन पर रहा नहीं इसलिये हमने ज्यादा जानकारी इनकी निकली नहीं। हम खुद ये दूसरी बार जा रहे है। पहली बार हम बहुत छोटे थे, तब माँ सा और बाबा सा के साथ गए थे, जबाब इनकी दादी गुजड़ गयी थी। आज दूसरी बार जा रहे है।
दीक्षा कहती है तो क्या वो हमे पहचानेगें। दक्ष कहता है, क्या बात कर रही है, महरानी सा!!वो हमे जरूर पहचानेगें, हम राजस्थान के राजा सा है।
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पृथ्वी सभी के साथ स्टडी रूम मे बैठा होता है। बड़ो के साथ सभी जूनियर भी थे। लक्ष्य कहता है, अचानक से सबको यहाँ बुलाने का क्या मकसद है।
पृथ्वी कहता है, बाबा सा !! जयचंद परिवार यहाँ से जितना कुछ हो सकता था सब समेट कर इंडिया छोड़ कर चले गए है।
सभी पृथ्वी क़ि बातों से हैरान होते हुए कहते है, क्या !! पृथ्वी कहता है, हाँ !! तो जैसलमेर मे अब काका काकी रह सकते है। हमे बस कुछ कागजी करवाई करनी होगी।
उस पर अनंत जी और अर्चना जी कहते है, नहीं !! हम वहाँ नहीं जाना चाहते है। हम उसे गवर्नमेंट के हाथों बेच देंगे और यही आप सभी के आस पास एक घर लेगे। पूरी जिंदगी एक अँधेरी कोठरी मे बीत गयी। बच्चे क़ो जी भर देख नहीं सके और हमें उस दौलत क़ि लालच नहीं है। सभी बच्चे यही है और हमारी बेटी और दामाद भी यही है। तो हम अपने बच्चों से दूर नहीं जायेगे।
अब जबाब तक जिंदगी है तब तक यही आप सबके के बिच गुजाड़ लेगे। आप सब यही आस पास हमारे लिए घर देख लीजिये।वहाँ क़ि जायदाद से हमारा कोई लेना देना नहीं है।
उनकी बातें सुनकर तुलसी जी कहती है, " इसके लिए दूसरे घर क़ि क्या जरूरत है, ये महल इतना बड़ा है क़ि इसमें हम लोग कम पर जाते है। आप हमारे साथ रहिये, हमें अच्छा लगेगा। रही बात जैसलमेर क़ि तो अभी सरकार क़ो देने क़ि जरूरत नहीं है। रौनक किसी अच्छे केयर टेकर क़ो देख लो, जो वहाँ क़ि देख भाल कर सके। "भविष्य मे बच्चे के बच्चों क़ि इकक्षा हुई क़ि अपनी माँ का मायका देखेंगे तो कैसे देखेंगे।
तभी तूलिका कहती है, क्यों ना उसे होटल, मैरिज हाल इस तरह से बनवा दिया जाये। जिसे उसकी देख रेख भी होगी और मेंटेनेंस के तौर पर खर्चा भी निकल जायेगा।
विचार तो बहुत अच्छा है तुम्हारा बहु, ये कहते हुए मुकुल जी कहते है,"लेकिन ये फैसला तो कनक और अनंत जी का होगा।
कनक कहती है, म जबसे इस घर मे आयी हूँ, मेरा और तुम्हारा जैसा कभी कुछ नहीं देखा है। दीक्षा जीजी मुझे भी उतना ही प्यार देती है जितना रितिका और तूलिका क़ो। मेरे लिए ये हमारा है और अगर सबको ठीक लगता है तो मुझे कोई एतराज नहीं है।
कनक क़ि बातें सुनकर तुलसी कहती है, सच कहा था कुल पुरोहित जी ने आप तीनों यहाँ क़ि आधार स्तम्भ है। हमें नाज है अपनी पांचो बहुओं और पोतों पर।
पृथ्वी से लक्ष्य जी पूछते है,"लेकिन ये जयचंद रातों रात क्यों कही चले गए। पृथ्वी कहता है, अपने बेटे क़ि मौत का बदला लेने क़ो बैठे थे लेकिन होली के बाद अचानक ऐसा क्या हुआ जो वो अपने पुरे परिवार समेत यहाँ से बाहर चले गए। ये खबर मुझे अभी अभी मिली है तो मैंने आपको बता दिया।"
राजेंद्र जी कहते है, चलिए अच्छा किया नहीं तो दुश्मनी क़ि बलि पता नहीं, शायद उनका पूरा परिवार चढ़ जाता। तुलसी जी भी कहती है, हाँ ये काम तो उन्होंने बहुत अच्छा किया। अब छोड़ो इन बातों क़ो जश्न क़ि तैयारी करो। अभी तक ना सजावट वाला आया है ना कैट्रिन वाला।
अतुल और अनीश कहता है, सब हो जायेगा। हम बस जा रहे है, आप फ़िक्र मत कीजिये।
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इधर दीक्षा के नंबर पर किसी का मेसेज आता है जिसे पढ़कर उसके चेहरे पर शिकन आ जाती है।
कनक ज़ब रौनक के साथ स्टडी रूम से बाहर आती है तो वो किसी और सोच मे होती है। रौनक उसे दो तीन बार आवाज़ देता है लेकिन ज़ब नहीं सुनती तब रौनक उसे पीछे से दोनों कंधो पर हाथ रख कर कहता है, कनक क्या हुआ आपको,!!
कनक कहती है, कुछ नहीं !! रौनक कहता है, कहता है, आप कमरे मे चलिए, दोनों कमरे मे जाते है।
रौनक उसकी कमर पकड़ अपने करीब करते हुए कहता है, अब बताईये क्या बात है , कहते हुए उसके नाक से अपने नाक रब करने लगता है। कनक उसकी सांसों क़ो अपने चेहरे महसूस कर रही थी। उसका बदन सीहर रहा था और रौनक उससे यू ही मदहोश करते हुए कहता है, क्या हुआ जान !! आप कहाँ खो रही है !!
कनक उसकी बातें सुनकर अपनी बंद आँखे खोलती हुई, उसके सीने पर हाथ रख हल्का पीछे करने लगती है, लेकिन रौनक टस से मस नहीं होता और उसे और करीब करते हुए कहता है, "आप अब घबरा रही है मुझसे "!!
कनक कहती है, वो मैं सोच रही थी की जयचंद ऐसे नहीं जा सकते है लेकिन गए तो इस बात पर यकीन नहीं हो रहा मुझे ।क्योंकि उनके तो खुन मे चालाकियाँ, धोखेबाजी और वो इतनी जल्दी भाग जैसे वो भी इस तरह, मैं यकीन नहीं कर पा रही हूँ।
रोनके उसके चेहरे क़ो हाथ मे भर लेता है और कहता है,"जान !! अभी के लिए हम ये सोच लेटे है की हमारे दुश्मनो की कतार मे एक इंसान कम हो गया। तो अभी के लिए जाने देते है। भविष्य मे वो ऐसा कुछ करते है, तबकी तब देखेंगे।"अभी तो आप मुझे देखिये। कहते हुए उसकी आखों प्यार से देखता है और अपने अंगूठे से गाल क़ो रब करने लगता है। धीरे से उसके होठों पर अपने होठों क़ो रख देता है।
कनक की आँखे बंद हो जाती है और रौनक उसे गहराइयों से चूमते हुए, उसकी ब्लाउवज की डोरी खोल देता है। कुछ पल मे वो दोनों अपनी मोहब्बत की दुनिया मे चले जाते है।
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ओमकार के घर विराज आता है। विराज उसे अपने घर मे देख कर थोड़ा हैरान होता है। विराज उसकी हैरानी समझते हुए कहता है," जानता हूँ मुझे देख कर तुम्हें हैरानी हो रही है। क्या हम बैठ कर बात कर सकते है। "
रितिका उन्दोनो क़ो देख कर कहती है, "आप दोनों बातें कीजिये मैं कॉफी भिजवाती हूँ।"ये सुनकर विराज कहता है, शुक्रिया मिसेस रायचंद।"
मिसेस रायचंद सुनकर कृतिका कुछ कहने क़ो होती है, तभी ओमकार कहता है, जाईये कॉफी भिजवा दीजिये। रितिका सवालिया नजरों से ओमकार क़ो देखती है और चुप चाप वहाँ से चली जाती है।
ओमकार कहता है बताओं क्या बात है !! विराज कहता है की जानता हूँ मेरे तुम्हारे विचार नहीं मिलते क्योंकि हमदोनों दीक्षा क़ो लेकर सोचते है। लेकिन भुजंग राठौर की बात सुनने के बाद मेरे अंदर हिम्मत नहीं बची। मैं खुद क़ो बेबस और लाचार महसूस कर रहा हूँ। मुझे लगता है जैसा मेरा अस्तित्व झूठा है इसलिये मैं वापस हमेशा हमेशा के लिए लंदन जा रहा हूँ।
ओमकार उसकी बातें सुनकर कहता है, यही हालात अब मेरे भी है। मैं भी अब दीक्षा का ख्याल वापस नहीं लाना चाहता, अगर वो मेरी होती तो दक्ष से पहले मैं उसे मिला था। यहाँ तक की शादी तय करके आया था।आज अगर उसे मेरा होना होता तो मेरी उसके साथ शादी हो चुकी है लेकिन। वो मेरी कभी नहीं है। इसलिए अब उसके बारे में सोचना छोड़ दिया मैंने। लेकिन मैं तुम्हारी तरह भाग नहीं सकता जब मुझे पता है कि उसके ऊपर दुश्मन घात लगाये बैठे है। मैंने बहुत गलत किया था उसके साथ इसलिए मैं पहले उसका पछताप करुँगा फिर उससे माफ़ी मांग कर जाऊंगा ।
मैं भी यहां से जाना चाहता हूं लेकिन तब जब मैं उसे उसके दुश्मनों से बचा सकूँ। मैं उसे सब कुछ बता कर जाना चाहता हूं। तभी विराज कहता है जल्दबाजी मत करना नहीं तो तुम्हारी जान को खतरा हो सकता । ओंकार कहता है, " ये बात तो मैं भी तुम्हें कह सकता हूं? विराज कहता हां बात तो सही है। लेकिन हमें सोच समझ कर काम करना होगा।
तब तक कृतिका उन दोनों के लिए कॉफी ला देती है। कृतिका उन दोनों की बात सुनकर कहती है कि पिछले अतीत में, हम सभी से गलतियां हुई है। यहां से जाने से पहले मेरी भी इच्छा है की हम उन पर आने वाली मुसीबतों से बचा ले ।
विराज कहता है आज से 3 महीने बाद दक्ष प्रजापति का राज्य अभिषेक होने वाला और उसके राज्याभिषेक में बहुत सारे दुश्मन ताक लगाये हुए है तो परेशानियां उन पर एक साथ आने वाली है । अगर तुम्हारा यही इरादा है तो मैं भी चाहता हूं की मैं तीन महीने बाद उसके राज्याभिषेक के बाद ही जाऊ।
ओंकार कहता है तो तुम क्या अभी सब कुछ बताओगे? विराज कहता है नहीं अगर अभी बताया तो बात बहुत बिगड़ जाएगी? विराज कहता है हम सब पर नजर रखते हैं जब जरूरत होगी तब उन्हें बता देंगे वैसे मैंने दीक्षा को मैसेज किया है कि मुझे उससे मिलना है। ओमकार कहता है, वो तो ठीक है लेकिन दीक्षा हमारी बात क्यों मानेगी। उसे हमारी बातों पर बिना सबूत के भरोसा नहीं होगा और इसके लिए हमे सबूत इकठा करना होगा। वैसे तुम बुरा मत मानना मुझे भुजंग राठौर से नफ़रत हो चुकी है।
विराट कहता है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है मुझे लगता है वह मेरा बाप है भी या नहीं क्योंकि वह उसके और खून का असर तो जरूर होता मुझ पर, लेकिन मैं इतनी हद तक नहीं जा सकत। मैं उसकी तरह निचे नहीं हो सकता है। मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा?
ओंकार कहता है बात बात को आगे बढ़ाने से अच्छा है कि तुम पहले अपने पिता की अतीत के बारे में जानो, उनके दिल में क्या था नहीं था उसके बाद ही हम आगे कुछ सोच सकते हैं? फिलहाल के लिए हमें उन दोनों पर नजर रखनी होगी और उनका कौन ऐसा राजदार था उसके बारे मे पता लगाना होगा। अभी अगर तुम या मैं कोई भी प्रजापति के सदस्यों से मिला तो ये ना उनके लिए ना हमारे लिए अच्छा होगा। इसलिये जो जैसा चल रहा है चलने दो।मैं तुम्हारे साथ हूँ।
विराज कहता है, तुम ठीक कह रहे हो। यही ठीक होगा। कृतिका कहती है इसके लिए आप दोनों को उनके साथ ही रहना पड़ेगा, अभी तक आप रहते आये है। ओमकार कहता है हां यही ठीक रहेगा ?
विराज उन दोनों से बात करके कहता है, तो ठीक है आज से हम उनके साथ है लेकिन उनकी बर्बादी के लिए। ओमकार हम्म्म कहता है। विराज जाते हुए कहता है, "एक बात कहुँ !! तुम दूर तलाश रहे हो लेकिन तुम्हारी जीवनसंगिनी तो तुम्हारी करीब है, कृतिका की तरफ इशारा करते हुए कहता है, यही बेहतर है तुम्हारे लिए सोच कर देखना, कहते हुए चला जाता है।
ओमकार उसकी बात सुनकर सोच मे पड़ जाता है और वो कृतिका की तरफ देखता है। कृतिका थोड़ा असहज होकर वहाँ से चली जाती है। ओमकार उसे जाते देखता रहता है।
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इधर संयम प्रताप को मालूम चलता है कि दक्ष प्रजापति अपनी पत्नी के साथ आ रहे है।सयम अपने पिता विक्रम और पदमा जी से कहते है,"बाबा सा !! बहुत सालों बाद प्रजापति महल से वहाँ भावी राजा दक्ष प्रजापति अपनी पत्नी के साथ आ रहे हैं। " सयम की बातें सुनकर उनके दादा जी हरिचंद्र प्रताप कहते है, तो आप यहाँ क्या कर रहे, उनके आने की तैयारी कीजिये। हमारा उनके साथ दोस्ती और रिस्तेदारी दोनों का रिश्ता है। बहुत सालों बाद प्रजापति परिवार से कोई हमारे यहां आ रहे हैं तो तैयारी तो बनती है।स्वागत और आदर मैं कोई कमी नहीं होनी चाहिए, सयम।
जी आप फ़िक्र मत कीजिये दादू !! हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। दक्ष और दीक्षा की स्वागत के लिए प्रताप हवेली क़ो सजाया जाने लगा।विक्रम कहता है, आज तो हमारी गुड़िया रानी भी आ रही है। वो कहाँ है !आयी नहीं अब तक !!
सयम कहता है, " वो बाबा सा वो कुछ फोटाग्राफी करने के बाद आएगी। हम तब तक मेहमान के आने की तैयारी देख लेटे है। पदमा जी कहती है और हम खाने पीने की। "सभी अपने अपने काम मे लग जाते है।
गुलाबी रंगो मे रंगी प्रताप हवेली बेहद खूबसूरत है।मुख्य द्वार से अंदर आते हुए बहुत बड़ा फआउटेन था। मुख्य दरवाजे से ही दोनों तरफ बेहद खूबसूरत खूबसूरत तरह तरह के फूल लगे हुए थे, जो अंदर आते ही सभी के सांसों मे ऐसे बस जाते थे। सभी का मन प्रफूलित हो जाता था।
दीक्षा ज़ब दक्ष के साथ माधवगढ़ घुसती है। तभी सयम क़ो खबर मिल जाती है की प्रजापति आ रहे है।
दक्ष और दीक्षा की गाड़ी प्रताप महल के अंदर आती है। दीक्षा प्रताप महल की सजावट देख कर कहती है, राजा साहब!!क्या इन सभी कों मालूम था की हम आने वाले है। देखिये क्या बेहतरीन सजावट की है इन्होंने।दक्ष कहता है, महरानी सा!! ये सयम प्रताप का इलाका है और वो यहाँ का राजा है तो आप उन्हें कम सममझने की भूल ना करे। उन्हें मालूम हो गया था की हम आने वाले है। इसलिये उन्होंने ये तैयारी करवाई है।
वो दोनों अब प्रताप महल के सामने होते हैं।जब वो अंदर आने लगते हैं तो संयम और उनका परिवार सब उनके स्वागत के लिए खड़े रहते हैं। गाड़ी से पहले दक्ष निकलता है उसे देखते ही सयम आगे बढ़ के उस से गले मिलते हुए कहता है, स्वागत है आपका राजा साहब। दक्ष उसे गरम जोशी से गले लगाते हुए कहता है, राजा साहब नहीं सयम !! सिर्फ दक्ष। सयम मुस्कुराते हुए कहता है, हाँ दक्ष। अंदर आईये आपका स्वागत है । दक्ष आगे बढ़ कर सब को प्रणाम करता है।
तभी पीछे से दीक्षा गाड़ी से निकलती है दीक्षा अभी दक्ष के पीछे थी इसीलिए किसी ने उसे देखा नहीं। दीक्षा जब दक्ष के बगल से सामने खड़ी हो जाती है और सब को हाथ जोड़कर नमस्ते करती है । दीक्षा को देखते ही प्रताप परिवार की आंखें बड़ी हो जाती है और हैरानी से फैल जाती है। दीक्षा इस बात पर गौर नहीं करती लेकिन दक्ष ने इस बात पर गौर कर लिया।प्रताप परिवार वहाँ से हिल नहीं रहा था।
दीक्षा इस बात पर गौर करती उससे पहले ही दक्ष बातों कों संभालते हुए कहता है, " क्या अंदर नहीं ले जाओगे राजा साहब? " संयम हंसते हुए कहता है मैं कब से आपका राजा हो गया राजा तो आप हैं? दक्षा कहता है बहुत सालों बाद मुलाकात हुई है।
सयम सबको लेकर अंदर चला आता है।सबकी नजर दीक्षा पर थी और दीक्षा की नजर चारों तरफ महल देख रही होती उसे महल बहुत खूबसूरत लगता है। दक्ष धीरे से दीक्षा से पूछता है क्या बात है, स्वीट्स !! दीक्षा कहती है, महल बहुत सुंदर है आपका राजा साहब !! ये सुनकर सयम कहता है, आप हमे राजा साहब मत बुलाये। आप हमे भाई बुला सकती है। सभी महल के अंदर आते है। दीक्षा सबको देखती है और कुछ नहीं कहती है फिर हरीशचंद्र जी, पदमा जी और विक्रम जी का पैर छूती और कहती है, पता नहीं क्यों एक अलग सा लगाव महसूस हो रहा है आप सब कों देख कर माधवगढ़ के राजा जी। हरीशचंद्र जी कहते है, बच्चे आप हमे दादू कह कर पुकारे। राजा जी नहीं। दीक्षा मुस्कुरा देती है। पदमा जी अपनी आखों से काजल निकाल कर उनको लगाते हुए कहती है, आप बहुत प्यारी है आपको किसी की नजर ना लगे।
सयम कहता है, दक्ष से, आप सब बैठे। दोनों बैठ जाते है। विक्रम जी कहते है बताये सालों बाद आप आये है तो जरूर कोई बड़ी वजह रही होगी।
दक्ष कहता है, दादी सा और दादू ने कल बहुत बड़ा जश्न रखा है। उसमें आप सबको आना है। हरीशचंद्र जी कहते है, हम तो बहुत बूढ़े हो गए है तो हमारा आना तो जरा मुश्किल हो जायेगा लेकिन पहले ये बताईये की किस उपलक्ष्य मे ये जश्न करने की तैयारी है, राजेंद्र जी की !!
दक्ष कहता है, "अपने परपोते की आने की ख़ुशी मे "!! ये सुनकर विक्रम जी कहते है, लेकिन पृथ्वी की शादी तो. अभी हाल मे ही हुई है। दक्ष कहता है वो हमारे बच्चे दक्षांश प्रजापति की आने की ख़ुशी मे ये जश्न दे रहे है।
ये सुनकर सभी हैरानी से देखते है तो दक्ष कहता है, हमारी शादी सात साल पहले हो चुकी थी। किसी कारणवश हमने अपनी शादी कों छीपाये रखा था। दक्ष की बात सुनकर, विक्रम जी कहते है, हाँ हम समझ सकते है, बहुत छोटी उम्र मे आपने बहुत कुछ झेला है। दीक्षा की बच्चे की बात सुनकर, हरीशचंद्र जी कहते है, ठीक है हम जरूर आएगा। अब बात राजेद्र की परपोते की है तो हम जरूर उन्हें अपना आशीर्वाद देंगे।दक्ष और दीक्षा उनकी बातें सुनकर मुस्कुरा देते है।
दीक्षा फिर महल देखती हुई कहती है, " ये महल मुझे बहुत अच्छी लग रही है। उसे इस तरह से महल देखते देख।पदमा जी कहती है आपको हमारा महल पसंद आया। दीक्षा कहती है, पता नहीं क्यों लेकिन ये महल मुझे अपना सा लग रहा है। आप मेरी बातों का गलत मतलब नहीं समीझियेगा। सभी कहते है, बिल्कुल नहीं ये आपका ही घर है।
हरिश्चंद्र जी कहते हैं, " क्या आप महल देखना चाहेंगे रानी सा? दीक्षा कहती आप मुझसे बड़े हैं आप मुझे रानी सा नहीं बुलाये!! मेरा नाम दीक्षा है। हरिश्चंद्र जी हंसते हुए उसके माथे पर हाथ फेरते और कहते हैं जाइए आप हमारा महल घूम लीजिए। वह दक्ष की तरफ देखती है दक्ष अपनी पलकें झपकाए कर सहमति देते दे देता है।
दीक्षा पदमा जी के साथ महल घूमने चली जाती है । दीक्षा के जाते ही दक्ष अपने कठोर रंग में आ जाता है। दक्ष के सामने प्रताप परिवार से पूछता है कि जब हम अंदर आ रहे थे। तो आप सबके चेहरे पर है, हमारी पत्नी कों देख कर आप सभी के भाव बदल गए थे। हम जानना चाहते हैं आप इस तरह से हमारी पत्नी को क्यों हैरानी से देख रहे थे?
यह सुनकर हरिश्चंद्र जी कहते हैं संयम। संयम कहता है जी दादा जी । यह कहते हुए वह कुछ पल के लिए एक कमरे के अंदर जाता और वहां से एक एल्बम लेकर बाहर आता है। वह बाहर आते ही वह एलबम दक्ष को देते हुए कहता है, पहले आप ये एल्बम को देखिए।
दक्ष जैसे ही एल्बम खोलता है पहला फोटो आराध्या प्रताप यानी की दीक्षा की मां का था। दीक्षा हूबहू अपनी मां की तरह दिखती थी।तभी हरीशचंद्र जी कहते है, अब आप समझ गए होंगे की हम सभी आपकी पत्नी कों देख कर क्यों हैरान हो रहे थे।
दक्ष उनकी बात सुनकर फिर से तस्वीर की तरफ देखकर कहता है,यह तो दीक्षा की मां है? हरिश्चंद्र जी कहते हैं तुम सच कह रहे हो। तो मैं आपसे झूठ क्यों बोलूंगा दादा जी ? तो हम पूछते आपको पता है कि आपकी पत्नी के माता पिता का नाम क्या है?
दक्ष कहता है, " जी!! अभिषेक राय और आराध्या राय। हरिश्चंद्र जी के साथ साथ सबकी आंखों में नमी आ जाती।विक्रम जी कहते है, यानी आप हमारे जमाई हुए। सयम चलो हम हमारी बच्ची से मिलते है। हम उसे बतायेगे की ये उसके माँ का घर है और हम उसके मामा है और तुम उसके भाई हो।
दक्ष विक्रम जी बात सुनकर कहता है, "आप बुरा ना माने तो हम आपसे कुछ कहना चाहते है !! विक्रम जी के साथ सभी दक्ष की तरफ देखते है। दक्ष किसे से कुछ कहता उससे पहले सयम से कहता है, दीक्षा महल घूम रही है। अगर उन्होंने कही भी आराध्या माँ की तस्वीर देख लीं तो मुश्किल हो जाएगी। तो आप सबसे पहले अपनी माँ सा से कहिये की वो उन्हें तस्वीरे ना दिखाए।
सयम बिना सवाल किये पदमा जी कों फोन लगा देता है और उनको सब समझा देता है। अब हरिचंद्र जी बड़ी उम्मीद से दक्ष की तरफ देखते है और जानना चाहते है की क्यों उन्होंने ये बताने से मना कर दिया।
तभी दक्ष कहता है, हमे मालूम है की आप दीक्षा कों सब बताना चाहते है लेकिन नानू !! ये सुनकर हरिचंद्र जी मुस्कुरा देते है और कहते है, हमे ख़ुशी है की आपने हमे अपना नानू मान लिया।काश दीक्षा भी हमे अपना नानू मान लेती।
दक्ष कहता है, बात ये है की दीक्षा का अपने पिता के परिवार से कोई रिश्ता नहीं रहा। उसकी दादी और दादा उससे कोई मतलब नहीं रखना चाहते और उन्होंने उसके साथ कभी कुछ अच्छा नहीं किया, माँ पापा के जाने के बाद। उसे कुछ दिन पहले ही मालूम हुआ की आरध्या माँ किसी राजपरिवार से थी और उन्होंने पापा से यानी सामान्य आदमी से शादी की थी। आप सभी ने उनसे रिश्ता तोड़ लिया और कभी भी उनके मरने के बाद भी दीक्षा की खोज खबर नहीं लीं।
दीक्षा के लिए ना उसके दादा दादी और ना ही नाना नानी, उन्हें किसी से रिश्तेदारी नहीं रखना चाहती। उसे अचानक अगर आप बताते है तो शायद उसे.....!!!!!
दक्ष अपनी बातें पूरी करते हुए कहता है, मेरे कहने का मतलब ये है की अचानक उन्हें बताने से बेहतर है की थोड़ा थोड़ा उन्हें बताया जा। एक बार आप सभी से घुल मिल जाये तो शायद उनको आसानी हो आप सब कों अपनाने मे।
दक्ष की बात सुनकर विक्रम जी कहते है, " हाँ!! उस वक़्त हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी थी लेकिन यकीन मानिये उसके बाद हमने उन्हें ढूढ़ने की बहुत कोशिश की थी लेकिन उनकी कोई जानकारी हमे नहीं मिली !! उनकी एक बेटी और एक बेटा ये खबर भी हमे आपके माता पिता से मिली !! आप यकीन मानिये हम अब तक उन्हें ढूढ़ रहे है।
अब चौकने की बारी दक्ष की थी। वो पूछता है क्या मतलब!!विक्रम जी कुछ कहते उससे पहले सबकी नजर सीढ़ियों से उतरती हुई दीक्षा पर गयी। सयम दीक्षा कों देख कर कहता है, दक्ष हमे बात करने की जरूरत है लेकिन बाद मे।
दक्ष उसकी बातें सुनकर कर, हाँ कहता है।
दीक्षा कों देख विक्रम जी उनके पास आकर कहते है, कैसा लगा आपको ये महल !! दीक्षा कहती है, काका सा आपका महल बहुत खूबसूरत है। हमे बहुत अच्छा लगा। दीक्षा की बात सुनकर विक्रम जी कहते है, "आपकी माँ !! " ये सुनकर दीक्षा असमंजस मे विक्रम जी की तरफ देखती है। तभी पदमा जी कहती है, यानी पार्वती रानी सा !!। दीक्षा मुस्कुराते हुए कहती है, ओह्ह्ह!!अब समझे!!
विक्रम जी खुद कों संभालते हुए कहते है, "जी आपकी माँ सा,को हम अपनी बहन मानते थे। इस नाते दक्ष के साथ साथ हम आपके भी मामा हुए और हरीशचंद्र जी की तरफ हाथ बढ़ा कर कहते है, ये आपके नानू हूँ। इस नाते आप हमे काका नहीं मामा बुलाइये और इनको मामी !! और इनको दादू नहीं नानू आप बुलाइये !!"
दीक्षा दक्ष की तरफ देखती है तो दक्ष कहता है, ये बिल्कुल ठीक कह रहे है, महरानी सा!!हमारा रिश्ता यहाँ ननिहाल का है। दीक्षा मुस्कुराते हुए कहती है, हमे अच्छे बुरे सारे रिस्ते मिले लेकिन ननिहाल का रिश्ता कभी नहीं मिला, इसलिये हमारा अरमान रह गया की हम किसी कों नानू या मामू बुलाये।आज हमारा वो अरमान भी पूरा हो गया।सयम कहता है और हमे भी एक बहन मिल गयी और साथ ही साथ बहनोई भी क्यों दक्ष ?
दक्ष मुस्कुराते हुए कहता है, और हमे भी दो साले मिल गए। दीक्षा मुस्कुराते हुए कहती है, हमारा छोटा भाई है जो ऑस्ट्रेलिया मे रहता है। दक्ष कहता है, " रहता नहीं है !! रहता था !"
दीक्षा हैरानी से पूछती है, क्या मतलब आपका, " दक्ष कहता है वो आ रहा है कल, हमने उन्हें बुला लिया है। बहुत सालों से आपने सबकी डर के कारण उसे बाहर भेज दिया था। अब उसका परिवार मे रहना बहुत जरूरी है। "
विक्रम जी मुस्कुराते हुए कहते है, यानी हमे भांजी और भांजा दोनों मिल गए। दीक्षा मुस्कान लिए सबको देखती है।
पदमा जी कहती है, पधारो जमाई सा !! खाना तैयार है। दीक्षा कहती है इसकी क्या जरूरत है। फिर दक्ष कहता है, खाना खाने से पहले आप से एक प्रार्थना करना चाहता हूँ। सभी मुड़ कर दक्ष कों देखते है।
दक्ष कहता है बहुत सालों बाद मुझे और मेरी पत्नी कों अपना ननिहाल मिला है तो हम चाहते है की आप सब आज हमारे साथ चले। कल जश्न के बाद आप सब वापस आ जाना !! दादू और दादी से भी सालों के गीले शिकवे दूर हो जायेगे और आप अपने परनाती कों भी देख लेगे।
दक्ष की बात और मतलब सब समझते है, इसलिये बिना किसी सवाल के सब एक साथ कहते है। ठीक है जरूर चलेंगे लेकिन पहली बार अपनी नातिन के ससुराल जायेगे तो खाली हाथ नहीं जायेगे।
ये सुनकर दीक्षा कहती है, नानू आप भूल रहे है, दक्ष आपने नाती है और हम उनकी पत्नी। तभी पदमा जी कहती है, बात तो. एक ही है बस हमने दक्ष कों जमाई और आपको बेटी बना लिया ! क्या आप हमे अपना मायका नहीं बना सकती अपनी माँ की तरह। ये कहती हुई पदमा जी की आँखे नम हो जाती है।
दक्ष कहता है, सही कह रही है मामी जी, महारानी सा !! इस बहाने हमे भी अपना ससुराल मिल जायेगा और हम भी थोड़ा जमाई होने के नखरे उठा लेगे।जैसे तूलिका और रितिका का मायका निशा और सुकन्या मॉम हुई। वैसे ही माँ सा का मायका आपका मायका हुआ।
दक्ष का तर्क सुनकर जहाँ प्रताप परिवार ख़ुश हो गया था। वही दीक्षा के पास भी कोई जबाब नहीं था। वो पदमा जी से कहती है, ठीक है मामी,!! आप जैसा कहे। सयम कहता है चलिए खाना खाइये।
दक्ष कहता है और हमारी छुटकी कहाँ है ? सयम कहता है, "वो तुम्हारे इलाके मे है !! दक्ष मुस्कुराते हुए वीर कों मेसेज कर देता है और फिर सबसे कहता है, हमने वीर कों मेसेज कर दिया है की वो वहाँ से छुटकी कों लेकर आ जाये।"
तभी सयम कहता है वो अकेली नहीं है उसकी दो दोस्त साथ मे है। दक्ष कहता है, कोई नहीं!!उन्हें भी साथ ले लेगे।
दीक्षा कहती है, ये छुटकी कौन है !! दक्ष कहता है आपकी छोटी बहन!!चलिए उनसे भी मुलाक़ात आपकी हो जाएगी।
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इधर शुभम और अंकित लखिपुर आते है और उस जगह पर पहुंचते है, जो दीक्षा ने बताया था। अंकित कहता है, ये अजीब गाँव है इसमें लोग रहते भी है या नहीं,!! शुभम कहता है, हाँ !! कोई नजर क्यों नहीं आ रहा है !!
तभी एक पुरानी टूटी हुई दरवाजे के बाहर आकर पुकारते हुए कहते है, कोई है !! दो तीन बार पुकारने से एक बूढ़ी औरत तकरीबन 80-90 साल की बेहद झुकी हुई लाठी के सहारे धीरे से दरवाजा खोलती है। वो पूरी तरह से हिल रही थी। तभी अंकित उन्हें ठीक से पकड़ लेता है और कहता है, दादी माँ !! और कोई नहीं है !!
वो बुजुर्ग औरत अपने काँपते हुए अधूरे शब्दों मे कहती है। इस गाँव मे मुझे मिला कर सिर्फ दस बुजुर्ग रहते है। एक महामारी ने सारे गाँव कों खत्म कर दिया।
फिर शुभम कहता है तो आप सभी का यहाँ गुजड़ बसर कैसे होता है। वो बूढ़ी औरत रोती हुई कहती है,बस कैसे भी एक वक़्त का कुछ खाना हो जाता है। पुरे गाँव की हालत देख कर अंकित आकाश कों फोन करता है और उसे कुछ खाने पीने की जरूरी चीजों कों लाने का बंदोबस्त करने कों कहता है।
शुभम कहता है, हमे आपसे बात करनी थी दादी माँ !! लेकिन हम सोच रहे थे की वो जो बरगद का पेड़ है उसके निचे हम बैठते और आपके साथ साथ जो और लोग है उनसे मिलते। " बूढ़ी अम्मा खुश होती हुई कहती है सच बेटा। पहले तुम सब घर के अंदर आओ और बैठो। मै सबको तब तक चौपाल पर आने कों बोल देती हूँ। "
शुभम और अंकित एक दूसरे कों इशारे मे कुछ कहते है और अपने दो आदमी कों बुलाते है। दोनों गार्ड आकर उनके सामने खड़े हो जाते है। अंकित कहता है, अम्मा के साथ साथ जाओ, जहाँ जहाँ वो कहती है। वो दोनों सर झुका बूढ़ी अम्मा के साथ चले जाते है।
शुभम और अंकित दोनों तेजी से उनके घर मे घुसते है। दोनों तेजी से बहुत कुछ ढूढ़ने की कोशिश करते है। पुराना घर और सब टुटा फूटा समान जिसे देख अंकित कहता है, यार लगता नहीं की हमे यहाँ कुछ काम की चीजे मिलेगी। शुभम कहता है, अच्छे से देख शायद कुछ बेहतर मिल जाये। दोनों उस छोटे से हर के हर कोने कों खंगालते है। दोनों एक दूसरे कों निराशा भरी नजरों से देखते है। तभी शुभम के पैर मे कुछ फसंता है। जैसे ही वो गिरने कों होता है, अंकित उसे पकड़ते हुए कहता है, संभाल कर भाई !! शुभम कहता है देख तो।
दोनों की नजर निचे जाती है, मिट्टी के अंदर दबा हुआ एक काला कपड़ा देख। दोनों उस कपड़े कों पकड़ मिट्टी हटाना शुरु कर देते है।
दोनों जबाब मिट्टी हटाते है तो उनकी नजर एक पुरानी लोहे के छोटे बक्शे पर जाती है। अंकित उसे निकाल खोलने लगता है। शुभम कहता है, रुक जा मेरे भाई !! यहाँ नहीं ये तु गाड़ी मे रख और इस जगह कों उसी तरह मै करके चौपाल पर मिलता हूँ। अब वो सब आ रहे होंगे।