2 साल बाद चाचा की शादी हुई और चाची भी आ गई ।उस समय मां गर्भवती थी। अक्सर देखा जाता है की देवरानी जेठानी में थोड़ा मतभेद और काम का बंटवारा हो जाता है। वैसा कुछ मां और चाची के केस में नहीं था। जिसको जो मन करता था वो काम कर लेते थे। चाची के कुछ ना करने पर भी मां चाची को कभी कुछ नहीं बोलती थी सारा काम खुद कर लेती थी ।इसलिए दोनों सामान्य रूप से रहते थे ।उस समय का दौर ऐसा था कि बस जरूरतें पूरी होती थी चाहतों के बारे में कोई सोचता ही नहीं था।
न मां-पापा और न ही चाचा, किसी के भी बचपन में मस्ती ,खेलना कूदना तथा तरह-तरह की चीजें खाना ऐसा कुछ नहीं था जैसा अभी है। 4 जुलाई 2002 में मेरी दीदी का जन्म हुआ ।नाम रखा गया प्रेमीन। हमारे परिवार में दीदी पहली संतान थी तो उसे बहुत प्रेम मिला लोग उन्हें गोद में उठा लिया करते तथा अपने साथ खेलाते ।मां को काम पर जाना पड़ता तो मां दीदी को साड़ी के बने झूले में सुला कर काम पर जाती थी ।दीदी अकेले घर में रहती थी ।दीदी के लिए खिलौने वगैरह कुछ नहीं थे। मां को अब भी वैसे ही काम करना पड़ता और दीदी का भी ख्याल रखना पड़ता । मेरी चाची को भी एक लड़का हुआ जिसका नाम था राजू ।वह पीलियाग्रस्त था । उसके इलाज के लिए ज्यादा व्यय नहीं किया जाता ।
एक बारदीदी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी ।दीदी को बहुत झटके आ रहे थे। दीदी की स्थिति बहुत खराब थी। लोगों के अनुसार दीदी को किसी ने नज़र लगा दिया था। दादी मिर्च से दीदी की नजर उतारी। तब दीदी ठीक भी होने लगी।
माँ गर्भवती हुई ।उसी समय हमारा एक फैमिली फोटो लिया गया जिसमें मैं मां के पेट में थी और दीदी मां और पापा के साथ खड़ी थी ।गर्भवती होने के बावजूद मां हर काम करती ।9 जनवरी 2004 को घर में ही मेरा भी जन्म हुआ। बस एक दाई ( धात्री )को बुला लिया गया था ।बच्चे को जिस साबुन से सबसे पहले नहलाया जाता और जिस कपड़े से सबसे पहले पोछा जाता उसे दाई को दे दिया जाता थाऔर साथ में सेर समान( जिसमें चावल, दाल, सब्जी ,नमक,मिर्च इत्यादि समान आते हैं )को भी दाई को दे दिया जाता ।
मैं बचपन में बहुत सुंदर और थोड़ी मोटी थी पर मैं बहुत रोती थी। चुप कराने के लिए मुझे एक नशीला पदार्थ खिला दिया जाता जिससे मैं दिन भर सोई रहती । मां को काम करने में परेशानी ना हो इसलिए मुझे सुला दिया जाता । मैं बहुत दीवार चाटती थी और मिट्टी खाती थी । मैं थोड़ी झगड़ालू किस्म की थी ।मेरा चाचा के बेटे राजू के साथ बहुत झगड़ा होता था। सबसे ज्यादा खाने वक्त और सोने वक्त। खाने वक्त थाली को लेकर झगड़ते और सोने वक्त दादी के साथ सोने के लिए। दादी तंग आकर मुझे और राजू को अपने साथ एक-एक तरफ सुला लेती । दादी के ऊपर हाथ रखने पर अगर दोनों का हाथ छुआ जाता तो हम दोनों फिर झगड़ने लग जाते । मेरा एक फोटो भी लिया गया है जिसमें मैं दादी की गोद में हूं। मेरे आंख पर गाल पर और माथे में काजल लगी हुई है ।मैं गोरी गोरी और मोटी सी दिख रही हूँ। मैं और दीदी खाट को चारों तरफ से ढक कर उसके नीचे घुसकर खेला करते थे। मैं छोटी थी तो मां के साथ सोती थी और दीदी को पापा के साथ सुलाया जाता ।मैं अक्सर रात को डर के चौककर उठ जाती थी और रोने लग जाती थी इसलिए दौना पत्ती( जिससे बहुत खुश्बू आती है ) को मेरे कानों में खोंच दिया जाता ।मैं और दीदी सड़क पर गोबर बिनने जाते। हम लोग गोबर जीतने वाला खेल भी खेला करते ।इसमें गोबर से कटोरा जैसा बनाकर उसे उल्टा पटका जाता और वो जितना बड़ा फूटता उसको सामने वाले को भरना पड़ता। हम लोग बचपन में 'अत्ती पत्ती कौन सी पत्ती' वाला गेम भी खेला करते। इसमें जिस पत्ती का नाम लिया जाता उसे लाकर गोले में वापस आना रहता था। अक्सर मैं नहीं ला पाती थी और छुआ जाती थी। मैं छोटी थी तो दीदी को मेरे बदले दाव देना पड़ता ।इसलिए दीदी मुझे खेलने नहीं देती थी पर मैं भी जिद्दी थी खेल ही लेती थी ।
2 साल बाद 22 जून 2006 को आषाढ़ के महीने में मेरी छोटी बहन का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गया इंद्राणी ।मेरी बहन गोरी और मोटी सी। उसके बाल बहुत घुंघराले थे ।इंद्राणी को जन्म होते ही निमोनिया हो गया था। दादी अधिक पैसा खर्च नहीं करना चाहती थी इसलिए डॉक्टर को अक्सर नहीं बुलाती थी और बांस का अलाव जलाकर उसकी सेकाई कर देती थी ।कई बार तो बांस को लाकर मां को दे देती थी सेकाई करने के लिए और खुद नहीं करती थी । माँ हर काम करती फिर अंत में उसकी सेकाई भी करती थी ।कई बार रात को उसकी सांस फूलने लग जाती तो मां रात भर जाग कर उसकी सेकाई ही करती ।मां को बहुत बुरा लगता जब दादी उसके इलाज के लिए कुछ नहीं करती थी ।
एक बार इंद्राणी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी तो पापा ने इलाज के लिए ₹50 खर्च कर दिए थे। उस समय ₹50 बहुत था । दादी चाचा और पापा को खर्च के लिए पैसे दिया करती थी। उस बार उन्होंने चाचा को तो ₹100 दिए लेकिन पापा को बस ₹50 दिए ।पापा ने पूछा कि उन्हें बस ₹50 क्यों दे रहे हैं तो उन्होंने कहा कि पापा ने पहले ही ₹50 खर्च कर दिए हैं इसलिए उनको कम मिल रहा है। उसी समय से पापा और दादी में थोड़ी मतभेद हो गई और दादी पापा को कम पसंद करने लगी ।दादी चाचा को एक बार में ही पैसे दे देती। पर पापा को बड़ी मुश्किल से देती थी। चाचा दिनभर घूमते रहते क्रिकेट भी खेलने चले जाते तो भी दादी उनको कुछ न कहती थी। कोई काम रहता तो दादी पापा से ही करवाती। घर में थोड़ा मतभेद होने लगा तो मां और पापा को घर पर अच्छा नहीं लगता था इसलिए इंद्राणी को लेकर कमाने के लिए गुजरात के गांधीनगर में चले गए।
मां पापा काम करते रहते उस वक्त इंद्राणी का ख्याल रखने के लिए दीदी को साथ लेकर गए थे। मुझे नहीं ले गए क्योंकि मैं छोटी थी अपनी बहन का क्या ख्याल रखती । मुझे दादी लोगों के साथ ही छोड़ दिया गया। मुझे घर का सारा काम करना पड़ता । झाड़ू लगाती , कपड़े घरी करती , बर्तन धोती ,पानी भरती और कभी कभी खाना भी बनाना पड़ता। दीदी अपने पैर को लंबा करके पैर पर इंद्राणी को लिटा दिया करती और गाना गाती - सो जा बहनी सो जा, लाल पलंग में सो जा '। ऐसा करने से इंद्राणी सो जाती और दीदी खेलने चली जाती।
वहां पर इंद्राणी अक्सर दरवाजे के पास बैठी रहती थी। एक बार वह दरवाजे पर हाथ रखी हुई थी उस स्थान पर जहां पर से दरवाजा खुलता और बंद होता है। तभी एक लड़के ,जिसको सब लड्डू कहते थे पर उसका असली नाम उमेश था, उसने दरवाजा बंद कर दिया और मेरी बहन की उंगली कट गई बस थोड़ी सी जुड़ी हुई थी ।वहां पर मुंशी (ठेकेदार) बिरबल था तो उसी के साथ मम्मी पापा उसको लेकर अहमदाबाद के हॉस्पिटल में गए ।वह बहुत रो रही थी । बहुत देर तक घूमने के बाद एक नर्स मिली और उसने सीधा उंगली जो आधी कटी हुई थी उसको पूरा काट दिया और उस में पट्टी बांध दिया।
मां पापा को घर से कॉल आया। राजू की तबीयत बहुत ज्यादा खराब थी इसलिए दादी उनको घर बुला रही थी। माँ पापा ट्रेन से घर आ रहे थे । ट्रेन पर ही अचानक से इंद्राणी की साँसे निमोनिया के कारण फूलने लगी। स्टेशन पर पहुँचकर माँ पापा उसको एक हॉस्पीटल में ले गए। डॉक्टर ने इंद्राणी की जांच की और पापा के हाथ में साइन करने के लिए एक पत्र थमा दिया गया। उस पर लिखा हुआ था -
बच्चे को अगर कुछ भी हुआ तो उसका जिम्मेदार मैं हूँ।डाक्टर या फिर हॉस्पीटल इसके लिए जिम्मेदार नहीं है।
स्थिति बहुत ही खराब थी। जान भी जा सकती थी ।साइन न करने पर डॉक्टर एडमिट करने से मना कर रहे थे इसलिए पापा ने साइन कर दिया । ऊपर वाले की कृपा से वह ठीक हो गई। उसको लेकर मां पापा सीधे मामा गांव सेमरिया चले गए। उस को वहीं छोड़ने का निश्चय किया गया क्योंकि कड़कड़ा में दादी उसके इलाज के लिए कुछ भी नहीं करती थी और उसका कोई अच्छे से ख्याल नहीं रखते थे ।तब से वह सेमरिया में ही रहने लगी ।और हम दोनों मतलब मैं और दीदी कड़कड़ा में रहनेलगे। कभी-कभी बीच में इंद्राणी को भी कड़कड़ा लाया जाता।