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Chapter 6 - चैप्टर 5

एक दिन चाची सिर पर रखकर ईंट ला रही थी रही थी और दरवाजे के पास लाकर जब पटकी तो एक दो ईंटे टुट गए। टूटे हुए ईंटों को देखकर चाचा को बहुत गुस्सा आया। गुस्से में चाचा ने चाची को हथौड़ी फेंककर मार दिया। हथौड़ी सीधा जाकर चाची के माथे पर लगा। बहुत खून बहने लगा। न हॉस्पीटल लेकर गए न ही डाॅक्टर को बुलाया। चुने को भरकर चाची के माथे पर पट्टी बांध दिए। उसके बाद चाची फिर काम करने लगी। जब से राजू की मृत्यु हुई थी तब से चाचा छोटी छोटी बात पर गुस्सा हो जाते थे। और अपना गुस्सा चाची पर निकालते थे।

घर का आधारभूत ढाचा बन चुका था मतलब थोड़ा बचा था घर पूरी तरह बनने में। घर में पैसे नहीं थे। माँ पापा कमाने खाने के लिए महाराष्ट्र चले गए ।मुझे और दादू को साथ लेकर गए। भाई को सब घर में दादू ही कहते थे ।मुझे दादू का ख्याल रखने के लिए भेजा गया था।दीदी को इंद्राणी के साथ सेमरिया में छोड़ दिया गया। शहर में बड़े बड़े बिल्डिंग को बनाने के लिए माँ पापा को काम मिला था। छोटी सी झुग्गी जो कि टीना का बना रहता था। उसमें हमलोग रहते थे। वहीं पर एक बहुत बड़ी नदी है । उसमें बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां थी । लोग उसको पकड़ने जाया करते थे ।बरसात के दिनों में मोर की आवाज सुनकर हम लोग उसे देखने जाते ।हमारे जाते ही मोर नाचना बंद कर देते और उड़ जाते थे। वहां पर मक्का बाजरा ज्वार मूंगफली और गन्ने की खेती की जाती थी ।हम लोग गन्ने को चुराकर खाते थे ।मक्का तो ऐसे ही मिल जाता था ।कहीं-कहीं अंगूर जामुन आम, चिकू,नींबू और और नारियल की भी खेती होती थी । वहां हमें हर चीज आसानी से मिल जाता था वही हमारे झुग्गी के पास एक तालाब था उसी में हम मछली पकड़ा करते और साथ ही नहाते थे ।शौच के लिए बाहर जाते। बाकी सारी चीजें अच्छी थी।

वहां पर कम काम करना पड़ता था। चिंता भी कम थी। वहां का काम भी आसान था। माँ वहाँ बहुत सुंदर दिखती थी। मां की सेहत भी अच्छी होने लगी। मतलब माँ की देह आ रही थी। मां की जिंदगी लड़ाई झगड़े से दूर बहुत अच्छी थी । मां सुकून से हंसती थी। हर हफ्ते मां दादी और नानी से कॉल पर बात किया करती थी।

हम सब नहा धोकर खाना खाकर 8:00 बजे काम पर जाते थे। मां मेरे में केला चोटी डालती थी और रिबन से बहुत बड़ा बड़ा फूल बना देती थी (बाल को गूंथकर उसे मोड़कर ऊपर में रिबन से बांध दो तो उसे केला चोटी कहते हैं) । काम ज्यादा कठिन नहीं था पापा अक्सर मसाला बनाते थे और माँ उसे ले जाती थी। कभी-कभी माँ ईंट ले जाने का काम भी करती थी। इस तरह काम बदलते रहते थे। 1:00 बजे लंच की छुट्टी होती थी फिर 4:00 बजे हम लोग वापस झुग्गी में आ जाते थे । सबकी झुग्गी जुड़ी रहती थी ।लोग कहते थे कि 12:00 बजे भूत आता था और सब की झुग्गी के ऊपर दौडता था। लेकिन हमलोग कभी ऐसा कुछ नहीं सुने। वहां पर भी लड़ाई झगड़े होते रहते थे । पति अपनी पत्नी को मार पीट देते थे। इसलिए हम लोग झुगी के आपपास ही रहते थे ।वहां पर मेरी मां पापा का बहुत अच्छा नाम था। मां पापा हर काम ईमानदारी और लगन से करते थे तो मुंशी लोगों के साथ भी माँ पापा का ता बहुत अच्छा संबंध रहा।

वहां पर पापा की दोस्ती दत्ता नाम के एक व्यक्ति से हुई ।वे पापा को हर जगह ले जाते थे। मंदिर तथा तीर्थ स्थलों की सैर कराते थे ।कभी-कभी हम लोग भी उनके साथ घूमने जाते थे। दत्ता अंकल बहुत अच्छे थे ।उनका आदर व्यवहार बहुत अच्छा था ।वे हर मंगलवार को हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते थे और प्रसाद बांटने सबसे पहले हमारे घर ही आते थे ।मेरे और दादू के हाथ में धागा की एक बैंड (जो राखी जैसी रहती है पर उस पर हनुमान भगवान की तस्वीर होती है) को बांधा करते थे। माँ को उनका आना जाना पसंद न आता था। दत्ता अंकल महाराष्ट्र के ही मूल निवासी थे। वे अभी भी पापा को काॅल करते रहते हैं। इस तरह माँ का जीवन शहर में गाँव से कहीं बेहतर था।