दादू के जन्म के कुछ ही साल बाद हमारे घर का बँटवारा हो गया। हमलोगों को रहने के लिए वही नया घर मिला जिसे हम लोग बना रहे थे। हमने सारा सामान नए घर में शिफ्ट किया। हम लोगों को बस जरुरत का ही सामान दिया गया और कई चीजे तो हमें ही खरीदनी पड़ी। खेत के नाम पर बस हमें 4 काठा का खेत (लगभग 40 डिस्मिल का) मिला।
मां पापा शहर जाने के लिए टिकट बुक कराए। वे सेमरिया से होते हुए शहर जाना चाहते थे। ऐसे में वे हम लोगों को सेमरिया में ही छोड़ देते। तो हम सब भी सारा सामान लेकर ठाठापुर चले गए। ठाठापुर से हमलोग बस लेकर सेमरिया जाने वाले थे। हम लोगों ने बहुत समय तक बस का इंतजार किया पर बस ना आई। फिर पता चला कि भारत बंद लागू कर दिया गया है इसलिए सारे वाहन बंद है ।हम लोगों ने वापस जाना ठीक न समझा ।घर में तो ताला लगाकर आ चुके थे। हमारे साथ मीना मौसी भी थी। हम सब पैदल चलने के लिए तैयार हो गए। सब थोड़ा थोड़ा सामान उठाकर चलने लगे। कड़ी धूप थी। मुझे तो बार बार चक्कर आ रहा था और उल्टी भी हो रही थी। माँ मेरे ऊपर बीच बीच में बोतल का पानी डाल देती। सब बैठते बैठते गए। गर्मी बहुत थी। मौसी सबसे पीछे चल रही थी। माँ बीच बीच में हँसते हँसते बोलती - "तू तो बच्चों जितना भी नहीं हो रही है। " सब सुनकर हँसते और हमारी चाल और बढ़ जाती। थोड़ी कोई तारीफ कर दे तो यहीं होता है। सेमरिया और कड़कड़ा के बीच लगभग 12-13 किमी का फासला है। सुबह 7 बजे से निकले निकले शाम के 4 बजे सेमरिया पहुँचे। सबकी हालत पस्त हो चुकी थी। माँ पापा रातभर वहीं रुके और अगले दिन शहर चले गए। मुझे भी साथ ले गए।
स्कूल जब आषाढ़ में खुला तो चाचा दीदी को कड़कड़ा के ही सरकारी स्कूल में भर्ती कर दिए।उसको स्कूल जाना बिलकुल भी पसंद नहीं था। वो तो टीवी की दीवानी थी। पढाई लिखाई में उसका मन न लगता था। स्कूल की छुट्टी होने से पहले ही भागकर आ जाती थी। रोज स्कूल भी नहीं जाती थी। पापा जब शहर से आए तो वे ही उनको पीटते पीटते ले जाते थे। चौथी तक यूँही दीदी बेमन कड़कड़ा में ही पढ़ी। दादा दादी, चाचा चाची सब परेशान थे उससे और मेरे से भी।मा पापा से हमारी शिकायत करते की हमलोग कुछ काम नहीं करते । इसलिए दीदी को भी सेमरिया भेज दिया गया। वो वहीं पांचवी पढ़ने लगी। वहां पढ़ाई में भी उसका मन लगने लगा। इंद्राणी को भी पहली कक्षा में वहीं भर्ती कराया गया।
एक साल बाद मैं वापस आई शहर से तो मेरा दाखिला सीधे तीसरी कक्षा में किया गया। मैं दादी लोगों के ही साथ कड़कड़ा में ही पढ़ने लगी। एक महीने तक मुझे दूसरी कक्षा में बिठाया गया। तो मैं पहले बेसिक चीजें सीखी जैसे अनार- आम और बारहखड़ी वगैरह। तब जाकर मुझे तीसरी कक्षा में बिठाया गया।
फिर मैं अच्छे से पढ़ने लगी ।तीसरी में मेरे कोई भी दोस्त नहीं थे क्योंकि मैं पढ़ाई में तेज़ थी । मैं इतनी जल्दी सब कुछ सीख गई थी इसलिए सब जलते थे और मुझसे कोई दोस्ती नहीं करते थे। हमारी क्लास में रोज एक दादा शिक्षकों से मिलने आते थे । हमारा क्लास सामने में ही था तो वहीं पर ही बैठ जाते थे ।वे अक्सर गैस छोड़ दिया करते । और कहते कि हमलोगों ने छोड़ा है। सब हंसते थे सबको पता रहता कि उन्होंने ही छोड़ा है ।उनके पास में ही एक गोरी सी लड़की बैठती थी ।सब उसको चिढ़ाते थे कि वो सड़ गई बदबू से । फिर वह घर जाती नहाने के लिए। सब लोग बहुत हंसते ।चौथी तक मैं दादा दादी के साथ रही। सब काम करती थी। फिर मैं जब पांचवी में आई माँ पापा ने शहर जाना बंद कर दिया और मैं उनके साथ रहने लगी अपने घर में।