Chapter 64 - आधी रात में मेहमान का आना

जियांग मुए ने सारे खेलने के यंत्र अच्छे से सजा दिए| कुछ जेली, चिप्स, सूखी मछलियाँ, वाइन आदि लाकर रख दी| यह सब करते हुए वह उत्साहित था और अपनी पसंदीदा धुन गुनगुना रहा था।

सब कुछ तैयार था, वह ज़मीन पर पालथी मारकर बैठ गया| उसने अपने दोनों हाथ आपस में रगड़े जैसे बस अब शुरू ही करने वाला हो, कि तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

जियांग मुए का चेहरा काला पड़ गया| जाकर दरवाज़ा खोलने के बजाय उसने ले मींग को फोन किया " घंटी बजाना बंद करो। एक बार तुम्हें बोल दिया न कि कल समय पर पहुँच जाऊँगा? फिर भी। खुद को मेरा मालिक क्यों समझते हो तुम, क्या मैं तुम्हारा पालतू कुत्ता हूँ कि जो तुम बोलो वही करूँ? क्या अब मैं अपना पसंदीदा खेल भी तुम्हारी इजाज़त के बगैर नहीं खेल सकता?"

" क्या बोले जा रहे हो? कौन सी घंटी?" ले मींग को समझ नहीं आ रहा था कि मुए क्या बोले जा रहा था।

"तुम दरवाज़े पर खड़े होकर घंटी नहीं बजा रहे क्या ?"

"मै तुम्हारे घर से काफी दूर हूँ और कार चला रहा हूँ|" ले मींग ने मासूमियत से जवाब दिया।

" तो फिर कौन हो सकता है इतनी रात गए ?" जियांग मुए ने शंका से कहा, " मुझे ज्यादा लोग नहीं जानते यहाँ|"

" मुए अब यह मत कहो कि तुम्हारा पता किसी को मालूम हो गया| दरवाज़ा ध्यान से खोलो, पहले चेक करो कौन है| अगर पत्रकार हुए तो मत भूलो निंग क्षी भी वही है।"

"क्या हुआ जो पत्रकार आ जाए? या निंग क्षी को देख ले?" मुये का बे परवाह उत्तर था।

ले मींग ने हारे हुए भाव से कहा, " मुए मैं तुम्हें ज्ञान नहीं दे रहा हूँ, पर मेरी बात सुनो| तुम निंग क्षी की मदद करना चाहते हो अच्छी बात है पर उससे तो पूछ लो कि वह तुम्हारी मदद लेना भी चाहती है या नहीं? यह अब साफ हो चुका है कि वह तुम्हारी मदद नहीं लेना चाहती। वह तुम्हारे चोरों वाले जहाज़ पर नहीं बैठना चाहती।"

"चोरी का जहाज ?" इसका क्या मतलब हुआ और तुम कौन होते हो ये कहने वाले?"

दरवाज़े पर घंटी रह-रह कर लगातार बजे ही जा रही थी।

" मै तुमसे बात ही नहीं करना चाहता, मैं जा रहा हूँ, देखता हूँ इस वक़्त कौन आया है।" यह बोल मुए ने फोन रखा और दरवाज़ा खोलने के लिए आगे बढ़ा।

मुए ने ईलेक्ट्रोनिक मॉनिटर से पहले झाँका की दरवाजे पर कौन था और जो उसे दिखा उसे देख कर उसके होश उड़ गए। वो ऐसे डर गया जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो।

फ….लू टिंग।

दरवाज़े पर खड़े इस आदमी ने हल्के काले रंग के घर में पहनने वाले कपड़े पहन रखे थे, पैरो में सादी सी चप्पल थी और हाथों में कुछ समान था| हालाँकि कपड़े बहुत ही सादे से थे पर अचानक मुए को लगने लगा जैसे वो बर्फ के समुद्र के पास खड़ा हो और ठंडी हवा का झोंका उसे छू गया हो| वह काँपने लगा

जैसे किसी खरगोश ने भेड़िये को देख लिया हो| मुए इस कदर भयभीत हो गया पर डोर बेल फिर बजी , मुए ने गहरी सांस ली और दरवाज़ा खोला।

दरवाज़ा खोलने के बाद मुए ने बड़े अदब के साथ पूछा, "आप इस वक़्त यहाँ क्यों आए है?"

" तुम्हें मिलने आया हूँ|" लू टिंग ने भावना विहीन स्वर में जवाब दिया 

"ओह आइए न।" मुए ने टिंग को अंदर आने का न्यौता दिया।

अंदर आकर लू टिंग ने गेम के यंत्र और सारा ताम-झाम जो जमीन पर था देखा और सोफ़े पर बैठ गया।

लू टिंग क्या देख रहा था यह जानकर मुए उसे बताने लगा, " मुझे अपने लिए ज्यादा समय ही नहीं मिल पता है इसीलिए यह सब।"

लू टिंग को इस सब से कुछ लेना देना नहीं था|, उसने पूछा, "कब आए ?"

"ज्यादा समय नहीं हुआ।" जियांग मुए ने घर में थोड़ा इधर-उधर देखा पर उसे कुछ नहीं मिला सिवाए चाय के पैकेट के...पर उबला हुआ पानी भी नहीं था, फिर फ्रिज में से एक मिनरल वॉटर की बोतल निकालकर लाया। "उबला हुआ पानी नहीं हैं, यह चलेगा क्या आपको?"

"नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं, मैं ज्यादा समय नहीं रुकने वाला" फिर उसने जो समान वह लाया था मुए को देते हुए कहा "ये तुम्हारी माँ ने तुम्हारे लिए भेजा था।"

अरे ये सब आप खुद ले कर क्यों आए, वो भी। इतनी रात को/ मन ही मन वह अपनी माँ को कोस रहा था कि क्यों बिना किसी बात के इतनी रात को यह सब चीज़े इस आदमी के हाथ भिजवाई ,जबकि उसे पता था कि मैं लू टिंग से कितना डरता हूँ| मतलब साफ था कि माँ ने लू टिंग को उसकी जासूसी करने के लिए भेजा था।

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