उस निकम्मे गुरु के बारे में कई भ्रांतियां फैली थी| अकादमी में आने से पहले ही उन्होंने उसके विषय में इतना कुछ सुन रखा था कि उनके कान पक गए थे| कहा जाता है कि वह किसी भी क्षेत्र में निपुण नहीं है और वह अपने शिष्यों को दिग्भ्रमित करता रहा है|
उसके बारे में कहते हैं कि उसे कल्टीवेट करना नहीं आता और उसे मार्शल आर्ट बिलकुल भी नहीं आता|
कुल मिलाकर वह पूरी तरह से बदनाम था|
एक विद्यार्थी होने के नाते, यही अच्छा है कि उससे जितना हो सके दूर रहें. इस आदमी से न उलझें, नहीं तो लड़ाकू हो जाना छोटी सी बात है| इसके हाथों मर भी सकते हैं|
जब दोनों भाई गुरु की तलाश में अकादमी आये, तब उन्होंने भी यह अफवाहें सुनी थी| अब तक वे सावधानी से आगे बढ़ रहे थे, परन्तु उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह अलौकिक और अविश्वसनीय विशेषज्ञ वह बदनाम गुरु होगा|
" गुरुदेव, आप इतने कमाल के हैं, फिर क्यों ..."
ज़हांग यांग, पूछने से अपने आप को रोक न सका|
हालांकि, एक दूसरे को जानते हुए उन दोनों को बहुत ही कम समय हुआ था, वह कह सकता था कि उस गुरु में असीमित योग्यता है| उसकी हर हरकत में एक शिष्ट स्वाभाव था| वह नालायक कैसे हो सकता है ?
" दुनिया में बहुत से लोग हैं जो प्रतिभावान से जलते हैं| इन बातों का कोई महत्त्व नहीं होता|"
ज़हांग वान ने अपनी 45 अंश पर अपनी आँखें उठाकर ऐसे देखा मानो वह दुनिया की नासमझदारी में छुपे हुए हुए दुःख और खेद का विलाप कर रहा हो|
उसकी भावनाएं काबू में थी परन्तु वह मन ही मन इस अन्याय को कोस रहा था|
उस शरीर के पुराने मालिक की नाकाबलियत को देखते हुए, "लाइब्रेरी ऑफ़ हेवन्स पाथ" के बिना यह अचरज की बात थी कि उसको शून्य से कम अंक नहीं मिले| उसकी क़ाबलियत को देखते हुए शून्य अपने आप में एक बड़ा अंक था|
"मैं गुरु की इस बदनामी को मिटाना चाहता हूँ|"
अपने गुरु के इस संताप और दुनियादारी की नासमझी को देख कर ज़हांग यांग का हृदय द्रवित हो गया और वह ऐसा बोलने को विवश हो गया|
"कोई बात नहीं, गुरु की ख्याति कोई मायने नहीं रखती| जितना हो सके तुम कठिन परिश्रम करना, तो मैं संतुष्ट हो जाऊंगा| यह पहचान प्रतीक लो और जाकर अपना बिस्तर ले लो| कल नियत समय पर कक्षा में आ जाना, ध्यान रहे देरी नहीं करना|"
जब ज़हांग वान ने इतना संयत व्यवहार किया तो वह निश्चित ही छात्र के लिए पूजनीय हो गया| ज़हांग यांग ने सर हिलाया|
"ज़रूर"
ज़हांग यांग ने समीप खड़े मो ज़िआओ को खींचा और दोनों बाहर चले गए|
" चार विद्यार्थी "
उन दोनों को जाता देखा कर ज़हांग वान के चेहरे पर उत्साह की किरणें चमकने लगी|
एक विस्मृत कन्या वांग यिंग, एक विद्यार्थी जो उसने लिऊ यंग से शर्त में जीता था, एक अभिमानी संभ्रांत कन्या ज्हाओ या और भाले का प्रतिभावान ज़हांग यांग|
शुरू में उसने सोचा था कि आज का दिन भी पहले की तरह होगा| वह एक भी विद्यार्थी को भर्ती नहीं कर पायेगा और यह दिन भी निराशाजनक होगा| उसने उम्मीद नहीं की थी कि वह चार विद्यार्थी भर्ती कर लेगा|
"बिना पहचान प्रतीक के ,यदि और विद्यार्थी आ भी गए तो मैं भर्ती नहीं कर पाउँगा| अच्छा होगा कि मैं इस खाली समय का प्रयोग और पहचान प्रतीक लाने में करूँ|"
चार विद्यार्थी भर्ती करने की उद्वेलना के बाद उसको होश आया कि उसके पास और पहचान प्रतीक नहीं हैं|
यह प्रतीक अकादमी द्वारा दिया जाता है| उसकी बदनामी के कारण, पहचान प्रतीक देने वाले गुरु ने उसको चार ही प्रतीक दिए थे| उसने सोचा था कि ज़हांग वान इन चारों का प्रयोग भी नहीं कर पायेगा| यदि उसने और प्रतीक नहीं लिए तो नए विद्यार्थी आने के बावज़ूद वह उनको भर्ती नहीं कर पायेगा|
इस पहचान प्रतीक में गुरु के विषय में जानकारी होती है| एक बार विद्यार्थी अपने खून की एक बूँद उस प्रतीक पर गिरा देता है तो इसका अर्थ होता है कि उसने उसको अपना गुरु मान लिया है| दूसरी ओर यदि विद्यार्थी उस गुरु से नहीं सीखना चाहता तो गुरु अपने खून की बूँद उस प्रतीक पर गिरा देता है, जिस से शिष्य की जानकारी उस प्रतीक पर से मिट जाती है|
उठकर वह कक्षा से बाहर चला गया|
सूर्य तेज़ी से चमक रहा था और पेड़ों की छाँव से भी लू के थपेड़े लोगों को पसीने से भिगो रहे थे|
नए और पुराने विद्यार्थी पगडंडी पर चल रहे थे और उनका उत्साह उनके चेहरों पर झलक रहा था|
एक नए माहौल में आकर और एक नया गुरु पाकर वे उल्लासित थे| दूसरी ओर नए शिष्यों के आने से, खेलने के लिया नए दोस्त मिलने की उम्मीद में पुराने शिष्य भी खुश थे|
पगडण्डी पर चलते हुए ज़हांग वान के समक्ष एक बड़ी इमारत प्रकट हुई| उस इमारत के मध्य में लटकी एक तख्ती पर दो बड़े शब्द लिखे थे, "लोजिस्टिक्स बिल्डिंग / रसद भवन|"
वह प्रतीक जो गुरु की पहचान करते थे, वे यहाँ से प्राप्त होते थे|
"यो, यह कौन है ? क्या यह हमारा 'सितारा गुरु' है ? तुम कक्षा में शिष्य भर्ती न करते हुए मेरे पास क्या करने आये हो, तुम्हे क्या चाहिए? अच्छा, मैं अनुमान लगाता हूँ, क्या यह हो सकता है कि तुमने एक भी पहचान प्रतीक का उपयोग न किया हो और तुम मुझे वह लौटाने आये हो|"
अन्दर आते ही उसने एक व्यंग्यात्मक आवाज़ सुनी|
ज़हांग वान ने अपना सिर उठाकर देखा तो एक मोटे से चेहरे को अपने सामने पाया|
यह आदमी कम से कम 300- 400 किलो का होगा| दूर से यह मांस के लोथड़े की तरह दिखता है|
"कीं बिओं!" उसकी यादों के गर्त में एक नाम उभरा|
यह कीं बिओं, रसद विभाग का इंचार्ज एक गुरु था| वह एक बहुत ही द्वेषपूर्ण व्यक्ति था जो दूसरों की कमाई खा जाता था| सबसे निचले दर्जे के गुरु होने के नाते, ज़हांग वान की पगार बहुत कम थी और इसी कारण वह बहुत ही कम संसाधनों की मांग कर सकता था| इसलिए कीं बिओं ने ज़हांग वान की कभी इज्ज़त नहीं की|
इसी कारण से वह ज़हांग का अपमान करता था इसलिए मौका मिलते ही वह हर तरह से ज़हांग की बेईज्ज़ती करता और उस पर व्यंग्य कसता|
पहले जहाँग को यह कहकर चार पहचान प्रतीक देना ,कि वह उनका भी प्रयोग नहीं कर पायेगा, इसी का काम था|
" मैंने अपने पहचान प्रतीक समाप्त कर दिए है| मुझे कुछ और चाहियें ! ज़हांग वान ने बिना विचलित हुए कहा|
" समाप्त हो गए ? कीं बिओं, कुछ देर के लिए निस्तब्ध रह गया, फिर जोर जोर से हंसने लगा|
" हा हा हा! सब लोग आकर देखो, यह गुरु जो नीचे से सबसे अव्वल है, यहाँ आकर शेखी बघार रहा है कि इसके सभी पहचान प्रतीक ख़त्म हो गए हैं| मैंने सारी दुनिया में यह सबसे अच्छा मजाक सुना है|"
मुझे याद है तुमने इसको चार पहचान प्रतीक दिए थे| ख़त्म हो गए ? इससे ? क्या मजाक है|"
जो गुरु नीचे से दूसरे स्थान पर था, सुन यां लाओशी, जिसने अब तक सिर्फ एक शिष्य भर्ती किया था, बोला यह आदमी जिसने गुरु योग्यता परीक्षा में शून्य अंक प्राप्त कर इतिहास रच दिया है, उसने एक भी शिष्य बनाया है ? आप क्यों डींगे हांक रहे हो ?
" इसको बाहर फेंक दो| वैसे भी आज के बाद इसको निकाल ही दिया जायेगा ..."
कीं बिओं की चिल्लाहट सुनकर, रसद विभाग के कुछ और गुरु वहां दौड़ते हुए आये .वे ज़हांग वान को तिरस्कार भरी नज़रों से देखने लगे|
जो गुरु गुरु योग्यता परीक्षा में सबसे निचले स्तर पर हैऔर जिसने शिक्षक योग्यता परीक्षा में शून्य अंक प्राप्त किया है वह क्या दिखाना चाहता है?
तुम्हारा नाम सुनते ही शिष्य भाग खड़े होते हैं| उन शिष्यों में किसी ने तुम्हे अपना गुरु माना है ... यह किस प्रकार का मज़ाक है?
" ओह ? तुम कहते हो कि मैं डींगें हांक रहा हूँ ? ठीक है, क्यों न हम इस बात पर शर्त लगा लें ? ज़हांग वान ने अपना आपा खोये बिना, मुस्कुराते हुए कहा|
" शर्त ? ठीक है, चूँकि तुम बुरी तरह हारना चाहते हो, मैं तुम्हारी इच्छा पूरी कर देता हूँ| बस यही है कि तुम जितने गरीब हो, मुझे शक है कि तुम क्या दांव पर लगाओगे|" कीं बिओं को उम्मीद नहीं थी कि यह आदमी जिसको उसने हमेशा नीचा समझा है, वह उसके अधिकार को यूँ खुल्लम खुल्ला चुनौती देगा| वह तिरस्कार से तिलमिला उठा|
" मैं गरीब हूँ या नहीं, यह तुम्हारी समस्या नहीं है| चूँकि मैंने शर्त लगायी है, मैं ऐसा कुछ शर्त पर लगाता हूँ जो मैं दे सकता हूँ|" ज़हांग वान ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा|
" ओह? तुम कुछ दांव पर लगा सकते हो? तुम्हारी पृष्ठभूमि को देखते हुए, जो तुम दांव पर लगोगे, वह संभावित ही कुछ पुरानी धातु या उसी तरह की कोई बकवास वस्तु होगी| तुम अपने को बहुत महान समझते हो, मैं तुम्हारे साथ शर्त लगाऊंगा ? तुम्हारे साथ शर्त लगाकर मैं अपनी प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगा सकता |" कीं बिओं ने निंदनीय अंदाज़ में कहा|
ज़हांग वान पूरी अकादमी में सबसे निचले स्तर का गुरु था| नीचे से पहला, यह भी बताने लायक तथ्य नहीं है कि वह एक भी शिष्य प्राप्त करने में नाकाम रहा, उसके पास कोई बोनस भी नहीं था| यदि पूरी अकादमी में सबसे गरीब गुरु देखा जाए तो वह ज़हांग वान ही था|
वह अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में भी मितव्ययी था, और उसके पास कृषि के लिए बहुत ही कम संसाधन थे|
" ही ही ! " ज़हांग वान उसकी अपमानजनक बातों से तनिक भी विचलित नहीं हुआ और हँसते हुए बोला," जो चीज़ मैं दांव पर लगाना चाहता हूँ, वह कोई खज़ाना या वस्तु नहीं है| .. वह एक मुंह है|
यदि तुम हार गए, तो मैं सबके सामने तुम्हें तीन थप्पड़ मारूंगा, नहीं तो! यदि मैं हार गया तो तुम मुझे तीन थप्पड़ मारना| क्या तुम में यह शर्त लगाने की हिम्मत है ?"
" थप्पड़ मारना ?"
उसे उम्मीद नहीं थी कि सामने वाला इस शर्त के लिये तैयार होगा| कीं बिओं इस बात के लिए थोडा हिचका|
अगर वह हार गया तो अकादमी के सबसे निकम्मे गुरु से थप्पड़ खाना, यदि वह हार गया तो वह जीने लायक भी नहीं रहेगा| वह इतना शर्मिंदा होगा कि उसकी मरने की इच्छा होगी|
" तो तुम तैयार हो या नहीं ?" ज़हांग वान ने मुस्कुराते हुए पूछा|
" कीं बिओं, तुम किस बात से डर रहे हो, क्या तुम्हे इसका स्तर पता नहीं है|"
" क्या एक गुरु जिसने गुरु योग्यता परीक्षा में शून्य अंक प्राप्त किये हों, वह एक भी शिष्य भर्ती कर सकता है ?वह सिर्फ सपने देख रहा है |"
" वह सिर्फ तुम्हें डरा रहा है, यदि यह शिष्य भर्ती कर सकता है तो क्या मेरे पास अब तक हज़ारों शिष्य नहीं होते ? यदि इस साल के विद्यार्थी अंधे हैं, तो भी वे इतने अंधे तो नहीं हो सकते|"
रसद विभाग के अन्य गुरु भी इस बात पर हंसने लगे|
उनमें से कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था कि ज़हांग वान शिष्य भर्ती कर पायेगा|
यह उतना ही मुश्किल था जितना एक सूअर के लिए पेड़ पर चढ़ना|
"ठीक है , मैं तैयार हूँ" सबकी बातों को तर्कसंगत मानते हुए उसने अपना सिर सहमति में हिला दिया|
" चूँकि तुम सब भी इतनी ज़ोर शोर से इसका हौसला बढ़ा रहे हो, क्या तुम सब भी मेरे साथ यही शर्त लगाना चाहोगे ?"
कीं बिओं के हाँ बोलने पर ज़हांग वान ने बाकी तीनों गुरुओं की तरफ़ देख कर पूछा|
वह तीनों जो अब तक ज़हांग वान को उपेक्षा की दृष्टी से देख रहे थे, कीं बिओं को मानता देख कर तुरंत ही तैयार हो गए|
" क्यों क्या तुम्हारे चेहरे पर खुजली हो रही है जो तुम हमसे भी थप्पड़ खाना चाहते हो ? ठीक है ? मैं तैयार हूँ ", एक गुरु ने अहंकारपूर्वक कहा|
"मैं भी तैयार हूँ "
" तुमसे कौन डरता है| शून्य अंक लाने वाले, तुम हमारे सामने डींगें हांक रहे हो , क्या तुम मरना चाहते हो|"
तीनों ने हँसते हुए अपना सिर हिलाया|
उनके विचार से, ज़हांग वान आज शर्त हारने ही वाला था , आज ज़रूर उसको थप्पड़ पड़ेगा|