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Chapter 4 - Forced kiss

इनाया उसे खुद से दूर करने की लगातार कोशिश कर रही थी लेकिन निर्भय पागल हो चुका था। इनाया अब बेहोश होने की कगार पर थी।

 तभी उसने मन में खुद से कहा "मैं हिम्मत नहीं हार सकती! नहीं तो ये इंसान मुझे छोड़ेगा नहीं।"

कहते हुए उसने अपनी सारी हिम्मत बटोरी और पूरी ताकत से अपना पैर उठाकर निर्भय के पैरों के बीच में मारा, उसके ये करते ही निर्भय तुरंत उसके ऊपर से हट गया। इस वक्त उसका हाथ अपने सेंसेटिव एरिया पर था और वो गुस्से में खा जाने वाली नजरों से इनाया को घूरे जा रहा था।

 

तभी इनाया तुरंत उठी और वहां से जल्दी से जाने लगी। क्योंकि उसे ये पता था जो उसने किया था उसके बाद निर्भय उसे छोड़ेगा नहीं, लेकिन वो कमरे से बाहर निकल पाती की निर्भय ने तुरंत उठकर उसका हाथ पकड़ लिया और दूसरे पल उसे बिस्तर पर खींच लिया। लेकिन अब तक इनाया ने दरवाजा खोल दिया था और अचानक खींचने की वजह से वो दरवाजा खुला ही रह गया। 

इनाया निर्भय के नीचे थी और निर्भय उसके ऊपर था। दर्द उसे अभी भी हो रहा था, निर्भय ने उसे अपने नीचे दबोच रखा था। तभी निर्भय ने उसके बालों को पीछे से पकड़ा जिससे इनाया के मुंह से दर्द भरी चीख निकल गई, और उसका चेहरा ऊपर की तरफ उठ गया।

निर्भय उसे गुस्से में देखते हुए बोला "तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मुझ पर हाथ उठाने की?"

इनाया डर से कांपते हुए बोली "तो आप की हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ जबरदस्ती करने की? आप मुझे मारना चाह रहे थे क्या? ये ठीक था? हजार बार कह चुकी हूं अगर आपको अध्याय से बदला लेना है तो उसके पास जाइए ना, क्यों मेरा सहारा ले रहे हैं इस चीज में?"

इनाया को उल्टा जवाब देता देख निर्भय का दिमाग खराब हो गया, उसने दूसरे पल उसके बालों पर अपनी पकड़ कसी और बोला "तुम्हें मेरी मर्दानगी देखनी थी ना? अब दिखाता हूं मैं तुम्हें मर्दानगी। इस बार तुम्हें उस जगह हर्ट करूंगा जिसके बाद तुम कभी किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगी।"

कहते हुए उसने उसके होंठो को तुरंत ही दबोच लिया, और बेदर्दी से चूमने लगा। वहीं उसकी अचानक की गई हरकत से इनाया का दिमाग ब्लैंक हो गया। वो हैरानी और गुस्से से निर्भय को देखने लगी। बाकी सब ठीक था लेकिन निर्भय आज उसकी इज्जत के साथ खेलने की कोशिश कर रहा था, इनाया जैसी लड़की के लिए किस भी एक बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि आज तक उसके और अध्याय के बीच में लिप किस नहीं हुई थी।

उसने हमेशा अध्याय को रोक रखा था और अध्याय में भी सब्र था। हां मर्द जात था‌ बेसब्र था, लेकिन सच्ची मोहब्बत जिसस्म की मोहताज नहीं होती। और इसीलिए आज तक अध्याय ने भी उसे हाथ नहीं लगाया था। हां दोनों के बीच चिक पर किस हुई थी, इनाया ने भी उसे की थी। लेकिन वो कहते हैं ना कि जिससे मोहब्बत करो वो आपके साथ ये सब करे तो बर्दाश्त किया जा सकता है लेकिन जिसे तुम बिल्कुल ही पसंद ना करो और वो तुम्हारे साथ ये सब करे तो गुस्सा आता है। खुद से नफरत होती है, और कुछ ऐसा ही इस वक्त इनाया के साथ हो रहा था। 

निर्भय उसके होठों को बेदर्दी से काटे जा रहा था, वो किस नहीं कर रहा था वो उसके निचले होंठ को बार-बार काट रहा था। वो जानबूझकर इनाया को दर्द दे रहा था। और इनाया भी गुस्से में उसे घूर रही थी। तभी वो उसके निचले होठ को बुरी तरीके से काटते हुए उससे दूर हुआ। 

और दूसरे पल उसने उसे देखते हुए अपने होठ उसकी गर्दन पर रख दिए। वहीं इनाया का हाथ तुरंत अपने होठों पर चला गया, उसका निचला होंठ पूरा कट चुका था, उसके निचले होंठ पर कई जगह कट लगे थे। दर्द से उसकी आंखों में आंसू आ गए थे।

तभी वो निर्भय को खुद से दूर करने लगी, लेकिन निर्भय उसके दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़कर सर के ऊपर कर दिया, और दूसरे ही पल उसकी गर्दन से चेहरा निकालते हुए बोला "आज तुम्हें छोडूंगा नहीं मैं, तुम्हें देखनी थी ना मेरी मर्दानगी? तो तैयार हो जाओ देखने के लिए, दिखाता हूं तुम्हें भी कि निर्भय वशिष्ठ का स्टैमिना कितना है, उसमें कितनी ताकत है।"

कहते हुए उसने दोबारा अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए। इधर उसकी बात सुनकर इनाया की आंखों से तेजी से आंसू बहने लगे। जिस चीज को करने के लिए उसने अध्याय के साथ में इतने सपने सजाए थे आज वो चीज उसके साथ हो रही थी लेकिन ये चीज भी जबरदस्ती की थी, और वो कोई और नहीं उसका पति कर रहा था, जो कि उसका जबरदस्ती का पति था। इससे ज्यादा बड़ा उसके लिए क्या ही होगा। 

निर्भय गुस्से में पागल हो चुका था और इनाया हिल भी नहीं पा रही थी, क्योंकि निर्भय ने उसकी पूरी बॉडी को जकड़ रखा था। इस बार निर्भय ने उसके पैरों को भी जकड़ रखा था, जिससे उसके पैर एक जगह जम से गए थे‌। 

तभी अचानक बाहर से आवाज आई "करो.. करो.. मैं जा रही हूं.. मैंने कुछ नहीं देखा।" कहते हुए दामिनी वहां से जाने लगी, लेकिन उसकी बात सुनकर बस निर्भय का ध्यान उन पर चला गया। 

उसी का फायदा उठाकर इनाया ने निर्भय को तुरंत खुद के ऊपर से धक्का दिया और बैड से खड़े होते हुए बोली "नहीं ऐसा कुछ नहीं है, मैं भी बस आपके साथ चल रही हूं।"

ये सुनकर दामिनी रुक गई ‌और कमरे के अंदर आने लगी।

वो कमरे के अंदर अपना एक कदम रख पाती की निर्भय गुस्से में बोला "मिसेज दामिनी आप जहां हैं वहीं रुक जाइए, अगर एक कदम और आपका बड़ा तो ये आपके लिए अच्छा नहीं होगा।"

ये सुनते ही दामिनी के कदम रुक गए। उसने नजरे उठाकर निर्भय को देखा और बोली "लेकिन क्यों बेटा?"

"What बेटा? भूलिए मत आपके मुंह से ये बेटा शब्द भी एक मजाक लगता है। और मुझे आपकी बातों में कोई इंटरेस्ट नहीं है, तो मेरे सामने अपना ये ड्रामा करना बंद कीजिए, क्योंकि मैं ना ही कोई आपका बेटा हूं और ना ही आप मेरी कोई मां।"

ये सुनकर दामिनी की आंखें नम हो गई।

उसने नम आंखों से निर्भय को देखते हुए कहा "बेटा तुम ये कैसी बात कर रहे हो? मैं तुम्हारे सामने क्यों ही कोई ड्रामा करूंगी? और तुम मुझे कुछ भी कहो, लेकिन रहूंगी तो मैं तुम्हारी मां ही ना।"

ये सुनकर निर्भय उसे सर्द निगाहों से देखते हुए बोला "देखिए अपना ये रोना-धोना किसी और के सामने कीजिएगा, क्योंकि मुझे आपके रोने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। एक वक्त था जब मुझे आपके रोने से फर्क पड़ता था लेकिन अब वो वक्त जा चुका है, और अब आपके मरने से भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। तो मेरे और मेरी वाइफ के बीच में इंटरफेयर करना बंद कर दीजिए। और अभी आपकी हिम्मत भी कैसे हुई मेरे कमरे में आने की?"

निर्भय ने ये बात इसलिए कही थी क्योंकि दामिनी कभी भी उसके कमरे में नहीं आती थीं। और क्यों नहीं आती थी ये तो सिर्फ निर्भय और घर वालों को पता था।

दामिनी निर्भय से नजरें फिराते हुए बोली "वो मुझे पापा ने भेजा है, और मैं तुम्हें बुलाने आई थी।"

ये सुनकर निर्भय हल्के से बोला "तो क्या घर के सर्वेंट मर गए थे जो आपको यहां आना पड़ा?"

निर्भय की बात सुनकर दामिनी ने अपनी आंखें बंद कर लीं। निर्भय उसको काफी हद तक इनाया के सामने जलील कर रहा था और जो कि उसे बुरा लग रहा था, क्योंकि इनाया आज ही इस घर में आई थी और निर्भय उसी के सामने उनकी बेइज्जती कर रहा था।

 

दामिनी निर्भय को देखते हुए बोली "वो सर्वेंट नहीं खत्म हो गए थे, लेकिन पापा ने मुझसे बोला कि मैं तुम्हें बोल दूं तो मैं चली आई, और पापा कुछ ज्यादा ही गुस्से में थे इसलिए मैं आई, क्योंकि सर्वेंट के आने से तुम आते नहीं।"

"तो आपको क्या लगता है कि मैं आपके बुलाने से आ जाऊंगा? मैं तो आपको अपने कमरे में भी ना आने दूं।"

निर्भय ने गुस्से में कहा‌। और कह कर वो दूसरे ही पल कमरे से बाहर निकाल गया। 

वहीं उसके जाने के बाद दामिनी ने अपने आंसू पोंछे और वो चलकर अंदर आई। वो जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोली "चलो डिनर का टाइम हो गया है, तुम भी चलो खाना खालो। और कुछ देर में सभी लोग आ ही रहे हैं।" 

ये सुनकर इनाया ने भी अपना सर हां में हिलाया। उसे मां और बेटे के बीच में बोलना ठीक नहीं लगा। 

इधर दूसरी तरफ अभिमान जी का कमरा..

निर्भय चलकर उनके कमरे में आया और आकर खड़ा हो गया। लेकिन अभिमान जी कुर्सी पर बैठे हुए थे और उनकी नजरे सामने की तरफ थीं, उन्होंने अभी तक निर्भय को नहीं देखा था।

तभी निर्भय बोला "दादा जी आपने मुझे बुलाया था?"

ये सुनकर अभिमान जी ने उसकी तरफ देखा और हल्के गुस्से में बोला "निर्भय हमें तुमसे बात करनी थी, इसलिए हमने तुम्हें बुलाया था, लेकिन क्या कहे हमें समझ नहीं आ रहा, क्योंकि हमें तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। हमें तुम पर इस वक्त इतना गुस्सा आ रहा है कि हम क्या बताएं।"

अभिमान जी की बात सुनकर निर्भय कंफ्यूज हो गया, और बोला "लेकिन मैंने क्या किया?"

अभिमान जी ने अपनी कुर्सी से उठते हुए गुस्से में बोला "Wow कितनी आसानी से तुम कह रहे हो कि तुमने क्या किया, क्या तुम्हें बिल्कुल एहसास नहीं कि तुम्हारी वजह तुम्हारी छोटी बहन के साथ कितना गलत हो गया? उसे वो अध्याय जबरदस्ती शादी करके अपने साथ ले गया, तुम्हें एहसास भी है उसके साथ क्या करेगा वो? उसे कितना टॉर्चर करेगा?"

ये सुनकर निर्भय को समझ में आ गया कि अभिमान की उस पर क्यों गुस्सा हो रहे हैं, लेकिन अध्याय का नाम सुनकर उसे दोबारा अध्याय की जान लेने का मन करने लगा। इस वक्त उसे अध्याय पर सच में बहुत तेज गुस्सा आ रहा था। 

निर्भय कुछ सोचते हुए बोला "दादाजी आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है, उस अध्याय ने जो भी किया है इस चीज की सजा उसे बहुत बुरी दूंगा मैं, उसे भी याद रहेगा कि उसने किस से पंगा लिया था, आज तक उसने ऐरो-गैरों से पंगा लिया होगा लेकिन इस बार मैं उसे नहीं छोडूंगा।"

इस पर अभिमान जी बोले "अपनी बकवास बंद करो निर्भय, आखिर तुम्हारी दुश्मनी के कारण ही मेरी मासूम सी बच्ची की बली चढ़ गई, तुम्हें पता भी है उस मासूम को तो ये भी नहीं पता की हर चीज से कैसे डील करनी है, और वो अध्याय उसे छोड़ेगा नहीं। तुम भी जानते हो वो घर पर उस पर गुस्सा उतारेगा, तो तुम सोचो वो बेचारी कैसे ये सब बर्दाश्त करेगी? तुम्हारी एक गलती ने उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी निर्भय, और तुम कह रहे हो कि अध्याय याद रखेगा कि उसका पाला किससे पड़ा है, लेकिन अध्याय नहीं तुम याद रखोगे तुम्हारा पाला किससे पड़ा है। याद रखो तुम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए, बल्कि वो तुम्हारा बिगाड़ गया। पता नहीं मेरी मासूम सी बच्ची कैसी होगी।"

कहते हुए अभिमान जी अपने सर पर हाथ रखते हुए दोबारा चेयर पर आकर बैठ गए। उनके चेहरे पर टेंशन साफ दिख रही थी और उनकी बात सुनकर निर्भय भी टेंशन में आ चुका था। मिष्टी उसकी जान थी, वो उस घर में सबसे ज्यादा प्यार उसी से करता था और आज मिष्टी की कमी उसे खल रही थी और ऊपर से वो किसी सही हाथों में नहीं गई थी ।

तभी वो दूसरे ही पल बोला "दादा जी आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है, मिष्टी मेरी भी बहन है। मैं उसके साथ कुछ गलत नहीं होने दूंगा।"

कहकर वो कमरे से बाहर निकाल गया।

इधर अभिमान जी ने टेंशन में बोला "पता नहीं अब क्या-क्या दिन देखना बाकी रह गए हैं, इन दोनों की दुश्मनी कहीं मेरी उस मासूम सी बच्ची की मासूमियत ना छीन ले ।"

इधर दूसरी तरफ…

सूर्यवंशी मेंशन…

मिष्टी बाथरूम में कपड़े धो रही थी। या ये कहीं कि वो कपड़े धो कम रही थी उन्हें गंदा ज्यादा कर रही थी। उसने सभी कपड़ों को मिला दिया था, हालांकि वो हाई क्वालिटी के कपड़े थे। लेकिन उसने कपड़े धोने में अपना भी दिमाग नहीं लगाया। उसने टीवी में पहले ऐड देख रखा था कि कपड़ों में अगर उजाला डालें तो कपड़े साइन मारते हैं। और इसीलिए उसने वहां रखा हार्पिक, फिनाइल और जितनी भी सारी चीज थी सब उठाकर कपड़ों में डाल दी। 

इसके बाद क्या ही होना था? सारे कपड़ो में कलर मिल गया और कपड़ों की ऐसी की तैसी हो गई । लेकिन अब वो कंफ्यूज थी कि ये सब कैसे हो गया। तभी वो खुद से बोली "ये सब कैसे हो गया है? मैंने तो इन्हें सुंदर करने के लिए ऐसा किया था, लेकिन ये भी तो हो सकता है कि अभी ऐसे हों और जब ये सूख जाए तब ये अच्छे हो जाए, क्योंकि उस ऐड में भी तो ना जब कपड़े तार में डल रहे थे तब वो सुंदर दिखने लगे थे। हां ऐसा ही होगा.. पक्का… मैं क्यों टेंशन ले रही हूं?"

सोचते हुए उसने सभी कपड़े जमीन पर रखें और उन्हें धीमे-धीमे धोने लगी ‌।

घर में ऑटोमेटिक वॉशिंग मशीन भी थी लेकिन अध्याय ने उसे वो वाशिंग मशीन दी नहीं थी, और सही था नहीं दी थी क्योंकि मिष्टी उसे यूज भी नहीं कर पाती। कुछ देर में उसने सारे कपड़े पानी से धो लिए और उन्हें बाल्टी में रख लिया, लेकिन वो कपड़े धुले कम और गन्दे ज्यादा लग रहे थे।

तभी मिष्टी ने उन कपड़ों को लिया और रूम की बालकनी में उन कपड़ों को हैंगर पर डालने लगी। बालकनी का एक साइड का एरिया छोटा था जो की कपड़ों के लिए था, बाकी बालकनी काफी बड़ी थी। वो अभी कपड़ों को डाल ही रही थी कि तभी एकदम से अध्याय आ गया।

और जैसे ही उसकी नजर अपने कपड़ों पर गई उसकी भौहें सिकुड़ गई। दूसरे ही पल उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए। वो गुस्से में स्टैंड पर कपड़ों को डाल रही मिष्टी को घूरने लगा। तभी वो आगे बड़ा और उसने एकदम से मिष्टी का हाथ पकड़ लिया।

मिष्टी जिसने अपने हाथ में कपड़े पकड़ रखे थे वो उसे कंफ्यूज होते हुए देखने लगी। तभी वो बोली "आपने मेरा हाथ क्यों पकड़ लिया? मैं तो कपड़े डाल रही थी ना.."

ये सुनकर अध्याय गुस्से में उसके हाथ को पकड़ कर बेदर्दी से उसके हाथ को मरोड़कर पीठ से लगाते हुए बोला "मुझे पागल समझ कर रखा है तुमने? या फिर अपनी ये मासूमियत दिखाकर मुझे पागल बना रही हो?"

उसके इतने तेज पकड़ने से मिष्टी के हाथ में दर्द हो गया और दर्द से उसकी आंखें नम हो गई। 

उसने सुबकते हुए कहा "लेकिन मैं आपको क्यों पागल बनाऊंगी? मैंने तो कुछ किया भी नहीं, आपने मुझे कपड़े धोने के लिए कहा तो मैंने कपड़े धो दिए।"

अध्याय उसके हाथ पर अपनी पकड़ और कसते हुए बोला "मुझे पागल समझा है तुमने? ये तुमने कपड़े धुल रखे हैं तुमने कपड़ों को धुला नहीं बल्कि और गंदा कर दिया? तुम्हें पता भी है ये कपड़े कितने महंगे थे? तुम्हारी औकात भी है इन कपड़ों को खरीदने की?"

इधर मिष्टी का ध्यान उसकी बातों पर नहीं था, उसका ध्यान अपने दर्द पर था। उसे अपने हाथ में बहुत तेज दर्द हो रहा था, जिसे अध्याय ने पकड़ रखा था और बढ़ते पलों के साथ अध्याय की पकड़ उसके हाथ पर कस रही थी। जिससे मिष्टी रोए जा रही थी।

तभी उसे अध्याय की गुस्से से भरी आवाज सुनाई दी "मैंने कुछ पूछा तुमसे.. जवाब दोगी?"

ये सुनकर मिष्टी डरते हुए बोली "लेकिन मैंने तो कपड़े सही धुले हुए हैं। और मैंने बिल्कुल वैसे ही धुले जैसे टीवी में धोए जाते हैं। टीवी में कपड़े जब गंदे होते हैं तब वो एकदम सफेद हो जाते हैं, तो मैंने वैसे किया।"

उसकी बेवकूफी भरी बातें सुनकर अध्याय इरिटेट हो रहा था। उसे उस पर हद से ज्यादा गुस्सा आ रहा था। दूसरे पल उसने उसके हाथ से कपड़े छीन कर साइड में फेंक दिए। और उसे कमर को पकड़कर बालकनी की रेलिंग से लगा दिया। अब दोनों ही एक दूसरे के सामने थे और अध्याय मिष्टी को गुस्से में घूर रहा था।