रघु के अंदर जो ताकत जाग चुकी थी, वह हर दिन उसकी वास्तविकता से ज्यादा अजनबी होती जा रही थी। हर बार जब वह अपनी आँखें बंद करता, वह शक्ति महसूस होती थी, जैसे वह एक ज्वाला हो, जो धीरे-धीरे उसका सब कुछ जलाने वाली हो। वह खुद को समझने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि यह ताकत उसकी मदद करेगी या उसे नष्ट कर देगी। वह अपने मन में उठते सवालों को दबाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन सवाल थे कि जिनका जवाब नहीं था!
"क्या यह सही है!? क्या मुझे इसका इस्तेमाल करना चाहिए!? क्या यह शक्ति मुझे मेरे रास्ते से भटका सकती है!? और अगर मुझे इस शक्ति को रोकने का तरीका नहीं मिला, तो...?" रघु की सोच बार-बार यही सवाल उठा रही थी! वह अकेले इस बोझ को नहीं उठा सकता था!
वह अब बाहर नहीं निकलता था, उसके भीतर कुछ था जो उसे हर जगह और हर समय सतर्क बनाए रखता था। उसकी आँखों में एक खौफ था, लेकिन साथ ही एक गहरी सोच भी! वह जानता था कि यह शक्ति अब उसके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी, और अब उसे इसके साथ जीना सीखना था!
उसी दिन, जब वह बाहर जाने की सोच रहा था, उसकी नज़रें पूजा पर पड़ीं। वह बेड पर लेटी हुई थी, उसकी आँखों में एक अजीब सी हलचल थी, जैसे वह कुछ महसूस कर रही हो, लेकिन उसके पास शब्द नहीं थे। रघु ने उसकी ओर देखा और धीमे से पूछा, "क्या तुम ठीक हो?"
पूजा ने उसकी ओर देखा और हौले से मुस्कराई, "हां, बस थोड़ा सा दर्द है!" फिर उसने रघु की आँखों में एक सवाल देखा, और एक पल के लिए उसने महसूस किया कि रघु कुछ छिपा रहा था।
"क्या तुम कुछ छिपा रहे हो, रघु?" पूजा ने धीरे से पूछा। उसकी आवाज़ में एक चिंता थी, लेकिन रघु ने उसे समझने के लिए कोई जवाब नहीं दिया। वह बस चुप रहा, और फिर उसके पास जाकर कहा, "सब ठीक है, पूजा! चिंता मत करो!"
पूजा की आँखों में एक सवाल था, लेकिन उसने इसे शब्दों में नहीं कहा। वह जानती थी कि रघु अब पहले जैसा नहीं रहा था, और कुछ ऐसा था जो वह छिपा रहा था, लेकिन वह यह भी जानती थी कि रघु उसे कुछ बताने के लिए तैयार नहीं था।
रघु बाहर निकलने के लिए तैयार था, लेकिन उसके मन में एक घबराहट थी! वह जानता था कि वह अपने अजनबी बदलावों से अकेला नहीं हो सकता! उसे कुछ ढूंढना था—कुछ ऐसा जो उसकी शक्ति को नियंत्रित करने का तरीका सिखाए, ताकि वह खुद को खोने से बच सके!
वह अकेले ही शहर के बाहरी इलाके में चला गया, जहाँ सन्नाटा था और लोग बहुत कम थे। वह एक पुराने मंदिर में पहुँचा, जो अपनी खंडहर स्थिति में था। उसे वहाँ एक अजीब सा आकर्षण महसूस हुआ, जैसे कुछ उसे बुला रहा हो!
वह मंदिर के अंदर गया, और वहां का माहौल और भी रहस्यमयी लग रहा था! हर कोने में धूल और अंधकार था, लेकिन जैसे ही रघु ने अपनी आँखें बंद की, उसे एक नई ताकत महसूस हुई। उसकी शरीर की हर कोशिका में उस शक्ति का अहसास हो रहा था, जो उसके भीतर जाग चुकी थी!
तभी, उसे एक आवाज़ सुनाई दी! "तुमने इसे महसूस किया है, है ना?"
रघु ने चौक कर चारों ओर देखा! "तुम कौन हो!?" उसने कहा, उसकी आवाज़ में एक मिलीजुली घबराहट थी!
"मैं वह हूं जो तुम्हारी शक्ति को समझता है!" उस आवाज़ ने कहा! "तुम अकेले नहीं हो, रघु! तुम्हारे जैसी कई शक्तियाँ इस दुनिया में हैं, और तुम्हें अपनी पहचान अब समझनी होगी!"
रघु की धड़कन तेज़ हो गई! "क्या मतलब है तुम्हारा!? कौन हो तुम!?"
वह आवाज़ अब और स्पष्ट हो गई, "मैं तुम्हारा मार्गदर्शक हूं! तुम्हें अपनी शक्ति का सही तरीके से उपयोग करना होगा! अगर तुम इसे सही दिशा में नहीं लगाते, तो यह तुम्हारी ही जान ले सकती है!"
रघु ने घबराकर अपनी आँखें खोलीं, और पाया कि मंदिर का माहौल अब और भी घना हो गया था! उसकी नसों में एक सर्दी दौड़ने लगी थी! "तुम क्या चाहते हो मुझसे!?" उसने घबराए हुए पूछा!
"तुमसे कुछ नहीं, रघु!" आवाज़ ने कहा, "तुम्हारे भीतर जो शक्ति है, वह अब तुम्हारी है! तुम्हें इसे पहचानना होगा, और अगर तुम इसे सही तरीके से समझ सको, तो यह तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत बन जाएगी!"
रघु की आँखों में एक नई उम्मीद की झलक दिखाई दी! क्या वह अपनी शक्ति को सही दिशा में ले जा सकता था!? क्या वह सचमुच इस शक्ति को काबू कर सकेगा!?
"तुम क्या चाहते हो मुझे करना!?" रघु ने पूछा, और उसकी आवाज़ में अब हल्की सी उम्मीद भी थी!
"तुम्हें इस शक्ति को पहचानने का समय आ गया है!" आवाज़ ने कहा, और फिर अचानक, सब कुछ शांत हो गया! रघु की आँखों में एक नई हलचल थी, एक नई राह को ढूंढने की एक नई ललक!