मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।
पहली बार हमारे रिश्ते में एक ख़ामोशी ने अपनी जगह बना ली है, और मैं अंदर से बहुत ज़्यादा बेचैन हूँ इस चुप्पी को ख़त्म करने के लिए और सब कुछ पहले जैसा कर देने के लिए बेकरार हूँ। मैं फिर से उसके सामने बेफिक्र और बेशर्म बनना चाहता हूँ; यह सब मेरे लिए कितना आसान था, लेकिन अब मुश्किल हो रहा है। कैसे एक दिन हम पर इतना हावी हो जाता है कि हम वो सारे खूबसूरत पल भूल जाते हैं, जो उस दिन से पहले हमने साथ में महसूस किए थे।
हम दोनों ने एक-दूसरे को माफ कर दिया है और यकीन भी दिलाया है कि हम एक-दूसरे को बहुत चाहते हैं, लेकिन फिर भी अंदर एक डर है कि क्या सच में सब कुछ पहले जैसा हो पाएगा या नहीं। मुझे पता है कि वक़्त ही इस ख़ामोशी को ख़त्म कर सकता है, लेकिन इंतजार करते-करते मैं और ज़्यादा निराश हो रहा हूँ, पर इंतजार के अलावा में कुछ नहीं कर सकता। काश हम फिर से उसी बेफिक्री के साथ बात करने लगें। डर लगता उसे खोने के खयाल से , और इससे भी बड़ा डर यह है कि साथ रहना बस औपचारिकता न बन जाए। यह ज़हर धीरे-धीरे मुझे अंदर से खोखला कर रहा है। मुझे नहीं पता मैं क्या करूँ, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।
और इसी बेचैनी में आज पूरा दिन कटा। आज उसकी बहुत याद आई। मैं वो दिन याद कर रहा था जब मैंने उसे पहली बार देखा था। (हम टैटू स्टूडियो में पहली बार मिले थे। वो नीले रंग का सूट पहने, बड़ी सी आँखें लिए मेरे सामने से गुजर गई। मैं उसे जाते हुए देखता रहा, और ये भी देख रहा था कि मेरे अलावा स्टूडियो के सारे लड़के उसे ही देख रहे हैं। मैं मुस्कुराते हुआ चाय पीने चला गया।)
मैं बेक़रारी से रात होने का इंतज़ार कर रहा था। स्टूडियो में कुछ काम नहीं था, तो वक़्त काटने के लिए मानव कौल की लिखी किताब "बहुत दूर कितना दूर होता है" पढ़ रहा था। वह आज ख़त्म होने वाली थी। उसके आख़िरी पन्नों तक पहुँचते-पहुँचते मुझे उससे एक लगाव हो गया था। किताब खत्म करने की ज़िद अब उसके खत्म हो जाने के दुख में बदल गई थी। बाहर गया, एक सिगरेट पी, कुछ देर किताब और सोनिया के बारे में सोचने लगा, फिर अंदर आकर बैठ गया किताब पढ़ने के लिए।
8 बज गए थे और 10 पन्ने पढ़ने बाकी थे। मुझे 9:30 तक कमरे में पहुँचना भी था, क्योंकि हम रोज़ उस समय एक-दूसरे से बात करते हैं। सोनिया का मैसेज आया, "क्या कर रहे हो?" मैंने रिप्लाई नहीं किया, मुझे अभी वह किताब ख़त्म करनी थी। मैंने सोनिया का ख्याल दिमाग में लिए किताब पढ़ना शुरू किया। किताब खत्म हुई, एक सुकून अंदर भर गया। मुझे उस किताब ने अंत आते-आते अपना हिस्सा बना दिया था। मैंने किताब के आखिरी पन्ने को चूमा और मैं किताब के नशे में कमरे की तरफ़ निकल गया।
मैं कमरे में गया, एसी ऑन किया, और सीधा उसे वीडियो कॉल मिलाकर बिस्तर में लेट गया। उसका चेहरा देखकर न जाने मैं क्यों भावुक हो जाता हूँ। वो चेहरा बहुत मासूम है; मुझे उसका चेहरा देखकर न जाने कैसी शांति मिलती है। मेरा सारा शरीर शांत हो जाता है और मैं एक सुकून में चला जाता हूँ। हमने दिन में क्या-क्या हुआ, इस बारे में बात करना शुरू किया। वो ख़ामोशी अभी भी हमारी बातों के बीच गूँज रही थी, मानो कह रही हो कि मैं अभी तक यहीं हूँ। और अचानक मुझे अहसास हुआ कि जो बातें हम एक-दूसरे से कर रहे हैं, वो बस एक औपचारिकता है; मुझे उनमें कोई रस नहीं मिल रहा था। तो मैं बेचैन हो गया, उसने मेरे चेहरे की शिकन देख ली और पूछा, "क्या हुआ?" उसके पूछते ही मैं रुक नहीं पाया और मैंने सब कुछ बोल दिया जो मैं महसूस कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं इसी बात का इंतजार कर रहा था कि एक बार वो पूछ ले कि क्या हुआ और मैं अपने अंदर भरे उस ज़हर को उगल दूँ। मैंने सब कुछ कह दिया। कुछ देर हम दोनों चुप हो गए। मेरी बेचैनी और बढ़ गई और मैंने कहा, "शायद हमें अलग हो जाना चाहिए।" वो कुछ नहीं बोली। शायद उसे पता था कि मैं दूर नहीं जा सकता उससे, या वो सच में मानने लगी थी कि हमें अलग हो जाना चाहिए। पता नहीं, पर वो चुप थी और मैं चाहता था कि वो कुछ बोले जिससे मुझे अच्छा महसूस हो, वो मुझे रुकने के लिए बोले, लेकिन वो चुप थी।
फिर उसने बात शुरू की और मुझे कुछ-कुछ समझाने लगी, जो मैं नहीं समझना चाहता था। मैं बस कुछ ऐसा सुनना चाहता था जिससे मेरा ये खालीपन एक पल में ख़त्म हो जाए और मैं फिर से उस प्रेम को महसूस कर सकूँ जो मैं आम दिनों में करता हूँ, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। वो बोलती रही और मैं खयालों में उस बीच के किनारे पहुँच गया जहाँ उसने और मैंने बैठकर पहली बार बात की थी। (उसने मुझे अपने कॉलेज के दिनों के डिप्रेशन के बारे में बताया और कैसे वो उन सारी बुरी यादों को पीछे छोड़कर खुश रहना सीखने लगी। उस समय जी कर रहा था कि उसका हाथ पकड़ लूँ, पर हिम्मत नहीं हुई। पर मन बना लिया था कि मैं हमेशा उसे खुश रखूँगा। पता नहीं इस बात का विश्वास मुझे कैसे हो गया था कि हम साथ होने वाले हैं एक दिन, जबकि वो हमारा पहला दिन था साथ में। उसके साथ उस दिन मुझे बहुत सुकून मिला था, क्योंकि मुझे कोई मेरे जैसा मिला था जो बहुत गलतियाँ कर चुका था और उनसे सबक लेकर एक नई कहानी शुरू करना चाहता था।)
"सुन रहे हो?"
"हाँ हाँ," मैं खयालों से हकीकत में आया।
उसने क्या कहा, मुझे कुछ ज़्यादा याद नहीं, लेकिन वो मुझे इतना समझाने में कामयाब रही कि मुझे इस खालीपन के साथ कुछ देर रहना ही होगा, इसे अपनाना ही होगा। मैं हर बार इस खालीपन से डरकर भाग नहीं सकता। मैं छत पर गया, एक सिगरेट पी, कुछ देर उससे बातें कीं और सोने चला गया। उसे बहुत नींद आ रही थी, तो वो कॉल पर ही सो गई। सोते वक्त उसका चेहरा बहुत ही मासूम लग रहा था और मुझे एक बहुत ही ज्यादा अपनेपन का अहसास दे रहा था। उसे देखकर मेरी आँखों से आँसू निकल आए। वो स्नेह में निकले आँसू जिन्होंने मुझे बताया कि मैं कितना प्यार करता हूँ इस लड़की से। मुझे नहीं पता आगे क्या होगा, लेकिन ये अंत नहीं हो सकता इस कहानी का। हमने बहुत कुछ अभी साथ देखना है, बहुत कुछ जीना है। मैं इस पहले पड़ाव में हार नहीं मान सकता। मुझे नहीं पता प्यार का क्या मतलब है, मुझे नहीं पता इसका होना क्यों ज़रूरी है। क्या मैं अकेले खुश नहीं रह सकता? बिल्कुल रह सकता हूँ, पर जो सुकून उसके पास होने से मिलता है, मैं वो किसी भी और चीज़ में पाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। वो खुशी जो उसे खुश देखकर मिलती है, वो मैं खुद के खुश होने पर भी महसूस नहीं कर सकता। मैं कोरा हो चुका हूँ दिमाग से और थक चुका हूँ बहुत ज़्यादा, अब सोना चाहता हूँ। अगली सुबह का इंतजार है, वो सुबह जब सब सुलझ चुका होगा।