जब मैं कहता हूँ कि "मैं आपसे प्यार करता हूँ," तो इसका मतलब किसी गहराई मै छुपा हुआ होता है। इसमें मेरा अहंकार है, मेरा दुख है, और एक ख्वाहिश है यह सुनने की कि "मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ।" इसमें आपकी आँखों की मासूमियत है, मेरे दिल का वह नाजुक हिस्सा है, जो संभल नहीं पाता। एक ख्वाब है, जिसे मैं देखता हूँ। जो मुझे मेरे संयम से अधिक सुकून देता है और छलककर मेरे लबों से बाहर आ जाता हैं, और मैं कहता हूँ, "मैं आपसे प्यार करता हूँ।"
दिन बीत गए हैं,आप जा चुके हो, और मैं आपको भूलने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन आपका चेहरा बार-बार मेरे सामने आ जाता है। आपके होंठों से निकला हुआ मेरा नाम मेरे कानों में गूंजने लगता है, और मैं फिर से हार जाता हूँ। वह पूरी हिम्मत, जो मैंने दिनभर जमा की थी आपके बारे ना सोचने की , एक पल में बिखर जाती है।और फिर उस याद, उस ग़म के अंबार के सामने मैं खुद को छोटा महसूस करने लगता हूँ। मैं सोचता हूँ कि क्या कोई तरीका था, जिससे मैं आपको अपने पास रोक सकता। मैं खुद को कोसता हूँ कि क्यों मैं आपको अपने पास नहीं रख पाया, और कैसे आपको खो दिया। मैं अपने दर्द को इन शब्दों में बयान नहीं कर सकता, लेकिन आपको दोबारा पाने की ख्वाहिश करता हूँ और इंतजार करता हूँ कि एक दिन आप आओगे, मुझे गले लगाओगे , और फिर से मेरे मेरा नाम लेते हुए कहोगे " मैं आपसे प्यार करती हूं "।
आज का दिन अच्छा जा रहा था। मैंने काम किया और नए सपने बुने। इन सपनों में आपको शामिल करने का इरादा तो नहीं था, लेकिन आप कहीं न कहीं मेरे सपनों में दिखाई दे ही जाते थे। सपनों में सब पा लेने के बाद भी एक खाली जगह रह गई थी, वहाँ आपकी परछाई थी। उस जगह को भरने के लिए, उस शून्य से दूर भागने के लिए, मैंने अपने सभी सपनों को एक-एक करके उस जगह पर रख दिया। लेकिन वे भी उसी जगह समा गए। मेरी सारी चाहतें खत्म हो गईं, और हर जगह बस एक ही चीज़ रह गई—आपकी वह परछाई। जिसके आगे मैं रोते-रोते गिर पड़ा, और सिसकियों के साथ मेरे लबों से बस एक ही बात निकली, "मैं आपसे प्यार करता हूँ।"
मैं आज फिर नहीं रुक पाया और मैंने उससे बात की। आज भी वह मुझसे वैसे ही बात करती है, और आज भी मुझसे प्यार करती है। मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ, उसे देखते ही मेरी आँखों से आँसू निकल आते हैं। मैं नहीं चाहता कि वह मेरा रोता हुआ चेहरा देखकर खुद को दोषी ठहराए। उसके जाने की वजह मैं शायद कभी नहीं समझ पाऊंगा, लेकिन मैं उसके फैसले का विरोध करके उसे जबरदस्ती अपने पास नहीं बुला सकता। मैं बस उम्मीद करता हूँ कि कभी किसी दिन अकेलेपान मै उसे मेरी याद आए, और वो मेरे पास आएगी । मैं उस पल का इंतजार करूंगा और ये भी कोशिश करूंगा कि उसे भूल सकूँ। लेकिन काश, उसने इतनी जल्दी हार नहीं मानी होती और हमारे रिश्ते को एक और मौका दिया होता। मेरी नाराज़गी सिर्फ इतनी है कि काश, उसने थोड़ी और कोशिश की होती और मुझे भी अपने फैसले में शामिल किया होता।
अब भी मैं उम्मीद लगाए बैठा हूँ और उन सभी पलों को याद कर रहा हूँ जो हमने साथ बिताए थे। वह समंदर किनारे बैठकर रातभर बातें करना, हर पल बेचैन रहना सिर्फ उसके साथ समय बिताने के लिए, और वे सपने देखना जिन्हें हम साथ में बुनते थे, जहाँ कुछ तेरा या मेरा नहीं था, वहाँ सब हमारा था—हम दोनों का। उसका हाथ पकड़कर उसे उसके कमरे तक छोड़ने जाना, और वहीं खड़े होकर उसके कमरे को देर तक निहारना और सोचना कि एक दिन हमारा भी एक घर होगा, जहाँ हम साथ रहेंगे। उसके सामने मुझे सबकुछ कहने की आज़ादी थी मैं उसके सामने रो सकता था, खुश हो सकता था, प्यार कर सकता था, और उसकी परवाह कर सकता था। उसने मुझे पूरी तरह से स्वीकार किया था। लेकिन अब, वह अकेले नहीं गए; वह यह सब भी साथ ले गए। अब मैं बस पत्थर की तरह बैठा रहता हूँ—जो रोना चाहता है, लेकिन नहीं रो पाता। जो खुश होना चाहता है, लेकिन उससे कोई भावना बाहर नहीं आ पाते। वह उसके साथ बैठकर बातें करना मुझे बहुत याद आ रहा है। और यह सब लिखते समय हर शब्द में वह अपनी उस प्यारी सी मुस्कान के साथ दिखाई दे रहे है, जिसे देखकर मैं अब तक जी रहा हूँ।
पता नहीं मैं यह क्यों लिख रहा हूँ? क्यों मैं आप तक पहुँचने की नाकाम कोशिश कर रहा हूँ? क्यों बार-बार आपको कॉल करके परेशान कर रहा हूँ? मैं क्यों इस ज़ख्म को इसके हाल पर नहीं छोड़ देता? पता नहीं इसे कुरेदने से मुझे किस सुकून की तलाश है। लेकिन यही एक जरिया रह गया है मेरी बेचैनी को शांत करने का। हाँ, ऐसा करने से वह ज़ख्म फिर से हरा हो जाता है, लेकिन फिर भी पहले से थोड़ा बेहतर हो जाता है। शायद यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक यह ज़ख्म पूरी तरह से भर नहीं जाता।
मैंने उसे कई बार कॉल किया, लेकिन इस बार उसने कोई जवाब नहीं दिया। अब सच मेरे सामने खड़ा है, और मैं चाहकर भी इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। अब मैं बस उस मुलाकात का इंतजार कर सकता हूँ, जो हमने तय की थी, लेकिन शायद वह अब कभी नहीं हो पाएगी। पर मैं इंतजार करूंगा , क्यों की अब वही एक आखरी रास्ता है अगर वो नही हो पाई तो हम जिंदगी भर नही मिल पाएंगे , और ये कहानी ऐसी ही अधूरी छूट जायेगी , पर हम मिलेंगे हमे मिलना ही होगा । अभी इस किताब के काफ़ी पन्ने लिखने बाकी हैं। अभी फिर से उसे गले लगाना बंकी हैं।
मुंबई
यहाँ आने के बाद मेरे ज्यादा दोस्त नहीं बने थे। फिर अचानक से मैं सोनिया के दोस्तों के ग्रुप का हिस्सा बन गया, जो हर रात किसी बार में पार्टी करने जाते थे। मैं भी उस दिन उनके साथ चला गया क्योंकि उनके साथ सोनिया भी वहाँ होती थी। हमने देर तक बीयर पी। फिर मैं और अभी सिगरेट पीने बाहर आए ।
"वो मुझे बहुत पसंद है," मैंने कहा।
"कौन, सोनिया?" अभी ने पूछा।
"हाँ।"
"पर वो शायद किसी और को पसंद करती है," अभी ने निराशा में कहा।
उसने बताया कि पुराने बैच के जो लोग वहाँ टैटू बनाना सीखने आए थे, उनमें से एक लड़का सोनिया को पसंद है। मैं निराश हो गया, कुछ देर किस्मत को कोसा और फिर सिगरेट पीने लगा। तभी अंदर से सोनिया बाहर आई। मैंने उसे देखा और पूछा:
"सिगरेट पियोगी?"
उसने सिगरेट मेरे हाथ से लेते हुए कहा, "तुम्हारी टी-शर्ट पर 'निर्वाण' लिखा हुआ है, क्या तुम पहुँचना चाहते हो वहाँ तक?"
उसकी आंखों में एक जिज्ञासा थी , शायद मुझे जानने की या मेरे जरिए खुद को ।
"पता नहीं, मैं बस भटक रहा हूँ। मुझे नहीं पता मुझे कहाँ जाना है, बस इतना पता है कि मुझे चलते रहना होगा," मैंने कहा।
उसने शायद सुना नहीं , या उसहे जवाब मिल गया था ,वो खुद मैं खो गई , उसने हल्का सा मुस्कुराया।
"मैं जा रही हूँ, कल मिलते हैं। आज बहुत देर हो गई है," यह कहकर वह चली गई।
मैं उसे कुछ देर और रोकना चाहता था , उससे और बात करना चाहता था, लेकिन नही कर पाया मैं उसे जाते हुए देखता रहा , और उसके बारे मै सोचता हुआ इंतजार करने लगा अगले दिन का।
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