सुबह में अंजन गुरु जी के पास खड़ा थी और कबीर बाबा भी गुरु जी के पास खड़ा थे, साथ में गुरु जी इन दोनो के सामने खड़ा थे तभी कबीर बाबा इतमीनान से कहे," हरिदास जी यदि आपका आज्ञा हो तो मुझे जाना होगा!." गुरु जी कबीर बाबा की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," हूं ठीक है आप जा सकते है!." कबीर बाबा गुरु जी आज्ञा पा कर वहा से पाने सारे ऋषिमुनि के साथ अपने मंदिर पे चल दिए थे, और गुरु जी कबीर बाबा को देखे जा रहे थे, तभी अंजन इतमीनान से कही," गुरु जी आप मुझे भी आज्ञा दे देते तो मैं चली जाती!." ये बात सुन कर गुरु जी इतमीनान कहे," हूं जा सकती हो परंतु राम्या को यहीं पर छोड़ना होगा!." ये वाक्य सुन कर अंजन आश्चर्य से पूछी," परंतु क्यू गुरु जी, राम्या की ज्ञान तो पूरा हो चुका है ना!." अंजन की वाक्य सुन कर गुरु जी इतमीनान से कहे," हा हो चुकी है परंतु अभी उसे कुछ दिन यहीं पे रहना होगा!." ये बात सुन कर अंजन आश्चर्य पूछी," फिर मैं तो उसके बिन एक पल नही रह सकती हूं फिर इतना दिन कैसे रहेंगे हम!." गुरु जी न्हान की वाक्य सुन कर कहे," ठीक है फिर तुम इसे बोलो यदि वो चला गया तो लेकर चले जाने नही तो छोड़ जाना!." इतना कह कर गुरु जी वहा से जाने के लिए चले ही थे तभी अंजन कही," नही मुझे क्या जरूरत उसे पूछने की मैने तो सिर्फ उसे जन्म दिया और आप तो उसे चलने का मार्ग दिखाया है फिर मैं क्यू उसे रोकू!." ये बात सुन कर गुरु जी इतमीनान से कहे," कुछ दिनो की तो बात है वो फिर तुम्हारे साथ चला जायेगा!." ये बात सुन कर अंजन इतमीनान से कही," ठीक है गुरु जी!." और फिर अंजन गुरु जी के चरण को छू कर प्रणाम की और वहा से पाने मंदिर की तरफ चल दी, राम्या ऊं सारे शिष्य के साथ मैदान में खेल रहा था, अंजना उस आश्रम से बाहर निकली तो अंजन के आंख में नम भर आया था, अंजन इस लिए रो रही थी की अंजन अपने पुत्र से एक पल भी दूरी नही रह पा रहीं थी परंतु गुरु जी के लिए कुछ दिन कैसे रह पाएगी ये सोच कर रो रही थी अपने पुत्र के मम्मता में, अंजन रोते हुए अपने मंदिर की तरफ जा रही थी,
अंजन जैसे मंदिर के पास पहुंची तो सामने दरवाजा पे देख कर दंग रह गई, उस मंदिर के कपाट पे एक मनुष्य बैठा था जिनका उम्र लगभग तीस साल होगा, उस मनुष्य के नाम था राजा दशरथ जो एक राजा की तरह कपड़ा पहने हुए थे, और अपने सर ले मुकुट लगाए हुए थे, अंजन राजा दशरथ को देख कर तेजी से राजा दशरथ के पास चली गई और आंख में आंसू लिए हुए पूछी," आप यहां पे!." ये बात सुन कर राजा दशरथ भी रो पड़े थे और इतमीनान से कहे," हा अंजन हम है!." , अंजन राजा दशरथ की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछी," परंतु आप यहां क्यू आय है!." राजा दशरथ अंजन की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," अंजन ऐसा क्यों बात कर रही हो, मैं तुम्हारा पति हूं नजर मिला कर बात करो!." अंजन राजा दशरथ से अपना नजर आंचल में छुपा कर बात कर रही थी, तो अंजन राजा दशरथ की वाक्य सुन कर आक्रोश में कही," आपने नजर मिलाने के लिए छोड़ा ही कहा है!." ये बात सुन कर राजा दशरथ अपने पत्नी से कहे," ये सब छोड़ो और चलो मेरे साथ, देखो मेरे दूत भी तुम्हे ले जाने के लिए आए है!." फिर राजा दशरथ अपना नजर अगल बगल घुमा कर देखे तो राम्या नही दिखा फिर राजा दशरथ कहे," राम्या कहा है जो नही दिखाई दे रहा है!." अंजन अपना चेहरा छुपा कर आक्रोश में कही," आप यह से चले जाइए मुझे नही जाना आपके साथ!." इतना कह कर अंजन दौर कर मंदिर के अंदर चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर दी और फिर दरवाजा से चिपक कर रोने लगी, राजा दशरथ दौर कर उस दरवाज़ा पे गय और जोर जोर से खटखटाने लगे और कहने लगे," अंजन मेरी बात सुनो कृपया दरवाजा खोलो..!." अंजन राजा दशरथ के एक बात न सुनी और वही पे रोते हुए बैठी रही, राजा दशरथ काफी देर बैठ कर रोते हुए इंतजार किए मगर अंजन दरवाजा नही खोली तो राजा दशरथ वहा से धीरे धीरे उठे और अपने दूत के साथ वहा से घर वापस चले आए,
राजा दशरथ अंजन के पति और राम्या के पिता जी थे अंजन के घरेलू त्रुटि की वजह से अपने घर छोड़ कर अकेले ही इस मंदिर में आ कर रहनी थी, परंतु अंजन जब घर छोड़ कर आई थी उस वक्त अंजन गर्भ थी और मंदिर में आते ही अंजन ने राम्या को जन्म दिया, ये बात जब राजा दशरथ को पता चला तो राजा दशरथ अपने दरबार से दूत को भेजे थे प्रांत अंजन ने माना कर दिया," मैं उस महल में चौदह वर्ष तक अपनी कदम नही रखूंगी!." वो दूत वहा से जाकर अपने राजा दशरथ की खबर किया परंतु राजा दशरथ भी अपने घमंड के आगे चूर थे राजा दशरथ भी कभी मिलने नही आए थे परंतु अपने दूत को रोज भेजा करते थे परंतु अंजन माना कर देती थी, राम्या को पता नही था की मेरे पिता जी का नाम राजा दशरथ है या मेरा पिता जी नही है,
अंजन उस मंदिर के अंदर दरवाजा से लिपट कर रो रही थी तभी अंजन को आवाज सुनाई दिया," माते... माते.. माते... !."
अंजन ये आवाज सुन कर हैरानी से दरवाजा खोली तो अंजन सामने देख कर दंग रह गई और अंजन का थर थर पैर कांपने लगा था,अंजन के सामने राम्या और सूर्य दोनो खून से लोट पोट था और राम्या अपने गोद में एक 4 साल का बालक को लिया हुआ था,
राम्या तेजी से उस बालक को लेकर अंजन के पास आया तो अंजन हैरानी से पूछी," राम्या तू इस बालक को कहा से लाया, अर्थात ये तुम दोनो के आसन लहू से पूरा नम क्यू है!." अंजन ने राम्या और सूर्य दोनो से पूछा था,
तभी राम्या अपने माते अंजन को कहानी बताने लगा," माते जब हम लोग खेल रहे थे हमे नदी की तरफ घूमने का मन किया और हम दोनो ने चल दिया आश्रम से बाहर निकल कर!."
सारे शिष्य खेल रहे थे और उसमे राम्या भी खेल रहा था, खेलते खेलते राम्या और सूर्य उस आश्रम से बाहर निकल गय और दोनो एक जंगल की चल दिए जहां से नदी नज़दीक पड़ता हो, दोनो ने अपना धनुष लिए थे, और जंगल में खेलने जा रहे थे, जैसे बीच जंगल में दोनो गया तभी बादल गरजने लगा, ये सब देख कर सूर्य थोड़ा डर गया परंतु राम्या को कुछ नही हो रहा था, तभी एक जोर से तड़का तड़की सूर्य डर से कांपने लगा और जोर जोर कहने लगा," राम्या चल यह से चलते है, मुझे बहुत डर लग रहा है!." राम्या सूर्य की वाक्य सुन कर कहने लगा," आरे वर्षा आने वाली नही है, बस ऐसे ही तड़का तड़कती रहती है!." ये बात सुन कर सूर्य डरते हुए पूछा," अच्छा तो तुम कोई भगवान हो का जिसे तुम्हे पता चल गया की वारिश नही होगा!." राम्या सूर्य की वाक्य सुन कर वही पे दोनो रुक गय और राम्या सूर्य की समझाते हुए कहा," देखो मैं भगवान नही हूं परंतु मुझे बजरंग बल्ली पे पूरा भरोसा है!." ये बात सुन कर सूर्य थोड़ा आश्चर्य से पूछा," परंतु बजरंग कभी तुमको दर्शन दिए है!." राम्या इतमीनान से सूर्य को जवाब दिया," नही परंतु मेरे स्वपन में रोज आते है!." राम्या की वाक्य सुन कर सूर्य बोलने की कोशिश किया तभी राम्या को एक संगीत सुनाई देने लगा," वो... मंगल भवन आ मंगल हारी... द्रबहू सुदाशरथ अचर बिहारी... राम सिया राम सिया राम जय जय राम... राम सिया राम सिया राम जय जय राम...!." ये संगीत सुनते ही राम्या सब भूल गया और अपना नजर चारो तरफ घुमा कर देखने लगा, की ये आवाज कहा से आ रही थी, और उस आवाज के पीछे पीछे राम्या भागने लगा था, राम्या के साथ सूर्य भी पीछे पीछे भागने लगा था लेकिन दोनो जब कुछ दूर बीच जंगल चले गया तो वो संगीत की तान आना बंद हो गई थी, राम्या और सूर्य दोनो वही पे रुक गया और आश्चर्य से राम्या सोचने लगा," ये क्यूं रुक गया, इतनी जंगल मैं कौन संगीत गा रहा था!." ये सोचते हुए राम्या चारो तरफ नजर घुमा रहा था परंतु कोई नही दिख रहा था, राम्या आश्चर्य से जोर से गुस्सा में कहा," यू महा मूर्ख तुम कौन हो और इतना गहरी जंगल मैं संगीत क्यू गा रहे हो!." ये बात सुन कर सूर्य डरते डरते कहा," आरे राम्या चल यहां से चलते है वो लड़की वह पे पहुंच गई होगी फूल भी तोड़ कर चली जायेगी, यदि यहां पे कुछ मिल गया तो कल से उस लड़की से मिल भी नही पाओगे!." ये बात सुन कर राम्या अपने धनुष में बाण लगा कर गुस्सा में दक्षिण दिशा की तरफ छोड़ने के लिए तान दिया, परंतु दक्षिण दिशा में एक औरत अपने एक बच्चा को लेकर सैयद कहीं जा रही थी, लेकिन राम्या चाहे सूर्य के वो औरत नही दिख दही तेज और नही उस औरत को राम्या और सूर्य दिख रहा था, तभी हजारों राक्षस राम्या और सूर्य को चारो तरफ से घेर लिए, ये देख कर सूर्य भी अपना बाण निकाल कर धनुष पश्चिम दिशा की तरफ तान दिया, वो राक्षस जोर जोर से हसने लगा," हा... हा... हा... हा... हा... हा... हा.. ये मूर्ख बालक तुम मुझे कैसे मरोगे, तुम पहचान पाओगे इसमें मेरा कौन सा अंग है.. नही ना.. हा... हा... हा... !." ये आवाज सुन कर राम्या आश्चर्य से देखने लगा और सूर्य तो अंदर से डर गया,
to be continued....
क्या होगा इस कहानी का अंजाम क्या राम्या इस राक्षस से युद्ध लड़ेगा या फिर वो औरत कौन थी उतने घने जंगल में कहा जा रही थी, जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH "