राम्या और सूर्य को जंगल में एक राक्षस ने चारो तरफ से घेर रखा था राम्या उस राक्षस को आश्चर्य से देखे जा रहा था परंतु राय को समझ नही आ रहा था की कौन सा अंग राक्षस का सत्य है क्यू की जो राक्षस राम्या की चारो तरफ से घेर था उसका ही सकल चारो तरफ था, परंतु उस राक्षस को देख कर सूर्य बहुत डर गया था और अपना धनुष उस राक्षस के तरफ तना हुआ था, और राम्या अपना धनुष नीचे करके चारो तरफ आश्चर्य से देख रहा था तभी सूर्य पूछा," आप कौन हो और मुझे प्रेशान क्यू कर रहे हो अर्थात तुम्हे मुझसे क्या चाहिए!." राक्षस सूर्य को जवाब दिया," ये मूर्ख बालक मैं तुम्हे यह तुमसे बात करने नही तुम्हे मारने आय है!." राम्या उस राक्षस से पूछा," प्रांत क्यू हमने ऐसा क्या कर दिया है जिसे आपको त्रुटि हुई है क्या आप बेयाख्या कर सकते है!." राक्षस राम्या की वाक्य सुन कर जवाब दिया," तुम खुद जो किए हो क्या वो तुम्हे मालूम नही है!." ये बात सुन कर राम्या कुछ बोल पता उसे पहले सूर्य कहा," ये मूर्ख यदि हमे मालूम रहता तो हम आपसे थोड़ी पूछते!." ये बात सुन कर उस राक्षस को गुस्सा आ गया और फिर से कहा," ये तुमने छल से मेरे दो भाइयों को मारा है मैं तुम्हे मौत की घात उतरूंगा तब हम विजय होंगे!." ये बात सुन कर राम्या आश्चर्य से पूछा," क्या मैं आपके भाई का, परंतु मैं तो आपके भाई को जनता नही हूं की आपका भाई कौन है फिर भला मैं क्यू मार सकता हूं! सायेद आपको कोई गलत फहमी हुई है!." ये बात सुन कर वो राक्षस आक्रोश में कहा," ये तुम मुझे ज्ञान दे रहे हो, मैं तुम्हारे बातों में आने वाला नही हूं!." ये बात सुन कर सूर्य आक्रोश मैं कहा," ये मूर्ख हमे चुनौतियां दे रहे हो यदि युद्ध ही करना है तो देर किस बात की है चालू करो!." इतना कह कर सूर्य अपना धनुष से बाण को पश्चिम दिशा की तरफ छोड़ दिया, वो राक्षस भी अपने शक्ति से एक बाण छोड़ दिया और दोनो का बाण टकड़ा कर लुप्त हो गया, ये राक्षस आश्चर्य से इसे देखने लगा, तभी फिर से सूर्य एक बाण को छोड़ दिया, इस बाण को राक्षस देख कर घबरा गया, और कुछ देर सोच कर एक अपने शक्ति से बाण को छोड़ दिया वो दोनो बाण फिर से टकड़ा कर लुप्त हो गया जिसे सूर्य आश्चर्य से देखने लगा और वो राक्षस जोर जोर से हसने लगा था," हा... हा... हा.. हा... हा... हा.. हा... हा... हा... ये बालक तुम मुझसे युद्ध करोगे, जाओ पहले अपने गुरु जी से और ज्ञान लेकर आओ!." ये बात सुन कर राम्या से रहा नही गया और आक्रोश में कहा," तुम मुझे ललकार राज थे तो मुझे कोई अप्ती नही थी परंतु मेरे प्रभु यों गुरु जी को कुछ बोला का स्वपन मत देखना!." फिर राम्या एक बाण को छोड़ दिया, वो राक्षस उस बाण को देख कर दंग रह गया और वहा से हट कर दूसरा जगह चल गया, राम्या और सूर्य ये देख कर दंग रह गया, वो राक्षस कहीं कहीं जा कर जोर जोर से हसने लगा था," हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा...!." सूर्य और राम्या दोनो आश्चर्य से चारो तरफ देखने लगे थे, तभी राम्या आक्रोश में एक बहुत शक्ति शाली बाण को छोड़ दिया दक्षिण दिशा की तरफ वो राक्षस वहा से लुप्त हो गया और आवाज तक नहीं आया तभी एक जोर से आवाज सुनाई दिया इन दोनो को," राम्या.. राम्या ... राम्या ... राम्या.. राम्या.. !." राम्या और सूर्य दोनो इस आवाज को सुन कर घबरा गय और एक दूसरे को देखने लगे,फिर वहा से दौर कर भागने लगे इस आवाज की तरफ, सूर्य और राम्या जैसे कुछ दूर गया तभी सूर्य का नजर उस औरत पे पड़ा जो औरत के बच्ची को लेकर कहीं जा रही थी, सूर्य वही रुक कर तेज सांसों में कहा," राम्या वो देख!." राम्या भी उस औरत को देखा वो औरत की छाती में राम्या का बाण लगा था और गोदी में एक बालक खेल रहा था उस औरत ने जमीन पे सो गई थी परंतु वो बालक लहू से पूरा भीगा हुआ था, राम्या और सूर्य दोनो दौर कर वहा पे गया और बैठ कर देखने लगे, देखते देखते राम्या और सूर्य के आंख में नम भर गय, राम्या उस उस औरत के छाती से बाण अपने हाथ से निकालने लगा, तभी वो औरत का सांस धक दे किया, सूर्य उस बालक को अपने अपने गोद में ले लिया और राम्या उस बाण को आराम से निकलने लगा, वो औरत अपना मुंह खोल कर कुछ कहना चाहती थी परंतु मुंह से आवाज नही आ रही थी , राम्या जैसे उस बाण को जोर से खींचा उस औरत का प्राण निकल गया, ये देख कर राम्या और सूर्य के आंख से एक एक बूंद आंसू टपक गया, राम्या अपने हाथ उस औरत के आंख पे फेरा उस औरत का आंख बंद हो गया, और फिर दोनो खड़ा होकर वहा से वापस आश्रम की तरफ चल दिए, तभी सूर्य राम्या को रोक कर कहा," राम्या चलो घर चलते है, यदि आश्रम गय तो गुरु जी आक्रोश हो सकते है!." राम्या सूर्य को जवाब दिया," तो क्या हुआ गलती तो हो चुकी है, अब पछताने से क्या होगा! चलो आगे चलते है!." राम्या जैसे चला तभी सूर्य राम्या का हाथ पकड़ कर कहा," नही राम्या तुम बात मानो यहां से सीधे घर चलते है!." राम्या कुछ सोच कर कहा," ठीक है इस बालक को मुझे दो और चलो!." सूर्य उस बालक को राम्या को दे दिया और वहां से चल दिया अपने घर अंजन के पास,
फ्लैश बैक आउट...
राम्या और सूर्य दोनो अंजन के सामने मंदिर के बाहर खड़े थे राम्या अपनी मां अंजन के हाथ में उस बालक को थमा दिया और अपनी कान पकड़ माफी मांगते हुए कहा," माते मुझे छम्मा कर दो, मैं ये जान बूझ कर नही किया हूं!" अंजन उस बालक को अपने हाथ में लेकर बैठ गई और रोने लगी, सूर्य खड़ा होकर चुप चाप देख रहा था और राम्या अपने मां के आगे दोनो पैर पे बैठा था, तभी जोर जोर से बारिश होने लगा था और तड़का भी और जोर से तड़कने लगा था, राम्या अपनी मां अंजन को समझाते हुए कहा," मां तुम क्यों रो रही हो... मैंने गलती नही किया है !." अंजन राम्या को अपना नजर उठ कर देखी और इतमीनान से कहा," पुत्र मैं तुम्हे कहा कही है की तुम्हारा दोष है, ये तुम्हारे छल कपट की दोष और झूठी वचन की!." राम्या अंजन की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछा," ये क्या कह रही हो मां!." अंजन राम्या की वाक्य सुन कर कही," हा पुत्र तुम याद करो, जिस दी गुरु जी को ब्रम्हा शास्त्र मिला था उस रात को तुम कहा था!." राम्या अंजन की वाक्य सुन कर हैरानी से खड़ा हो गया और पीछे घूम कर आश्चर्य से कुछ कहना चाहा," माते मैं उस रात..... !." राम्या इतना कहा हीं था की तभी अंजन के पीछे से एक भैंस खूंखार की तरह आ रहा था, सूर्य देख कर जोर से चिला उठा," माते.... !."
To be continued....
प्लीज़ आप लोग अपना राय दीजिए कहानी को पढ़ कर की कैसा लगा, और रिव्यूज और कमेंट दीजिए ताकि मैं मोटिवेट हो जाऊं,