Chereads / गीता ज्ञान सागर / Chapter 18 - अध्याय 11 विराट रूप।।।श्लोक 1 से 19 तक

Chapter 18 - अध्याय 11 विराट रूप।।।श्लोक 1 से 19 तक

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श्लोक 1

अर्जुन उवाच

मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌।

यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम।।

हिंदी अनुवाद_

अर्जुन बोले- मुझ पर अनुग्रह करने के लिए आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म विषयक वचन अर्थात उपदेश कहा, उससे मेरा यह अज्ञान नष्ट हो गया है।

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श्लोक 2

भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।

त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

क्योंकि हे कमलनेत्र! मैंने आपसे भूतों की उत्पत्ति और प्रलय विस्तारपूर्वक सुने हैं तथा आपकी अविनाशी महिमा भी सुनी है।

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श्लोक 3

एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।

द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम॥

हिंदी अनुवाद_

हे परमेश्वर! आप अपने को जैसा कहते हैं, यह ठीक ऐसा ही है, परन्तु हे पुरुषोत्तम! आपके ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेज से युक्त ऐश्वर्य-रूप को मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ।

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श्लोक 4

मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।

योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

हे प्रभो! (उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय तथा अन्तर्यामी रूप से शासन करने वाला होने से भगवान का नाम 'प्रभु' है) यदि मेरे द्वारा आपका वह रूप देखा जाना शक्य है- ऐसा आप मानते हैं, तो हे योगेश्वर! उस अविनाशी स्वरूप का मुझे दर्शन कराइए।

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श्लोक 5

श्रीभगवानुवाच

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।

नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च॥

हिंदी अनुवाद_

श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अब तू मेरे सैकड़ों-हजारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा नाना आकृतिवाले अलौकिक रूपों को देख।

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श्लोक 6

पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा।

बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत॥

हिंदी अनुवाद_

हे भरतवंशी अर्जुन! तू मुझमें आदित्यों को अर्थात अदिति के द्वादश पुत्रों को, आठ वसुओं को, एकादश रुद्रों को, दोनों अश्विनीकुमारों को और उनचास मरुद्गणों को देख तथा और भी बहुत से पहले न देखे हुए आश्चर्यमय रूपों को देख।

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श्लोक 7

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्‌। 

मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि॥

हिंदी अनुवाद_

हे अर्जुन! अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो सो देख

(गुडाकेश- निद्रा को जीतने वाला होने से अर्जुन का नाम 'गुडाकेश' हुआ था)

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श्लोक 8

न तु मां शक्यसे द्रष्टमनेनैव स्वचक्षुषा।

दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

परन्तु मुझको तू इन अपने प्राकृत नेत्रों द्वारा देखने में निःसंदेह समर्थ नहीं है, इसी से मैं तुझे दिव्य अर्थात अलौकिक चक्षु देता हूँ, इससे तू मेरी ईश्वरीय योग शक्ति को देख

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श्लोक 9

संजय उवाच

एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः।

दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

संजय बोले- हे राजन्‌! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात अर्जुन को परम ऐश्वर्ययुक्त दिव्यस्वरूप दिखलाया।

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श्लोक 10

अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्‌।

अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्‌॥

हिंदी  अनुवाद_

उस अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक अद्भुत दर्शनों वाले एम बहुत से दिव्य भूषणो से युक्त और बहुत से दिव्य शास्त्रों को हाथो में उठाए हुए।

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श्लोक 11

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्‌।

सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किए हुए और दिव्य गंध का लेपन किए हुए एम समस्त प्रकार के आश्चर्यो से युक्त अनंत , विराट स्वरूप परम देव को अर्जुन ने देखा।

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श्लोक 12

दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।

यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥

हिंदी अनुवाद_

आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्व रूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित्‌ ही हो

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श्लोक 13

तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।

अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा॥

हिंदी अनुवाद_

पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत को देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा।

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श्लोक 14

ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः।

प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत॥

हिंदी अनुवाद_

उसके अनंतर आश्चर्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाशमय विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले।

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श्लोक 15

अर्जुन उवाच

पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा

भूतविशेषसङ्‍घान्‌।

ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्‌॥

हिंदी अनुवाद_

अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित ब्रह्मा को, महादेव को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूँ।

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श्लोक 16

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्‌।

नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप॥

हिंदी अनुवाद_

हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामिन्! आपको अनेक भुजा, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ। हे विश्वरूप! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ, न मध्य को और न आदि को ही।

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श्लोक 17

किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्‌।

पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

आपको मैं मुकुटयुक्त, गदायुक्त और चक्रयुक्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के पुंज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, कठिनता से देखे जाने योग्य और सब ओर से अप्रमेयस्वरूप देखता हूँ।

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श्लोक 18

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यंत्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌।

त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे॥

हिंदी अनुवाद_

आप ही जानने योग्य परम अक्षर अर्थात परब्रह्म परमात्मा हैं। आप ही इस जगत के परम आश्रय हैं, आप ही अनादि धर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं। ऐसा मेरा मत है।

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श्लोक 19

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्‌।

पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्‌॥

हिंदी अनुवाद_

आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ।

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कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा

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