टिक पाये गा, वो घर दो कमरे का था,छत पतरे से ढ़की हुईं थीं, गांव का सायद वो बिछड़ा हुआ एरिया था,
" सुनो आप अब अधेड़ उम्र के हो चुके हों हमारा बेटा 9 साल का ही तो है, गाव में हम तो अपना पेट भी ठीक से नहीं भर पाते, चलो सेहर चलते हें" अपने पति राघव को चाय पिलाते हुए सविता बोल रही थी, उसके आवाज में दर्द था और अपने बच्चे के प्रति प्यार था. राघव चाय पीते पीते बोला " हम्म... जायेगे अभी खेत मे जाना हें" "दूसरे के खेत मे कब तक दिहाड़ी पे जा के पेट भरे गे, 2020 आने वाला है, घर की हालत देखो कब गिर जाएगा कुछ कह नहीं सकते". सविता यह अपने पति को कह रही थी उसकी आवाज़ मे दर्द साफ दिख रहा था." राघव ने कहा" ठीक हें ये साल का आखिरी महिना हें, में कुछ पेसे जमा कर्ता हू, फिर शहर चलगे". सविता ने कहा " ठीक, पर अपने चाचा के लड़का मोहन भी वहा पे हें तो उस से बात कर लेना फोन से वो रहने का कुछ इंतजाम कर दे, " ये कहते हुए सविता बेहद खुस थी, जब से शादी कर के घर आयी तबसे गरीबी देखी हें,. " ठीक हें, करूगा बात, अभी मे चलता हू, बिट्टू को स्कूल भेज के तुम खेत में आ जाना. "
1 महीना पेसे जोड़ने में चला कब गया पता नहीं चला 2020 आ गया था, राघव अपने बीवी और बच्चे के साथ सहर आ गया था, मोहन ने उसके पास ही एक खोली किराये पे रहने को दिलाई थी.
"देखो राघव यहा पर नोकरी तो हमे मिलेगी नहीं पर दिहाड़ी मे अच्छा पेसे कमा सकते हे, दिन रात मत देखना सुबह शाम जब काम मिले काम के लिए मना नहीं करना." हा मोहन हम तो अपनी जिंदगी जेसे मर्जी काट लेगे, पर हमारे बीवी बच्चों को खुश रख पाए तो बहोत हें. ".
मोहन ने अपने बचे के साथ ही राघव के बेटे का सरकारी स्कूल मे दाखिला करवा दिया. " सविता भाभी इस स्कूल मे खाना फ्री देते हें सरकार की तरफ से पढ़ाई भी फ्री हें, " मोहन ने सविता को बोला," मोहन भाई आप नहीं होते तो हम सहर मे आके क्या करते, "" भाभी हम एक ही तो परिवार हें अलग अलग थोडी हें" मोहन ने कहा.
" राघव अब कलसे तू मेरे साथ चलना ठीक हें काम पे, " मोहन ने राघव से कहा.
अगले दिन सुबह मोहन और राघव दिहाड़ी पे चले गये, सविता ने बिट्टू को स्कूल मे भेजा और घर के काम करने लगी.
एसे ही तीन महीने बीत गए राघव और मोहन दोनों परिवार बेहद खुश थे, सविता ने सादी के बाद इतनी खुशी पहली बार देखी थी. मोहन के घर टीवी था तो सब मिल कर टीवी देख रहे थे, समाचार मे दिखा रहे थे कि कोरोंना वायरस के चलते भारत बंध का एलान मोदीजी ने कर दिया था.
दोनों परिवार सहम गए थे कुछ दिन तो गुजारा कर लेगे बिना काम के पर आगे क्या होगा, बच्चों को क्या खिलाए गे.
घर के अंदर रहे तो भूख से मर जाएगे, बाहर गए तो पॉलिश मार देगी, मोहन और राघव को कुछ समज़ नहीं आ रहा था.
राघव और मोहन ने फैसला कर लिया था कि अब वो अपने परिवार को लेके गाव ही जाएगे. और वो पैदल ही गाव चल दिये, लेकिन उसी वक़्त एक भले आदमी ने उनकी गाव जाने मे मदद की और उन्हें गांव पहुच ने तक खाना पीना मिले उसका भी इंतजाम कर दिया, मोहन और राघव की तरह ही हज़ारो परिवार थे जो सड़कों पे आ गये थे, 2020 राघव के परिवार के अंदर खुशिया ले कर तो आया था पर बेहद दुख दे रहा था.