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Chapter 4 - अध्याय 4: देवियता की चमक – जब दिल की आग भड़क उठी!

शनाया की जिंदगी अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई का सामना करने को थी। पिछले अध्यायों में उसने डेविल ब्रदर्स को खूब तिरस्कार का स्वाद चखाया था, मगर अब वक्त आ गया था जब उसकी अंदर की छुपी हुई शक्ति, उसकी "देवियता", एक बार फिर पूरी तरह बाहर आने वाली थी। इस अध्याय में न केवल डेविल ब्रदर्स के साथ टकराव और बदले की आग है, बल्कि धीरे-धीरे एक अनजाने रोमांस की भी पहली झलक देखने को मिलेगी, जिसे बाद में और गहराई से उकेरा जाएगा।

नई सुबह, नई चुनौतियाँ

सुबह का सूरज मल्होत्रा मेंशन की ऊँची खिड़कियों से झांक रहा था। पूरे घर में हल्की सी सन्नाटा छाई हुई थी, मानो कल की घटनाओं ने सबको चुप करा दिया हो। शनाया अपने कमरे में बैठी थी, लेकिन उसके मन में हलचल मची हुई थी। उसे अब एहसास हो चुका था कि उसके अंदर एक ऐसी शक्ति है, जिसे छुपा कर रखना अब संभव नहीं। उस दिन उसने अपने आप से वादा किया था—"आज मैं अपनी देवियता की चमक दिखाऊँगी, चाहे जो भी हो।"

दरवाज़े पर दस्तक हुई। अनिका आई और हल्की मुस्कान के साथ बोली,

> "बहू, आज तो लग रहा है जैसे तुम्हारे अंदर कुछ नया होने वाला है।"

शनाया ने अपनी आंखों में चमक लिए हुए जवाब दिया,

> "अनिका, कभी-कभी हमें अपनी असली शक्ति दिखानी पड़ती है, जब हम खुद को कमजोर महसूस करती हैं।"

अनिका ने थोड़ी चिंतित आवाज़ में पूछा,

> "लेकिन क्या अगर डेविल ब्रदर्स फिर से तुम्हारा बदला लेने आए?"

शनाया ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा,

> "बदला लेने वाले तो बदला ही लेंगे, लेकिन इस बार मैं उन्हें दिखा दूँगी कि मेरी ताकत कितनी बेशुमार है।"

डेविल ब्रदर्स की योजना

उसी बीच, डेविल ब्रदर्स—आर्यन और करण—अपने ऑफिस में चर्चा कर रहे थे। कल की घटनाओं से उनका गुस्सा और जलन दोनों ही चरम पर पहुँच चुका था।

> "ये लड़की हमें बार-बार चिढ़ाकर परेशान कर रही है," आर्यन ने कड़के स्वर में कहा।

"हमें अब इसे सबक सिखाना होगा, वरना अगले कदम में हम इसका बदला लेना नहीं छोड़ेंगे," करण ने थप्पड़ की तरह अपनी बात रखी।

उनकी आँखों में संकल्प और बदले की आग साफ झलक रही थी। दोनों ने योजना बनाई कि शाम को जब शनाया अकेली होगी, तब वे मिलकर उसका सामना करेंगे। लेकिन उस दिन अनजाने में उनकी भी दुनिया बदलने वाली थी।

पहली शाम का तूफ़ान

शाम ढलते ही मल्होत्रा मेंशन की लाइटें जगमगा उठीं। पूरे घर में उत्साह और हल्की-फुल्की हलचल थी। दादी, बुआ जी, और परिवार के अन्य सदस्य किसी त्योहार के मूड में थे। लेकिन भीतर से, शनाया अपने आप को शांत कर रही थी। उसने खुद को तैयार किया—न केवल बाहरी रूप से, बल्कि अपने अंदर की ताकत को महसूस करते हुए। उसकी आंखों में अब एक अलग सी चमक थी, जो किसी देवता के दर्शन का अहसास दिलाती थी।

उस शाम, खाने की मेज पर सब कुछ जमकर सजा था। लेकिन जब डाइनिंग टेबल पर नजर पड़ी, तो डेविल ब्रदर्स के चेहरे पर कुछ उलझन सी आ गई। उन्हें पता था कि शनाया में कुछ तो अलग है। आर्यन ने चुपचाप कहा,

> "क्या तुम्हें भी वो नज़र दिखी?"

करण ने सिर हिलाते हुए कहा,

"लगता है आज हमारी बहू कुछ नया करने जा रही है।"

जैसे ही खाना शुरू हुआ, शनाया ने दादी जी के आदेश पर सबके लिए चटपटा मिठाई तैयार की। लेकिन मिठाई में उसने कुछ ऐसा मसाला मिलाया था कि जिस भी व्यक्ति ने उसका पहला निवाला चखा, उसकी आँखों में हल्की सी चकनाचूर सी चमक आ गई।

> "बहुत तीखा है, शनाया!" किसी ने मजाक में कहा।

लेकिन उसकी नजरें उन डेविल ब्रदर्स पर टिक गईं, जो अभी भी गुस्से और उलझन में थे।

शनाया ने हल्की हंसी में जवाब दिया,

> "क्या करें, आपके लिए तो खास 'मसालेदार' स्वाद तैयार किया है।"

इस पर कमरे में हल्की-फुल्की हँसी गूंज उठी। लेकिन डेविल ब्रदर्स के दिलों में अब तक ठंडी सिसक थी।

देवियता का उदय

खाना खत्म होने के बाद, सब परिवार वाले अपने-अपने कमरों में चले गए। शनाया भी अपने कमरे में अकेली बैठी थी। अचानक दरवाज़े की घंटी बजी। उसने धीरे से दरवाज़ा खोला तो बाहर देखा—आर्यन खड़ा था। उसके चेहरे पर गुस्सा तो था, पर अब उसकी आंखों में कुछ और भी था—एक तरह की जिज्ञासा।

आर्यन ने कड़े लहजे में कहा,

> "मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।"

शनाया ने ध्यान से सुना, उसकी आंखों में अब भी वो पुराना गुस्सा झलक रहा था, लेकिन साथ ही उसमें एक अनजानी सी कोमलता भी थी।

> "क्या कहना है?" उसने पूछते हुए अपने बालों को तानते हुए पूछा।

आर्यन ने कुछ देर तक चुप्पी साधी, फिर बोला,

> "कल की हरकतें… मुझे समझ नहीं आती कि तुम इतनी ठंडक से इन सबका सामना कैसे कर लेती हो।"

शनाया ने हल्की सी मुस्कान दी, पर उसके चेहरे पर अब एक अजीब सी चमक थी—उसकी देवियता।

> "आर्यन, मेरी ताकत सिर्फ गुस्से में नहीं आती। कभी-कभी, दिल की गहराई से भी ये चमक उठती है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि तुम्हारे जैसे मजबूत आदमी को भी किसी न किसी चीज़ से झकझोरना पड़ सकता है।"

आर्यन के चेहरे पर झलक उठा—उसकी आंखें थोड़ी नरम पड़ गईं। लेकिन तुरंत ही उसने खुद को संभाल लिया।

> "हमारे पास तरीका ही नहीं कि हम तुम्हें समझ सकें," उसने धीरे से कहा।

उस वक्त शनाया ने अपने कदम पास बढ़ाए, और आर्यन के चेहरे के करीब आकर बोली,

> "क्या तुमने कभी महसूस किया है, कि जब मैं गुस्से में होती हूँ, तो मेरे अंदर एक आग सी जल उठती है? ये आग केवल बदला लेने के लिए नहीं, बल्कि अपने आप को साबित करने के लिए भी है।"

आर्यन कुछ देर तक उसे निहारता रहा। उसकी आंखों में अब हल्की सी दुविधा झलक रही थी—गुस्सा, जलन और शायद कुछ अनजाने आकर्षण के संकेत।

> "तुम्हारी ये बात… मुझे समझ नहीं आती," उसने थोड़ा सा झुकते हुए कहा।

शनाया ने अपनी आँखों में चमक भरी,

> "शायद तुम्हें भी कभी यह अनुभव होगा, जब तुम्हारे दिल में मेरे जैसी कोई ताकत उतर आए।"

उसकी बातों में एक दुविधा थी—एक तरफ उसका डटकर खड़ा होना, तो दूसरी ओर उसके शब्दों में कोमलता थी।

यह पल कुछ ऐसा था कि डेविल ब्रदर्स के लिए भी समझ से परे था। करण, जो दरवाज़े से अंदर आ चुका था, उसकी आँखों में भी अब कुछ नरमी सी थी।

अंदर की आवाज़ – एक बदलता हुआ दिल

उस रात, जब पूरा घर सोने चला गया, शनाया अपने कमरे में अकेली बैठी थी। उसने खिड़की से बाहर देखना शुरू किया। चाँद की रोशनी में उसके चेहरे पर एक अद्भुत चमक थी—जो उसकी देवियता की पहचान थी।

उसके अंदर उठते सवाल, उसके सपने, उसकी उम्मीदें और गुस्सा सब कुछ मिलकर एक नए अहसास को जन्म दे रहे थे।

> "क्या मैं सच में इतनी ताकतवर हूँ?" उसने अपने आप से पूछा।

"क्या मेरे इस बदलते स्वभाव से वो, आर्यन और करण, दोनों को कुछ महसूस होगा?"

उसकी दुआओं में, उसकी उम्मीदों में अब एक नई दिशा दिखाई देने लगी थी। उसने ठान लिया कि अब उसे खुद को साबित करना होगा, चाहे वह बदले के रूप में हो या किसी नए प्यार की शुरुआत के रूप में। उसकी नजरों में एक नई चमक थी, जो बताती थी कि अब उसका दिल भी बदलने वाला है।

अगली सुबह – बदलते रिश्तों की पहली किरण

अगली सुबह घर में हल्की हल्की खनक थी। सब अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। लेकिन डेविल ब्रदर्स के कमरे में कुछ ऐसा माहौल था, जैसे दोनों की सोच में हल्की सी दरार आ गई हो।

आर्यन अपने कमरे में बैठा था, सोच में डूबा हुआ, जबकि करण भी कुछ वैसा ही महसूस कर रहा था।

> "क्या हमने कभी सही मायने में समझा कि हमारी बहू कौन है?" आर्यन ने चुपचाप सोचा।

"हमेशा से तो हमने उसे बस एक शरारती लड़की समझा, लेकिन अब लगता है कुछ और है," करण ने भी अपने आप से कहा।

उसी दिन शाम को घर में फिर से एक परिवारिक सभा रखी गई। दादी, बुआ जी, अनिका और बाकी सदस्य सब इकट्ठे हुए थे। डाइनिंग टेबल पर फिर से स्वादिष्ट खाना रखा गया था। इस बार, वातावरण में हल्की सी मिठास थी, जैसे सबको पता हो कि कुछ बदलाव आ रहा है।

शनाया ने भी अपनी मुस्कान के साथ सभी का स्वागत किया। उसने ध्यान रखा कि उसकी हर हरकत में अब एक नई ऊर्जा झलकती हो—उसकी देवियता।

उसकी बातों में अब वो ठंडक और आत्मविश्वास था, जिसे देखकर सब को महसूस हुआ कि शायद अब उसे समझना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा।

आर्यन और करण भी धीरे-धीरे शांत हो रहे थे। खाने के दौरान अनौपचारिक बातचीत में, धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा कि शायद उनकी बहू में भी कोई खास बात है, जिसे उन्होंने अब तक नजरअंदाज किया था।

> "शनाया, तुम्हारे हाथों में तो आज कुछ जादू सा लग रहा है," आर्यन ने मजाकिया अंदाज में कहा।

शनाया ने हल्की सी मुस्कान देकर जवाब दिया,

"अरे, जादू तो बस तब होता है जब दिल में आग जल उठती है।"

इस बात से कमरे में एक पल के लिए हंसी की लहर दौड़ गई, लेकिन साथ ही साथ दोनों भाई की नजरों में कुछ चमक सी आ गई। वह चमक, शायद अब धीरे-धीरे बदलती भावनाओं की पहली झलक थी।

एक अनकहा मोड़ – पहली हल्की रोमांस की हलचल

रात के भोजन के बाद, जब सब परिवार वाले अपने-अपने कमरों में चले गए, डेविल ब्रदर्स के कमरे में अचानक एक अजीब सी खामोशी छा गई।

करण ने आर्यन से कहा,

> "क्या तुम्हें भी ऐसा लगता है कि शनाया में कुछ खास बात है?"

आर्यन ने थोड़ी देर के लिए चुप रहते हुए कहा,

"मैंने सोचा भी नहीं था कि एक बार में हमारी बहू इतनी... अलग नजर आएगी।"

दोनों की बातों में अब एक अनजानी सी जिज्ञासा थी। शायद अब उनके दिल भी धीरे-धीरे बदलने लगे थे। वहीं, शनाया अपने कमरे में बैठी थी और अपनी खिड़की से बाहर रात की चाँदनी को निहार रही थी।

उसकी आँखों में हल्की सी चमक थी, लेकिन साथ ही उसमें एक गंभीरता भी थी।

> "मेरा ये बदला, ये मेरी देवियता… क्या इससे मेरे रिश्तों में कोई फर्क पड़ेगा?" उसने अपने आप से कहा।

उस रात, जब चाँद अपनी पूर्णिमा की रोशनी बिखेर रहा था, तो ऐसा लगा जैसे हर चीज़ में एक नया मोड़ आ चुका था। शनाया के दिल में अब न केवल गुस्सा था, बल्कि एक अनकहा आकर्षण भी था—एक ऐसा आकर्षण जिसे समझना दोनों डेविल ब्रदर्स के लिए भी चुनौती से कम नहीं था।

अगले दिन की शुरुआत – रिश्तों में नयी हलचल

अगली सुबह, मल्होत्रा मेंशन में एक नई ताजगी थी। शनाया ने अपने आप को बिल्कुल अलग अंदाज़ में तैयार किया। उसके कपड़ों में अब एक अलग सी चमक थी, उसके बाल सजा-संवार लग रहे थे, और उसकी आँखों में वो अजीब सी आत्मविश्वास की चमक थी, जो उसकी "देवियता" का प्रतीक थी।

घर में सबने देखा कि शनाया अब पहले से कहीं ज्यादा सजी हुई लग रही थी। दादी जी ने खुशी से कहा,

> "बहू, तुम आज तो किसी देवी से कम नहीं लग रही।"

अनिका ने भी मुस्कुराते हुए कहा,

"आज तो तुम्हारी मुस्कान में भी जादू है।"

इस पर आर्यन ने भी मन ही मन सोचा, "क्या यह वही चीज़ है जो कल मुझे चुभ गई थी?" करण भी कुछ वैसा ही महसूस कर रहा था।

शाम के समय एक बार फिर से परिवार के सामने सभा हुई। इस बार बातचीत में हल्की-फुल्की हँसी, चुटकुले, और पुरानी शरारतों का जिक्र होने लगा। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह थी कि शनाया के व्यवहार में अब एक नई नर्मियत और आत्मविश्वास झलक रहा था।

> "आज तो लग रहा है कि हमारी बहू ने अपनी असली शक्ति को पहचान लिया है," किसी ने कहा।

उनकी बातचीत में हल्का रोमांस की भी हलचल महसूस की जा सकती थी—शायद दोनों भाई अब अपनी पुरानी दुरभाषा छोड़कर धीरे-धीरे उसकी ओर आकर्षित हो रहे थे, पर अभी भी वह आकर्षण गहरा नहीं हुआ था।

एक निर्णायक मोड़ – देवियता की आग और दिलों की धड़कन

रात को जब सब सोने लगे, शनाया अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसने सोचा,

> "आज मैंने अपना सबक दे दिया, पर अब सवाल यह है कि क्या डेविल ब्रदर्स सच में अपने दिल की आग को बुझा पाएंगे?"

उसकी आँखों में अब केवल गुस्सा नहीं, बल्कि एक नई उम्मीद की झलक भी थी। उसकी देवियता, जो अब बाहर आ चुकी थी, उसके हर शब्द में, हर चाल में साफ दिखाई दे रही थी। उसने ठान लिया कि अब वह अपने रिश्तों में, अपने प्यार और अपनी ताकत के बीच संतुलन स्थापित करेगी।

उस रात, उसके सपनों में कुछ ऐसा हुआ—एक सपना जिसमें वह अपने दोनों पति के साथ हाथ में हाथ डालकर एक नए जीवन की शुरुआत करती दिखाई दी। सपना तो था, पर उसकी आँखों में एक गहरी सी चाह भी थी।

> "क्या ये संभव होगा?" उसने अपने आप से पूछा।

"क्या हम सब मिलकर इस जंग को एक नए अंदाज़ में जी पाएंगे?"

उसकी सोच में अब केवल बदला नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत की उम्मीद भी थी।

निष्कर्ष – बदलते रिश्तों का अहसास

इस अध्याय के अंत में, मल्होत्रा मेंशन में हर किसी ने महसूस किया कि सब कुछ अब पहले जैसा नहीं रहेगा। शनाया की देवियता ने न सिर्फ उसे एक नई पहचान दी थी, बल्कि डेविल ब्रदर्स के दिलों में भी एक नई हलचल पैदा कर दी थी।

आर्यन और करण अब अपने पुराने गुस्से और जिद से परे कुछ सोचने लगे थे। शायद अब उन्हें समझ में आने लगा था कि उनकी बहू सिर्फ एक शरारती लड़की नहीं, बल्कि एक मजबूत, दैवी शक्ति से ओत-प्रोत महिला है, जिसकी मौजूदगी उनके जीवन में एक नई दिशा ले सकती है।

और वैसे भी, इस कहानी में हल्का-फुल्का रोमांस अभी भी धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा था। पहली झलक तो अब आ गई थी, पर आगे चलकर शायद दोनों भाई भी उस अद्भुत शक्ति के सामने अपने दिल की गहराईयों को छू लेंगे।

> "मैं बदल गई हूँ," शनाया ने चुपचाप खुद से कहा, "और ये बदलाव हम सबके लिए एक नई शुरुआत हो सकता है।"

इस तरह, मल्होत्रा मेंशन में अब एक नई सुबह की किरण चमकने लगी थी, जहाँ हर रिश्ते में एक नया मोड़ आ चुका था। डेविल ब्रदर्स के लिए भी अब यह सवाल था कि क्या वे अपनी पुरानी नफरत को छोड़कर अपनी बहू की देवियता को स्वीकार करेंगे या फिर फिर से अपने पुराने रास्ते पर चलेंगे।

सपनों, उम्मीदों, और बदलते रिश्तों की इस नई दुनिया में, शनाया की आवाज़ अब पहले से कहीं ज्यादा स्पष्ट थी—एक आवाज़ जो कहती थी कि उसे कमज़ोर समझना अब किसी की गलती नहीं होगी, क्योंकि उसकी अंदर की आग अब पूरी तरह भड़क चुकी थी।

और जब चाँदनी रात में मल्होत्रा मेंशन की दीवारों पर उसकी छवि झलकने लगी, तो ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक ही बात गूँज रही हो—

> "देवियता की चमक कभी बुझने नहीं देती!"