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Chapter 5 - श्मशान घाट की दहशत

उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव मृतपुर में एक भयानक श्मशान घाट था, जिसे लोग मसान घाट कहते थे। यह श्मशान घाट गाँव के बाहर, एक घने बरगद के पेड़ के नीचे स्थित था।

कहते थे कि वहाँ आधी रात को चूड़ियाँ खनकती हैं, पायल की झनकार गूंजती है, और कभी-कभी रुदन की आवाज़ें सुनाई देती हैं। गाँव के बूढ़े बताते थे कि यह श्मशान घाट अभिशप्त है, क्योंकि वर्षों पहले यहाँ एक नवविवाहित लड़की को जिंदा जला दिया गया था।

उसके दहकते शरीर से उठते धुएँ में उसकी चीखें गूँज रही थीं। उसने बदला लेने की कसम खाई थी और कहा जाता है कि उसकी आत्मा आज भी भटकती है, जो भी वहाँ जाता है, वह कभी लौटकर नहीं आता

मुख्य पात्र: अरविंदगाँव में अरविंद नाम का एक युवा पत्रकार था, जिसकी उम्र लगभग तीस साल थी। वह दबंग और निडर था। लंबा कद, गठीला शरीर, और चेहरे पर निडरता की झलक थी। अरविंद अंधविश्वास को बकवास मानता था और हमेशा तथ्य और सच्चाई पर विश्वास करता था।

वह शहर के अखबार में काम करता था और ग्रामीण अंधविश्वास पर लेख लिखने के लिए गाँव में आया था। उसने सुना था कि श्मशान घाट के रहस्यों को कोई खोल नहीं सका। उसकी जिज्ञासा ने उसे वहाँ जाने पर मजबूर कर दिया।

चुनौती और यात्राएक रात, गाँव के बुजुर्गों के साथ चाय पीते हुए अरविंद ने मसान घाट का जिक्र किया। सभी के चेहरे पर डर साफ झलकने लगा।

बाबा रघुनाथ ने काँपती आवाज़ में कहा, "बेटा, वहाँ मत जाना... वहाँ चुड़ैल का बसेरा है। जो भी गया, वापस नहीं आया।"

अरविंद मुस्कुराया और बोला, "बाबा, ये सब डराने की कहानियाँ हैं। मैं जाकर सच्चाई लेकर आऊंगा।"

बाबा ने गंभीरता से कहा, "अगर जाना ही है, तो हनुमान चालीसा लेकर जाना... शायद बच जाओ।"

अरविंद ने मजाक उड़ाते हुए कहा, "मैं सिर्फ कैमरा और टॉर्च लेकर जाऊँगा। देखते हैं, कौन सी चुड़ैल मुझे रोकती है।"

श्मशान घाट का भयानक दृश्यअगली रात, अमावस्या थी। चारों ओर घना अंधकार और हवाओं की सायं-सायं थी। अरविंद कैमरा, टॉर्च और डायरी लेकर श्मशान घाट की ओर बढ़ा।

रास्ते में सूखे पत्तों की चरमराहट और कौवों की कांव-कांव सुनाई दे रही थी। घनी झाड़ियों के बीच से गुज़रते हुए उसे अजीब सी सर्दी का एहसास हुआ।

जैसे ही वह श्मशान घाट के पास पहुँचा, बरगद के पेड़ की लंबी शाखाएँ ऐसे हिल रही थीं, मानो किसी ने फांसी का फंदा लटका रखा हो। हवा में अगरबत्ती और जली हुई चिता की तेज़ गंध थी।

ज़मीन पर भस्म और जले हुए लकड़ियों के टुकड़े बिखरे पड़े थे। पेड़ के नीचे एक पुराना चिता-स्थल था, जहाँ की मिट्टी अब भी काली और गीली थी, जैसे ताज़ा खून सोख लिया हो।

भयावह घटनाएँ और प्रकट होती चुड़ैलजैसे ही अरविंद ने कैमरा ऑन किया, अचानक पायल की झनकार सुनाई दी। उसने चौंककर इधर-उधर देखा, लेकिन कोई नहीं था।

वह आगे बढ़ा और बरगद के पास पहुँचा। तभी तेज़ हवा का झोंका आया और उसकी टॉर्च बुझ गई। चारों ओर घना अंधकार छा गया।

उसे महिलाओं के रोने की आवाज़ें आने लगीं, जो धीरे-धीरे चीखों में बदल गईं। अरविंद का दिल धक-धक करने लगा, पर उसने हिम्मत नहीं हारी।

अचानक, उसके पीछे ठंडे हाथों का एहसास हुआ। उसने मुड़कर देखा और उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।

सफेद साड़ी में एक महिला खड़ी थी। उसके लंबे बिखरे बाल, जलते हुए चेहरे और लाल खून से भरी आँखें थीं। उसका मुँह बेतरतीब तरीके से फटा हुआ था, जिससे काले धुएं की लहरें निकल रही थीं।

वह तेज़ी से अरविंद की ओर बढ़ी, उसके पैर ज़मीन से एक इंच ऊपर थे। उसकी हँसी की गूँज पूरे श्मशान में गूँजने लगी

भयानक अंतअरविंद ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर ज़मीन से चिपक गए। चुड़ैल ने भयानक चीख के साथ अपनी लंबी काली जीभ बाहर निकाली और अरविंद के चेहरे को चाट लिया।

अरविंद की आँखें उलट गईं, मुँह से झाग निकलने लगा और वह ज़मीन पर गिरकर तड़पने लगा।

अगली सुबह, गाँववालों ने श्मशान घाट के पास अरविंद की लाश पाई। उसकी आँखें सफेद, चेहरा विकृत और शरीर नीला पड़ा था।

पुलिस को बुलाया गया, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया—

"मौत डर और सदमे से हुई।"

कोई समझ नहीं पाया कि अर्जुन की मौत कैसे हुई, लेकिन गाँव के बुजुर्गों ने चुपचाप श्मशान घाट के पास अगरबत्तियाँ जलाईं और प्रार्थना करने लगे

क्योंकि वे जानते थे कि चुड़ैल का बदला अभी पूरा नहीं हुआ था...

"श्मशान घाट की दहशत खत्म नहीं हुई... बल्कि अब वह और भी भयानक हो गई थी।"