निर्भय जमीन पर अपने घुटनों के बल बैठ था । उसे इस वक्त खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था, उसकी आंखें गुस्से से लाल थी। उसी के साइड में इनाया खड़ी थी, उसकी आंखों में भी दर्द था।
आज वो किसी और की हो गई, और उसका प्यार भी किसी और का हो गया । यहां तक भी ठीक था लेकिन उसके ही प्यार ने आज उसे धोखेबाज कह दिया।
इससे ज्यादा दर्द भरा और क्या ही होगा। वहां पर निर्भय की पूरी फैमिली मौजूद थी और सारे गेस्ट भी अभी मौजूद थे।
निर्भय जो यहां करने आया था, वो तो हो चुका था । लेकिन उसके हाथ से उसकी कीमती चीज निकल चुकी थी ।
जिसका एहसास उसे था, कि तभी निर्भय गुस्से में उठा और उसने एकदम से इनाया हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए वहां से ले जाने लगा ।
इनाया भी उसके पीछे पीछे चली गई, क्या किस्मत थी उसकी ? लड़की अपने घर से आराम से विदा होती है लेकिन यहां तो शादी भी जबरदस्ती हुई , और उसका प्यार भी उसे धोखेबाज कह कर चला गया।
निर्भय के जाने के बाद उसकी पूरी फैमिली भी वहां से निकाल गई, और गेस्ट भी वहां से चले गये।
इधर दूसरी तरफ,
सूर्यवंशी मेंशन ,
अध्याय की गाड़ी सूर्यवंशी मेंशन के बाहर आकर रुकी वो अपनी गाड़ी से बाहर निकाला , और बिना कुछ कहे अंदर जाने लगा। लेकिन तभी अचानक से उसके कदम रुक गये ।
और वो दोबारा मुडा, और चलकर गाड़ी के पास आया। उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और मिष्टी को खींचते हुए गाड़ी से बाहर निकाल।
उसके ऐसे करने से मिष्टी सहम गई , रास्ते भर उसने खुद को कंट्रोल करके रखा था, क्योंकि अध्याय इतनी तेज ड्राइविंग कर रहा था। जिससे उसे बहुत ज्यादा डर लग रहा था।
अध्याय बेदर्दी से उसका हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले जाने लगा। मिष्टी भी उसके पीछे खिंची चली गई। मेंशन के अंदर आते ही उसने मिष्टी को एकदम से छोड़ा।
जिसे मिष्टी जमीन पर गिर गई। वहीं अध्याय के दादा दादी और उसकी बड़ी मम्मी और बड़े पापा जो हाल में ही बैठे हुए थे ।
वो सभी उठ खड़े हुए, अध्याय के दादा योगेश सूर्यवंशी गुस्से में बोले, " अध्याय ये क्या हरकत है तुम्हारी? तुमने इस बच्ची से जबरदस्ती शादी क्यों की?"
ये सुनकर उसकी दादी शीतल आगे आते हुए बोली,
" अध्याय ये बात सही है तुम ऐसा नहीं करना चाहिए था, इसमें इस मासूम की क्या गलती थी ? हमने अभी टीवी पर देखा तुमने इस से जबरदस्ती शादी की।"
निर्भय वशिष्ठ और अध्याय सूर्यवंशी एक जानी-मानी हस्ती थी और उनके बारे में खबर फैलना बहुत आसान बात थी।
और मीडिया को तो शादी है वैसे ही बुलाया गया था। तो उन्हें सारी बातें पता थी और उन्होंने वो न्यूज़ टीवी पर लाइव दिखाई थी।
मिष्टी जो फ्लोर पर पड़ी कांप रही थी। अध्याय उसे देखते हुए बोला, " मेरी मर्जी, मैं जो चाहूं जिससे शादी करूं आप लोगों को फर्क नहीं पढ़ना चाहिए ।
दूसरी बात ये लड़की अब इस घर की नौकरानी है । इसकी कोई वैल्यू नहीं बस मैंने इस दुनिया के सामने अपनी बीवी बनाया है इसे।
मैं कभी भी इसे अपनाऊंगा नहीं। और आप लोगों को भी इस रिश्ता निभाने की जरूरत नहीं। बस एक बार जो करने के लिए मैंने इससेसे शशशादी की है, वो हो जाए इसके बाद, इसे अपनी जिंदगी से रफा दफा हो जाएगी।
इतना कह कर अध्याय वहां से जाने लगा। लेकिन तभी पीछे से योगेश जी गुस्से में बोले, "अध्याय हद करते हो तुम, तुमने अपने बदले के लिए 18 साल की लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी ।
ये बच्ची है अभी कहां तुम ? और कहां ये कुछ सोचा भी है तुमने , और ऊपर से कह रहे हो तुम इससे अलग हो जाओगे, क्या यही संस्कार दिए थे हमने तुम्हें , की अपनी दुश्मनी के चलते किसी मासूम बच्चे की जिंदगी बर्बाद कर दो।"
ये सुनकर अध्याय के कदम रुक गए , और वो गुस्से में उनकी तरफ बढ़ते हुए बोला, " दादा जी मैं आपकी सारी बातें मानता हूं। लेकिन नफरत है मुझे इस लड़की के भाई से , और उतनी नफरत मुझे इससे है ।
क्योंकि ये खून भी उसी का है , तो आपको भी इसमें पड़ने की जरूरत नहीं है । मैंने सिर्फ अपना बदला लेने के लिए इसे शादी की है, और इसके भाई को तड़पाने के लिए शादी की है।
शीतल जी गुस्से में अध्याय के आगे आते हुए बोली,
" अध्याय क्या हमने तुम्हें यही सिखाया था, कि तुम अपनी दुश्मनी के चलते किसी की बहन से शादी कर लेना। तुम देख रहे हो कितनी मासूम है ये ।"
दादी इसकी मासूमियत ने मत जाइये । ये सब ड्रामा है और आज से तो मुझे मासूमियत शब्द से ही नफरत हो चुकी है, क्योंकि यही मासूमियत दिखाकर एक लड़की ने मुझे अपने जाल में भी फंसाया था , और आज उसी ने मुझे तोड़ दिया ।"
ऐसा कहकर अध्याय गुस्से में वहां से चला गया। उसके जाने के बाद शीतल जी ने जमीन पर बैठी रो रही मासूम से मिष्टी की तरफ देखा।
उसे देखकर ना जाने क्यों? उन्हें उस पर बहुत दया आई। वो चलकर उसके पास आई और उसे उठाते हुए बोली, " बेटा तुम रो मत चलो उठो और इधर आकर बैठो ।"
ऐसा कहकर उन्होंने सहारा देकर मिष्टी को उठाया। मिष्टी धीमी से उठी , और धीमे-धीमे चलकर जाकर सोफे पर बैठ गई । वहां अध्याय के बड़े पापा साकेत जी खड़े हुए थे।
उन्हीं के साथ उनकी पत्नी मेनका सूर्यवंशी खड़ी हुई थी। तभी शीतल जी ने उसे कुछ इशारा किया। तो मेनका वहां से चली गई। शीतल जी मिष्टी से प्यार से बोली,
" बेटा तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है ,
मैं तुम्हारे साथ हूं, अध्याय तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं कर पाएगा।"
ये सुनकर मिष्टी ने उनकी तरफ देखा , और अचानक ही वो रोते हुए उनके सीने से चिपक गई , और बोली,
" दादी आपको पता है मेरी इसमें कोई गलती नहीं। मैं तो उनको जानती भी नहीं थी।
मैंने तो बस इन्हें न्यूजपेपर और टीवी में देखा था । लेकिन इन्होंने आज मुझसे जबरदस्ती शादी कर ली। और वो भी मुझ पर इतना गुस्सा कर रहे हैं ।
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा और भाई ने भी मुझे नहीं बचाया।"
मिष्टी छोटे बच्चों की तरह शीतल जी से अध्याय की शिकायत करने लगी। उसकी मासूम सी आवाज सुन शीतल जी को अध्याय पर बहुत तेज गुस्सा आया। आखिर वो इतनी मासूम बच्ची के साथ इतना बुरा कैसे कर सकता था।
तभी मेनका पानी लेकर आई और पानी का गिलास शीतल जी ने मिष्टी की को दिया , और उसे पीने का इशारा किया। मिष्टी धीमे-धीमे से पानी पीने लगी। वही साकेत और योगेश जी वहां से चले गये है। वहां मेनका और शीतल जी मौजूद थी।
तभी शीतल जी उसका चेहरा प्यार से अपने हाथों में भरते हुए बोली, " बेटा तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है मैं हूं तुम्हारे साथ , तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं होगा।"
मिष्टी तुरंत बोली, " लेकिन मुझे यहां नहीं रहना , मुझे अपने भाई के पास जाना है ,अपने दादू के पास जाना है।"
उसकी बात सुनकर शीतल जी परेशान होगई।
इधर दूसरी तरफ,
वशिष्ठ मेंशन
निर्भय की गाड़ी मेंशन के बाहर आके रुकी और वो बिना कुछ कहे गाड़ी से निकलकर सीधा घर के अंदर चला गया।
उसका ये रिएक्शन देख गाड़ी में बैठी इनाया की आंखें नम हो गई, और रोते हुए वो खुद से बोली, " कितनी बुरी किस्मत है ना मेरी शायद कुछ ज्यादा ही...!"
ऐसा कहते हुए वो खुद गाड़ी से निकली , और घर के अंदर चली गई । इधर निर्भय सीधा अपने कमरे में चला गया। घर में इस वक्त कोई नहीं था सभी पीछे थे , क्योंकि निर्भय अकेले फास्ट ड्राइविंग करके सीधा घर आया था।
और बाकी घर वाले पीछे आ रहे थे । इनाया को समझ नहीं आ रहा था, कि उसे कहा जाना है इसीलिए वो भी तेज कदमों के साथ उसके कमरे की तरफ जाने लगी।
वो कमरे में आकर बेड पर बैठ गई। निर्भय वहां नहीं था इनाया उसे पूरे कमरे को देख रही थी। कमरे का इंटीरियर ब्लैक था। वहां हर तरफ अलग-अलग सामान था ।
बेड के ही ऊपर वॉल पर निर्भय की शर्टलेस फोटो लगी हुई थी । जिसमें उसके हाथ में गन थी , और वो किसी बर्ड पर गन प्वाइंट किए खड़ा था।
उसके चेहरे पर शातिर मुस्कान थी, इनाया उसे एक टक देख ही रही थी , कि तभी निर्भय अचानक वॉशरूम से बाहर निकला , तभी उसकी नज़र अपने कमरे में खड़ी इनाया पर गई ।
इनाया को अपने कमरे में देखकर । उसकी भौंहें सिकुड़ गई, वो चलकर उसके पास आया और उसका हाथ पकड़ कर गुस्से में बोला, " तुम यहां क्या कर रही हो?"
उसके अचानक हाथ खींचने से इनाया को तेज दर्द का एहसास हुआ, तो वो सहमती हुई बोली, " वो मुझे समझ नहीं आया , कि मैं कहां जाऊं? और घर में कोई दिख नहीं। "
"तो इसीलिए तुम मेरे पीछे-पीछे चली आई? वाह क्या प्यार है तुम्हारा ? अभी 1 घंटे पहले तुम उस अध्याय सूर्यवंशी से प्यार करती थी, और अब मेरी बीवी बनते ही मेरे में करीब आने कोशिश करने लगे । तुम लड़कियों की फितरत भी कमाल है ।"
निर्भय उसे नफरत से देखते हुए बोला।
उसकी बात सुनकर इनाया की आंखें नम हो गई , और वो अपना सर ना में हिलाते हुए बोली, " मैं आप पर कोई हक नहीं जता रही, और मुझे कोई शौक नहीं था, आपकी बीबी बनने का ।
आपने जबरदस्ती मुझसे शादी की मैं अभी भी अपने अध्याय से प्यार करती हूं, और शायद मरते दम तक करूंगी ।"
ये सुनकर निर्भय का दिमाग सटक गया। उसने उसका हाथ छोड़, और दूसरे ही पल उसके गालों को पकड़कर बेदर्दी से मसलते हुए बोला, " क्या कहा अभी भी उससे प्यार करती हो? , शर्म नहीं आती ये कहते हुए?
बीबी किसी और की बन गई हो, लेकिन सोना किसी और की बाहों में चाहती हो कैसी औरत हो तुम।"
ये सुनकर इनाया हक्की-बक्की रह गई! वो क्या ही कहती निर्भय से , निर्भय भी अजीब ही था अभी कुछ वक्त पहले उसने ही कहा था, कि इतनी जल्दी तुम अध्याय को भूल गई।
और जब वो कह रही कि वो उस अध्याय से अभी प्यार करती है। तब तो बोल रहा है, कि शर्म नहीं आती मतलब कैसा इंसानथा ये !
निर्भय के पकड़ने से इनाया को अपने मुंह में बहुत तेज दर्द हो रहा था, और उतना ही उसे निर्भय की बातें सुनकर उसे गुस्सा आ रहा था। वो अपने मुंह से निर्भय के हाथों को हटाते हुए गुस्से में बोली, " आप जितना घटिया इंसान नहीं देखा मैंने ।
एक तो अध्याय से बदला लेने के लिए आपने मुझसे शादी की , और अब मुझे भी ये कह रहे हैं कि मैं कितनी घटिया हूं। अरे आप कितने घटिया है ये आपको पता होना चाहिए।
आपकी ही वजह से आपकी छोटी बहन की जिंदगी बर्बाद हो गई , पता है आपको अध्याय कभी भी मिष्टी से प्यार नहीं करेगा। वो उसे सिर्फ दर्द ही देगा और अगर नहीं देगा ना ।
तो मैं दिखाऊंगी उसे की दर्द कैसे दिया जाता है। जितना दर्द मुझे मिलेगा ना उससे ज्यादा आपकी खुद की बहन झेलेगी ।"
ये सुनते ही निर्भय ने गुस्से में उसका गाल पकड़ लिया, और उसे एकदम से बेड की तरफ पुश किया। जिससे इनाया बेड पर गिर गई, निर्भय बेड पर झुका और उसका गला गुस्से में दबाते हुए बोला, " क्या कहा ?
अगर मेरी बहन को एक खरोच भी आई ना , तो उस अध्याय सूर्यवंशी की जान तो जाएगी। लेकिन उससे पहले मैं तुम्हें हीं नहीं जिंदा छोडूंगा, और हिम्मत भी तुम्हारी कैसे हुई मेरे ही सामने रहकर मेरी बहन के बारे में ये कहने की!"
कहते हुए उसकी पकड़ इनाया के गले पर और कस गई। जिससे इनाया अपने हाथ पैर बेड पर पटकने लगी । वो सांस लेने के लिए तड़प रही थी , और अपने पैरों को बार-बार बेड में मार रही थी । लेकिन निर्भय का गुस्सा शांत ही नहीं हो रहा था।
तभी उसने अपना एक पैर खींचकर निर्भय के पैर में मारा । जिससे निर्भय का बैलेंस बिगड़ गया, और वो पीछे हट गया , ये होते ही इनाया ने अपना गला पकड़ लिया , और गहरी गहरी सांस लेते हुए खुद को नार्मल करने लगी।
इधर निर्भय खड़ा उसे गुस्से में घूर रहा था। उसके अचानक से धक्का देने की वजह से वो गिरते गिरते बचा था। तभी इनाया अपनी सांसों को कंट्रोल करते हुए खड़ी हुई।
और गुस्से में रोते हुए बोली, " मुझे नफरत हो रही है आप जैसे खुदगर्ज इंसान से, पता है मैंने शादी के वक्त क्या सोचा था? जब मैं आपके साथ फेरे ले रही थी।
कि भले ही मैं अभ्यास से प्यार करती हूं । लेकिन ये शादी मरते दम तक निभाऊंगी, जब तक मेरे बस में होगा ये रिश्ता निभाऊंगी।
लेकिन मुझे नहीं लगता ये रिश्ता चल पाएगा , क्योंकि ये रिश्ता ही नफरत की बुनियाद पर शुरू हुआ है । आपको नफरत है अध्याय से , और मुझे मोहब्बत है अध्याय से और मेरी मोहब्बत मरते दम तक कम नहीं होगी।
लेकिन आप दोनों की दुश्मनी आपकी बहन की जान की दुश्मन बनेगी, देखना अध्याय मिष्टी की क्या हालत करता है।
इनाया ने ये बात गुस्से से चिल्लाते हुए कही थी। इधर उसकी बात सुनकर निर्भय का दिमाग खराब हो गया। वो गुस्से में दोबारा उसके करीब आने लगा।
ये देखकर इनाया पीछे की तरफ बेड पर खिसकती हुई बोली, " आप मुझे मार दीजिए लेकिन क्या मुझे मार कर आप अपनी बहन को अपने पास ले आएंगे।
अध्याय से बदला ले लेंगे , बताइए ना जब मैं ही नहीं रहूंगी तो कैसे करेंगे आप अध्याय को कमजोर, याद रखिएगा छोड़ेगा नहीं मेरा अध्याय आपको।"
उसने मेरे अध्याय शब्द पर जोर दिया था । इनाया की बात सुनकर निर्भय के कदम वही रुक गये । उसकी आंखों के सामने मिष्टी का मासूम से चेहरा घूम गया। उसकी वो मासूम सी बहन आज उसकी वजह से उसकी दुश्मन की हो गई। उसे अध्याय पर एक परसेंट भरोसा नहीं था, कि वो मिस्टी के साथ क्या करेगा?
इस वक्त उसे अध्याय की जान लेने का मन कर रहा
था । तभी वो गुस्से में बेड पर बैठी इनाया को देखते हुए बोला, " अगर मेरी बहन को एक खरोच भी आई नो, तो ना हीं तुम्हारा आशिक बचेगा और नहीं तुम।"
इतना कह कर वो गुस्से में इनाया को देखते हुए कमरे से निकल गया। उसके जाने के बाद इनायत जैसी शादी के जोड़े में बैठी थी उसने अपने पैरों को अपने सीने में छुपा लिया , और घुटनों पर सर कर रोने लगी।
उसे अपनी किस्मत बहुत रोना आ रहा था। उसे आज भी वो दिन याद था, जब वो अध्याय को खुद से शादी करने के लिए फोर्स कर रही थी, कि वो से शादी कर ले।
लेकिन उस वक्त अध्याय अपने दादाजी के फैसले को लेकर इंडिया छोड़कर चला गया। लेकिन वो कह कर गया था कि मेरा इंतजार करना । लेकिन इंतजार इतना लंबा गया कि आज वो किसी और की हो गई।
उसकी सिर्फ बुआ थी। उसके मां-बाप नहीं थे , केतकी ने उसे अपनी नौकरानी बना कर रखा था। इनाया ने शुरू से ही दर्द झेला था और आज फिर वो एक दर्द देने वाले इंसान के साथ बंध चुकी थी।
इधर दूसरी तरफ,
मिष्टी अभी भी नीचे बैठी हुई थी और शीतल जी उसी के बगल में खड़ी हुई थी, कि तभी अचानक से अध्याय ऊपर से गुस्से में नीचे आया।
और बिना कुछ कहे उसने मिष्टी का हाथ पकड़ा , और उसे खींचते हुए ले जाने लगा । वही मिष्टी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।
तभी शीतल जी उसे रोकते हुए बोली, " अध्याय ये क्या हरकत है, अब तुम उसे अपने कमरे में क्यों ले जा रहे हो ? तुम ही ने तो कहा था कि तुमने उससे शादी अपनी मर्जी से नहीं कि, सिर्फ अपना बदला लेने के लिए की है, तो क्यों उस पर अपना हक जता रहे हो?
ये सुनकर अध्याय के कदम रुक गए, और वो गुस्से में बोला, " ये शादी भले ही मैंने बदला लेने के लिए कि हो । लेकिन इस लड़की पर मेरा पूरा हक है, मेरा जो मर्जी आएगा, वो मैं इसके साथ करूंगा। आप मुझे इसके साथ कुछ भी करने से नहीं रोक सकती ।"
इतना कहकर उसने दोबारा जबरदस्ती मिष्टी का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए अपने साथ ले जाने लगा। मिट्टी बार-बार पलट कर अपनी आस भरी निगाहों से शीतल जी की तरफ देख रही थी, ताकि वो उसे बचा लें। लेकिन शीतल जी भी कुछ नहीं कर पा रही थी।