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love pyar bhra safar

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Synopsis

परिचय

"कुँवरजी, प्लीज हमें दूर मत कीजिए," वह आंखों में बेशुमार आंसू लिए, उसके हाथ को थामे हुए कह रही थी।

"आपको जाना होगा, और यह हमारा आखिरी फैसला है।"

"नहीं, हमें कहीं नहीं जाना, समझे आप!" कहते हुए उसने खुद को उसकी बाहों में छुपा लिया और वैसे ही सिसकियाँ लेती रही।

वो खामोश सा खड़ा रहा। कुछ पल की खामोशी के बाद उसने कहा, "कल सुबह 11 बजे की फ्लाइट है। ड्राइवर आपको छोड़ आएगा।"

"कुँवरजी।"

"पैक योर बैग्स।"

"हम आपके बिना नहीं रह सकते।"

"अपना सारा जरूरी सामान रख लो।"

"ह। हमें रो। रोक लीजिए न।"

"मेक श्योर कि कुछ रह न जाए।"

उसका रो-रोकर बुरा हाल हो चुका था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। वह बिना किसी एक्सप्रेशन के खड़ा था, जैसे उसे कोई फर्क ही न पड़ता हो। लेकिन सिर्फ उसका दिल जानता था कि वह कितने दर्द से गुजर रहा था, अपने प्यार से, अपनी जान से, अपने साथी से यह सब कहते हुए।

उसने फिर से हिम्मत करके कहा,

"वो झूठ हमने जानबूझकर नहीं बोला था, हमारी मजबूरी थी।"

"आपको सच में लगता है, हम उस बात की वजह से आपको दूर भेज रहे हैं?"

"तो फिर क्यों, क्यों भेज रहे हैं हमें? हमें नहीं जाना।"

"प्यार करती हो हमसे?"

"अपने आप से भी ज्यादा!"

"तो उस प्यार का वास्ता, मान लीजिए हमारी ये बात।"

वह खामोश रही।

"ठीक है, हम जाएंगे। आप चाहते हैं ना कि हम जाएं! तो हम जा रहे हैं। लेकिन उससे पहले, I want to be yours."

"व्हाट!"

"हम्म, मुझे अपना बना लीजिए। आपने मुझे शादी का मतलब समझाया, पति-पत्नी का रिश्ता कैसा होना चाहिए ये सिखाया। उस रिश्ते की पवित्रता समझाई! याद है, जब हमने पूछा था कि हम एक कमरे में क्यों नहीं रहते, तो आपने कहा था कि मैं छोटी हूं, इस रिश्ते को निभाने के लिए। उस वक्त समझ नहीं आया, लेकिन अब इतनी बड़ी तो हो चुकी हूं कि आपकी बात का मतलब समझ पाऊं। और अब, I want to be yours!"

"आस्था।!" वो जोर से चीखा, "आपको समझ आ रहा है, आप क्या कह रही हैं? इतनी बड़ी भी नहीं हुई हैं आप, कि इस तरह की बातें करें। आप जा रही हैं।" आगे वो कुछ बोल ही नहीं पाया, क्योंकि आस्था ने अपने कुँवर जी के होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया।

वो उसे बेतहाशा चूमे जा रही थी। उसकी उसके बालों पर पकड़ उसकी बेताबी को बयाँ कर रही थी। उसके होंठ अपनी सीमाओं को तोड़कर उसके होंठों को चूमे जा रहे थे। अपनी मर्यादा को लांघकर वो उसमें समा जाने के लिए बेताब हो रही थी।

एक पल को उसे भी लगा। छोड़ दे ये ज़िद। और थाम ले उसके हाथों को। भर ले उसे बाहों में। समा जाए उसके अंदर। और उसे इतना प्यार करे कि वो अपने सारे ग़म भूल जाए। उसे हुई हर एक तकलीफ़ भूल जाए। लेकिन। वो मजबूर था।

अगर इस एक पल में वो कमजोर हो गया। तो उसे अपनी हमसफर तो बना लेगा। लेकिन उसे वो सम्मान नहीं दिला पाएगा। उसे उसकी पहचान नहीं दिला पाएगा।

उसने उसे अपने आप से दूर किया। उन दोनों की नज़रें टकराई। वो कुछ पल उसकी आंखों में खो गया। लेकिन अगले ही पल। होश में आकर उसने उसे दूर किया।

"आज नहीं, कुँवर जी।" कहते हुए वो फिर से उसके करीब आ गई और अगले ही पल, एक जोरदार चांटा उसके चेहरे पर पड़ा।

जिस कुँवरजी ने कभी उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की थी। आज उन्होंने उसे थप्पड़ मारा था।

"आस्था। अपने कमरे में जाओ, और जाने की तैयारी करो।"

"मैं लौटकर नहीं आऊंगी। आपने बुलाया, फिर भी नहीं आऊंगी। कभी भी नहीं।" अपने गाल पर हाथ रखे, वो रोते हुए अपने कमरे में चली गई।

उनके कमरे के बाहर खड़े उस साये के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

वो भी बहुत रोना चाहता था। लेकिन रो नहीं सकता था। अपने कमरे में मौजूद दिए की आग पर उसने अपना हाथ रख दिया। जिस हाथ से उसे मारा था। थक कर वो दिया भी बुझ गया। लेकिन उसका हाथ वैसा ही रहा।

अगले दिन, बिना उससे मिले, वो चली गई। अपनी असली पहचान खोकर एक नई पहचान बनाने। अपना अस्तित्व खोकर एक नया अस्तित्व बनाने। अपने हमसफर को खोकर, दुनिया के साथ कदम मिलाने।

एकांश अजिंक्य रघुवंशी—लड़कियों के ख्वाबों का राजकुमार और असल जिंदगी में भी राजकुमार। जयपुर के राजपरिवार का वारिस, 6 फुट लंबा, सिल्की बाल, काली गहरी आंखें, दूध जैसा सफेद रंग, वेल-मेंटेन्ड फिट और फाइन बॉडी, 26 साल का एलिजिबल बैचलर, मशहूर बिजनेसमैन और सॉफ्टवेयर इंजीनियर।

रघुवंशी साम्राज्य संभालने के साथ-साथ अपनी 'स्मार्ट टेक' नाम की कंपनी को भी भारत की टॉप कंपनियों में शामिल कर लिया है।

हमेशा खरगोश जैसा शांत रहने वाला, बहुत समझदार, लविंग और केयरिंग भी। वह अपने सभी भाइयों और बहनों से बहुत प्यार करता था। लेकिन उसके व्यक्तित्व में एक सख्त स्ट्रीक भी थी।

वैसे तो उसे गुस्सा बहुत कम आता था, लेकिन जब आता था, तो ऐसा आता था कि सामने वाले की बोलती बंद हो जाती थी।

वह समय का बहुत पाबंद था, और 1 मिनट की देरी भी उसे बर्दाश्त नहीं होती थी।

11 साल की उम्र में एकांश ने अपनी मां को खो दिया। उन्होंने एकांश को बचाते हुए अपनी जान गंवा दी।

सबने उसे बहुत प्यार दिया। लेकिन मां तो मां होती है।

कोई भी उसकी कमी पूरी नहीं कर सकता।

रघुवंशी अंपायर का वारिस और जयपुर राजपरिवार का भावी राजा होने की वजह से उसकी जान को खतरा था।

बिजनेस की वजह से उसके काफी दुश्मन भी थे।

लेकिन उसके अच्छे काम और अच्छे व्यवहार की वजह से उसके वेलविशर भी बहुत थे।

राज भवन के एक कमरे में एकांश के दादा सा और बाबा साहब के कुलगुरु बैठे हुए थे।

हाल ही में एकांश पर जानलेवा हमला हुआ था।

जिस वजह से उन्होंने गुरु जी को मिलने बुलाया था।

"क्या हुआ गुरु जी?"

"आपके बताए हुए हर एक पूजा करवाई। फिर भी आपके चेहरे पर यह चिंता की लकीरें क्यों हैं?"

"बाबा सा, मृत्यु योग अटल है। एकांश की 27 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो जाएगी," गुरुजी ने फिक्र से कहा।

"नहीं, नहीं, गुरुजी, ऐसा मत कहिए! हम सब कुछ करने को तैयार हैं, बस हमारा पोता सही सलामत चाहिए," दादा सा बोले।

"मैं समझ सकता हूं, महाराज, लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता। अब सिर्फ एक ही उपाय है।"

"मैं काशी जाकर गुरु स्वामी नंद जी से मिलता हूं, शायद वह कोई उपाय बता पाएं।"

"बाकी सब भगवान शिव की मर्जी है," गुरुजी ने कहा।

"जैसा आप ठीक समझें, बाबा सा," दादा सा ने जवाब दिया।

गुरु जी की बातों से बाबा सा और दादा सा दोनों ही बहुत परेशान हो चुके थे, और बात भी वैसी ही थी।

एकांश पर पहले भी कई बार जानलेवा हमले हो चुके थे।

वह कुछ ही महीनों में 27 साल का होने वाला था, और उसकी कुंडली में मृत्यु योग था।

इस वजह से दोनों चिंतित थे।

"बाबा सा, हमारा एकांश कुछ नहीं होगा ना?" एकांश के बाबा ने उसके दादा सा से कहा।

"फिकर मत कीजिए, अजिंक्य। कुछ नहीं होगा उन्हें," दादा सा ने कहा।

कहते हुए बाबा सा अपने काम पर तो चले गए, लेकिन उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ गुरुजी की बातें चल रही थीं।

दूसरी ओर, दादा सा अपने कमरे में जाकर गहरे विचारों में डूब गए।

इन सब से अनजान आस्था अपने आप में मगन थी। जहां एकांश की इतनी बड़ी फैमिली थी, वहीं उसके परिवार में सिर्फ वह और उसकी मां थे। दोनों पुणे के पास एक गांव में रहते थे।

महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर उसका जन्म हुआ था, और उसके माता-पिता की शिव पर बहुत आस्था थी। इसलिए उसके पिता ने उसका नाम "आस्था" रखा।

आस्था केवल 5 साल की थी जब उसके पिता इस संसार को छोड़कर चले गए। अपने पिता की तरह वह भी बड़ी शिव भक्त थी। उसकी मां वृंदा ने उसे संभाला।

"आस्था फिर से बाहर चली गई?" मां ने आवाज देते हुए कहा।

"आ रही हूं, मां!"

"हां, यही तो है। जब देखो, तब डांटती रहती हो..."

"आस्था, तुझे पता है न, कितनी बार कहा है कि नदी के किनारे मत जाया कर। लेकिन नहीं, तुझे तो बस जाना है।"

"मां, मां, नदी तो पास में है, घर से दिखती है। लेकिन फिर भी तुम हो कि मुझे कहीं जाने ही नहीं देती।"

"आस्था, मुझे डर लगता है बेटा। बड़ी हो रही हो, जरा संभल कर रहना चाहिए।"

"मां, आपको लगता है मेरे इस रंग की वजह से कोई मेरी ओर देखेगा?"

"आस्था, तुम्हें क्या हुआ है? ये तो तुम बहुत अच्छे से जानती हो। और वैसे भी, दुनिया हवस से भरी हुई है। लड़के सिर्फ लड़की को देखते हैं और अपनी हवस पूरी करने के लिए ये रंग-रूप नहीं देखते, समझी?"

"मां, मां, मां, समझ गई! हमेशा तो यही बोलती हो तुम। और वैसे भी, मैं कहां अकेली जाती हूं वहां? जब तुम घर पर होती हो, तभी तो जाती हूं।"

"आज ज़्यादा बातें न बनाओ, और जाओ, पढ़ाई करने बैठो। दसवीं कक्षा के पेपर हैं तुम्हारे।"

"मां, हां पता है, करती हूं ना पढ़ाई।"

"आस्था, अच्छा, एक बात बताओ, मैडम जी के पास कब जा रही हो?"

"मां, 'मैडेम' नहीं होता, 'मैडम' होता है, समझी?"

"आस्था, ज्यादा अंग्रेजी मत झाड़, और पढ़ाई करने बैठ जा।"

"Ok, मेरी प्यारी मां। तुम गुस्से में कितनी प्यारी लगती हो!" आस्था ने अपनी मां के गाल पर किस करते हुए कहा।

ऐसी है हमारी आस्था, थोड़ी चुलबुली सी, थोड़ी समझदार, पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली, लेकिन दुनियादारी से बेखबर। आखिर 15 साल की ही तो थी, और ऊपर से उसकी मां उसे कहीं बाहर जाने भी नहीं देती थी।

उसे गार्डनिंग का बहुत शौक था, और क्यों न हो, उसकी मां और वह अपने खेत में फूल और सब्जियाँ उगाया करते थे। उनका घर उन्हीं से चलता था।

तो अब जानिए हमारी आस्था का लुक:

घुटनों से नीचे तक के लंबे बाल, ग्रेनेट कैट आईज़, छोटे और नाज़ुक होंठ, और तीखे नैन-नक्श। ऊँची और लंबी नाक। सब कुछ था। कमी अगर कुछ थी, तो उसका रंग। बेहद काला, इतना कि सांवला रंग भी उसके सामने अच्छा दिखता था।

उसके रंग की वजह से कोई भी उससे दोस्ती नहीं करता था। लेकिन उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसकी पूरी दुनिया उसकी मां और शिव जी तक सीमित थी।

दोनों (एकांश और आस्था) एक-दूसरे से अनजान थे। एक-दूसरे से अलग, बस संस्कृति और स्थिति में फर्क था। उम्र का फासला, स्टेटस का फासला, हालातों से मजबूर होकर कैसे बने वह हमसफर? जिंदगी भर के साथी