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dilo ka pyar

Ajju_Mathupotra
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Chapter 1 - pahli mulakat

अध्यक्ष 1: पहली मुलाकात

रूपाली हमेशा से एक शांत और सुलझी हुई लड़की रही थी। उसने कभी भी अपनी ज़िंदगी को हलचल और रोमांस से नहीं भरा था। उसका पूरा ध्यान पढ़ाई और करियर पर था, लेकिन उस दिन जो कुछ भी हुआ, वह उसकी पूरी ज़िंदगी को बदलने वाला था। वह कॉलेज के दिनों की एक सामान्य शाम थी, जब रूपाली कैफे में बैठकर एक किताब पढ़ने में खोई हुई थी।

उस दिन कैफे में कुछ ज्यादा ही हलचल थी। लोग जल्दी-जल्दी चाय पी रहे थे, बातचीत कर रहे थे, और हंसी-मजाक की आवाजें गूंज रही थीं। रूपाली को यह सब बहुत भद्दा लगता था, क्योंकि वह शांति और एकांत की आदी थी। उसे किसी से ज्यादा बात करना पसंद नहीं था। वह हमेशा अपनी दुनिया में खोई रहती थी।

तभी उसकी नज़र उस लड़के पर पड़ी। वह लड़का किसी फिल्म का हीरो सा दिखता था। काले घने बाल, फिट शरीर और उसमें एक खास आकर्षण था जो पहली बार में ही रूपाली को खींच रहा था। वह लड़का, अर्जुन, अपनी किताबें एक टेबल पर रखते हुए कुर्सी पर बैठा। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वह दुनिया से थोड़ा सा हटकर किसी और ही दुनिया में खोया हुआ हो।

रूपाली ने अपने ध्यान को वापस अपनी किताब पर फोकस किया, लेकिन फिर भी उसका ध्यान अर्जुन पर ही जा रहा था। वह जानती थी कि उसे उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए, लेकिन फिर भी कुछ था जो उसे बार-बार उसकी तरफ खींच रहा था। अर्जुन ने अपनी आँखें उठाईं, और वह भी रूपाली को देख रहा था। उनकी आँखें एक दूसरे से मिलीं, और अचानक से रूपाली के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।

"क्या आप यहाँ अकेली बैठी हैं?" अर्जुन ने उसकी ओर बढ़ते हुए सवाल पूछा। उसकी आवाज़ में एक खास बात थी। एक सुकून, एक रहस्य। रूपाली चौंकी, लेकिन फिर भी उसने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ, मुझे अकेले बैठना पसंद है।"

अर्जुन मुस्कुराया, और फिर धीरे से बैठते हुए कहा, "मुझे भी अकेले रहना अच्छा लगता है। कभी-कभी लगता है, अकेलापन ज्यादा समझदार बना देता है।"

रूपाली ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक अजीब सी दबी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई। अर्जुन का अंदाज इतना सहज और आत्मविश्वास से भरा हुआ था कि रूपाली को सहज महसूस होने लगा। वह अजनबी, जिसे वह पहले कभी नहीं जानती थी, अब उसे बिल्कुल भी अजनबी नहीं लग रहा था।

"आप क्या पढ़ रही हैं?" अर्जुन ने फिर से पूछा। उसका सवाल आम था, लेकिन उसकी आवाज़ में कुछ खास था। रूपाली थोड़ी घबराई, फिर धीरे से बोली, "बस एक साधारण सी किताब।"

"आप भी साधारण सी लड़की लगती हैं," अर्जुन ने हंसते हुए कहा। उसकी हंसी में कुछ ऐसा था, जो रूपाली को परेशान कर गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अर्जुन के साथ बात करते हुए उसे क्यों ऐसा महसूस हो रहा था। क्या यह प्यार था? क्या यह सिर्फ एक आकर्षण था?

कुछ देर तक वे दोनों चुप रहे। कमरे में हल्की सी खामोशी थी, लेकिन वह खामोशी अजीब नहीं, बल्कि बहुत आरामदायक महसूस हो रही थी। रूपाली को महसूस हो रहा था कि अर्जुन के साथ बिताए हुए कुछ मिनट उसकी ज़िंदगी के सबसे आरामदायक पल थे।

कुछ समय बाद अर्जुन ने अपनी किताब बंद की और धीरे-धीरे रूपाली के पास आकर बैठ गया। "क्या तुम कभी अपनी ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने के बारे में सोचती हो?" अर्जुन ने अचानक पूछा। उसकी आँखों में एक सवाल था, और साथ ही एक गहरी उलझन भी।

रूपाली थोड़ी चौंकी, फिर उसने धीरे से सिर हिलाया, "मैंने कभी नहीं सोचा कि मुझे कोई बड़ा काम करना है। मैं बस अपनी ज़िंदगी में संतुष्ट हूं।"

अर्जुन ने कुछ देर तक उसे देखा और फिर कहा, "संतुष्टि तो एक ऐसा शब्द है, जिसका मतलब हर किसी के लिए अलग-अलग होता है। मैं मानता हूँ कि संतुष्टि से ज्यादा अहम है अपनी पहचान बनाना, अपने सपनों का पीछा करना।"

रूपाली की आँखों में एक सवाल था, "क्या आप इसे खुद पा चुके हैं?"

अर्जुन मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में कुछ गहरे दर्द की झलक थी। "नहीं, लेकिन मैं इस रास्ते पर हूं।"

उनकी बातें कहीं न कहीं रूपाली को एक नई दिशा दिखा रही थीं। वह महसूस कर रही थी कि अर्जुन केवल एक लड़का नहीं था, बल्कि उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बनने की कुछ गहरी वजह थी।

आखिरकार, अर्जुन ने अपनी किताब उठाई और जाने के लिए खड़ा हो गया। वह एक पल को रुककर रूपाली को देखता है, फिर हल्के से मुस्कुराता हुआ बोलता है, "शायद हम फिर मिलें।"

रूपाली का दिल अचानक से तेज़ी से धड़कने लगा। वह चुप रही, बस उसे जाने दिया। अर्जुन की छवि उसकी आँखों में बनी रही, और वह महसूस कर रही थी कि यह पहली मुलाकात किसी और ही कहानी की शुरुआत हो सकती थी।

यह कहानी का पहला भाग है, जिसमें दो पात्रों की पहली मुलाकात और उनके बीच होने वाली हल्की सी बातचीत को दर्शाया गया है। आप इसे अपनी कहानी में और विस्तार से जोड़ सकते हैं या आगे बढ़ा सकते हैं।

अगर आपको और कुछ चाहिए या कहानी में बदलाव चाहिए, तो मुझे बताइए!हली मुलाकात

रूपाली हमेशा से एक शांत और सुलझी हुई लड़की रही थी। उसने कभी भी अपनी ज़िंदगी को हलचल और रोमांस से नहीं भरा था। उसका पूरा ध्यान पढ़ाई और करियर पर था, लेकिन उस दिन जो कुछ भी हुआ, वह उसकी पूरी ज़िंदगी को बदलने वाला था। वह कॉलेज के दिनों की एक सामान्य शाम थी, जब रूपाली कैफे में बैठकर एक किताब पढ़ने में खोई हुई थी।

उस दिन कैफे में कुछ ज्यादा ही हलचल थी। लोग जल्दी-जल्दी चाय पी रहे थे, बातचीत कर रहे थे, और हंसी-मजाक की आवाजें गूंज रही थीं। रूपाली को यह सब बहुत भद्दा लगता था, क्योंकि वह शांति और एकांत की आदी थी। उसे किसी से ज्यादा बात करना पसंद नहीं था। वह हमेशा अपनी दुनिया में खोई रहती थी।

तभी उसकी नज़र उस लड़के पर पड़ी। वह लड़का किसी फिल्म का हीरो सा दिखता था। काले घने बाल, फिट शरीर और उसमें एक खास आकर्षण था जो पहली बार में ही रूपाली को खींच रहा था। वह लड़का, अर्जुन, अपनी किताबें एक टेबल पर रखते हुए कुर्सी पर बैठा। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वह दुनिया से थोड़ा सा हटकर किसी और ही दुनिया में खोया हुआ हो।

रूपाली ने अपने ध्यान को वापस अपनी किताब पर फोकस किया, लेकिन फिर भी उसका ध्यान अर्जुन पर ही जा रहा था। वह जानती थी कि उसे उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए, लेकिन फिर भी कुछ था जो उसे बार-बार उसकी तरफ खींच रहा था। अर्जुन ने अपनी आँखें उठाईं, और वह भी रूपाली को देख रहा था। उनकी आँखें एक दूसरे से मिलीं, और अचानक से रूपाली के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।

"क्या आप यहाँ अकेली बैठी हैं?" अर्जुन ने उसकी ओर बढ़ते हुए सवाल पूछा। उसकी आवाज़ में एक खास बात थी। एक सुकून, एक रहस्य। रूपाली चौंकी, लेकिन फिर भी उसने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ, मुझे अकेले बैठना पसंद है।"

अर्जुन मुस्कुराया, और फिर धीरे से बैठते हुए कहा, "मुझे भी अकेले रहना अच्छा लगता है। कभी-कभी लगता है, अकेलापन ज्यादा समझदार बना देता है।"

रूपाली ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक अजीब सी दबी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई। अर्जुन का अंदाज इतना सहज और आत्मविश्वास से भरा हुआ था कि रूपाली को सहज महसूस होने लगा। वह अजनबी, जिसे वह पहले कभी नहीं जानती थी, अब उसे बिल्कुल भी अजनबी नहीं लग रहा था।

"आप क्या पढ़ रही हैं?" अर्जुन ने फिर से पूछा। उसका सवाल आम था, लेकिन उसकी आवाज़ में कुछ खास था। रूपाली थोड़ी घबराई, फिर धीरे से बोली, "बस एक साधारण सी किताब।"

"आप भी साधारण सी लड़की लगती हैं," अर्जुन ने हंसते हुए कहा। उसकी हंसी में कुछ ऐसा था, जो रूपाली को परेशान कर गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अर्जुन के साथ बात करते हुए उसे क्यों ऐसा महसूस हो रहा था। क्या यह प्यार था? क्या यह सिर्फ एक आकर्षण था?

कुछ देर तक वे दोनों चुप रहे। कमरे में हल्की सी खामोशी थी, लेकिन वह खामोशी अजीब नहीं, बल्कि बहुत आरामदायक महसूस हो रही थी। रूपाली को महसूस हो रहा था कि अर्जुन के साथ बिताए हुए कुछ मिनट उसकी ज़िंदगी के सबसे आरामदायक पल थे।

कुछ समय बाद अर्जुन ने अपनी किताब बंद की और धीरे-धीरे रूपाली के पास आकर बैठ गया। "क्या तुम कभी अपनी ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने के बारे में सोचती हो?" अर्जुन ने अचानक पूछा। उसकी आँखों में एक सवाल था, और साथ ही एक गहरी उलझन भी।

रूपाली थोड़ी चौंकी, फिर उसने धीरे से सिर हिलाया, "मैंने कभी नहीं सोचा कि मुझे कोई बड़ा काम करना है। मैं बस अपनी ज़िंदगी में संतुष्ट हूं।"

अर्जुन ने कुछ देर तक उसे देखा और फिर कहा, "संतुष्टि तो एक ऐसा शब्द है, जिसका मतलब हर किसी के लिए अलग-अलग होता है। मैं मानता हूँ कि संतुष्टि से ज्यादा अहम है अपनी पहचान बनाना, अपने सपनों का पीछा करना।"

रूपाली की आँखों में एक सवाल था, "क्या आप इसे खुद पा चुके हैं?"

अर्जुन मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में कुछ गहरे दर्द की झलक थी। "नहीं, लेकिन मैं इस रास्ते पर हूं।"

उनकी बातें कहीं न कहीं रूपाली को एक नई दिशा दिखा रही थीं। वह महसूस कर रही थी कि अर्जुन केवल एक लड़का नहीं था, बल्कि उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बनने की कुछ गहरी वजह थी।

आखिरकार, अर्जुन ने अपनी किताब उठाई और जाने के लिए खड़ा हो गया। वह एक पल को रुककर रूपाली को देखता है, फिर हल्के से मुस्कुराता हुआ बोलता है, "शायद हम फिर मिलें।"

रूपाली का दिल अचानक से तेज़ी से धड़कने लगा। वह चुप रही, बस उसे जाने दिया। अर्जुन की छवि उसकी आँखों में बनी रही, और वह महसूस कर रही थी कि यह पहली मुलाकात किसी और ही कहानी की शुरुआत हो सकती थी।

यह कहानी का पहला भाग है, जिसमें दो पात्रों की पहली मुलाकात और उनके बीच होने वाली हल्की सी बातचीत को दर्शाया गया है। आप इसे अपनी कहानी में और विस्तार से जोड़ सकते हैं या आगे बढ़ा सकते हैं।

अगर आपको और कुछ चाहिए या कहानी में बदलाव चाहिए, तो मुझे बताइए!