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Chapter 2 - Kon hai Vaidehi

रुद्राक्ष ने बेहोश वैदेही को अपने घर लाने के बाद उसे सावधानी से अपने कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया। उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन चेहरे पर एक अद्भुत शांति थी। रुद्राक्ष ने उसकी देखभाल की और पानी का एक घूंट उसे पिलाने की कोशिश की। धीरे-धीरे, वैदेही की आंखें खुलीं और उसने चारों ओर देखा। उसे याद नहीं आ रहा था कि वह यहां कैसे आई।

सुबह की पहली किरणें कमरे में दाखिल हुईं, और रुद्राक्ष की मां, ममता,कमरे में आईं। उन्होंने वैदेही को बिस्तर पर देखा और चिंतित स्वर में बोलीं, "रुद्राक्ष, यह लड़की कौन है? तुमने इसे यहां क्यों लाया?"

रुद्राक्ष ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "अम्मा ई रसमलाई को कल रात हम लाये रहन जब हम बाहर गए रहन तब ई रसमलाई के पीछे बाचा भईया के आदमी पड़े रहे और हम अपन दोस्तान्न के का उनके घरे छोड़ के आवत रहन तब ई रसमलाई चिल्ला रही रहे खाली सडक मा "कोनो हमका बचाओ " तब तनिक ना जाने कौन ससुर का नाती रहे बच्चा भईया कर के वहिके लड़के वाहिकी दम मा उछल रहे रहें फिर कहा सुनी मा लड़ाई होई गयी रहे और ई रसमलाई ससुरी रही नाजुक कली तो बेहोश हुई गयी। अब अम्मा तुमाही बताओ अइसेन मा कैसे ई रसमलाई को उहां अकेले बेहोसी मा जंगल के रास्ते मा छोड़ के चले आईत्त है। तो हम्म इका गाड़ी मा लेके इहाँ ले आएं।

ममता लड़की के पास जाके बोली "तुम ठीक हो ना, बिटिया?" उन्होंने पूछा, जिससे वैदेही ने थोड़ा अपने आप को संभाला और सिर उठाया और धीरे से कहा, "हां, अम्मा जी, धन्यवाद।"

वैदेही ने रुद्राक्ष की और देखा उसको अपने साथ हुऐ पिछली रात की बात याद आ गयी। वैदेही थोड़ा सेहेम सी गयी और डरते हुऐ चादर को एक छोटे डरे हुऐ बच्चे की तरहा हाँथ मैं कस के पकड़ लिया। यह सब देख कर ममता समझ गयी।

"तुम्को प्यास लगी है?" ममता ने पूछा। वैदेही ने सिर हिलाया। ममता तुरंत उठी और टेबल पर से जाके एक गिलास मे पानी भर के ले आयी। वैदेही ने पानी का गिलास काँपते हुई हांथो से लिया और हड़बड़ी मे डरते डरते पानी पीने लगी पानी जल्दी जल्दी पीने की वजह से उसे खांसी आयी और वो खाँसने लगी तभी ममता उठ कर उसके पीठ पर थपकी देते हुऐ बोली। "आराम से पियो बिटिया जल्दबाज़ी कहे कर रही हो।" तब वैदेही आराम से पानी पी और चैन की सांस ली।

रुद्राक्ष ने कहा, "अम्मा, जरा ई रसमलाई से तनिक ईका नाम तो पूछव, पता नहीं काहे हमका देख के सकपकिया रही है।" इतना कहते ही रुद्राक्ष कमरे से बाहर चला गया।

"बिटिया डरो नहीं", ममता ने वैदेही के सिर पर हाँथ फेरते बोला "कौन हो तुम?, का नाम है तुम्हरा?, " हमारा नाम वैदेही ही है।" एक बड़ी ही धीमे से आवाज़ आयी और वो ममता के सीने से डर के मारे उसको कस के पकड़ ली।

"डरो नहीं बिटिया, हम है ना तुम्हरे पास " वैदेही अपनी पकड़ ढीली करते हुई बोली। वैदेही है हमरा नाम और हम्म लखनऊ से है। हमारी अम्मा के गुजर जाने के बाद हमारे बाबा ने हमारी परवरिश अच्छी परवरिश के लिए दूसरी सादी कर ली ताकि हमका अम्मा की कमी और उनका प्यार मेहसूस ना हो। लेकिन हमरी सौतेली अम्मा हमका बिलकुल नहीं पसंद करती हैँ। हमका मरती हैँ। हमसे सारा काम करवाती है। और फिर रात को हमसे अपने पैर दाब्वाती है। और सबके खाने के बाद जब बच जाता है ताब हमका खाना खाये देती है। और हम अगर ई साब बाबा को बातएंगे तो कहती तुमका और तुम्हारे बाप के खाने मैं जहर मिला देंगे और दोनों बाप बेटी को मार डालेंगे। इतना कह के वैदेही फुट फुट कर रोने लगी।

ममता उसको सँभालते हुऐ बोली। "शांत बिटिया, रोवत नहीं " और "ऊ लड़का लोग कौन राहें। तुम्हरे पीछे काहे पड़े रहें।" ममता ने इतना पूँछा ही था की वैदेही का डर उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था। ममता ने दोबारा पूँछा वैदेही बिटिया बतावा कौन रहे ऊ लड़का जो तुम्हरे पीछे पड़े रहें।