(साक्षी और राघव एक सुनसान पार्क में बैठे हैं। रात का अंधेरा चारों ओर फैल चुका है।)
साक्षी: (आँखों में आँसू) राघव, मुझे समझ नहीं आ रहा कि यह सब कैसे हुआ। करण ने कभी किसी का बुरा नहीं किया था।
राघव: (गंभीर स्वर में) साक्षी, मैं भी इस बात को समझने की कोशिश कर रहा हूँ। करण का जाना हमारे लिए एक बहुत बड़ा सदमा है।
साक्षी: (नज़रों को झुकाते हुए) तुम्हें याद है, राघव, करण हमेशा कहता था कि न्याय सबसे बड़ा धर्म है। लेकिन आज... आज वही न्याय उससे कोसों दूर है।
राघव: (आवाज़ में दर्द) हाँ, साक्षी। करण का विश्वास मुझे भी याद है। और उसी विश्वास के चलते मैं इस केस को सुलझाने के लिए दिन-रात एक कर रहा हूँ।
साक्षी: (आँखों में सवाल) राघव, क्या तुम्हें कोई सुराग मिला है? कोई भी चीज़ जो हमें करण के हत्यारों तक पहुंचा सके?
राघव: (थोड़ा हिचकिचाते हुए) साक्षी, मुझे कुछ अहम सुराग मिले हैं। लेकिन इन सुरागों ने मुझे और उलझा दिया है।
साक्षी: (हैरानी से) क्या मतलब? क्या सुराग हैं वो?
राघव: (धीरे से) मैंने करण के फ़ोन रिकॉर्ड्स चेक किए हैं। हत्या से एक दिन पहले, करण ने कई बार एक अनजान नंबर पर कॉल किया था। और उस नंबर का संबंध... (रुकते हुए) उस नंबर का संबंध एक बहुत बड़े गिरोह से है।
साक्षी: (चौंकते हुए) गिरोह? लेकिन करण का उन लोगों से क्या संबंध हो सकता है?
राघव: (गहरी सांस लेते हुए) यही तो समझने की कोशिश कर रहा हूँ। करण कभी ऐसी चीज़ों में नहीं पड़ता था। लेकिन...
साक्षी: (संकट में) लेकिन क्या, राघव? कुछ तो बोलो।
राघव: (धीरे से) लेकिन मुझे लगता है कि करण ने किसी बहुत बड़े राज़ को जान लिया था। और यही उसकी मौत का कारण बना।
साक्षी: (आँखों में आँसू) राघव, तुम जानते हो, करण ने हमेशा सच के लिए लड़ाई लड़ी। और अब उसके लिए न्याय पाना भी तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।
राघव: (दृढ़ निश्चय के साथ) हाँ, साक्षी। मैं वादा करता हूँ कि मैं करण के हत्यारों को सज़ा दिलवाऊंगा। चाहे मुझे इसके लिए अपनी जान भी क्यों न देनी पड़े।
साक्षी: (धीरे से) राघव, मैं जानती हूँ कि तुम्हारे लिए भी यह आसान नहीं है। लेकिन मैं चाहती हूँ कि तुम इस लड़ाई में अकेले न हो। मैं भी तुम्हारे साथ हूँ।
राघव: (मुस्कराते हुए) तुम्हारी यह हिम्मत ही मेरी ताकत है, साक्षी। हम मिलकर करण के लिए न्याय ज़रूर पाएंगे।
(दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे, अंधेरे में उम्मीद की एक नई किरण के साथ आगे बढ़ते हैं।)