कुछ सालों पहले की बात है, भारत देश के एक जाने माने विद्यालय में एक लड़का पढ़ता था, जिसका नाम था हरीश । हरीश ने उस विद्यालय में अभी-अभी अपना नामांकन कराया था, हरीश को वहाँ के विद्यार्थियों या फिर अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों के बारे में कुछ भी पता नहीं था, अतः वो सभी विद्यार्थियों को अपना दोस्त मानता था। हरीश बहुत ही होनहार तथा साहित्य एवं संस्कृति प्रेमी था, वह सभी से बहुत ही अच्छे से बात करता था,जिसके कारण विद्यालय में उसकी एक अच्छी छवि बनने लगी।
जिसके वजह से उसके साथ पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थी उस से ईर्ष्या करने लगे और उसकी छवि खराब करने की कोशिश करने लगे परंतु हरीश इन सब बातों से अंजान उन सभी से एक दोस्त की भाँति ही व्यवहार करता तथा अपनी बातें उनसे बिना डरे तथा बेझिझक बताया करता था।क्योंकि हरीश का यह मानना था कि उसकी जिंदगी में दोस्तों का स्थान सबसे बढ़कर है।
वहीं दूसरी तरफ उसी की कक्षा में एक लड़की पढ़ती थी जिसका नाम था सुरुचि।सुरुचि भी काफी होनहार तथा साहित्य प्रेमी थी एवं विद्यालय में उसकी भी एक अच्छी छवि थी।
इन दोनों की जिंदगी की गाड़ी अपने-अपने पटरी पर बड़े ही आराम से चल रही थी, पर इन दोनों में से किसी को भी यह नहीं पता था कि बहुत ही जल्दी इन दोनों की गाड़ी आपस में टकराने वाली है।
हरीश ने कुछ दिनों पहले ही इस स्कूल में दाखिला लिया था , इसलिए उसका नोटबुक पूरा नहीं था, इसलिए उसकी अध्यापिका ने उसको नोटबुक पूरा करने के लिए कहा परंतु लड़कों में किसी की भी नोटबुक कंप्लीट नहीं थी। हरीश कोअगले दो से तीन में अपनी नोटबुक जमा करनी थी ,परंतु समस्या यह थी कि उसके पास ऐसी कोई नोटबुक नहीं जिसमें सारे नोट लिखे हों, इसलिए वह काफी परेशान हो गया।
तभी लंच हो गया और सभी बच्चे कक्षा से बाहर जाने लगे पर हरीश कक्षा में ही बैठा रहा क्योंकि वो इस बात से परेशान हो रहा था कि वह नोटबुक कैसे पूरा करेगा।
तभी थोड़े देर बाद सुरुचि उसके कक्षा में प्रवेश करती है, कक्षा में हरीश को अकेले देखकर वह उस से पूछती है क्या हुआ? परेशान लग रहे हो!परंतु हरीश उसे कुछ नहीं बताता, हरीश को देखकर सुरुचि यह समझ जाती है कि हरीश क्यों परेशान है!
सुरुचि हँसने लगती है और उसको अपनी नोटबुक देते हुए कहती है कि यह लो अपनी नोटबुक कंप्लीट कर लेना। हरीश के ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता और वह ख़ुशी के मारे सुरुचि को गले लगाना चाहता है पर तभी रुक जाता है और सिर्फ हाथ मिलाकर 'थैंक यू' कहता है! उसके बाद सुरुचि वहाँ से चली जाती है,
हरीश नोटबुक पाकर बहुत खुश होता है।
हरीश अगले दिन ही पूरी की पूरी नोटबुक कंप्लीट कर लेता है, हरीश सोचता है की क्यूँ न बाकी नोटबुक भी सुरुचि से ही लेकर कंप्लीट कर ली जाए इसलिए वह सोचता है कि कल नोटबुक वापस करते वक़्त वह उससे दूसरी नोटबुक माँग लेगा..........
अगले दिन हरीश काफी जल्दी क्लास में चला जाता है और सुरुचि का इंतज़ार करने लगता है क्योंकि सुरुचि काफी जल्दी हॉस्टल से स्कूल आ जाती है लेकिन शायद आज किस्मत हरीश के साथ नहीं थी। समय बीतने लगता है और समय के साथ -साथ क्लास में सभी बच्चे आ जाते हैं लेकिन सुरुचि नहीं आती। हरीश प्रार्थना सभा में भी नहीं जाता और क्लास में बैठ कर ही सुरुचि का इंतज़ार करता है। कुछ समय बाद प्रार्थना भी खत्म हो जाती है और सारे बच्चे क्लास में आ जाते हैं मगर सुरुचि अब तक नहीं आती।
हरीश थोड़ा परेशान हो जाता है, वह अपने दोस्तों से सुरुचि के बारे में पूछता है उसके दोस्त कहते हैं की उन्हें नहीं पता। हरीश सुरुचि के सहेलियों से सुरुचि के बारे में पूछता है उसकी सहेलियाँ बताती हैं कि सुरुचि बहुत बीमार है इसलिए वह हॉस्टल में ही है।
हरीश एक पेपर के टुकड़े पर नोटबुक के लिए थैंक यू' के साथ उसके ठीक होने की कामना करते हुए एक लेटर लिखकर सुरुचि के सहेलियों को उसके नोटबुक में रखकर दे देता है। सुरुचि की सहेलियाँ सुरुचि को उसकी नोटबुक दे देती हैं। शाम को सुरुचि जब अपनी नोट कंप्लीट करने के लिए वही नोटबुक खोलती है तो उसको हरीश का लेटर मिलता है, वह उसको पढ़कर हँसने लगती है, सुरुचि को वायरल बुखार होता है जिसके वजह से डॉक्टर ने उसको आराम करने की सलाह दी थी, इसलिए सुरुचि अगले दिन एक लेटर लिखकर किसी और विषय की नोटबुक में रखकर अपने दोस्तों से हरीश को देने के लिए कहती है। उसके दोस्त वह नोटबुक हरीश को दे देते हैं, हरीश पहले तो हैरान हो जाता है कि मैंने तो कोई नोटबुक नहीं माँगी थी फ़िर ये नोटबुक? पर हरीश नोटबुक पाकर बहुत ख़ुश हो जाता है............
शाम को हरीश नोटबुक कंप्लीट करने के लिए लिखने के लिए बैठता है, जैसे ही वह नोटबुक खोलता है उसको सुरुचि के द्वारा लिखा गया लेटर मिल जाता है, हरीश लेटर खोल कर पढ़ने ही जा रहा होता है कि तभी उसके दोस्त आ जाते हैं और उसको वो लेटर छुपाना पड़ता है, हरीश अपने दोस्तों के साथ डिनर के लिए चला जाता है, मगर उसका मन खाना खाने में नहीं लगता, इसलिए वो थोड़ा सा खाना खाकर ही हॉस्टल वापस आ जाता है, क्योंकि वो जल्दी से जल्दी लेटर पढ़ना चाहता है। वो हॉस्टल आकर एक बार फिर लेटर को पढ़ने के लिए खोलता है।
लेटर में सुरुचि ने लिखा था कि:-
हाय हरीश !
कैसे हो? मैं भी ठीक हूँ, हाँ पर थोड़ा सा वायरल बुखार है, पर तुमने भगवान से प्रार्थना की है तो जरूर जल्दी ठीक हो जाऊँगी। मेरा हाल- चाल पूछने के लिए 'थैंक्स'। मैंने सुना की तुम मेरे दोस्तों से मेरे बारे में पूछ रहे थे, क्यूँ ,कोई काम था क्या? अगर कोई काम हो तो मेरे दोस्तों को बता देना, वो मुझे बता देंगी। दूसरी नोटबुक भेज रही हूँ, कंप्लीट कर लेना और हाँ अपनी नोटबुक भेज देना मैं आज के नोट लिख लूँगी। ठीक है फ़िर, अपना ख्याल रखना..............
हरीश अभी लेटर पढ़ ही रहा होता है कि उसके दोस्त आ जाते हैं और उसको लेटर पढ़ते हुए देख लेते हैं, वो हरीश को चिढ़ाने लगते हैं और उससे लेटर पढ़ने के लिए छिनने लगते हैं लेकिन हरीश उनको लेटर नहीं देता और लेटर को मुँह में डाल लेता है और खा जाता है.......
हरीश के दोस्तों को शक हो जाता है कि जरूर हरीश कुछ छुपा रहा है इसलिए वो हरीश का मज़ाक उड़ाने लगते हैं। हरीश हँसते हुए वहाँ से चला जाता है, थोड़े देर बाद हरीश अपनी नोटबुक कंप्लीट करने बैठ जाता है, और देखते ही देखते वो अपनी पूरी नोटबुक कंप्लीट कर लेता है। उसके बाद हरीश सो जाता है क्योंकि रात में उसको जागना भी तो था, इसलिए हरीश जल्दी ही सो जाता है। आधी रात से ज्यादा बीत जाने के बाद अचानक हरीश की नींद खुलती है और वो सुरुचि के लिए लेटर लिखने बैठ जाता है।
हरीश लेटर में लिखता है कि:-
हाय सुरुचि......
मैं ठीक हूँ, और उम्मीद करता हूँ आप भी जल्दी ठीक हो जाओगे। नोटबुक के लिए थैंक्स ! लेकिन आपको कैसे पता चला की मुझे नोटबुक चाहिए?
मैंने अपनी नोटबुक कंप्लीट कर ली है आप भी कर लेना, हाँ हो सकता है मेरी लिखावट अच्छी न हो लेकिन उम्मीद करता हूँ आपको समझ आ जायेगा, क्लास में सारे टीचर आपके बारे में पूछ रहे हैं? उम्मीद करता हूँ आप जल्दी ही क्लास में वापस आओगे। अरे हाँ, मैं एक बात बताना भूल ही गया था, आज जब मैं आपका लेटर पढ़ रहा था तो दोस्तों ने देख लिया। पर मैंने लेटर उनके हाँथ लगने नहीं दिया, जब तक वो मुझसे छिनते मैंने आपका लेटर ही खा लिया। ठीक है फ़िर रात बहुत हो गयी है ,इसलिए मैं सोने जा रहा हूँ। आप अपना ख़्याल रखना.......
उसके बाद वो उस लेटर को नोटबुक में रखकर सो जाता है।
अगले दिन हरीश रोज़ के जैसे ही क्लास चला जाता है, आज भी सुरुचि क्लास में नहीं आती, इसलिए हरीश उसके दोस्तों को नोटबुक दे देता है, सुरुचि की दोस्त भी हरीश को दूसरी नोटबुक दे देती हैं.....
जब हरीश सुरुचि की दोस्तों को नोटबुक दे रहा होता है तो उसके क्लास के कुछ बच्चे देख लेते हैं। लंच टाइम में जब सभी क्लास से बाहर होते हैं तभी हरीश के ही क्लास में पढ़ने वाला एक लड़का आशुतोष सुरुचि के दोस्तों के बेंच से वो नोटबुक उठा लेता है जो हरीश ने देने के लिए दी थी और हरीश का लेटर पढ़ लेता है।
आशुतोष, हरीश से बहुत ज्यादा ईर्ष्या करता है इसलिए वो ये सब पढ़कर गुस्से से आग - बबूला हो जाता है और वो उस लेटर को कुछ और बच्चों को भी दिखा देता है जो हरीश से ईर्ष्या करते हैं।
सभी लेटर पढ़ने के बाद वैसे का वैसे ही रखकर क्लास से बाहर आ जाते हैं। शाम को वो ही बच्चे हरीश के स्कूल बैग से वो नोटबुक निकालते हैं जो सुरुचि ने हरीश के लिए आज भेजी थी और उसमें रखा लेटर भी पढ़ लेते हैं।
इन सब बातों के बारे में हरीश को कुछ भी पता नहीं लगता। हरीश हमेशा की तरह अपना काम करने बैठ जाता है और रात में लेटर लिख कर रख देता है।
इस प्रकार एक सप्ताह तक हरीश, सुरुचि को ख़त लिखता है और सुरुचि, हरीश को। पर उन दोनों में से किसी को भी ये नहीं पता की उन दोनों के अलावा उस ख़त को कोई और भी पढ़ रहा होता है........
अगले दिन हरीश काफी जल्दी ही तैयार होकर बिना नाश्ता किए ही क्लास चला जाता है, वो काफी खुश था क्योंकि आज सुरुचि क्लास में आने वाली थी।
हरीश जैसे ही क्लास में पहुँचता है तो वहाँ पर सुरुचि पहले से ही बैठी होती है।
हरीश सुरुचि को देखकर थोड़ा सहम जाता है, दोनों क्लास में अकेले होते हैं मगर दोनों में से किसी की भी हिम्मत एक दूसरे से बात करने की नहीं होती। थोड़े देर बाद सुरुचि , हरीश को उसकी नोटबुक देती है, हरीश भी उसकी नोटबुक देते हुए थैंक्स कहता है। दोनों नोटबुक लेकर अपने -अपने बेंच पर चले जाते हैं और नोटबुक खोल कर एक दूसरे का लेटर पढ़ने लगते हैं.......
मगर दोनों की हिम्मत एक दूसरे से बात करने की नहीं होती। धीऱे- धीऱे समय के बीतने के साथ-साथ क्लास में बाकी बच्चे भी आ जाते हैं। आज क्लास के मॉनिटर का चुनाव होने वाला था इसलिए सभी यही बात कर रहे थे कि कौन बनेगा नया मॉनिटर.......
मगर हरीश और सुरुचि सबसे अलग छुप- छुप कर एक दूसरे को देख रहे थे। दैनिक प्रार्थना के बाद सभी क्लास में आ कर बैठ जाते हैं ,थोड़े समय बाद क्लास में उनके क्लास टीचर आती हैं और वो क्लास मॉनिटर का नाम बताती हैं, कहते हैं न की अगर आप किसी को पूरी सिद्धत से चाहो तो पूरी की पूरी कायनात आपको उससे मिलाने में लग जाती है शायद ये कहावत यहाँ सही साबित हो रही थी क्योंकि क्लास के मॉनिटर के रूप में लड़कों में हरीश और लड़कियों में सुरुचि का चयन होता है। हरीश और सुरुचि मन ही मन बहुत खुश होते हैं , लेकिन आशुतोष और उसके दोस्त इस बात से चिढ़ जाते हैं क्योंकि आशुतोष भी कहीं ना कहीं सुरुचि को पसंद करता था और इसलिए वो मॉनिटर बनना चाहता था और वैसे भी पिछले तीन सालों से आशुतोष और सुरुचि ही क्लास के मॉनिटर थे लेकिन हरीश के आने से सब कुछ बदल गया। कभी जो टीचर आशुतोष की तारीफ़ करते आज सभी हरीश की तारीफ़ करने से नहीं थकते, धीरे- धीरे आशुतोष की हरीश के लिए ईर्ष्या नफरत और बदले की भावना में बदल गई............
ऐसे ही धीरे- धीरे काफी दिन बीत गए और हरीश और सुरुचि की दोस्ती पूरी तरह से प्यार में बदल गयी थी
पर दोनों में से कोई भी यह बात एक दूसरे को बता नहीं पा रहा था। कुछ दिनों बाद सुरुचि का बर्थडे आने वाला था, हरीश ये समझ नहीं पा रहा था कि वो सुरुचि को क्या गिफ्ट दे। वहीं दूसरी तरफ सुरुचि अपने बर्थडे से पहले किसी भी तरह से हरीश से अपने प्यार का इज़हार करना चाहती है, पर वो ये समझ नहीं पाती की वो ये करे कैसे? बस इसी तरह एक बार फ़िर सुरुचि हरीश को एक लेटर लिखती है।
सुरुचि ने ख़त में लिखा था कि:-
हाय .....
मैं काफी दिनों से तुम्हें एक बात बताना चाहती थी, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कैसे बताऊँ मैं तुम्हें? पर आज बहुत हिम्मत कर के लेटर लिख रही हूँ, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, पता नहीं प्यार कैसे हुआ? कब हुआ पर इतना पता है कि बस तुमसे प्यार करती हूँ और शायद तुम भी मुझसे प्यार करते हो.......
प्लीज इस खत का जवाब जरूर देना.........
मैं तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूँगी.....
अगले दिन सुरुचि एक बार फ़िर ख़त को नोटबुक के अंदर रख कर हरीश को देती है। सुरुचि को नोटबुक देते हुए आशुतोष देख लेता है , मानो जैसे कि वह गुस्से से पागल हो जाता है, वह समझ जाता है कि जरूर ही उस नोटबुक में कोई लेटर है क्योंकि हरीश की सारी नोटबुक तो अब कंप्लीट हो गई है तो फ़िर नोटबुक देने का क्या मतलब। इसलिए वो किसी भी तरीके से उस लेटर को गायब करने के बारे में सोचने लगता है।
आखिरकार आशुतोष अपने मंसूबों में कामयाब हो ही जाता है। लंच के टाइम जब सारे बच्चे क्लास से बाहर चले जाते हैं तब आशुतोष अपने दोस्तों के साथ मिलकर हरीश के बेंच से सुरुचि की नोटबुक में से वह लेटर निकाल लेता है और उसको पढ़ने लगता है। लेटर पढ़ कर आशुतोष गुस्से से आग- बबूला हो जाता है और वो लेटर अपने साथ ही लेकर चला जाता है। आशुतोष किसी भी किमत पर हरीश से बदला लेना चाहता था इसलिए वो उस लेटर को लेकर सीधा क्लास टीचर के पास चला गया और उस लेटर को क्लास टीचर के हाथों में दे दिया। हरीश और सुरुचि को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं चलता। लंच के बाद सभी क्लास में आकर बैठ जाते हैं, आशुतोष भी क्लास में आकर बैठ जाता है जैसे मानो की उसने कुछ किया ही नहीं है। थोड़े देर बाद क्लास टीचर ने सुरुचि को अपने रूम में बुलाया, थोड़े देर बाद हरीश को भी बुलाया गया, हरीश आराम से क्लास टीचर की रूम की तरफ चल गया उसको इस बात का आभास भी नहीं था कि क्लास टीचर के रूम में क्या होने वाला है। क्लास टीचर रूम में सिर्फ और सिर्फ सुरुचि और उसकी क्लास टीचर बैठे हुए थे और अब वहाँ हरीश भी था।
क्लास टीचर हरीश और सुरुचि के सामने वो लेटर रख देती हैं और उन दोनों से पूछती हैं कि ये क्या है? सुरुचि लेटर देखकर समझ जाती है, उसको लगता है कि शायद हरीश ने ये लेटर हमारे क्लास टीचर को दे दिया है इसलिए वो थोड़ा डर जाती है, वहीं दूसरी ओर हरीश कुछ समझ नहीं पाता इसलिए वो उस लेटर को उठा कर पढ़ने लगता है, उस लेटर को पढ़ते वक़्त हरीश के आँखों से आँसू आ जाते हैं। तभी अचानक प्रिंसिपल ऑफिस से उसके क्लास टीचर को बुलावा आ जाता, उसकी क्लास टीचर उन दोनों को उनके वापस आने तक वहीं रुकने के लिए कहकर चली जाती है। क्लास टीचर के जाते ही हरीश सुरुचि को गले लगा लेता है.........
और कहता है कि पागल इस बात को बताने में आपने इतना देर क्यूँ कर दिया.....
ये सुनकर सुरुचि के आँखों से भी आँसू आ जाते हैं और दोनों एक दूसरे के गले लगकर रोने लगते हैं।
गले लगे हुए ही हरीश कहता है कि आखिर ये लेटर हमारे क्लास टीचर के पास कैसे पहुँचा? सुरुचि कहती है कि मैंने तो इसको अपने नोटबुक में रखकर आपको दिया था मुझे लगा कि शायद आपने इसको क्लास टीचर को दिया था पर आपने नहीं तो फ़िर किसने दिया? ये सुनकर हरीश उस लेटर को दुबारा पढ़ता है, उस लेटर में कहीं भी हरीश और सुरुचि का नाम नहीं होता, हरीश लेटर पढ़कर हँसने लगता है ,वह सुरुचि से कहता है कि अब आप कुछ भी नहीं बोलेंगी, अब इसके आगे मुझे संभालने दीजिये। इतने में उन दोनों की क्लास टीचर रूम में आ जाती हैं। वो फ़िर से पूछती हैं कि तो यह क्या है?
हरीश हँसते हुए कहता है कि मैम दरअसल मैं एक नाटक लिख रहा था ,बस ये उसी की स्क्रिप्ट का एक पेज है पर ये आपको कहाँ से मिला?
यह सुनकर उनकी क्लास टीचर गुस्से में उन दोनों की तरफ़ देखते हुए कहती है कि क्या मैं तुम दोनों को पागल नज़र आ रही हूँ? अगर ऐसा है तो ये सुरुचि की नोटबुक में क्या कर रहा था? सच- सच बताओ वरना मैं तुम दोनों को प्रिंसिपल सर के पास लेकर जाऊँगी। यह सुनकर सुरुचि कहती है कि नहीं मैम, दरअसल यह लेटर मैंने लिखा है। तभी हरीश कहता है कि नहीं मैम, सुरुचि झूठ बोल रही है इसको मैंने लिखा है, अगर आपको यकीन नहीं है तो मैं दुबारा लिख कर दिखा देता। क्लास टीचर कहती है कि अच्छा, पर ये तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी लड़की ने लड़के के लिखा है। हरीश कहता है कि मैम अगर आपको यकीन ना हो तो मैं दुबारा लिख कर दिखा देता। सुरुचि कहती है कि नहीं मैम हरीश झूठ बोल रहा है, इसको मैंने लिखा है, हरीश कहता है कि अगर आपको यकीन ना हो तो मैं दुबारा लिख कर दिखा देता। क्लास टीचर उन दोनों को नोटबुक लेने के लिए भेज देती हैं, हरीश सुरुचि से कहता है कि आप मैम के रूम में थोड़ा देर से जाना, इतना कहकर वो दौड़ कर पास वाले क्लास में जाकर एक नोटबुक लेकर उस पर उस लेटर को दुबारा कॉपी कर देता है वो भी इस तरह से लिखता है जैसे कि वो लेटर किसी लड़के ने किसी लड़की के लिए लिखा हो। और उसको फाड़ कर अपने जेब में रख लेता है, इतने में सुरुचि भी आ जाती है और वो दोनों क्लास टीचर के रूम की तरफ जाने लगते हैं, सुरुचि कहती है कि हरीश आप झूठ क्यूँ बोल रहे हो? ये बात आप भी जानते हो कि वो लेटर मैंने लिखा है। हरीश कहता है कि झूठ मैं नहीं झूठ आप बोल रहीं हैं, वो लेटर मैंने लिखा है, आप खुद देख लेना। दोनों बात करते हुए क्लास टीचर के रूम में पहुँच जाते हैं, हरीश सबसे पहले उस लेटर को उठा कर लिखने बैठे जाता है, हरीश लिखने के लिए टेबल के नीचे बैठ जाता है और मौका मिलते ही अपनी जेब वाले लेटर से असली लेटर को बदल देता है। हरीश थोड़े टाइम बाद एकदम एक -एक अक्षर अपने वाले लेटर के जैसे ही लिख कर टेबल पर रख देता है, सुरुचि भी लेटर लिखने के लिए बैठ जाती है वो लेटर को देख कर हैरान हो जाती है और हरीश की तरफ देखने लगती है, हरीश सुरुचि को देखकर कहता है कि लिखो -लिखो अभी सच्चाई सबके सामने आ जाएगी कि उस लेटर को किसने लिखा है। सुरुचि भी उस लेटर को लिख कर टेबल पर रख देती है । उनकी क्लास टीचर उन दोनों के लिखे हुए लेटर को पुराने लेटर जिसको हरीश ने बदल दिया था उसके साथ मिलाने लगती है। क्लास टीचर ये समझ जाती है कि जरूर लेटर को बदला गया है क्योंकि पहले उस लेटर को किसी लड़की के लिए लिखा गया था मगर अब इस लेटर को देखकर ऐसा लगता है कि यह किसी लड़की के लिए लिखा गया है। वह उन दोनों से पूछती है कि यह बताओ कि इस लेटर को किसने बदला? हरीश कहता है कि मैम आप यह क्या बोल रहे हो, हम दोनों ने आपके सामने ही इस लेटर को लिखा तो फिर हम लेटर को कैसे बदल सकते हैं। मैम आप यह सब छोड़िये और ये बताइये कि यह लेटर किसने लिखा है? क्लास टीचर कहती है कि पहले तुम दोनों अपने जेब चेक कराओ, हरीश समझ जाता है कि अब वो नहीं बच सकता इसलिए वो वह काम करता है जिसमें वो माहिर था यानी कि पेज खाना......
जब क्लास टीचर सुरुचि की जेब चेक कर रही होती हैं उसी वक़्त हरीश उस लेटर को अपने जेब से निकाल कर खा जाता है, पेज खाते हुए सुरुचि हरीश को देख लेती है। क्लास टीचर को उन दोनों कि जेब से कुछ नहीं मिलता।
क्लास टीचर उन दोनों को लेकर प्रिंसिपल ऑफिस में जाती हैं, जहाँ पर हरीश सारी गलती अपने उपर ले लेता है, वहाँ भी सुरुचि यही कहती है कि सर हरीश झूठ बोल रहा है इस लेटर को मैंने लिखा है, पर हरीश उन लेटर को मिलाने के लिए कहता है जो उनके पास मौजूद था और वो लेटर इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि यह लेटर हरीश ने ही लिखा था। इस तरह से हरीश को स्कूल से 2 महीनों के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है, हरीश यह सुनकर हँसने लगता है और सर को "थैंक यू " बोल कर ऑफिस से बाहर आ जाता है। वो दोनों क्लास की तरफ जाने लगते हैं, जाते वक़्त जहाँ एक तरफ सुरुचि के आँखों में आँसू होते हैं तो वहीं दूसरी तरफ हरीश के चेहरे पर हँसी होती है.......
वो दोनों चलते -चलते हाॅल में पहुँच जाते हैं, अचानक हाॅल में सुरुचि, हरीश का हाथ पकड़ लेती है, हरीश उससे पूछता है कि क्या हुआ? सुरुचि रोने लगती है और हरीश के गले लग जाती है..........
हरीश सुरुचि से पूछता है कि क्या हुआ? सुरुचि कहती है कि आख़िर आपने ऐसा क्यों किया? हरीश कहता है कि अरे पागल! सिर्फ मैं तुमसे प्यार करता हूँ,कहने से प्यार नहीं होता, प्यार में एक दूसरे का ध्यान और सम्मान करना पड़ता है,अपना बाद में और अपने प्रेमी के बारे में पहले सोचना पड़ता है,प्यार वो नहीं है जो सिर्फ जिस्म की माँग करे बल्कि प्यार तो त्याग का दूसरा नाम है। प्यार वो नहीं है जो हमें बदल दे बल्कि प्यार तो वो है जो हमारी सोच को ही बदल दे ,rरही बात इन दो महीनों कि तो हमारी ये दूरी हमारे प्यार को और गहरी करेगी। मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ लिया है अब अगर तुम भी चाहो तो भी मैं तुम्हारा हाथ नहीं छोडूँगा....
इसके बाद हरीश हँसते हुए सुरुचि का हाथ पकड़ कर क्लास में चला जाता है.....
और इस तरह हरीश अपना मान- सम्मान खो कर ,अपना सब कुछ खो कर भी अपने प्यार को पा लेता है......
हरीश हँसते हुए क्लास में जाता है, यह देखकर सभी बच्चे दंग रह जाते हैं । हरीश और सुरुचि अपने -अपने
बेंच पर जाकर बैठ जाते हैं, हरीश के चेहरे पर हँसी थी मगर सुरुचि के चेहरे पर उदासी। क्लास में सभी बच्चे हरीश और सुरुचि को देख रहे थे, और हरीश अपना बैग पैक कर रहा था क्योंकि उसे अगले दो घंटे के अन्दर स्कूल से जाना था, क्लास में सभी हरीश को गुस्से से देख रहे थे क्योंकि उनको लग रहा था कि हरीश को कोई भी सज़ा नहीं मिली है, सारी की सारी गलती सुरुचि पर डालकर हरीश बच गया है........
आशुतोष गुस्से में हरीश को मारने के लिए जाता है और हरीश का कॉलर पकड़ लेता है मगर फ़िर भी हरीश कुछ नहीं कहता और वह वैसे ही मुस्कुराते रहता है, आशुतोष हरीश को थप्पड़ मारने लगता है मगर फ़िर भी हरीश कुछ नहीं कहता । (आशुतोष को अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था क्योंकि वो चाहता था कि इन सब के हरीश कि बदनामी होगी और उसको स्कूल से निकाल देंगे, लेकिन हरीश की अच्छाइयों के वजह से टीचर उसका पक्ष लेते हैं परंतु फ़िर भी उसको दो महीनों के लिए स्कूल से बाहर कर दिया जाता है ।) क्लास के बाकी बच्चे भी हरीश को बुरा -भला कहने लगते हैं मगर हरीश अभी भी मुस्कुरा रहा होता है........
यह सब देखकर सुरुचि ख़ुद को रोक नहीं पाती और चिल्लाकर कहती है कि 'यार बंद करो यह सब' छोड़ दो हरीश को भगवान के लिए छोड़ दो........
क्लास के सारे बच्चे शांत हो जाते हैं । तभी सुरुचि की दोस्त हरीश से कहती है कि देखा हरीश इतना सब कुछ होने के बाद भी अभी भी यह तुम्हारी ही पक्ष ले रही है और एक तुम हो कि......
हमें तो लगता था कि तुम अच्छे लड़के हो मगर तुमने अपनी औकात दिखा ही दी......
हरीश यह सब सुनकर भी मुस्कुरा रहा होता है जिसको देखकर आशुतोष गुस्से से हरीश की तरफ बढ़ता है और हरीश को एक थप्पड़ मारते हुए कहता है कि हमें तो पहले ही पता था कि ये कैसा लड़का है, देखो कितना बेशर्म है अभी भी हँस रहा है......
तभी अचानक बाहर से एक लड़का आकर कहता है कि हरीश भैया आपके घर से आपको लेने के लिए कोई आया है, हरीश यह सब सुनकर अपना बैग उठा कर हँसते हुए बाहर चला जाता है.......
यह देखकर क्लास के सारे बच्चे हैरान हो जाते हैं.......
तब सुरुचि कहती है कि देखा ये है मेरा हरीश जो मुझे बचाने के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा कर दो महीने के लिए घर चला गया, मगर फ़िर भी तुमने उसे इतना कुछ कहा, यहाँ तक कि उसको मारा भी मगर उसने उफ्फ़ तक ना कहा क्योंकि वो मुझसे प्यार करता है और तुम लोग क्या जानो कि प्यार क्या होता है......
क्लास के सभी बच्चे शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लेते हैं मगर आशुतोष मन ही मन बहुत खुश हो रहा होता है, क्योंकि वो अपने मकसद में कामयाब जो हो गया था ।
तभी एक लड़की कहती है कि यार ! अगर वो ख़त हरीश ने मैम को नहीं दिया था तो किसने दिया था?
यह सुनकर सुरुचि कहती है कि यह बात तुम सब आशुतोष से ही पूछ लो! आशुतोष यह सब सुनकर घबरा जाता है और क्लास से बाहर चला जाता है । आशुतोष की सच्चाई पूरे क्लास के सामने आ चुकी थी और सभी को यह पता चल गया था कि यह सब किसने किया है इसलिए क्लास में सभी बच्चे आशुतोष से कोई भी संबंध न बनाने कि और उसको सबसे अलग रखने की बात करते हैं मगर सुरुचि कहती है कि नहीं, हरीश को यह अच्छा नहीं लगेगा......
तभी अचानक हरीश क्लास में आ जाता है, क्योंकि उसे सस्पेंड लेटर पर सुरुचि के हस्ताक्षर कराने होते हैं क्योंकि उस पर कारण यह लिखा गया होता है कि सुरुचि के साथ बतमीज़ी तथा सुरुचि कि मानहानि करने कि कोशिश के कारण पकड़े जाने पर हरीश को दो महीनों के लिए स्कूल से निकाला जाता है ।
हरीश क्लास में आकर कहता है कि सुरुचि इस पर अपने हस्ताक्षर कर दो, क्लास के सारे बच्चे हरीश को घूर रहे होते हैं मगर अभी भी हरीश के चेहरे पर वही मुस्कुराहट होती है, यह देखकर हरीश के दोस्त केहते हैं कि हरीश तू इतना सब कुछ होने के बाद भी हँस रहा है कैसे कर लेता है यार तू? हरीश हँसते हुए कहता है कि ओ... तो आखिर सुरुचि ने तुम्हें सब कुछ बता ही दिया। ये लड़कियाँ भी न कोई भी बात ज्यादा देर तक अपने पेट में पचा ही नहीं सकती.......
चलो मैं भी चलता हूँ, हो सके तो दुवाओं में याद रखना...
अभी हरीश बोल ही रहा होता है कि सुरुचि दौड़ कर आकर के उसके गले लग जाती है, यह देखकर सभी हँसने लगते हैं.... हरीश थोड़े देर बाद कहता है कि सभी देख रहे हैं सुरुचि, सुरुचि कहती है, देखने दो फ़िर....
हरीश कहता है कि कोई टीचर आ जाएगा, सुरुचि कहती आ जाने दो, अच्छा ही होगा, मैं भी चली जाऊँगी घर और वैसे भी तुम्हारे बिना दो महीने नहीं रह सकती... हरीश कहता है कि अगर आशुतोष आ गया तो? सुरुचि कहती है कि आने दो डरता कौन है उस से........
तभी हरीश का दोस्त कहता है कि अब बस भी करो दोनों, कोई आ जाएगा । सुरुचि छोड़ देती है....
हरीश सभी से विदा लेकर जाने लगता है, यह देखकर उसके पूरे क्लास के बच्चे उसके साथ उसे छोड़ने जाने लगते हैं....
तभी बाहर आशुतोष मिल जाता है, हरीश उसको देखकर हँसने लगता है और उस से कहता है कि मैंने तो तुझे अपना भाई माना था यार फ़िर तूने ऐसा क्यूँ किया?
आशुतोष कुछ नहीं कहता..... हरीश उसको गले से लगा लेता है और कहता है कि चल जो हो गया वो हो गया अब मेरा एक काम करना, हो सके तो सुरुचि का ख्याल रखना.......
यह कहकर हरीश वहाँ से चला जाता है । उसके क्लास के सभी बच्चे उसको मेन गेट तक छोड़ने आते सिर्फ दो को छोड़ कर एक आशुतोष और दूसरा सुरुचि......
हरीश वहाँ से चला जाता है । उसके क्लास के सभी बच्चे क्लास में वापस आ जाते हैं, क्लास में पहले से ही सुरुचि और आशुतोष मौजूद होते हैं, सुरुचि के चेहरे पर उदासी साफ देखी जा सकती थी। सुरुचि को उदास देखकर उसके दोस्त उसे समझाते हुए कहते हैं कि बस दो महीनों की तो बात है, दो महीने बाद वो वापस आ जाएगा, इसलिए उदास मत हो यार!
वहीं दूसरी तरफ़ हरीश के जिगरी दोस्त हरीश के जाने से काफी उदास हो जाते हैं, और आशुतोष के लिए उनके अन्दर नफ़रत पैदा होने लगती है......
तभी एक बच्चा क्लास के अन्दर आता है, उस लड़के के हाथ में दो लिफाफे था, वो सुरुचि के पास जाकर एक लिफाफा दे देता है, तथा दूसरा लिफाफा वो हरीश के दोस्त दीपक को दे कर वहाँ से चला जाता है । दीपक उस लिफाफ़े को खोलता है तो उसमें एक लेटर और एक चॉकलेट मिलता है, दीपक उस लेटर को खोल कर पढ़ने लगता है, उस लेटर के अंदर हरीश ने लिखा था कि, भाई मैं तो जा रहा हूँ, इसलिए सुरुचि का ध्यान रखना और हाँ, आशुतोष से पहले के जैसे ही रहना, ऐसा सोचना कि कुछ हुआ ही नहीं, चल ठीक है फ़िर चॉकलेट भेज रहा हूँ, खा लियो ऐसा ना करियो कि बच्चा कर अपनी बंदी को दे दियो😝😝..... अपना ख्याल रखना भाई.....
वहीं दूसरी तरफ़ जो लिफाफा सुरुचि के पास होता है उसके अन्दर एक डायरी, एक खत और एक चॉकलेट होता है.... सुरुचि उस खत को पढ़ने लगती है, हरीश ने उस खत में लिखा था कि :-
हाय सुरुचि...
पता है मुझे आप अभी भी उदास ही बैठे होगे, यार भूल जाओ सब कुछ बस दो महीनों की तो बात है, यूँ ही बीत जाएंगे और हाँ आपके लिए डायरी भेज रहा हूँ, मेरे गैरहाज़री इसमें अपने दिल कि वो बातें लिखना जो आप मुझसे कहना चाहते होगे । और हाँ आपके लिए चॉकलेट भेज रहा हूँ, इसको खाओ और अपने मूड को इसके जैसा मीठा-मीठा बना लो... क्योंकि आप उदास अच्छे नहीं लगते..... अपना ख्याल रखना, जल्दी मिलेंगे .............
इस तरह एक तरफ़ सुरुचि हर दिन अपने दिल में आने वाले बातों को डायरी में लिखती और वहीं दूसरी तरफ़ हरीश डायरी लिख रहा था, एक बार फ़िर दो प्यार करने वाले दो महीनों के लिए जुदा हो गए थे...........
देखते ही देखते दो महीने बीतने में सिर्फ एक दिन बचा था, सुरुचि ने ये दो महीने कैसे काटे थे ये वही जानती थी। अगले दिन हरीश आने वाला था, हरीश के दोस्त बहुत ही ज्यादा खुश थे और हरीश के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे । सभी यह सोच कर खुश थे कि कल हरीश आने वाला है पर शायद नियती को कुछ और ही मंजूर था, शायद नियती हरीश और सुरुचि को दुबारा मिलने ही नहीं देना चाहती थी । हरीश अगले दिन आया तो जरूर लेकिन अपना स्कूल त्याग प्रमाण पत्र लेने....
हरीश काफी सुबह ही स्कूल आ गया था, सभी को यह लग रहा था कि हरीश इसलिए जल्दी आया है क्योंकि वो आज क्लास में आना चाहता हो, मगर असलियत कुछ और थी, हरीश काफी सुबह यानि कि जब सभी बच्चे व्यायाम कर रहे थे तभी स्कूल पहुँच गया था, वो सीधा हॉस्टल के अंदर चला जाता है और जल्दी-जल्दी अपना सारा सामान पैक करके सभी के आने से पहले बिना किसी को बताए हॉस्टल को छोड़ कर या फ़िर ये कहें कि स्कूल को छोड़ कर हमेशा-हमेशा के लिए चला जाता है..... सुबह का व्यायाम करके सभी बच्चे हॉस्टल जाने लगते हैं, हरीश के दोस्त काफी खुश थे क्योंकि उनका दोस्त हरीश वापस आ गया था मगर वो इस बात से अंजान थे कि हरीश हमेशा के लिए स्कूल से जा चुका है ।
हरीश के दोस्त जब हॉस्टल में पहुँचते हैं तो वो दंग रह जाते हैं, हरीश के बेड पर एक बैग के सिवाय कुछ नहीं होता, हरीश के दोस्त कुछ समझ नहीं पाते, तभी हरीश का दोस्त दीपक रोते हुए वहाँ आता है, सभी उस से पूछते हैं कि क्या हुआ रो क्यूँ रहा रहा है? दीपक उन्हें एक लेटर देता है, जो हरीश ने उनके लिए लिखा था, और उसको दीपक के बेड पर रख कर चला गया था। सभी उस लेटर को पढ़ने लगते हैं, उसमें लिखा था कि:-
हाय दोस्तों......
जब तक तुम्हें ये लेटर मिलेगा तब तक मैं जा चुका होऊँगा, माफ करना तुम्हें बिना बताए जा रहा हूँ लेकिन अगर तुम्हें बता देता तो शायद तुम्हें छोड़ कर जा नहीं पाता। यार यहाँ से जब मैं घर पर गया तो बहुत बड़ी प्रॉब्लम हो गई, मेरे घर वाले थोड़े पुराने ख्यालों के है इसलिए उन लोगों ने इस बात पर कुछ ज्यादा ही टेंशन में आ गए और मुझे स्कूल से निकालने कि बात करने लगे मैंने सोचा कि अभी दो महीने हैं, कुछ समय बाद ये इस बात को भूल जाएंगे पर ऐसा हुआ नहीं कल जब स्कूल से कॉल आया तो मेरे पापा ने साफ़ मना कर दिया और मेरा नाम काटने के लिए कह दिया, मुझे पता था कि अगर ये बात मैंने तुम्हें ख़ुद बताई तो मैं यहाँ से जा नहीं पाऊँगा, इसलिए लेटर लिखा, तुम सभी के लिए खाने का कुछ सामान लाया हूँ, प्लिज़ हो सके तो माफ कर देना यारों......
सुरुचि तो मुझे भूल गई होगी न, चलो अच्छा ही है मेरे जाने के बाद आशुतोष का राश्ता साफ हो गया अब उसके और सुरुचि के बीच कोई भी नहीं आएगा, आशुतोष को कहना कि सुरुचि से अपने प्यार का इज़हार कर दे वरना फ़िर से कोई और ना ले जाए उसे.....
अपना ख़्याल रखना यारों, मेरी चिंता तुम मत करना तुम्हें तो मैं कभी भूल नहीं सकता और रही बात सुरुचि कि तो उसको मैं लगभग भूल चूका हूँ और जल्दी ही पूरी तरीके से भूल जाऊँगा.....
अच्छा चलता हूँ, अगर किस्मत ने चाहा तो जिंदगी के किसी मोड़ पर फ़िर से मुलाकात होगी।
हरीश के दोस्त लेटर को पढ़ कर उदास हो जाते हैं, दीपक के आँखों में आँसू थे मगर फ़िर भी वह कहता है कि हे ! क्या हो गया तुम सब को, वो चला गया तो जाने दो, मज़े करो यार तुम लोग और वैसे भी हमें इस से क्या जिसको जाना है जाए, मैं तो जा रहा स्कूल जाने के लिए तैयार होने, सभी जानते थे कि हरीश के जाने का दुख सबसे ज्यादा दीपक को ही है मगर वो हमसे छूपा रहा है, इसलिए सभी वहाँ से चले जाते हैं, दीपक उस बैग को खोलता है जो हरीश उनके लिए छोड़ कर गया था, उस बैग में खाने के सामान के साथ एक लिफाफा था जिसके उपर एक पेपर का टुकडा चिपका हुआ था जिस पर लिखा था कि अगर सुरुचि मेरे बारे में पूछे तो उसको ये दे देना और ना पूछे तो दीपक को इसको अपने पास संभाल कर रखने के लिए दे देना और दीपक को कहना कि मेरे क्लास के लॉकर कि चाभी लेकर मेरे लॉकर को खोल कर मेरी डायरी निकाल कर अपने पास रख ले और सही समय देखकर जला दे क्योंकि अगर जब तक वो डायरी मेरे पास रहेगी तब तक शायद मैं सुरुचि को ना भूल पाऊँ..........
दीपक उसको पढ़ने के बाद जल्दी -जल्दी तैयार होकर क्लास जाता है, और सबसे पहले हरीश का लॉकर खोल कर वहाँ से उसकी डायरी निकाल लेता है क्योंकि उसको पता था कि अगर एक बार क्लास में क्लास टीचर आ गई तो उसे लॉकर की चाभी उनको वापस करनी पड़ेगी जिस से वो डायरी किसी के भी हाथ लग सकती थी, दीपक उस डायरी को अपने बैग में रख लेता है । दीपक उसके बाद वापस हॉस्टल चला जाता है ताकि किसी को कुछ पता ना चले, हरीश जो खाने का सामान उनके लिए लाया था उसको दीपक सभी को खाने के लिए दे देता है सिवाय एक चॉकलेट को छोड़ कर, दीपक उस चॉकलेट को सबसे छुप के अपने जेब में रख लेता है। थोड़े समय बाद सभी क्लास जाने लगते हैं, दीपक भी क्लास में चला जाता है, क्लास में सुरुचि पहले से ही मौजूद रहती है, दीपक चुप -चाप जाकर क्लास में बैठ जाता है। सुरुचि कई बार दीपक से बात करने की कोशिश करती है मगर दीपक उसको नज़रअंदाज़ करता रहता है। कुछ समय बाद सभी प्रार्थना के लिए जाने लगते हैं पर सुरुचि नहीं जाती वो क्लास में ही बैठी रहती है उसके दोस्त उस से जाने के लिए कहती हैं तो वो यह कह कर मना कर देती है कि हरीश आता ही होगा, उस से मिलने के लिए इस से अच्छा समय नहीं मिलेगा इसलिए तुम सब जाओ मैं हरीश का इंतज़ार करूँगी......
थोड़े समय बाद प्रार्थना खत्म होने पर सभी क्लास में आ जाते और अभी भी सुरुचि हरीश के आने का इंतज़ार करती रहती है। लंच का समय हो जाता है मगर हरीश नहीं आता, लंच में जब सभी बच्चे क्लास से बाहर जाने लगते हैं तो सुरुचि दीपक को रुकने के लिए कहती है मगर दीपक उसको नज़रअंदाज़ करके चला जाता है, थोड़े समय बाद दीपक क्लास में यह सोच कर आता है कि अभी क्लास में कोई नहीं होगा मगर सुरुचि वहीं पर खड़ी होती है और उसका हाथ पकड़ लेती है, दीपक कहता है कि सुरुचि छोड़ो वरना कोई आ जाएगा तो गलत समझेगा, सुरुचि उसका हाथ छोड़ देती है और उस से कहती है कि तुम्हें हुआ क्या है? सुबह से ही देख रहीं हूँ, उदास लग रहे हो और मुझे नज़रअंदाज़ क्यों कर रहे थे? दीपक कहता है कि मुझे क्या होगा मैं तो ठीक हूँ और मैंने तुम्हें नज़रअंदाज़ कब किया! सुरुचि कहती है कि अच्छा ये सब छोड़ो और ये बताओ कि हरीश कब तक आएगा? दीपक कहता है कि मुझे क्या पता, तुम मुझसे क्यूँ पूछ रही हो, मुझे क्या करना है उस से, मैं नहीं जानता कुछ भी। सुरुचि थोड़ा हैरान हो जाती है कि दीपक ऐसा बोल रहा है जो रोज़ सुरुचि से पूछता था कि यार ये दो महीने क्यूँ नहीं बीत रहे.......
सुरुचि समझ जाती है कि जरूर कुछ बात है, इसलिए वो दीपक से कहती है कि बात क्या है दीपक? दीपक कहता है कि कुछ भी तो नहीं, सुरुचि कहती है कि हरीश की कसम खा कर बताओ बात क्या है, यह सुनकर दीपक के आँखों से आँसू आ जाते हैं, वो अपने जेब से लेटर और वो चॉकलेट निकाल कर सुरुचि को पकडा देता है, सुरुचि लेटर देखकर समझ जाती है कि लेटर किसने दिया है,वो लेटर खोल कर पढ़ने लगती है.... उस लेटर में लिखा था कि:-
हाय सुरुचि.......
तो आखिर तुम मुझे अभी तक भूली नहीं, पर मैं तुम्हें भूल रहा हूँ और बहुत ही जल्दी पूरी तरह से भूल जाऊँगा। चलो अब तो मैं यहाँ से हमेशा के लिए जा रहा हूँ इसलिए तुम्हें सच्चाई बता देता, दरअसल बात ये है कि मैं तुमसे कभी प्यार करता था ही नहीं, वो तो बस टाइम पास था, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती थी इसलिए मैं तुम्हारे तरफ़ आकर्षित हो गया था लेकिन मुझे तुमसे नहीं बल्कि तुम्हारे जिस्म से प्यार था, मगर अब ये बात सब को पता चल गई है कि तुम्हारे और मेरे बीच कुछ है तो अब मैं किसी और लड़की के साथ मस्ती भी नहीं कर सकता और स्कूल में मेरी काफी ज्यादा बेज़्ज़ती भी हो चुकी है इसलिए मैं स्कूल छोड़ कर हमेशा के लिए जा रहा हूँ..... और हाँ आशुतोष तुमसे बहुत प्यार करता है, तो अगर तुम चाहो तो उसके साथ दुबारा प्यार की शुरुआत कर सकती हो बाकी तुम्हारी मर्ज़ी..........
चलता हूँ, हो सके तो दुवाओं में याद रखना!
सुरुचि उस लेटर को पढ़ कर मानो कि पागल सी हो जाती है और रोने लगती है। दीपक उस लेटर को फाड़ कर फेंक देता है और वहाँ से जाने लगता है, सुरुचि उस से पूछती है कि क्या हरीश स्कूल आया था? दीपक कहता है कि हाँ। सुरुचि पूछती है कि तुम मिले उससे?
दीपक कहता है कि वो काफी सुबह आया था और बिना किसी से मिले ही चला गया। सुरुचि वहाँ से चली जाती है। थोड़े समय बाद जब लंच टाइम खत्म हो जाने के बाद सभी बच्चे क्लास में आने लगते हैं मगर सुरुचि और उसकी दोस्त दीपिका नहीं आते। दीपक के पूछने पर पता चलता है कि सुरुचि का हाथ कट गया है इसलिए उसको पट्टी के लिए नर्स मैम के पास ले गए हैं, दीपक समझ जाता है कि सुरुचि का हाथ कटा नहीं बल्कि काटा गया है, इसलिए वो दौड़ते हुए नर्स मैम के रूम की तरफ़ भागता है। वहाँ जाकर उसको दीपिका से पता चलता है कि उसने हॉस्टल में जाकर अपनी हाथ काट ली। दीपक काफी नाराज़ हो जाता है और सुरुचि से कहता है कि ये क्या पागल -पंती है, ये क्या करने जा रही थी तुम, तुम उस लड़के के लिए अपने आप को तकलीफ़ दे रही हो जो तुमसे प्यार ही नहीं करता था।सुरुचि कहती है कि तुम और तुम्हारा दोस्त मुझे पागल समझते हो है न? अरे पागल ये बात तुम भी जानते हो कि वो मुझसे कितना प्यार करता था। दीपक कहता है कि तुमने वो लेटर पढ़ा न, उसमें साफ- साफ़ लिखा है कि वो तुमसे प्यार नहीं करता था फ़िर तुम क्यों नहीं समझ पा रही हो। सुरुचि कहती है कि तुम लड़कों को झूठ बोलना तो आता है मगर उसको छुपाना नहीं आता, अरे उसके कलम ने तो उस काग़ज़ पर झूठ के तो चार अक्षर लिख दिए मगर उसके आँखों ने दिल का सारा हाल बयाँ कर दिया यार...
दीपक कहता है कि मैं कुछ समझा नहीं, सुरुचि कहती है कि तुमने सिर्फ उस लेटर को पढ़ा मगर उस लेटर पर गिरे हुए आँसुओं के कारण कहीं कहीं फैले हुए स्याही को नहीं देखा, जो ये चिल्ला -चिल्लाकर बता रही थी कि हरीश मुझसे बहुत प्यार करता है.....
दीपक बिना कुछ बोले वहाँ से चला जाता है और थोड़े समय बाद वापस आता है, दीपक के हाथों में वही डायरी थी जिसे हरीश ने जलाने के लिए कहा था, दीपक कहता है कि मेरे पास हरीश की आख़िरी निशानी है मैंने इसे अभी तक खोला भी नहीं है क्योंकि हरीश ने इसको जलाने के लिए कहा था, मगर मैंने उसकी दी आखिरी चीज़ समझ कर उसके यादों के लिए इसको छुपा कर रखने के लिए सोचा था मगर मुझसे ज्यादा इस पर तुम्हारा हक बनता है इसलिए यह लो अब इसको तुम रख लो ........
सुरुचि वो डायरी लेकर रोने लगती है, दीपक वहाँ से चला जाता है। सुरुचि को नर्स कुछ दिनों के लिए आराम करने की सलाह देती है, इसलिए सुरुचि अपने घर चली जाती है। घर पर सुरुचि हरीश के सोशल मीडिया एकाउंट्स का पता लगाती है उसको दीपक के एकाउंट्स से हरीश का सोशल मीडिया एकाउंट मिल जाता है, वो उस पर मैसेज करती है मगर शाम तक उसका कोई रिप्लाई नहीं आता। सुरुचि हरीश के घर जाने के बारे में सोचती है, हरीश ने उसे एक बार अपने किराए के रूम के बारे में बताया था, मगर काफी रात हो जाने के कारण ये संभव नहीं था, आज की रात सुरुचि के लिए काफी भारी था, सुरुचि पूरे रात नहीं सो पाती, अगले दिन सुरुचि काफी सुबह ही हरीश के घर के लिए निकल जाती है। काफी खोज -बिन करने पर आख़िर उसे हरीश के रूम का पता चल ही जाता है, वहाँ जाने पर उसको पता चलता है कि हरीश अपने गाँव जो कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में है वहाँ पर चला गया है, अब वो वहीं पर रहेगा यहाँ कभी दुबारा वापस नहीं आएगा। सुरुचि यह सुनकर अपने आप को रोक नहीं पाती और वहाँ से जाने लगती है, थोड़े दूर पर उसको हरीश का एक दोस्त विशाल मिलता है, सुरुचि को उसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता मगर हरीश ने विशाल को सुरुचि के बारे में बताया था और विशाल को सुरुचि का फोटो भी दिखाया था जिसके वजह से विशाल ने सुरुचि को पहचान लिया था, सुरुचि उससे हरीश का फोन नंबर मांगती है, विशाल उसको हरीश का नंबर दे देता है, उस नंबर पर फोन करने पर पता चलता है कि वो नंबर हरीश के पापा का है। विशाल, सुरुचि को बताता है कि हरीश हर रोज़ सुरुचि को याद करके रोया करता था और हर रोज डायरी लिखा करता था, सुरुचि को डायरी के बारे में याद आता है, इसलिए वो विशाल को अपना नंबर देकर हरीश के बारे में पता लगने पर उसे बताने के लिए कहकर वहाँ से चली जाती है। घर पहुँचकर वो वापस हॉस्टल जाने के लिए कहती है, उसके घर वाले उसे अगले दिन हॉस्टल ले जाने के लिए कहते हैं मगर सुरुचि आज ही हॉस्टल जाने के लिए कहती है। शाम को सुरुचि के घर वाले उसे हॉस्टल में छोड़ कर आ जाते हैं। सुरुचि ने उस डायरी को अपने क्लास रूम के लॉकर में रखा था इसलिए अब उसे वो डायरी अगले दिन ही मिल सकती थी। सुरुचि के लिए ये रात वर्षों के जैसे बीत रही थी , वो हरीश के पुराने खतों को बार -बार पढ़ रही, सुरुचि ने पूरी रात हरीश के भेजे हुए खतों को ही पढ़ते हुए बिता दिया। सुबह हो चुकी थी, सुरुचि काफी जल्दी ही तैयार होकर क्लास चली जाती है,मगर कहते हैं न कि जब मुसिबत आती है तो छप्पर फाड़ कर आती है बस कुछ इसी कदर सुरुचि और उस डायरी के बीच में परेशानियाँ आती जा रही थी। सुरुचि जब क्लास में पहुँचती है तो उसे पता चलता है कि उसको उसके लॉकर की चाभी उसके क्लास टीचर के पास है और वो अभी छुट्टी पर हैं और शायद वो शाम तक ही आएँगी।
सुरुचि के पास इंतज़ार करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था, इसलिए वो मैम का शाम तक इंतज़ार करती है, शाम को जैसे ही मैम आती हैं सुरुचि भाग कर उनके रूम पर जाती है और वहाँ से अपने लॉकर की चाभी लेकर क्लास रूम से उस डायरी को लेने के लिए जाती है और आखिरकार सुरुचि को वो डायरी मिल ही जाती है।
यह डायरी बहुत कुछ बयाँ करने वाली थी, आख़िर एक प्रेम करने वाला दो महीनों तक अपने दिनों को कैसे काटता है इसका जवाब मिलने वाला था। सुरुचि उस डायरी को लेकर हॉस्टल चली जाती है, हॉस्टल में सुरुचि की दोस्त खाना खाने जाने के लिए उसका इंतज़ार कर रही होती हैं मगर वो मना कर देती है, सभी के जाने के बाद वो उस डायरी को पढ़ने के लिए खोलने ही वाली होती है कि उसकी हाउस टीचर वहाँ आ जाती हैं और उसको खाना खाने जाना पड़ता है।
नमस्ते पाठकों.....
कैसे हैं आप लोग? तो दोस्तों अभी तक आपने इस कहानी का दूसरा भाग पढ़ा, उम्मीद है आपको कहानी में मज़ा आ रहा होगा, ज़ाहिर सी बात है मज़ा ही आ रहा होगा तभी आप लोग कहानी के इस भाग तक पहुँच चूँके हैं, तो दोस्तों अभी तक आपने जाना कि हरीश हमेशा के लिए अपने गाँव चला गया है और सुरुचि के हाथों में उसकी डायरी लग चुकी है, तो आख़िर क्या सच में हरीश. सुरुचि से प्यार नहीं करता था या फ़िर कुछ और था। आपने इस कहानी में एक और बात जाना कि इतना कुछ हो जाने पर भी हरीश के मन में आशुतोष के लिए कोई नफ़रत नहीं है क्योंकि हरीश था ही ऐसा उसके लिए उसके दोस्त काफी ज्यादा एहमियत रखते थे और दूसरा कि प्यार में किसी को पाना ही नहीं होता बल्कि प्यार में त्याग भी करना पड़ता है......
इसलिए अर्ज़ किया है कि:-
दर्द इस बात का नहीं वो हमें न मिल पाएंगी.....
बल्कि दुःख तो इस बात का है कि हम उन्हें भूल ना पाएंगे....
तो चलते हैं अगले भाग में जहाँ मैं नहीं बल्कि हरीश की डायरी बताएगी ये कहानी जिसका नाम है "हरीश एक प्रेम कथा".........
सुरुचि जल्दी से खाना खा कर वापस आ जाती है और वो उस डायरी को खोल कर पढ़ना शुरू करती है, इस प्रकार शुरू होता है एक और सफ़र जो कि दो महीने पहले बीत चुका था.......
यहाँ से ये कहानी मैं नहीं बल्कि हरीश की डायरी बयाँ करेगी...
पहला दिन.....
कहते हैं न कि किसी को अगर पूरी सिद्दत से चाहो तो पूरी की पूरी कायनात आपको उस से मिलवाने में लग जाती है मगर मेरी कहानी में इसका उल्टा ही है मैं तो सुरुचि से बहुत प्यार करता था तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ। आख़िर हम दोनों की गलती क्या थी, क्या मेरी गलती यह थी कि मैं सुरुचि से प्यार करता था, अरे मुझे क्या पता था कि आशुतोष सुरुचि से प्यार करता है मैंने तो आशुतोष को अपना दोस्त माना था मगर उसने तो मेरे पीठ में खंज़र घोंप दिया। वो एक बार मुझसे कहता तो सही, उसके लिए मैं अपना सब कुछ कुर्बान कर देता मगर वो एक बार कहता तो सही...
जिस दिन हमारे प्यार की शुरुआत हुई थी मैंने सोचा था कि अब अपने स्कूल लाइफ में मज़ा आने वाला है मगर मुझे क्या पता था कि ये सब हो जायेगा। मैं तो एक लड़का हूँ मैं तो इन सब से लड़ लूँगा मगर सुरुचि का क्या होगा वो कैसे लड़ पाएगी इन सब बातों से। मुझे दुख इस बात का नहीं कि मैं दो महीनों के लिए स्कूल से निकाला जा चूका हूँ बल्कि दर्द इस बात का है कि ये दो महीने मैं और सुरुचि एक दूसरे के बिना कैसे जी पाएंगे....
सुरुचि मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना, बहुत याद आ रही है यार तुम्हारी, बहुत याद आ रही है, मेरे पास तुम्हारे इस फोटो के सिवा और कुछ नहीं है मगर तुम्हारे पास तो मेरी फोटो भी नहीं है, पता नहीं तुम कैसी होगी, तुम मुझे याद करके ज्यादा परेशान मत होना......
दूसरा दिन...
यार तुम्हारी बहुत याद आ रही है, यहाँ पर रो भी नहीं सकता। अब तो हर वक़्त मुझ पर नज़र रखा जाता है, घर वाले बहुत नाराज़ हैं, कल मुझे स्कूल से निकालने की बात हो रही थी, लेकिन मुझे लगता है जैसे जैसे समय बीतेगा ये लोग इस बात को भूल जाएंगे।
तीसरा दिन....
ना जाने कब से मैं तुमसे अपने प्यार का इज़हार करना चाहता था मगर इतना हिम्मत जुटा न पाया और किस्मत देखो जब मुझे ये पता चला कि तुम मुझसे प्यार करती हो उस वक़्त किस्मत ने भी अपना खेल दिखाया और मैं तुमसे दूर हो गया। कभी- कभी सोचता हूँ कि क्या प्यार में सिर्फ तकलीफ ही होती है, कभी सोचा भी नहीं था कि तुमसे दूर रहना पड़ेगा, मैं तो जिस दिन छुट्टी होती थी उस दिन भी बेचैन हो जाता था मगर अब तो ये 60 दिन तुम्हारे बिना रहना पड़ेगा। ऐसा लग रहा है कि 1-1 दिन वर्षों के बराबर हो गए हैं......
चौथा दिन....
आज मैंने एक मूवी देखी. जिसमें एक लड़के ने सिर्फ इसलिए अपनी जान दे दी क्योंकि उसे वो लड़की नहीं मिली जिससे वो प्यार करता था, और वहीं दूसरे मूवी में एक व्यक्ति ने किसी को इसलिए मार दिया क्योंकि जिस लड़की से वो प्यार करता था उसकी शादी किसी और से होने जा रही थी, वहीं एक और मूवी में लड़की ने लड़के से पूछा कि अगर मैं तुम्हें नहीं मिली तो तुम क्या करोगे?लड़के ने तुरंत अपने आप को गोली मार दी, एक और मूवी में एक लड़का जिस लड़की से प्यार करता था उसकी शादी हो जाने के बाद भी वो लड़का उस लड़की से प्यार करना नहीं छोड़ता......
मैं इसमें ये तय नहीं कर पा रहा हूँ कि इनमें से कौन सा ऐसा प्रेमी है , जिसका प्यार सच्चा है?
फ़िर मैंने तुम्हारे तरीके से सोचा तो पाया कि किसी के लिए मरना तो बहुत आसान होता है मगर जिससे आप प्यार करते हो उसके लिए जीना बहुत बड़ी बात है।
पाँचवा दिन.....
रोज़ - रोज़ नए नए तरीके से बात लिखना मुझे अच्छा नहीं लग रहा और ना ही मैं एक पेज में अपने दिल कि बात लिख पा रहा इसलिए आज से मैंने ये तय किया है कि अब मैं इस डायरी में अपनी दिल कि बातों को लगातार लिखूँगा.....
सुरुचि तुम्हारे बग़ैर मेरे लिए एक एक दिन काटना कठिन हो गया है। जब तुम्हारी याद आती है न तो आशुतोष के बारे में सोच कर बहुत गुस्सा आता है आख़िर उसने ऐसा किया क्यों? इसके बारे में आज मैंने अपने एक दोस्त से बात कि तो उसने कहा कि उसने ऐसा इसलिए किया होगा क्योंकि शायद वो तुमसे प्यार करता होगा, जब मैंने ये सुना तो उसके प्रति मेरा गुस्सा, प्यार में बदल गया क्योंकि अगर ऐसा है तो उसने ऐसा शायद इसलिए किया क्योंकि वो तुम्हें खोना नहीं चाहता होगा....
मगर मेरे हिसाब से ये गलत था क्योंकि अगर आप किसी से प्यार करते हो तो इसका मतलब ये नहीं कि आप उसको पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाओ। हम जिससे प्यार करते हैं, उसकी ख़ुशी हमारे लिए सबसे ज्यादा एहमियत रखती है। और उसके ख़ुशी के लिए हम कुछ भी कर जाते हैं अगर वो मुझसे एक बार कहता न तो मैं तुमसे जरूर इसके बारे में बात करता और सच में अगर तुम्हारे मन में उसके लिए थोड़ा भी प्यार होता न तो मैं तुमसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाता....
क्योंकि मेरे लिए तुम्हारे ख़ुशी से ज्यादा और कुछ मायने नहीं रखता यार! और कुछ मायने नहीं रखता.....
पता नहीं तुम स्कूल में कैसी होगी? कहीं किसी ने तुम्हें कुछ कहा तो नहीं होगा न? तुम्हारी बहुत याद आ रही है यार! मन तुमसे मिलने को कह रहा है मगर डर लगता है कि अगर मैं तुमसे मिलने गया और किसी न देख लिया तो बहुत बड़ी दिक्कत हो जायेगी पता नहीं कौन तुम्हारे बारे में क्या कहने लगे? इसलिए मैं तुमसे मिलने नहीं आ पा रहा.....
आज मैं बहुत खुश हूँ जानते हो क्यूँ? क्योंकि आज मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मुझे सुरुचि को देखने का मन कर रहा है मगर मैं जा नहीं सकता क्योंकि अगर मैं गया और किसी ने देख लिया तो सुरुचि के लिए प्रॉब्लम हो जायेगी तो उसने कहा कि अगर बात सिर्फ देखने कि है तो कल चलते हैं, स्कूल के बाहर से खड़े होकर उसको देख लेना। यानि कि मैं कल स्कूल आ रहा हूँ.....
मैं कल आ रहा हूँ सुरुचि, कल आ रहा हूँ.....
पंद्रहवां दिन
आज मैं सुरुचि से मिलने जा रहा हूँ, अभी रात के 2:32 हो रहे हैं, क्या करूँ नींद ही नहीं आ रही अभी अपने दोस्त से बात कि वो सोया हुआ था मैंने उसे सुबह 5 बजे आने के लिए कहा क्योंकि अब मुझसे इंतज़ार नहीं हो रहा...
रात के 3:55...
अभी मैंने अपने दोस्त लक्की से बात कि वो अभी तक सोया ही हुआ है इसलिए मुझे ही उसके घर जाना होगा इसलिए मैं तैयार होकर उसके घर जाने वाला हूँ, हम उसके कार में जाने वाले हैं, क्योंकि इतने सुबह कोई बस नहीं मिलेगी न...
मैं आ रहा हूँ सुरुचि, मैं आ रहा हूँ......
रात के 4:52....
मैं अभी अपने दोस्त के घर पहुँचा मगर अभी तक ये सोया ही हुआ था, इसलिए इसको उठा कर फ्रेश होने के लिए भेजा है मगर मेरे पास तो कोई काम था नहीं इसलिए डायरी लिखने बैठ गया, मैं अपनी डायरी अपने साथ लेकर जाने वाला हूँ क्योंकि आज हम शाम तक स्कूल के बाहर ही खड़े होंगे....
इसलिए मैं कोई भी ऐसा पल छोड़ना नहीं चाहता जो मेरे लिए खाश हो....
सुबह के 5:40.....
मैं अभी अभी हॉस्टल पहूँचा। सारे बच्चे सुबह के व्यायाम के लिए ग्राउंड जा रहे हैं, काफी अंधेरा होने के वजह से किसी को देख नहीं पाया।
बहुत डर लग रहा है अगर किसी ने देख लिया तो प्रॉब्लम हो जाएगी, इसलिए काफी संभल कर रहना पड़ रहा है।
( सुबह का व्यायाम खत्म हो जाता है सभी अपने अपने हॉस्टल जाने लगते हैं मगर सुरुचि नहीं दिखती....
हरीश काफी उदास हो जाता है, मगर वो सुरुचि को एक बार देखना चाहता है इसलिए वो उसका इंतज़ार करने लगता है......
हरीश काफी समय तक सुरुचि का इंतज़ार करता है मगर वो नहीं दिखती.... )
दोपहर के 10:55.......
पता नहीं आज किस्मत मेरा साथ क्यों नहीं दे रही, मैं अभी तक सुरुचि को देख नहीं पाया...
स्कूल में ब्रेक होने वाला है, शायद अब सुरुचि दिख जाए....
(हरीश अभी अपनी डायरी लिख ही रहा होता है कि ब्रेक की घंटी बज़ जाती है, और सारे बच्चे क्लास से बाहर आ जाते हैं.....
और तब वो होता है जिसके लिए हरीश इंतज़ार कर रहा होता है.......
यानी कि सुरुचि दिखती है....)
दोपहर के 11:24.....
आज जब इतने दिनों बाद सुरुचि को देखा तो दिल को जो सुकून मिला है न उसको शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता.......
पता नहीं उसने मुझे देखा या नहीं......
काश उसने भी मुझे देखा होता.......
मैं इन जज़्बातों को शब्दों में बयाँ कर के इनकी अहमियत को कम नहीं करना चाहता.......
और शायद इस काम को करने में किस्मत भी मेरा साथ दे रही है, तभी तो यह पन्ना इस डायरी का आख़िरी पन्ना है, यानी की मैं चाह कर भी कुछ लिख नहीं सकता.....
सुरुचि डायरी के इस आखिरी पन्ने को पढ़ने के बाद रोने लगती है,और सोचती है कि काश उस दिन मैं हरीश से मिल पाती.........
सुरुचि उस डायरी को बंद करके रख लेती है।
अगले दिन सुरुचि जैसे ही क्लास पहुंचती है तो वो सीधा
दीपक के पास जाकर दूसरी डायरी के बारे में पूछती है मगर दीपक के पास कोई दूसरी डायरी नहीं थी, यह सुनकर सुरुचि उदास हो जाती है।
सुरुचि दूसरी डायरी पढ़नी चाहती थी, मगर उसके पास दूसरी डायरी नहीं थी।
शाम को सुरुचि अपने घर पर कॉल करके उनको आने के लिए कहती है। अगले सुरुचि के घर वाले आकर सुरुचि को दो दिनों के लिए घर ले जाते हैं.......
घर पर पहुँचते ही सुरुचि सीधे लक्की को कॉल करती है, हरीश ने ही सुरुचि को लक्की के फोन नंबर के बारे में बताया था। सबसे पहले सुरुचि, लक्की को कॉल कर के उससे मिलने के लिए कहती है, लक्की उसको पार्क का पता बताकर मिलने के लिए बुलाता है।
शाम को सुरुचि लक्की से मिलने उसके बताए हुए पार्क में जाती है। वहाँ पर लक्की पहले से ही मौजूद रहता है, सुरुचि उसको सारी बात बताती है। यह सब सुनकर लक्की कहता है कि मुझे किसी दूसरे डायरी के बारे में नहीं पता। वैसे तो हरीश बहुत सी डायरीयाँ लिखता था मगर आपको कौन सी डायरी चाहिए और वो कहाँ होगी ये मुझे नहीं पता। सुरुचि उदास हो जाती है, यह देखकर लक्की कहता है कि अगर हम रूम पर चले तो शायद वहाँ कुछ मिल जाए.......
इसके बाद वो दोनों रूम पर चले जाते हैं।
(हरीश जब भी छुटियों में घर आता तो वो अपने दोस्तों के साथ अलग रूम में रहता था जो उन्होंने मस्ती करने के लिए और एक साथ रहने के लिए लिया था)
लक्की कहता है कि हरीश के जाने के बाद कोई भी इस रूम में नहीं आया है, मगर फ़िर भी हम इस रूम का किराया देते हैं क्योंकि हरीश ने जाते वक़्त कहा था कि इस रूम में हमारी यादें बसी हुई हैं इसलिए हम इसको छोड़ नहीं सकते......
रूम काफी ज्यादा गंदा था, वो दोनों डायरी ढूँढने में लग जाते हैं तभी सुरुचि को एक बॉक्स दिखता है, सुरुचि लक्की से उसके बारे में पूछती है, लक्की कहता है कि उस बॉक्स में हम सब की यादें रखी हुई हैं, आप उसको चेक कर लो क्या पता वहाँ आपको डायरी मिल जाए.......
सुरुचि उस डायरी को खोलती है और आखिरकार उसको एक डायरी मिलती है मगर वो हरीश की दो महीनों के भीतर लिखी गई चौथी और आख़िरी डायरी थी......
लक्की और सुरुचि बहुत ढूँढते हैं मग़र उन्हें कोई और डायरी नहीं मिलती.....
सुरुचि वो डायरी लेकर चली जाती है। अगले दिन सुरुचि हॉस्टल चली जाती है, वहाँ पहुँच कर वो शाम कोडायरी पढ़ने लगती है.......
डायरी में लिखा था कि.....
इतने दिनों से मैं यह सोच कर दिन काट रहा था कि बस दो महीनें बीतने वाले हैं और कल अंतिम दिन है मग़र आज कुछ ऐसा हुआ कि मैं कभी सोच भी नहीं सकता था.....
आज सुबह आशुतोष मेरे घर आया था, उस वक़्त मैं घर पर नहीं था दोस्तों के साथ था, जब मैं घर पहुँचा तो मैंने आशुतोष को देखा। आशुतोष मेरे पापा के साथ बैठा हुआ था और कुछ बात कर रहा था मग़र मुझे देख कर वो चूप हो गया। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आशुतोष यहाँ क्यूँ आया है, उसने सबके सामने मुझसे माफ़ी माँगी और सारी बात सबके सामने कह डाली...
आज तक मैंने जिस बात को अपने पूरे घर वालों से छुपा कर रखा था उसको उसने सबको बता दिया और वहाँ से चला गया। मेरे पापा यह सुनकर बहुत गुस्सा हुए और आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था। सबने ये तय किया कि मुझे स्कूल से निकाल देना चाहिए ।
कहाँ मैं यह सोचकर खुश हो रहा था कि कल मैं एक दफा फ़िर स्कूल जाऊँगा और सुरुचि के साथ मेरी कहानी की नई शुरुआत होगी और कहाँ आज सब कुछ बदल गया। मैं कल स्कूल जाऊँगा तो जरूर मगर रहने नहीं बल्कि वापस आने के लिए वो भी हमेशा हमेशा के लिए........
शायद मेरी किस्मत में सुरुचि का साथ लिखा ही नहीं था।
मुझे माफ कर देना सुरुचि मुझे माफ़ कर देना...
मुझे पता है कि अगर मेरे दोस्तों को इसके बारे में पता चला तो वो मुझे आने नहीं देंगे इसलिए मैंने यह तय किया है कि कल मैं काफी सुबह ही हॉस्टल जाकर अपना सामान ले आऊँगा ताकि किसी को कुछ पता ही न चले......
दोस्तों तुम्हारे साथ ये सफ़र बहुत अच्छा था मैं चाह कर भी तुम्हें कभी भूल नहीं सकता मग़र तुम सब कोशिश करना मुझे भूल जाने की.......
मैंने सुरुचि के लिए एक लेटर लिखा है जिसमें मैंने यह लिखा है कि यह सब टाइम पास था प्यार नहीं.....
शायद यह पढ़कर सुरुचि मुझसे नफ़रत करने लगे.........
मैंने यह तय किया है कि मैं वापस उत्तर प्रदेश चला जाऊँ क्यूंकि अगर यहाँ रहा तो सुरुचि को देखने या मिलने का मन करेगा इसलिए मैंने कल शाम कि एक टिकट बुक कर ली है........
और हमेशा हमेशा के लिए यहाँ से चला जाऊँगा........
यह सब पढ़कर सुरुचि के आँखों में आँसुं आ जाते हैं। उस डायरी में इसके बाद कुछ भी नहीं लिखा था, सुरुचि बहुत रोती है, सुरुचि को आशुतोष पर बहुत गुस्सा आता है ........
अगले दिन जब वो क्लास में पहुंचती है तो दीपक उस से पूछता है कि दूसरी डायरी मिली?
सुरुचि सारी बात दीपक को बताती है यह सुनकर दीपक कहता है कि मैं आशुतोष को नहीं छोडूंगा। सुरुचि उसको शांत करते हुए कहती है कि तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे क्योंकि हरीश यही चाहता था कि हम आशुतोष के साथ बिल्कुल भी गलत व्यवहार नहीं करेंगे। यह सुनकर दीपक गुस्से में वहाँ से चला जाता है.......
और इस तरह एक प्यार करने वाला प्यार के वजह से ख़ुद को बर्बाद कर लेता है........
यहाँ न गलती हरीश की थी ,न सुरुचि की और न ही आशुतोष की थी। गलती तो उस सोच की थी जो आशुतोष के अंदर मौजूद थी, एक तरफ हरीश इस बात से दुखी था कि अगर आशुतोष ने एक बार उस से अपने दिल की बात कही होती तो शायद ऐसा कुछ हुआ नहीं होता । दूसरी तरफ सुरुचि को इस बात का दुख था कि उसके वजह से हरीश को इतनी प्रॉब्लम झेलना पड़ा और आशुतोष को इस बात का दुख था कि सुरुचि उसको नहीं मिली, इतना कुछ करने के बाद भी कुछ भी फायदा नहीं हुआ....
मेरे हिसाब से तो गलती उन जैसे दोस्तों की थी जो आशुतोष के साथ रहते थे और उसको ऐसा करने के लिए भड़काते थे.......
इसलिए हमें अपने दोस्तों का चुनाव बड़ी ही सोच समझ कर करना चाहिए........
समय बीतने लगता है और इस तरह वो 12th पास कर लेते हैं.......
सुरुचि आगे की पढाई के लिए अपना दाखिला दिल्ली में कराती है क्यूंकि हरीश ने एक बार कहा था कि वो दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी आगे की पढाई करेगा।
क्यूंकि उसको Mass communication करना है... यही सोचकर सुरुचि ने भी अपना दाखिला वहीं और Mass communication के लिए ही कराया।
हरीश ने भी अपना दाखिला वहीं कराया था और वो भी
Mass communication कोर्स में ही........
दोनों अपने- अपने रास्तें पर चल रहे थे बस इसी आस में की दुबारा जरूर मिलेंगे.....
हरीश का आज यूनिवर्सिटी में पहला दिन था, उसने सबसे पहले सुरुचि नाम से लड़कियों की लिस्ट बनाई और सबके बारे में पता करने लगा। मगर उसे सुरुचि के बारे में कुछ भी पता नहीं चला। यूनिवर्सिटी के अंदर सुरुचि नाम की 186 लड़कियाँ थी और उसके बैच में 68 लड़कियाँ थी। हरीश ने बारी- बारी सबके बारे में पता किया मग़र कुछ भी नही पता चला। हरीश उदास हो गया और उसने यूनिवर्सिटी जाना बंद कर दिया.......
इसी बीच सुरुचि ने अपना दाखिला दिल्ली यूनिवर्सिटी में करा लिया। सुरुचि ने भी हरीश को खोजने की बहुत कोशिश की मगर हरीश के बारे में कुछ भी पता नहीं चला। लगभग 2 महीनों के बाद हरीश यूनिवर्सिटी गया।
कहते हैं न कि अगर आप किसी को पूरी सिद्दत से चाहो तो पूरी की पूरी कायनात आपको उस से मिलाने में लग जाती है, बस हुआ भी कुछ ऐसा ही, सुरुचि और हरीश को आए लगभग दो महीनों से भी ज्यादा का समय हो गया था मगर आज दोनों पहली बार यूनिवर्सिटी में एक साथ थे वो भी एक दूसरे से अंजान......
हरीश उसी बेंच के बदल में जाकर बैठ गया जहाँ सुरुचि बैठा करती थी, अभी तक सुरुचि क्लास में नहीं आई थी।
हरीश अपने दोस्तों के साथ बात करने लगता है तभी सुरुचि क्लास में आ जाती है। हरीश इतना व्यस्त था कि उसने सुरुचि को देखा तक नहीं। सुरुचि भी आकर अपने बेंच पर बैठ जाती है। दो प्यार करने वाले आज वर्षों बाद एक साथ होकर भी एक साथ नहीं थे, वो दोनों एक दूसरे के बगल में बैठे होकर भी एक दूसरे से अंजान थे......
तभी उनके क्लास में प्रोफेसर आ जाते हैं और अपना टॉपिक शुरू करते हैं, हरीश अपना पेन लाना भूल गया था इसलिए उसने बिना सुरुचि से मांगे ही उसका पेन उसके बेंच पर से उठा लिया।
प्रोफेसर के जाने के बाद सब बाहर जाने लगते हैं मग़र हरीश वहीं बैठ कर नोट बनाते रहता है। तभी उसे उस पेन का ख्याल आता है और वो दौड़ कर सुरुचि के पास जाता है मग़र वो नहीं मिलती। काफी ख़ोजबीन करने पर वो सुरुचि का पता लगा ही लेता है। वो सुरुचि को उसका पेन लौटा देता है। अगले दिन जब सुरुचि क्लास में आती है तो हरीश उस से बात करने की कोशिश करता है मगर सुरुचि उस से बात करने में तनिक भी उत्सुकता नहीं दिखाती। सुरुचि उससे कहती है कि मुझ पर लाइन मारने की कोशिश बंद करो, मेरा पहले से ही एक बॉयफ्रेंड है। हरीश यह सुनकर गुस्से में कहता है कि मैडम आप पर लाइन नहीं मार रहा, और हाँ मेरी भी एक गर्लफ्रेंड है जिसका नाम सुरुचि है। सुरुचि यह सुनकर कहती है कि तुम मुझे गुस्सा दिला रहे हो,इतना कहकर वो वहाँ से चली जाती है। हरीश समझ नहीं पाता कि उसने ऐसा क्यूँ कहा? वो वहाँ से घर चला जाता है। अगले दिन हरीश पीछे जाकर बैठता है, वह सुरुचि के साथ नहीं बैठता है।
सुरुचि को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। तभी क्लास में प्रोफेसर आ जाती हैं और सबकी नोट चेक करने लगती हैं मग़र हरीश अपना नोट नहीं चेक कराता है क्यूंकि उसने बनाए ही नहीं थे। प्रोफेसर सुरुचि को नोटबुक देने को कहती हैं, हरीश चुप -चाप नोटबुक ले लेता है, वो उसको खोल कर भी नहीं देखता। घर पहुँच कर जब वो नोट बनाने के लिए सुरुचि की नोटबुक खोलता है तब उसको पता चलता है कि उस लड़की का नाम सुरुचि है। हरीश को यह बात बहुत अज़ीब लगता है वो सोचता है कि आख़िर उसने इस लड़की के बारे में पता क्यूँ नहीं किया?
हरीश तुरंत ही अपने यूनिवर्सिटी के दोस्तों को कॉल करके सुरुचि के बारे में पता करता है, उसके दोस्तों से उसको सुरुचि की सोशल मीडिया का अकाउंट मिलता है, उसको देखकर हरीश समझ जाता है कि ये वही है जिसको वो इतने समय से ढूँढ रहा था, वह सुरुचि को मैसेज करता है मग़र काफी समय तक कोई जवाब नहीं आता। हरीश उस मैसेज को डीलिट कर देता है, वह सोचता है कि कहीं उसका कोई और बॉयफ्रेंड हुआ तो?
अगले दिन जब वो यूनिवर्सिटी पहुँचा तो उसको पता चला कि सुरुचि घर चली गई है। हरीश काफी बेचैन हो जाता है, वह एक दफा फ़िर मैसेज करता है, थोड़े समय बाद जब जवाब नहीं आता तो वह सुरुचि के दोस्तों के पास जाकर उसका नंबर माँगता है और उसको कॉल करता है, सुरुचि उसका फोन नहीं उठाती। थोड़े समय बाद सुरुचि का कॉल आता है, हरीश फोन उठा कर रोने लगता है, सुरुचि समझ जाती है कि यह कौन है और वह कहती है कि कौन..... हरीश?
हरीश कहता है कि हाँ सुरुचि मैं हरीश हूँ।
सुरुचि कहती है कि तुम हो कहाँ पर?
हरीश कहता है कि दिल्ली में।
सुरुचि कहती है कि मैं भी तो दिल्ली में ही थी।
हरीश कहता है कि मुझे पता है कि तुम दिल्ली में हो, और हम दोनों मिल भी चुके हैं। सुरुचि कहती है कि कैसे?
हरीश कहता है कि मैं वहीं हूँ जिसे तुमने अपनी नोटबुक दी थी। सुरुचि यह सुनकर रोने लगती है और कहती है कि अगर तुम्हें पता था तो तुमने बताया क्यूँ नहीं?
हरीश कहता है कि मुझे भी कल शाम को ही पता चला और मैंने तुम्हें मैसेज भी किया था मगर तुमने जवाब ही नहीं दिया। हरीश कहता है कि मुझे तुमसे मिलना है, तुम अपना एड्रेस् भेजो मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। सुरुचि कहती है कि मैं ख़ुद दिल्ली आकर तुमसे मिलूँगी। इसके बाद वो फोन काट देती है। सुरुचि अपनी दिल्ली की टिकट बुक करती है और अगले ही दिन दिल्ली के लिए निकल जाती है। सुरुचि देर रात तक दिल्ली पहुँच जाती है। वो हरीश को कॉल करके एक रेस्टोरेंट का नाम बता कर अगले दिन उसको मिलने के लिए बुलाती है। हरीश अगले दिन काफी सुबह ही रेस्टोरेंट पहुँच कर सारी तैयारी कर लेता है और सुरुचि का इंतज़ार करने लगता है। हरीश पूरी रात सुरुचि का इंतज़ार करता है मगर वो नहीं आती। हरीश उसको काफी कॉल करता है मगर वो फोन नहीं उठाती। हरीश वापस अपने रूम पर आ जाता है वो सोचता है कि शायद वो उस से मिलना ही नहीं चाहती थी। हरीश यूनिवर्सिटी जाता है वहाँ उसको उसके दोस्त एक अख़बार देते हैं जिस पर लिखा होता है कि पिछले कल एक कार दुर्घटना में हुई एक लड़की की मौत! पूरे न्यूज़ को पढ़ने पर हरीश को पता चला कि वो लड़की कोई और नहीं बल्कि सुरुचि ही थी.........
हरीश उस न्यूज़ को पढ़ कर मानो पागल सा हो जाता है। उसके दोस्त उसको अपने साथ हॉस्पिटल ले जाते हैं जहाँ सुरुचि की डेड बॉडी थी। हरीश उसको देख कर फुट -फुट कर रोने लगता है........
हरीश के दोस्त उसको संभालते हैं, इतने में एक नर्स आकर कहती है कि आप मेंसे हरीश कौन है? हरीश के दोस्त नर्स को हरीश के तरफ़ इशारा करते हैं। नर्स हरीश को एक फोन देती है और कहती है कि ये फोन इन्होंने आपको देने के लिए कहा था। वो फोन सुरुचि का था। नर्स हरीश को उस फोन का पासवर्ड बता कर एक वीडियो देखने के लिए कहती है। हरीश उस फोन को खोल कर वीडियो शुरू करता है। सुरुचि ने हॉस्पिटल के अंदर मरने से पहले हरीश के लिए एक वीडियो बनाई थी। उस वीडियो में सुरुचि ने कहा था कि:- मुझे पता था हरीश तुम जरूर आओगे.... .......
मुझे माफ़ कर देना हरीश, मैं तुम्हें एक दफा फ़िर छोड़कर जा रही हूँ। शायद हम दोनों के किस्मत में मिलना ही नहीं लिखा था तभी तो पहले आशुतोष के वजह से दूर हुए और अब किस्मत के वजह से......
इस जन्म में मिल न पाए तो क्या हुआ अगले जन्म में जरूर मिलेंगे......
तुम अपना ख्याल रखना और हो सके तो मुझे भूल जाना। मुझे लगता था कि तुम मुझे भूल गए होगे लेकिन ऐसा नहीं था। तुम्हारे साथ बिताए गए वो सारे पल मेरे जिंदगी के सबसे बेहतरीन पलों में से एक थे। उन्हीं यादों को अपने साथ लेकर जा रही हूँ। बस इसी बात का दुख है कि आखिरी बार मैं तुमसे मिल न सकी.......
और इस बात का अफ़सोस मुझे हमेशा रहेगा.........
I love you Harish.........
I love you so much❤❤❤❤
तुम्हें जीना है हरीश मेरे लिए जीना है.....
इस लेटर को पढ़ने के बाद हरीश जोर- जोर से रोने लगता है......
हरीश मानो पागल सा हो जाता है, वो कहता है कि हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है......
इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था। हरीश वहाँ से दौड़ कर भाग जाता है, उसके दोस्त उसके पीछे जाते हैं, वो दौड़ कर छत पर चढ़ जाता है, और चिल्ला कर कहता है कि मैं जीऊँगा सुरुचि, मैं जीऊँगा........
इसलिए नहीं कि मुझे जीना है बल्कि इसलिए ताकि हमारी ये प्रेम कथा ना मरे..........
आज भी हरीश जी रहा है...
कोई नहीं जानता कि वो कहाँ है मग़र ये पक्का है कि वो जिंदा है...
हरीश का मानना था कि अगर हम किसी से प्यार करते हैं तो यह सोच कर तो नहीं करते न कि वो हमें मिल जाएगा....
बस हम उनसे प्यार कर बैठते हैं.......
आज मेरा प्यार भले ही इस दुनिया में नहीं है तो क्या हुआ मग़र मेरे इस दिल में है न और यहाँ से ये कभी भी नहीं मर सकता...........
भले ही हम दोनों ज्यादा समय तक साथ न रहे हो मगर फ़िर भी हर पल वो मेरे दिल में मेरे साथ ही थी.......
और कौन कहता है कि अभी वो मेरे साथ नहीं है, वो आज भी हर पल मेरे साथ हैं और हमेशा मेरे साथ रहेंगी..........
मुझे हर जगह उनकी तस्वीर रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जहाँ मैंने उनकी तस्वीर संभाल कर रखी है न वहाँ से कोई भी चुरा नहीं सकता.......
आज भी जब मुझे उनसे बात करने का मन करता है न तो आँखें बंद कर लेता हूँ और वो मेरे सामने होती हैं.......
मेरे दोस्त मुझसे अक्सर कहा करते हैं कि भाई भूल गया न तू सुरुचि को चल अच्छा ही है....
अब जिंदगी में आगे बढ़.......
मगर वो नहीं जानते कि याद तो उन्हें किया जाता है जिसे हम भूल जाते हैं मग़र वो तो मेरे सांसों में बसी हैं, मेरी दिल की धड़कन हैं......
अगर सांस लेना ही छोड़ दूँगा तो जिउँगा कैसे मेरे दोस्तों...........
तो यह थी कहानी एक ऐसे प्रेम करने वाले कि जिसने प्यार में सारी सीमाएँ लाँघ दी......
वो आज भी जी रहा है इसलिए ताकि कल को कोई ये ना कहे कि सुरुचि के वजह से हरीश ने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली.....
ऐसा नहीं है कि हरीश को कोई और न मिली बल्कि बात यह है कि हरीश को किसी और में सुरुचि न मिली......
आज भी हरीश सुरुचि से उतना ही प्यार करता है जितना पहले करता था..........
आज भी सुरुचि हर पल हरीश के ख्यालों में उसके साथ मौजूद है और हमेशा रहेगी.........
मेरे इस कहानी को लिखने के पीछे का भाव बस इतना था कि आज के युवाओं को ये बता सकूँ कि प्यार में जिस्म को पाना ही सब कुछ नहीं होता यार........
अरे कभी जिस्म की चाहत से उपर उठ कर तो देखो प्यार में कितनी खुशी है ख़ुद ब ख़ुद समझ जाओगे......
किसी के प्यार को पाने के लिए आशुतोष जैसा न बनना और न ही हरीश जैसा........
आप जिस से प्यार करते हो न बस उसकी खुशी को ध्यान में रख कर काम करना और फ़िर उसको महसूस करना ,आप खुद समझ जाओगे कि प्यार क्या है..........
दोस्तों सच्चा प्यार वह मीठा एहसास है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, ये उस दवा की तरह है, जिससे किसी गहरे से गहरे घाव को भी भरा जा सकता है। प्यार किसी के प्रति एक अनूठा और अटूट भाव है, जिसे लाखों शब्दों द्वारा भी बयां नहीं किया जा सकता। यह एक पल में होता है, और जिंदगी भर के लिए आपके दिल में याद बन कर रह जाता है।
जब आप को पुरे दिन साथ रहने के बाद भी दिन एक पल सा लगे, दूर रहने पर हर पल उसका ख्याल आए, उसकी कही गई बातें सोच कर आप मुस्कुराने लगें, उसका घंटो इंतजार करना भी आपको अच्छा लगने लगे तो समझ लीजिये की आपके दिल में प्यार की घंटी बज गई है। यही प्यार की शुरुवात है, जिसकी गहराई यदि प्यार सच्चा हो तो समय के साथ बढ़ती चली जाती है।
सच्चे प्यार में अपने प्यार के प्रति त्याग, सम्मान, Care की भावना होती है, उसकी खुशी में अपनी खुशी महसूस होती है और किसी भी तरह से उसे दुख पहुँचने पर आप खुद भी दुखी महसूस करने लगते हैं।
प्यार का सच्चा होना सिर्फ इस बात से तय नहीं किया सकता है, की वह दोनों तरफ से हो , अधिकत्तर सच्चा प्यार एक तरफा ही सुनने और देखने में आता है।
सच्चा प्यार कभी भी ख़त्म नहीं होता क्योंकि ये एक Feeling है, जो जिंदगी भर आपके दिल में रह जाती है। यदि आप भी किसी से प्यार करते हैं, और अपने मन में उस इंसान के प्रति अच्छी भावना रखते हैं, आपके मन में कभी भी उसके प्रति कोई बुरा विचार नहीं उत्पन्न होता है, तो हो सकता है, आपका प्यार भी सच्चा हो। लेकिन प्यार का असल इम्तिहान तब शुरू होता है, जब वो इंसान आपको प्राप्त हो जाए, या आपको प्राप्त ना हो, जिससे आप एक पल बात करने के लिए भी तड़पते थे, उसके हसीन सपने देखा करते थे और दिन-रात भगवान् से सिर्फ यही दुवा मांगते थे की, है भगवन मुझे बस वो मिल जाए जिस से में प्यार करता हूँ, या करती हूँ।
यदि तब भी आप उसे उतना ही चाहेंगे, उसके दुख को अपना दुख समझेंगे, उसकी खुशी में अपनी खुशी ढूंढ लेंगे, उसकी उतनी ही फ़िक्र करेंगे, और उसके साथ हमेशा खड़े रहेंगे तो समझिये की आपका प्यार सच्चा है। प्यार का अनुभव आपको कभी भी कहीं भी किसी भी उम्र में हो सकता है।
इसलिए आप सभी से विदा लेने से पहले इतना ही कहूँगा कि :-
सिर्फ I LOVE YOU बोलने से प्यार नहीं होता.....
प्यार करने के लिए EGO और ATTITUDE को बगल में रखना पड़ता है...
एक दूसरे की CARE और RESPECT करनी पड़ती है मेरे दोस्त...........
तो यह थी मेरी कहानी "हरीश एक प्रेम कथा "........
उम्मीद है आपको कहानी जरूर पसंद आई होगी...
अगर पसंद आई हो तो अपना Review जरूर दीजियेगा..........
अगर मेरी इस कहानी से किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमा चाहूँगा......
मेरा मकसद किसी को ठेस पहुँचाना कतई भी नहीं था........
बस जाते जाते इतना ही कहूँगा कि
मोहब्बत न करना...
मगर हो जाए तो इंकार न करना...
निभा सको तो ही मोहब्बत करना...
वरना बेवजह किसी के भावनाओं के साथ न खेलना..