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कलयुग के राम

Shivaji_Patel
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Synopsis

Chapter 1 - कलयुग के राम

विद्या ददाति विनय, विनय ददाति पात्रताम्

पात्रताम् धनमापनोती, धनात् धर्म तद सुखम् ||

मनुष्य एक ऐसा बिंदु है, जो समाज में बुराईयों और अच्छाईयों को पैदा करता है। समाज की जटिलताओं को कम करता है, या बड़ाता है | अपने जीवन काल में मनुष्य कई परिशथितियों में हार का सामना करता है, या उससे लड़ने की कोशिश करता है। मुख्य रूप से मनुष्य वह नहीं करता जो उसे करना चाहिए अपितु वह करता है जो उसे समाज करवाता है।मैं शिवाजी पटेल ग्राम (निरंजनपुर)इंदौर की उन गलियों में जीवन को करीब से देखा है जहाँ पर मजबुत लोग ओर कमजोर लोगों के बीच के व्यवहार को साधने वाली जनता अंधी सी होने लगी है। कई लोगो को टूटते हुए ओर कइयों को बनते हुए देखा। कुछ लोग अपने जीवन को सही ढंग से चलाने के लिए स्वार्थी भी हो जाते, कुछ लोग दुसरो की ख़ुशी में अपना स्वार्थ ढूंढते है। बहुत से लोग दुःख के समय साथ खड़े होते है और हिम्मत देते है।अनिश्चिताओं के इस जीवन काल में एक आस और उम्मीद को संजोग कर सुबह से निकलने वाला व्यक्तित्व अपने परिवार के भविष्य को निखारने में लगता हैl जीवन की गहराइयों को देखने का नजरियाँ मुझे मिला ये भी बड़ी सी बात लगती है। मंदिरों की भीड़ बता रही है सुख दुःख का समावेश। अस्पताल के चक्कर और मन्नतों का दोर चल रहा है, किसका दुःख कम है ये कोई नही बता सकता। जो खुश है वो अपनी खुशी नही बाँटते ।पुरानी फिल्मों के कुछ गाने याद आ रहे है -

- है कोनसा वो इंसान यहाँ पर जिसने दुःख ना झेला

चल अकेला चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पीछे छुटा राही चल अकेला।

- राही मनवा दुःख की चिंता क्यूँ सताती है, दुःख तो अपना साथी है, दुःख है एक छाँव ढलती आती है जाती है, दुःख अपना साथी है।

जिस भी इंसान ने परोपकार किया, उसे तकलीफो का सामना करना पड़ता है, और मजबूत लोगो के हिस्से में ये दिन जरूर आता है। एक विशेष प्रकार के लोग होते है जो अपने कुल को श्रेष्ठ बनाते है अपने विचार से, कर्मो से, विनम्रता से, अपने ज्ञान से, अपने आदर्शो से, अपने जनहितैषी व्यवहार से। महापुरुषो से जीवन जीने वाले इस कलयुग में कुछ ही लोग होते है ओर वो अपने पद चिन्हों से हमेशा याद आते है। कार्य के प्रति अपनी निष्टा दिखाती है, उनकी दृड्ता। नैतिक मूल्यों को जीवन का आधार मानने वाले लोग अब शायद कम है या पहचाने नही जाते। अपने जीवनकाल में कई किस्से ऐसे हुए जिन्हें देख मुझे सोंचने पर मजबुर होना पड़ा के शायद यह कलयुग है इसमें राक्षसी ताकत मजबुत हो रही है। ऐसा नही है की उदारता सचाई बची नही है, पर वह कम या छुपी हुई है या उन लोगों को आगे बढ़ने नहीं दिया जाता। जैसे जैसे विकास बड़ रहा है, वैसे वैसे लोगो की मानसिकता सिकुड़ सी रही है। अपने आप ही घिर रहे है, अपने जाल मे। प्रलोभन, लालच, झूठी दिलासा, पैसों की तरफ आकर्षण कलयुग का वो ढांचा है जिसे कुछ अमानुष मजबूती देते आ रहे है।

इन्ही बातों से मन विचलित होता आया है। के इस युग में कौन राम ओर कौन रावण है।