दक्ष शुभम का हाथ पकड़ कर कहता है, आप बतायेगे की क्या बात है, आखिरी ऐसा कौन सा सच है जो आप इस कदर परेशान हो रहे है।
शुभम परेशान होते हुए कहता है, " उसमें वो सच है जो सालों पहले हमारे मामा मामी. के साथ घटा था। जो अभी हम आप सब से छिपाना चाहते थे। जब तक राज्यअभिषेक नहीं हो जाता आपका। लेकिन हमारे हाथों मे कुछ नहीं रहा। सब खत्म हो गया। ये कहते हुए शुभम जमीन पर बैठ जाता है और रोने लगता है।
दक्ष उसे यू रोता देख उसके पास बैठ जाता है और उसके कंधे पर हाथ रख कर कहता है, हमारे तरफ देखिये शुभम !! शुभम दक्ष की तरफ देखता है और जब उससे दर्द बर्दास्त नहीं होता तो वो उससे लिपट कर रोने लगता है। वो रोते हुए कहता है, दर्द बर्दास्त नहीं हो रहा भाई सा !! लगता है अपने सीने कों चिड़ कर अपने दिल बाहर निकाल लूँ। खुद कों मार दू। अब बर्दास्त नहीं हो रहा है।
उसकी बातें सुनकर पृथ्वी, अतुल, अनीश और रौनक सभी परेशान हो जाते है। पृथ्वी कहता है, एक बात बता दो छोटे हो सकता है, हम सब उसका हल निकाल सके।
दक्ष कहता है, नहीं जब तक शुभम नहीं चाहेंगे। हम इस पर कोई दबाब नहीं डालेंगे। आप ये बताईये की आप चाहते क्या है? क्योंकि अगर डायरी दीक्षा के पास है तो वो अब आपको नहीं देगी और वो उस हादसे का सच जान कर रहेगी की आखिरी हुआ क्या था??
शुभम कहता है, डर इसी बात का है भाई सा :!! क्योंकि भाभी जब क्रोधित होती है तो वो किसी की नहीं सुनती। और वो डायरी पढ़ने के बाद, उनका क्रोध कोई और तूफान ना ला दे।
उसकी बात पर अतुल कहता है, तुम परेशान मत हो वहाँ सभी है और वो सभी हम सभी से ज्यादा समझदार है तो. ऐसी कोई बात नहीं होगी।अगर उनको अतीत मालूम भी हो जाता है तो हमे बताएगी या नहीं ये कहना मुश्किल है।
फिर अनीश कहता है, और तुम या विराज सब यही. चाहते हो. ना की अभी दक्ष कों ये बात मालूम ना चले। शुभम बच्चे की तरह अपने सर हाँ मे हिलता है।
दक्ष उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहता है, " बच्चे !! सच सौ पन्ने के निचे हो फिर भी बाहर आं ही जाती है। जिस बात से तुम सब इस कदर घबरा रहे हो। हम समझते है लेकिन ये भी तो जरा सोचो की आज नहीं तो कल जिस टूटने और गुस्से की वजह से तुम सब वो बातें छिपा रहे हो वो होना ही है। क्योंकि इतना तो हमें भी भरोसा हो गया है की कोई ना कोई ऐसी भयानक बात तो. जरूर है जिसने हमारे शेर भाई कों हिला कर रख दिया है। " अब पानी पियो और सहीं वक़्त का इंतजार करो। पढ़ने दो, जानने दो हमारी महरानी सा !! वो कुछ नहीं करेंगे !!
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दीक्षा डायरी खोल कर पढ़ने लगती है....
फ़्लैश बैक
नागेंद्र शर्मा की पत्नी कपड़ा देते हुए कहती है, "आज हम सब कों भी हमने साथ ले ज़ब रहे है। क्या कोणी जरूरी बात से !!
ये सुनकर नागेंद्र जी कहते है,"अरे भाग्यवान !! बड़ी भाभी सा ने बुलायो है !! तो जल्दी जल्दी जानू कों तैयार कर दे और चले!! पहले तुझे मंदिर छोड़ दूँगा। फिर उन सबको लेने जाउंगा। सबके साथ मंदिर होकर महल जानो है!!"
ठीक है जी !! आप माँ जी से मिल लो। मै अभी आती हूँ।
कुछ देर बाद नागेद्र अपनी पत्नी और बेटी के साथ निकल जाते है। उनकी माँ कहती है, "रे छोरा कम से कम बेटी कों तो छोड़ देतो!! " अरे नहीं माँ !! हम आं जायेगे।
किसी कों नहीं मालूम था की आज सबकी जिंदगी तबाह होने वाली थी हमेशा हमेशा के लिए। गाड़ी मे बैठ कर सभी निकल जाते है, हर्षित, पार्वती, हिमांशु और हिमानी कों लेने। तभी नागेद्र उनके बताएंगे गए जगह से पहले अपनी पत्नी और बेटी कों मंदिर छोड़ने लगते है। लेकिन उनकी पत्नी उनको रोकती हुई कहती है, ए जी सुनो !! हम साथ चलेंगे। बहुत घबराहट हो रही है।
नागेद्र जी कहते है, " अरे नहीं जानवी की माँ !! तुम यही रुको। लेकिन वो नहीं मानती है और उनको जानवी की कसम दे देती है। " नागेंद्र जी नहीं चाहते हुए भी उन्दोनो कों अपने साथ ले लेते है।
जब वो सब उस रास्ते जाने लगते है, जहाँ से हर्षित जी सबके साथ आने वाले थे। तभी उनका पुराना गार्ड नागेंद्र की गाड़ी से टकरा जाता है। नागेंद्र जी गाड़ी रोकते हुए तेजी से गाड़ी से निचे उतर कर देखते है तो उस गार्ड कों पहचान लेते है। उसे देखते हुए कहते है, भीम सिंह !! थारी ये हालत कैसे हुई है !!
भीम सिंह जो पुरे खुन से लथपथ था,जो मरने की कगार पर था, हाथ जोड़ कर अपनी आखों कों जबरदस्ती खोलते हुए कहता है, " बचा लो नागेंद्र, रानी सा!! कुंवरी सा..... बचालो सबको सबको। नागेंद्र घबराते हुए कहता है, क्या हुआ ? कहाँ है वो लोग ? भीम सिंह बहुत मुश्किल से कहता है, पुरानी विहर वाली हवेली मे, वो पहाड़ी पर !! जाओ जल्दी !! ये कहते हुए वो अपनी दम तोड़ देता है।
नागेंद्र अपनी पत्नी से कहता है, आगे क्या होगा भाग्यवान मै नहीं जानता। तु हमारी बच्ची कों लेकर अपने ममरे भाई के पास जोधपुर चली जा!! अगर जान बच सका तो जरूर आऊंगा थारे पास नहीं तो समझा नहीं तेरा पति मर गया। ये कहते हुए उसके माथे का सिंदूर पोंछ देता है।
उसकी पत्नी रोते हुए उसका पकड़ कर कहती है, ये कैसे अपसगुण कर दियो आपने जानवी के बापू !! आपको माहरी भी उम्र लग जावे !! ये मत करो आप!!"मै माँ सा के पास लौट जाती हूँ।
नागेंद्र गुस्से मे कहता है, पागल हो गयी से तु जानू की अम्मा !! अगर भीम सिंह मारा गया तो सोच कितने खतरनाक लोग होवेगे। वहाँ क्या होगा और क्या नहीं !! मै नहीं जानता लेकिन एक बात पक्की से अगर मेरा दोस्त, भाई और मेरी भाभी सा कों कुछ भी हुआ तो ये नागेंद्र वैसे भी मर जायेगा। तु नहीं समझेगी की वो सब मेरे लिए क्या है। बस ये जान ले तेरा मेरा साथ बस यही तक था। तुम अगर माँ सा के पास गयी तो शायद वो तुझे ढूढ़ ले। इसलिये कम से कम हमारी बच्ची के बारे मे सोच। तेरा बिंद अपनी दोस्ती का फर्ज निभाने जा रहा है। ऐसे कमजोर बनेगी तो बता मै कैसे आगे बढ़ऊगा।
ये सुनकर उनकी पत्नी उससे लिपट जाती है और कहती है, लगता है, आज हमारी आखिरी मुलकात है। नागेंद्र जी के आखों मे आंसू आं जाते है और वो अपनी बच्ची और पत्नी के गले लग कर तेजी से निकल जाते है।
उनकी पत्नी अपनी बेटी कों गोद मे लिए तब तक उनकी गाड़ी कों देखती रहती है। जब तक वो ओझल नहीं हो जाती है।
नागेद्र जैसे ही वो विहर की हवेली के पास पहुँचता है, वहाँ सभी गार्ड की लाश परी होती है। अपने मन की आशंका कों काबू करते हुए, सबसे छिपते छिपाते वो अंदर की तरफ जाने लगता है।
जहाँ चीखने की दर्दनाक आवाज़ आं रही होती है। नागेंद्र जैसे जैसे उस आवाज़ की तरफ जाता है तो सामने का नजारा देख उसकी आँखे दर्द से लाल हो जाती है लेकिन वो चीख नहीं पाता। उनको पहुंचने मे देर हो चुकी होती है।
दीक्षा आगे पढ़ नहीं पाती है और रोने लगती है। शुभ कहती है, सम्भालिये खुद कों दीक्षा। दीक्षा कहती है, मुझसे नहीं पढ़ा जा रहा है जीजी !! तूलिका कहती है, तु मजबूत है हम सभी से इसलिए पढ़ो अभी !! फिर उसे पानी पिलाती है। पानी पीने के बाद दीक्षा खुब कों संभालती है।
दीक्षा आगे पढ़ती है.....
नागेंद्र की नजर सामने पड़ती है। हर्षित और हिमांशु जी दोनों घुटनों पड़ निचे बैठे होते है। उनको पूरी तरह से रस्सीयों से बांध दिया गया था। शरीर का कोई हिस्सा नहीं बचा था जिसमे ज़ख्म ना हो। वो छोटे बच्चे के गले मे रस्सी लगाई गयी थी जो शायद रोते रोते बेहोश या मर चुका था।
सामने दांव की तरह खड़े थे, दाता हुकुम, भुजंग, अलंकार, शमशेर और उसके साथ दो और लोग जिसे मै भी नहीं जानता। पार्वती भाभी और हिमानी भाभी उन सभी दानवो से लड़ रही थी। और वो सभी सिर्फ उन दोनों कों घेरे हुए हँस रहे थे। वो दोनों बुरी तरह से जख़्मी हो रखी थी उनके बदन से चुन्नी सभी ने खींच दी थी। तलवार की नॉक से उनके कपड़े कों फाड़ रहे थे। वो खुद कों बचाने की जीतनी बार कोशिश कर रही थी। उतनी बार हर्षित और हिमांशु कों तलवार घोंपे जा रहे थे। हर्षित चीखता हुआ कहता है, हमारी जिंदगी आप दोनों की इज्जत से ज्यादा बड़ी नहीं है। खुद कों बचा लीजिये।
तभी भुजंग कहता है, ये खुद कों नहीं बचा सकती हर्षित और तेरी इस बीबी और इस हिमानी के साथ हम तेरे आगे ही इनकी इज्जत उतरेंगे और तु देखेगा। इनकी चीख तु सुनेगा। ये सजा है इस पार्वती की जो हमे छोड़ तेरी हो गयी।
पार्वती चीखते हुए कहती है, तुझे क्यों लगता है भुजंग जो मै चिखूगी। अगर औरत कों अपनी इज्जत बहुत प्यारी है और उसे तु लूटने पड़ आमादा है तो ये तय है की यही हमारी किस्मत मे लिखा हुआ। क्योंकि तेरी मौत बहुत दर्दनाक होगी इसलिये आज तु ये हरकत कर रहा है।
उसकी बात सुनकर भुंजग पार्वती की ऊपर के हिस्से के कपड़े कों खींच देता है।हर्षित.... हिमांशु चीखते हुए कहते है,... पार्वती.... भाभी..... पार्वती भाभी भी चीखती हुई पीछे मुड़ जाती है। वो सभी हैवान उन्दोनो की तरफ बढ़ जाते है।
ये मुझसे देखा नहीं गया। जब मै उनके पास जाने लगा तभी हर्षित की नजर मुझ पड़ और उन्होंने मुझे ना... मे इशारे देते हुए.... फिर से उन सभी से कहा.... भूलो मत भुजंग !! हमारा बेटा जिन्दा है और वो शेर है। वो तुम्हारी खाल निचोड़ देगा। आज जो तुम करने ज़ब रहे हो, याद रखना इसकी कीमत वो तुम सभी से इस तरह वसूलेगा की तुम अपनी जिंदगी कों भूल जाओगे।
ये सुनकर अलंकार और शमेशर आकर उनको एक लात मारते हुए कहते है, उसे बताएगा कौन? फिर हँसते हुए कहते है, किसी कों मालूम ही नहीं चलेगा की आखिरी तुम लोगों के साथ हुआ क्या था.....
ये सुनकर मै अपनी आँखे बंद कर वही छिप कर बैठ गया। क्योंकि उनलोगों ने सच कहा था, ये बात बताने वाला कोई नहीं होता। अब समझ मे आया की हर्षित ने मुझे क्यों रोक दिया। हमदोनो एक दूसरे की आखों मे देख सिर्फ ये कह रहे थे की इनकी मौत इतनी आसान नहीं होगी।
तभी पार्वती भाभी और हिमानी भाभी की चीखने की आवाज़ आती है।उनमें से जो दो नए आदमी थे। भुंजग कहता है सरकार पहले आप ही ये आरम्भ करे। बाक़ी प्रसाद हम सब बाद मे लेगे। वो दोनों हँसते हुए... पार्वती और हिमानी की तरफ देखते है। कुछ देर बाद सिर्फ चीखे सुनाई दे रही थी।
मैंने सिर्फ उन हैवानो की हंसने की और अपनी भाभियों की चीखने की आवाज़ सुनी। उन दरिंदो ने बहुत बुरी तरह से उनके शरीर कों नोंच रहे थे और हर्षित -हिमांशु कों जबरदस्ती आँख खुलावा कर, उनके आदमी उधर दिखा रहे थे। दोनों भाई रोते हुए कह रहे थे। छोड़ दो उनको।
लेकिन वो सभी इस तरह से उनको नोंच थे थे जो हिमांशु कों बर्दास्त नहीं हुआ और वो वही गिर गया। एक -दो नहीं वहाँ खड़े 25-30 आदमियों ने अपनी हैवानियत उन पड़ दिखाई। हिमानी भाभी के साथ साथ पार्वती भाभी की आवाज़ आनी बंद हो गयी।
मै देख नहीं पाया लेकिन सुन रहा था। मेरी हिम्मत नहीं थी की मै देख सकूँ। मुझे खुद खुद कों जिन्दा रखना जरूरी था ताकि ये सच मे दक्ष तक पहुंचा सकूँ। लेकिन जबाब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने मुड़ कर देखा की हर्षित भाई ने खुद के सीने मे तलवार घुसा कर अपने प्राण ले लिए थे।
दोनों भाभियों पड़ अब भी दानव टूट परे हुए थे। तभी उन मे से एक आदमी कहता है, लगता है मर गयी दोनों। ये सुनकर भुजंग अपने आदमियों से कहता है, मर गयी या जिन्दा है !! जिसे मजे लेने है ले लो। उन दरिंदो की दरिंदगी सुन और देख कर लग रहा था की भगवान नहीं है। वहाँ पड़ ठहरे हर जानवर ने उन्हें लुटा, ना जाने कब तक। जबाब उससे भी मन नहीं भरा तो वो दो अनजान शख्स ने कहा की.... बहुत गदराया जिस्म है लेकिन इसने और इसके पति ने मेरी बहुत बेज्जती की थी इसलिये इसके हर हिस्से कों बोटी बोटी काट दो। किसी की लाश नहीं मिलनी चाहिए और गाड़ी मे डाल कर खायी मे फ़ेंक दो। कुछ भी कहो अलंकार मजा बहुत आया लेकिन साली दोनों बहुत कमजोरी निकली बीस मर्द कों नहीं झेल सकी और मर गयी।
भुंजग इस लड़के कों अपने साथ रखो भविष्य मे यही काम आएगा हमारे लिए। अब बस जल्दी इसको समेटो और निकलो यहाँ से।
सभी ने उन चारों कों गाड़ी मे भेंक कर वही से खाई मे फ़ेंक दिया। उसके बाद उस बच्चे कों लेकर वहाँ से चले गए।
इसके साथ नागेंद्र जी ने एक आखिरी पन्ना लिखा था।ये हादसे का असर मुझ पड़ ऐसा पड़ा की मै धीरे धीरे अपना मानसिक संतुलन खोने लगा। ये डायरी इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है की आने वाले वक़्त मे, मै पागल हो जाऊंगा। मुझे ये सच्चाई बतानी। मुझे नहीं मालूम की हर्षित भाई वहाँ पहुँचे कैसे? क्योंकि उनके परिवार के आलावा किसी कों नहीं मालूम था की वो आने वाले। फिर शमशेर कों देख कर यकीन हो गया की घर मे ही दोगले हो तो किसी और की क्या जरूरत होगी। शमशेर कों मालूम हो चुका है की उस वक़्त मै वहाँ पड़ था। इसलिये वो सब मेरे पीछे परे हुए है। उन्होंने मेरे घर कों जला दिया। मै अपनी माँ कों लेकर किसी तरह वहाँ से भाग गया। मै अपनी पत्नी और बेटी के पास दुबारा नहीं जा पाया क्योंकि मै नहीं चाहता की मेरे साथ साथ वो भी मारे जाये।
ये डायरी इस उम्मीद से लिख रहा हूँ की मै रहु या नहीं रहु। ये एक दिन दक्ष के हाथों मे जरूर पहुंच जाये और इन हैवानो कों ऐसी मौत दे की इनकी रूह भी दोबारा जन्म लेने से डरे।
मेरे भाई, दोस्त, बहन, भाई सबको मार डाला। मै भी जिन्दा रह कर क्या करुँगा। मै भी मर कर उनके पास जाना चाहता हूँ। मेरा दोस्त बहुत दुखी होगा। उसकी आत्मा कों शांति तब तक नहीं मिलेगी जब तक इन दरिंदो की मौत ना हो जाये। मै कुछ नहीं कर सका।
सभी दक्ष के ऑफिस मे बैठे थे इस इंतजार मे की दीक्षा सब के साथ मंदिर से कब निकलती है, क्योंकि दक्ष ने हमेशा सुरक्षा के लिहाज से उनके पीछे गार्ड्स लगा रखे थे। तभी उनके कमरे मे ओमकार फ़ाइल लेकर पहुँचता है। सभी कों एक साथ देख कर उसके मन मे बहुत सवाल आते है। वो दक्ष से पूछ ही देता है की आप सब यहाँ वो भी एक साथ!!
फिर रौनक उसे बताता है की उस हादसे का सच जिस डायरी मे था वो डायरी दीक्षा भाभी सा के हाथों मे लग गयी है। बस हम इस इंतजार मे है की वो डायरी पढ़ने के बाद उन सब की कैसी प्रतिक्रिया आती है।
ये सुनकर ओमकार के माथे पड़ पसीने की बुँदे चली आती है और वो कहता है, आप सबको मंदिर जाने की बजाय मंदिर जाना चाहिए क्योंकि मुझे यकीन है की सच जानने के बाद शायद ही उन मे से कोई भी रुकेगी।
ओमकार की बात सुनकर सभी सोच मे पड़ जाते है।दक्ष तेजी से उठते हुए कहता है तो फिर चलिए। वैसे भी यहाँ से मंदिर पहुंचने मे एक घंटा से कम नहीं लगने वाला है। ये सुनकर सभी ऑफिस से निकल जाते है।
इधर मंदिर मे, डायरी पढ़ने के बाद सबकी आँखे लाल थी। दीक्षा अपनी मुठियों कों कसी हुई थी। दीक्षा तेजी से मंदिर से निकलती है। उसकी ख़ामोशी सभी कों परेशान कर रही थी। शुभ उसे पकड़ लेती है और रोकती हुई कहती है, "दीक्षा हमारी बात सुनिये। दीक्षा अपनी कठोर आवाज़ मे कहती है, क्या सुनु आपकी बात। ऐसी कितनी बातें थी जो काका नहीं लिख पाए लेकिन जीतनी बातें लिखी उससे आपने अंदाजा लगाया होगा ना की उनलोगों कों हैवान कहना भी हैवान की बेज्जती होगी। उन दरिंदो कों रहम नहीं आयी और तो और उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए। कैसे ये सब बर्दास्त कर लूँ जीजी!! चीखते हुए कहती है।
शुभ जो अपने आंसू कों संभाले हुए थी वो रोती हुई कहती है, हमारी माँ सा थी वो और तो और एक औरत थी वो। उनके साथ हुई दरिंदगी कों हम महसूस कर सकते है। हमें खुद अभी लग रहा है की हम उस इंसान की जिंदगी कों ऐसे नर्क बना दे की उनको मौत भी नसीब ना !!हो लेकिन जल्दीबाजी मे नहीं !!
सभी सदमे मे थी तूलिका कों खुद का बिता अतीत याद आं गया। वो रोती हुई कहती है, मुझे अहसास है उस दर्द का जो माँ सा और काकी सा पड़ बिता होगा। नहीं छोड़ेंगे हम उन जानवरो कों।
फिर दीक्षा कहती है, अब समझ मे आया की शुभम, अंकित, आकाश इस कदर टूटे हुए क्यों थे !! अब ये तूफान राज्यभिषेक से पहले खत्म होगा, फिर दक्ष राज्यभिषेक के लिए बैठेंगे। बिना माँ -बाबा सा और काका -काकी सा कों इंसाफ दिलाये। ये राज्यभिषेक नहीं होगा।
दीक्षा की बातें सुनकर कनक कहती है, ये क्या कह रही है जीजी !! दीक्षा अपनी लाल आखों से देखती हुई कहती है, सच कह रही है, अब प्रजापति महल मे खुशियाँ तभी मनाई जाएगी। जब हमारे परिवार कों इंसाफ मिलेगा। रितिका कहती है, तो क्या तु दक्ष जीजू कों सारी बातें बता देगी।
ये सुनकर शुभ कहती है, दक्ष कों क्या हम घर मे किसी कों ये बात नहीं बता सकते है। हमे तो अंदाजा भी नहीं है की इस सच कों जानने के बाद अंजाम क्या होगा !!
दीक्षा कहती है, अंजाम का मालूम नहीं जीजी लेकिन आगाज तो. आज ही होगा। दक्ष से कुछ छिपा नहीं रह सकता है। आप सब भी कमर कस लीजिये क्योंकि ये सच बाहर आने के बाद बहुत सारे रिश्ते हर तरह से टूटेंगे और बिखरेगे। इसलिये अब हमारी जिम्मेदारी बढ़ गयी है और ये सच हम छिपा नहीं सकते। लेकिन भाभी सा , सौम्या कहती है। दीक्षा कहती है, आप सब घर जाईये, हम आज शंखनाद करके आते है।
ये सुनते ही शुभ कहती है, आप क्या करने वाली है। आप जो भी करेंगे हम सब आपके साथ रहेंगे। दीक्षा कहती है, लेकिन हम नहीं चाहते की इसमें हमारी बच्चीया शामिल हो इसलिए सौम्या, अंकिता, और अनामिका आप तीनों घर जाईये। कोई कुछ पूछे तो कह दीजियेगा की हमें आश्रम गए है।
अंकिता रोती हुई कहती है, लेकिन भाभी सा !! आप घर नहीं गयी तो. शुभम तो वैसे ही मुझसे और गुस्सा हो जायेगा। दीक्षा उसके माथे पड़ हाथ रखती हुई कहती है, " इस समय आप खुद कों कमजोर नहीं पड़ने दे सकती है। इस सच मे कोई टुटा है तो शुभम, दक्ष और हार्दिक। और शुभम तो बहुत पहले टूट चुका है अपने माँ बाप के कारण। इसलिये इस समय सिर्फ हम सभी कों धैर्य से सब कुछ संभालना होगा। आप तीनों जाईये और हमारी फ़िक्र मत कीजिये। आपकी भाभी सा कमजोर नहीं है।
सभी मंदिर से बाहर निकल जाती है। वो तीनों प्रजापति महल के लिए निकल जाती है। इधर दीक्षा अपनी कठोर आवाज़ मे छिपे हुए गार्ड कों कहती है, " हम जानते है की आप सब हमारी सुरक्षा के लिए रहते है। अभी हमारा हुकुम है की हमारे सामने आये। " दीक्षा की आवाज़ आज हद से ज्यादा कठोर थी जो किसी कों डराने के लिए काफ़ी थी। सारे गार्ड कुछ ही पल मे उसके सामने आं जाते है और सर झुका कर खड़े हो जाते है।
दीक्षा सभी कों. घूरती हुई कहती है, आपके गाड़ी मे तलवार है। वो सभी ये सुनकर हैरानी से कहते है, जी रानी सा !! हम कुछ समझे नहीं !!" दीक्षा फिर कहती है, हथियार आपके गाड़ी मे होंगे वो लाकर हमारी गाड़ी मे रखिये अभी के अभी।
सभी गार्ड असमंजस मे खड़े थे उनको कुछ समझ मे नहीं आं रहा था की. वो क्या करे !! फिर शुभ अपनी कठोर आवाज़ मे कहती है, आपने सुना नहीं आपकी रानी सा ने क्या कहा !!
कुछ देर मे सभी गार्ड हथियार लाकर दीक्षा की गाड़ी मे डाल देते है।
दीक्षा गुस्से मे गाड़ी मे बैठती है और उसके साथ साथ, रितिका, तूलिका, कनक, और शुभ भी बैठ जाती है। दीक्षा एक बार आँखे बंद करती हुई कहती है, मै फिर कहती हूँ, " आप सब उतर जाये। " सभी कहती है," मरते दम तक नहीं। चलो इस युद्ध का शंखनाद करते है। अब जब तक उन राक्षसों कों पाताल नहीं पहुंचा देते तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। "
दीक्षा गाड़ी की स्पीड बढ़ा देती है। उसे यू जाते देख, उनमें से एक गार्ड जल्दी से दक्ष कों फोन मिलाते हुए कहता है, " राजा सा !! वो... वो.... रानी हुकुम हथियार लेकर कहीं निकली है। "जब तक हम उनके पीछे जाते वो हमारी आखों से ओझल हो गयी।"
दक्ष गुस्साते हुए कहता है, तुमलोगों कों रखा किस लिए था की वो तुम सबके आखों से ओझल हो जाये। फिर गुस्से मे फोन रख देता है। पृथ्वी कहता है, बात क्या है !! दक्ष कहता है, दीक्षा गुस्से मे कहीं निकली है। लेकिन कहाँ ये नहीं मालूम। उसकी बात सुनकर ओमकार कहता है, ओ नहीं !! कहीं वो भुजंग राठौर के घर तो नहीं गयी। "
शुभम भी कहता है, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। ये सुनकर अतुल कहता है, ये बात तुमलोग इतने यकीन से कैसे कह सकते हो। ये सुनकर दोनों अपनी नजर झुका लेते है, तभी दक्ष कहता है, वो इसलिये क्योंकि पूरा सच शुभम ने डायरी से जाना है तो अधूरा सच ओमकार और वीराज़ कों भी भुंजग राठौर से मालूम है।
दक्ष अतुल से कहता है, कहीं कुछ ज्यादा बबाल ना हो जाये, जल्दी राठौर हाउस पहुंचने की कोशिश करो। तब तक विराज कों मे बता देता हूँ। हमारे पहुंचने तक वो संभाल लेगा।
अनीश कहता है, वो सब मंदिर से गयी है जहाँ से राठौर की हवेली कदमों की दुरी पड़ दस मिनट का रास्ता है और वो गाड़ी लेकर गयी है तो तु सोच सकता है की अब तक जो करना होगा कर चुकी होगी। और हमे वहाँ पहुंचने मे कितनी भी कोशिश कर ले फिर भी बीस मिनट लगेगा।
इधर दीक्षा सीधे राठौर हवेली के मेन दरवाजे कों. तोड़ती हुई अंदर जाती है।
दीक्षा सीधे गाड़ी से उतरती हुई अपनी शेरनी जैसी आवाज़ मे दहारते हुए अंदर की तरफ आती हुई बोलती है, भुंजग राठौर बाहर निकल सुवर के पिल्लै आज तुझे औरत की गर्मी दिखाती हुई.... "!! आज दीक्षा किसी खूंखार शेरनी से कम नहीं लग रही थी और उसके पीछे आती हुई तूलिका, रितिका, शुभ और कनक किसी चीते से कम नहीं लग रही थी। चारों पीछे से आ रहे उसके सभी गार्डो कों इस तरह मार रही होती है की सभी जमीन पर या तो बेहोश हो कर गिर रहे थे याँ तो उनका शरीर बेजान होकर जमीन पर गिरता जा रहा था।
भुंजग राठौर जो अलंकार, अधीराज और मायरा -कायरा के साथ बैठा हुआ था अचानक ये शोर सुनकर चिल्लाते हुए कहता है, कौन है और किसको अपनी मौत चाहिए। ये शोर और आवाज़ सुनकर विराज भी अपने कमरे से बाहर निचे की तरफ हॉल मे आं जाता है। जहाँ सभी खड़े होते है।
तभी अंदर दीक्षा काल की तरह सबके सामने आती है इस वक़्त उन पांचो की आखों मे आग उगल रही थी। उनके चेहरे कों देख कर एक पल के लिए तो भुजंग के साथ साथ सभी डर जाते है। फिर खुद कों संभालते हुए गरजते हुए कहता है, क्या बात है आज आप हमारे घर आकर हमे ही धमकी दे रही है, रानी जी !!
दीक्षा अपने सर ना मे हिलाते हुए कहती है," बिल्कुल नहीं भुजंग !! तेरी इतनी औकात नहीं की हम तुझे धमकी दे। हम तो तेरी औकात आज दिखायेगा और तुझे बतायेगे की जब औरत कों गर्मी चढ़ती है तो कैसे तुझ जैसे मर्दो पर अपनी गर्मी उतारी है। इतना कहते हुए, सीधे उसके कपड़े पर तेजी से तलवार चला देती. है और ये तलवार भुजंग और अलंकार दोनों पर चला देती है। विराज की आँखे बाहर आं जाती है। वो आगे बढ़ने लगता है, दीक्षा उसे इशारे से रोकती हुई बाहर जाने का इशारा देती है। विराज उसका इशारा पाकर सीधे बाहर निकल जाता है।
उसके इस तरह अचानक हमले से सबकी आँखे बंद हो जाती है। सबको लगता है की दीक्षा उन पर तलवार से हमला करने वाली है। लेकिन कुछ देर बाद जब उन्दोनो कों अहसास होता है, उनको कोई चोट नहीं पहुंचा। तब उनकी आखों खुलती है... अलंकार और भुजंग के ऊपर जाती है। मायरा और नायरा अपनी आँखे बंद कर चीखती हुई पीछे घूम जाती है और अधिराज चीखते हुए कहता है, डैड.....!!!
भुंजग और अलंकार की नजर खुद पर जाती है तो निचे सिर्र अंत:वस्त्र कों छोड़,उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। वो दोनों जोर से चीखते है और अधिराज उन सब पर बंदूक तान देता है!! जिसे रितिका अपने तलवार से ऐसे वार करती है की वो बंदूँक उसके हाथ से छूट कर तूलिका के हाथों मे, आं जाती है।
तूलिका कहती है, मुन्ना जब बड़े बात कर रहे हो तो बच्चों कों नहीं बोलना चाहिए। फिर तेरी ख्वाहिश है तो तुम्हें भी तुम्हारे बाप के दल मे शामिल करने मे हमे कोई एतराज नहीं है। अगर ऐसा नहीं बगल हो जा।
अधिराज घूरते हुए उन सभी कों देखता है और फिर मायरा और नायरा कहती है, " तुम्हें तमीज नहीं !! हमे नहीं मालूम था की प्रजापति महल की औरते ऐसी बत्तमीज होती है। कनक उसकी बातें सुनकर कहती है, " रे छौरी '!! ई राजस्थान से !! जरा सम्भल कर अपनी जुबान खोल नहीं तो यही काट दूँगी!! सुना नहीं तन्ने की जीजी ने क्या कहो हे !! बच्चों कों बीच मे बोलने की इज्जाजत ना से !! इह खातिर अब तुम तीनों चिलगोजे चुप करी जाओ नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होवेगो '!!
कनक की धमकी भरी बात सुनकर मायरा और नायरा चुप रहने मे अपनी भलाई समझती है। इधर भुजंग और अलंकार गुस्से मे जलते हुए कहता है, " ये तुमने ठीक नहीं किया प्रजापति खानदान की बिंदनी !! इसका अंजाम बहुत बुरा होगा !! हम इस अपमान की कीमत तुम सब से उस तरह लेगे जो तुम सब ने सपनो मे भी नहीं सोचा होगा !!"
भुजंग की बातें सुनकर शुभ कहती है, जो तुमने पचीस साल पहले किया था क्या उससे बुरा करने की सोच रहे हो!!"
अब शुभ की बातों कों सुनकर भुंजग और अलंकार एक बार फिर चौंक जाते है। दीक्षा रितिका और कनक कों इशारा देती है। वो दोनों रस्सीयाँ लेती है। दीक्षा उसके घर की दिवार पर टंगी चाबुक कों उठा लेती है और दोनों पर एक साथ मारती हुई जमीन पर गिरा देती है।
वो दोनों गुस्से और हैरानी मे ना कुछ समझ पा रहे थे, ना कुछ बोल पा रहे थे। क्योंकि उन्होंने सपने मे भी नहीं सोचा था की ऐसा कुछ उनके साथ होगा। वो प्रजापति महल की औरतों के हाथों !!
तूलिका और कनक उन दोनों के हाथों कों पीछे घुमा कर बांध देती है और कनक और शुभ, अधिराज, मायरा और कायरा कों खम्बे से बांध देती है। अधिराज चीखते हुए अपने गार्ड और आदमियों कों बुलाता है..... अरे कहाँ मर गए कमीनों,!!
शुभ कहती है, कोई नहीं आएगा तेरे बुलाने क्योंकि हमने आने से पहले सबका काम तमाम कर दिया है। घर के सारे नौकर सिर्फ खड़े होकर तमाशा देख रहे थे क्योंकि किसी कों प्रजापति महल की औरतों कों कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी।
भुजंग घूरते हुए कहता है, इसका अंजाम बहुत बुरा होगा दीक्षा प्रजापति !! मै इसकी कीमत तुझ से वसूल लूँगा। फिर अलंकार कहता है, एक बार हाथ खोल दे तुझे अपनी बिस्तर पर जा कर नहीं रोंदा तो फिर कहना।
दीक्षा गुस्से मे उन्दोनो के बाल पकड़ कर सीधा खड़ा करती है और जोर से उन दोनों के गालों पर थप्पड़ मारती हुई कहती है, " हमारी हिम्मत का अंदाजा तुझे अभी नहीं लगा !! की सिर्फ हम पांच तेरे घर मे आकर तुझे नँगा कर चुके है। रही बात कीमत वसूलने की तो तुझ जैसे सुवर की औकात हम अकेले दिखा सकते है, भुंजग !! लेकिन ये हम अपने हिस्से का थोड़ा सा दंड तुझे देने आये है। बाक़ी का दंड तो तुझे दक्ष देंगे और प्रजापति खानदान के सारे भाई देंगे।
दीक्षा... चीखते हुए भुजंग उसकी तरफ बढ़ता है..... दीक्षा उसके चेहरे कों अपने पांचो ऊँगली से भर कर उसे धकेल देती है और कहती है, तेरी मौत इतनी आसान नहीं लिखा है। आज तो बस तुझे औरत की गर्मी दिखाउंगी। जिससे तुझे मालूम चले की औरत की जब गर्मी उतरती है तो तुझ जैसे सुवर के पिल्लो की क्या औकात होती है।
दीक्षा के तेवर देख अलंकार अपनी आँखे बंद कर लेता है। भुंजग से वो कहता है, बस भुंजग !! इस औरत कों सरे बाजार मैंने इसकी इज्जत.... आगे के शब्द उसकी जुबान मे अटक जाते है क्योंकि शुभ उसके मुँह के अंदर बंदूक डालती हुई कहती है, " हर बार होवा है !! और हर औरत तुझे कमजोर लगती है, जो तु उसकी इज्जत से खेल जायेगा। तूने कभी शेरनी कों पकड़ा है। जरा देख तो अपनी आँखे खोल कर ये वो शेरनी है जो तुझे एक झटके मे चिड़ डालेगी।
दीक्षा उन दोनों कों घसीटते हुए बाहर की तरफ ले जाने लगती है। अपनी हालत देख भुंजग और अलंकार कहता है, ये तु ठीक नहीं कर रही है, दीक्षा प्रजापति इसकी बहुत बड़ी कीमत तुझे चुकानी पड़ेगी। लेकिन दीक्षा कों कोई फर्क नहीं पड़ता है।वो दोनों कों बाहर खींच कर सरे बाजार कर दिया।
बाहर मे आते जाते लोग और अलग बगल के सभी लोग वहाँ खड़े हो गए। घर के अंदर से अधिराज भी मायरा कायरा के साथ बाहर आं गया। भुंजग और अलंकार कों सिर्फ गुस्सा आं रहा था। आज जो लोग उनके सामने आँखे नहीं उठाते थे, आज उनको इस हालत मे देख कर हँस रहे थे। भुजंग और अलंकार दोनों शरम से अपने सर कों झुकाये हुए खड़े थे। इस हंगामे का शोर इस कदर बढ़ गया था की रास्ते मे लोग बातें करने लगे थे। जिसकी भनक दक्ष के साथ साथ, दाता हुकुम और राजेंद्र जी के साथ साथ शमेशर तक कों लग चुकी थी।सभी अपने अपने घर से निकल चुके थे। उनके साथ लक्षिता और कामनी भी थी।
इधर अधिराज के साथ साथ मायरा और कायरा भी चीखते हुए उनको रोकने की कोशिश कर रही थी। अधिराज तो गुस्से मे कहता है, तुम घटिया औरत तुझे तो. ऐसा सबक सिखाऊंगा की तेरी रूह कांप जाएगी !!"
दीक्षा जो बार बार उन सबकी थमकी सुनकर थक चुकी थी, गुस्से मे अधिराज के गाल पर जोर का थप्पड़ लगा देती है। इस वक़्त उसकी आँखे आग उगल रही थी। जिसे देख मायरा और नायरा पीछे हो गयी। दीक्षा अपनी आँखे दिखाती हुई उन तीनों से कहती है, अगर बार बार अपनी मर्दानगी दिखानी की बात की ना तो तुम्हें तुम्हारी मर्दानगी से हमेशा के लिए अलग कर दूँगी। अब एक शब्द नहीं क्योंकि तुम कितना भी उछलो, आज हमें कोई रोक नहीं पायेगा और याद रख तेरे बाप की मौत तय कर चुकी हूँ आज ही और तु अगर मरना नहीं चाहता तो मुँह बंद कर।
भुंजग फिर अपने दांतो कों भींचते हुए कहता है, " बहुत गलत किया तूने। घर तक बात रहती तो मै सोचता लेकिन अब तो तेरा वो हश्र करुँगा जो कभी तेरी सास का किया था। और मुझे यकीन है उससे भी ज्यादा मजे तुझसे मिलने वाला है। वो तो पचास आदमी कों नहीं झेल सकी। वादा करता हूँ तुझे पांच सौ आदमी के साथ सुलाऊगा। "
भुंजग..... तेज आवाज़ मे गरजते हुए.... एक मुक्का उसके चेहरे पर लगता है। जिससे उसकी दाँत टूट कर जमीन पर गिर जाती है और चेहरे खुन से भर जाता है। ये आवाज़ और किसी की नहीं थी दक्ष की थी। क्योंकि दक्ष तब तक सबके साथ पहुंच चुका होता है। वो आगे कुछ कहता है, उससे पहले दीक्षा उसके हाथ कों पकड़ लेती है और कहती है, राजा साहब आज आपकी बारी नहीं है !! आज हमारी बारी है। दीक्षा की आवाज़ और उसके साथ खड़ी चारों लड़कियों कों देख.... दक्ष चुप हो जाता है।
फिर दीक्षा कहती है, तूलिका चूरियां लाओ। वो चूरियां लाती है। दीक्षा उसे हाथ मे लेकर हंसती हुई भुजंग और अलंकार कों देखती हुई कहती है,.... " क्या लगा तुझे की तेरी ये बातें सुनकर मै डर गयी !! और तुझे लगता है की तु वही सब कर पायेगा जो तूने किया था। रावण ने भी एक ही बार कुकर्म किया था अपनी भाई की पत्नी के साथ, उसके बाद वो सीता कों लंका तो ले आया लेकिन अपनी मौत के बाद भी उसे महल तक नहीं ला पाया था। तेरी ये औकात दिखा कर मैंने तुझे ये दिखाया है की इस बार तेरे घर मे.... तेरे इलाके मे बिना किसी मर्द के... तुझे तेरी औकात दिखाने आयी हूँ।
गीदर कभी शेर नहीं होते और आज कान खोल कर ध्यान से सुन मेरी बात, वादा है मेरा तुझसे..... तुझे तब तक जिन्दा रखूँगी, जब तक तेरे शरीर के हर हिस्से कों बोटी बोटी काट कर, तेरी आखों के सामने नहीं खिला दूँगी। तब तक तेरी मौत नहीं होगी।
ये सुनकर अलंकार और भुजंग एक साथ चीखते है, दीक्षा..... बहुत कर रही है तु !!
ये सुनकर शुभ कहती है, महरानी सा !! बोल भुंजग !! अभी तो औकात दिखाया है, तुझे। जहन्नुम कहाँ दिखाया है तुझे।
उन्दोनो कों इस तरह अर्धनग्न देख वहाँ खड़े सभी लोग आपस मे बातें कर रहे थे। हँस रहे थे। तब तक रंजीत, दाता हुकुम, शमशेर, लक्षता और कामिनी भी आं जाती है। भुंजग और अलंकार कीहालत देख सबकी आँखे बड़ी हो जाती है। दाता हुकुम और शमशेर एक साथ चीखते है, ये क्या बतमीजी है और ऐसा करने की हिम्मत कैसे हुई.... तुम सब की। फिर दक्ष की तरफ देख कर कहता है, दक्ष तुम अपनी मर्यादा भूल गए जो अपने सामने अपनी पत्नी कों ये करने दे रहे हो !!
दीक्षा गुस्से मे उन्दोनो की तरफ देखती है और अपनी दहाड़ती आवाज़ मे कहती है, शमशेर शेखावत... दाता... अगर एक शब्द अभी तुम दोनों ने कुछ कहा तो तुम दोनों कों भी यही ला कर खड़ा कर दूँगी। फिर शुभ चिंघारते हुई कहती है... और ये मत समझना जो तुम लोगों ने पचीस साल पहले किया। वो दोबारा कर जाओगे। अब तो हिसाब देने की बारी आयी है।
दीक्षा घूरती हुई कहती है, पीछे जाओ शमशेर दोबारा नहीं कहूँगी। मुलाक़ात कभी नहीं हुई हमारी तुम सभी से लेकिन आज अच्छी तरह से जान लो की तुम्हारी मौत पूरा राजस्थान देखेगी। वादा है हमारा....!!
वो दोनों दीक्षा का रूप देख कर अपने कदम पीछे लेते है। दाता कहता है, आज डर क्यों लग रहा है। शमशेर कहता है, जब उन सभी के पति चुप है तो हमें भी अभी चुप रहना होगा। लेकिन रंजीत और कामनी एक साथ कहते है, आपको शर्म नहीं आती जो आप हमारे खानदान की इज्जत कों यू बर्बाद कर रही है। आप कों देख कर ही लगता है की आप किसी ओझे घराने की है।
दीक्षा हंसती हुई कहती है, आज हमारा मन सिर्फ इन दोनों कों उनकी औकात दिखाने की इसलिये आपकी ये कैंची जैसी जुबान चल रही है दादी जी। लेकिन घबरा क्यों रही है, आपका भी वक़्त आएगा और वो भी बहुत जल्दी। क्योंकि सेंध लगाने वाली तो आप ही है। दुर्योधन तो महभारत होने का सबसे बड़ा कारण था लेकिन सबसे मुख्य गुनहगार तो धृतराष्ट्र था, जिसकी लालच ने सब कुछ खत्म कर दिया। इसलिये अभी आप दोनों चुप रहिये क्योंकि आपकी भी बारी आएगी।
फिर तूलिका के हाथ से चुड़ी लेती है और भुजंग और अलंकार की तरफ बढ़ने लगती है। जिसे देख एक बार फिर पृथ्वी और दक्ष एक साथ कहते है, " महरानी सा!!"