अगली सुबह...
दक्ष के कमरे मे अतुल भागते हुए आता है और उसके पीछे अनीश भी था। दक्ष उठ... अतुल की आवाज़ से दक्ष की नींद खुल जाती है इस तरह अतुल को देख दक्ष समझा जाता है की.... कोई बहुत ही जरूरी बात होगी।
दक्ष आर्म से उठा कर बैठ जाता है और उसे भी बैठने को कहता है। पूछता है की क्या बात है....
अतुल गुस्से मे कहता है की मैंने सब कुछ पता लगा लिया है....दक्ष आराम से कहता है.... बोलो।
फिर अतुल एक एक कर सारी बातें दीक्षा, तूलिका और रितिका के बारे मे बता रहा होता..... वो सभी बातें सुन दक्ष और अनीश की भी नशे कस जाती है।
अतुल अपनी बातों को बढ़ता हुआ..... आज भी वो ओमकार रायचंद दीक्षा को ढूंढ़ रहा है..... उसने उसकी चचेरी बहन से तो उसने शादी कर ली लेकिन अब भी वो दीक्षा को ही ढूढ़ रहा है.... और उसके साथ साथ सतीश ठाकुर और प्रियांशु भी रितिका और तूलिका को ढूढ़ रहे है.... और... उनतीनों ने दीक्षा को पकड़ने के लिए उसके छोटे भाई को मोहरा बनाना चाहा। जिसमे उसके साथ उसके दादा दादी और चाचा चाची ने दिया। लेकिन दीक्षा को शायद पहले से इस बात पहले ही खबर थी इसलिए उसने अपने छोटे भाई को विदेश भेज दिया जिसकी खबर सिवाय उसके किसी को नहीं थी। दीपक को भी वहाँ से निकलने से पहले शहर छोड़ने को बोल दिया था।
हैकिंग स्कील अच्छी होने से वो अब तक अपनी और अपनी दोनों दोस्तों की पहचान को बचाये रखी है। यहाँ वो तीनों अपनी अपनी क्षेत्र मे पहचान बना रखी हुई है। तूलिका एक बेस्ट सर्जन और गायनी की डॉक्टर है। रितिका बहुत अच्छी क्रिमिनल वकील है। और दीक्षा को तुम जानते ही हो।
दक्ष सारी बात सुन कर और कुछ..... अतुल कहता है हाँ एक और जरूरी बात... उस दिन होटल मे तुम्हारे साथ वही थी..... उनकी दोनों बहनों ने मिलकर यें साजिश की थी और एक बात... उसके एक सात साल का बेटा है..... लेकिन तीनों मे से किसी का कोई बॉयफ्रेंड नहीं है तो... ज्यादा उम्मीद है की वो बच्चा कहीं..... तेरा..... बात अधूरी छोड़ देता है।
दक्ष थोड़ी गंभीर शब्दों मे कहता है की...मुझे भरोसा है की वो मेरा ही बच्चा है... लेकिन इतना कुछ उन तीनों ने सहा है की हमें थोड़ा सम्भल कर कदम रखना होगा।
"भाई सा "आपको राजा साहब ने याद किया है।"हम्म्म "आप चलिए वीर हम आते है।"जी भाई सा "।
आप दोनों जरा पता लगाइये की बाईट सात साल में यें सब कहाँ तक पता लगा सके है..... दीक्षा के बारे में। और निचे चलिए देखे यहाँ अब क्या हुकुम देने वाले..... हमारे राजा साहब।
आईये दक्ष हमारे साथ नाश्ता कीजिये। सभी प्रजापति परिवार एक साथ नाश्ते के लिए बैठे हुए है। दक्ष, अनीश और अतुल भी बैठ जाते है।
दक्ष, आप और पृथ्वी में से कोई एक अब हमारी गदी संभालेंगे। हमने पृथ्वी के लिए जैसलमेर के राजा जयचंद सिंह की बड़ी पुत्री कनकलता से तय कर दी है और वो सब आज शाम महल आने वाले है। और पृथ्वी को यें रिश्ता भी मंजूर है। अब हम आपसे पूछते है की आप हमारी बात का मान रखेंगे या हर बार की तरह इस बार भी... हमें अपमानित करेंगे।
नाश्ता करते हुए दक्ष कहता है," सबसे महत्वपूर्ण बात राजा साहब की यहाँ आप पृथ्वी की शादी की बात कर रहे है।
दक्ष आप भूल रहे है की पृथ्वी आपसे उम्र में बड़े है, तो आप उन्हें भाई सा से सम्बोधित करे।
माफ़ी चाहुँगा राजा साहब, " हमें दक्ष प्रजापति है जो इंसान की इज्जत उनके उम्र से नहीं कर्म से करते है और जिस दिन पृथ्वी उस लायक हो जायेगे, हमें जरूर इन्हें भाई सा बुलाएंगे।बाक़ी रही बात आपके शब्दों के मान रखने की तो आप हम आपसे यही प्रार्थना करगे की, आप कुछ ऐसे शब्दों या आदेश हमें ना दे जिसे हम पूरा ना कर सके।
रहने दीजिये काका दादू सा मुझे दक्ष के किसी बात का बुरा नहीं लगता, वो हमसे छोटे है और हम हमेशा उनकी परवाह और फ़िक्र करते है।
गुस्सा में राजेंद्र जी कहते है तो दक्ष क्या हम यें मान की आप इस गदी पर नहीं बैठेंगे। वैसे तो तरीके से पृथ्वी को ही इस गदी पर बैठने का हक है क्योंकि वो प्रजापति खानदान के बड़े पोते है और साथ में आपसे कहीं ज्यादा तमीज है इनमें।
भाई सा आप कोणी परेशान हो रहे हो... दक्ष को तो वैसे भी राजस्थान और उसकी गद्दी पर कोई दिलचस्पी नहीं है..... क्यों दक्ष।
दादा सा यें आपसे किसने कह दिया की मुझे प्रजापति की गद्दी में दिलचस्पी नहीं है, अगर नहीं होती तो सात साल बाद चला नहीं आता। और राजा साहब गद्दी का हकदार कौन है इस बात पर आप फ़िक्र ना रहे..... दादा हुजूर वो कुछ सोच कर ही वसीयत बना कर गए है। तो सब उसी के हिसाब से होने दे। बाक़ी आप सब पृथ्वी की शादी की तैयारी करे।
हमारी फ़िक्र करनी छोड़ दे। हम जानते है हमें क्या करना है।चलो अनीश और अतुल। आता हूँ काका हुजूर। हाँ ठीक है मेरे शेर.... लक्ष्य और दक्ष एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए।
और हाँ एक बात दो दिन बाद प्रजापति कंपनी में अभी शेयर होल्डर और डायरेक्ट की मीटिंग है तो सब उसमें जरूर शामिल हो। लेकिन दक्ष यें अचनाक क्यों????
दक्ष आगे बढ़ते हुए कहता है, " पृथ्वी हर बात का जवाब दक्ष प्रजापति नहीं देता।
चलता हूँ रानी माँ, काकी माँ.....। जीता रहे मेरा बच्चा।
दक्ष अपनी गाड़ी में बैठता है और ड्राइविंग सीट वीर सम्भलता है अतुल दक्ष के साथ और अनीश आगे बैठते है। चलो हमारे बेटे के स्कूल। आगे पीछे बॉडीगार्ड की गाड़ी के साथ दक्ष का काफिला निकल पड़ता है।
इधर रंजीत अपनी पत्नी कामिनी, अपनी बेटी लक्षिता और जमाई शमशेर.... दोनों पोते पृथ्वी और रौनक के साथ बहुत गुस्सै और बेचैनी में बैठे थे।
दादा सा आप क्यों इतना परेशान हो रहे है..... बड़े दादा सा ज़ब हमारे साथ है तो यें दक्ष क्या चीज है... रौनक व्यंग करते हुए अपनी बात कहता है।
आप सब जितना दक्ष को समझा रहे है.... उतना आसान नहीं है, इस बार उसकी आखों में हमें कुछ अलग सा दिख रहा है लेकिन समझ नहीं आ रहा की.... क्या ऐसे क्या है जो हम समझा नहीं पा रहे है। यें तो आपने ठीक कही है बाबा सा इस बार दक्ष भाई सा कुछ अलग ही तेवर में नजर आ रहे है। ना वो इस बार हम सबसे मिलने ही आये ना ढंग से बात ही की।
अरे ज़ब अपना ही खुन दग़ा दे तो क्या करे। अपने सिर पर हाथ मारती हुई कामिनी जी कहती है..... मेरा छोरा और उसकी बिंदनी दोनों ने तो कसम खा ली है की वो सिर्फ उस नास्पीटे दक्ष की पक्ष लेगे..... अरे भागवान ज़ब अपना सिक्का खोटो होवे हे तो कोई की कर सके कोणी।
मैं तो कहता है की इस दक्ष कोई भी उसके बाप और काका के पास भेज देते है बाक़ी बजे वो दोनों चूहें चुहिये उनसे तो हम बाद में भी निपट लेगे..... सबसे बड़ा कांटा तो यें दक्ष है। अरे अरे ऐसे गजब मत करना मेरे शेरो। तुम दोनों कोई तो वसीयत मालूम है ना ज़ब तक पृथ्वी ओट दक्ष में से कोई एक राजा नहीं बन जाता तब तक हम कुछ नहीं कर सकते है।
कभी कभी तो लगता है, हम अपने पिता जी महराज के सगी औलाद ही नहीं है। सब कुछ उन्होंने बड़े भाई सा और उनके परिवार कोई दे दिया और मुझे उम्र भर अपनी गुलामी के लिए रख दिया।
बहुत इंतजार कर लिया अब..... बस एक बार थारा ब्याह जयचंद की बेटी से हो जावे फिर हम अपना अगला दाव खेलेंगे।..... अपने मुछो को हाथो से घुमा कर..... और ज़ब कोइ दाव नहीं लगेगा तो हमारा हुकुम का इक्का तो है ही... जिससे दक्ष हमेशा के लिए घुटनों पर आ जायेगा।
यें सुन सभी हँसने लगते है। भागवान अब तैयारी कर लो शाम को हमारे समधी सा और होने वाले समधी दोनों आने वाले है।
दक्ष अभी गुस्से में बहुत डरवना लग रहा था... पुरे स्कूल में सभी उसके क्रोध के आगे कांप रहे थे.... प्रिंसिपल हाथो को जोड़ कर.... हकलाते हुए..... ग... गगगगगगगग... ललललललल... ती..... हो गयी.... ररारा... जाजजा.... स्साहब...।
देखिये दीक्षा जी मैंने आपके बच्चे की एडमिशन बिना किसी जाँच पड़ताल के इसलिए दी क्योंकि आपने हमारे स्कूल की सिक्योरिटी सिस्टम को इनस्टॉल किया था, लेकिन यें लड़का। यें लड़का नहीं प्रिंसिपल सर दक्षांश दीक्षा राय है मेरा नाम.... दक्षांश गुस्से और अकड़ से कहता है। दक्षु चुप एक दम। अरे दीक्षा ठीक तो कह रहा है और आप जो इस कम्पाउंड मे हमें बुलाकर सभी स्टाप और इन चार नालायक लड़को के पैरेंट्स के बिच यें तमाशा कर रहे है उसके क्या..... वो सिर्फ इसलिए की इस स्कूल के ट्रस्टी के बेटे को मारना है, हमारे बच्चे ने, लेकिन यें नहीं पूछा क्यों.... तूलिका गुस्से मे प्रिंसिपल को सुना रही होती है।
तभी जिन चार लडको को दक्षांश ने मारा था उसकी माँ नफ़रत से कहती है....
अरे प्रिंसिपल सर... जिस लड़के के बाप का पता नहीं उसे हमारे स्कूल मे आपको लेने की क्या जरूरत थी.... ना जाने किस का पाप है यें... इसकी माँ एक नंबर की बद....बात पूरी करती की उससे पहले दक्षांश एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा उस पर फ़ेंक देता है..... उसके माथे पर लगती है.... जिसे देख.... वो औरत हेय भगवान... यें तो.... सब दक्षांश गुस्से से को देखते.... वो औरत गुस्से मे दक्षांश को पकड़ कर.... गंदी नाली का किड़ा.... तेरी हिम्मत केसे हुई मुझे और मेरे बेटों को मारने की.... तेरी औकात क्या है..... बिना बाप का.... कहते हुए उसे तेज से धक्का देती है!!!!!... तूलिका... रितिका.... दीक्षा एक साथ.... दक्षु..... घबराते हुए पकड़ने को आती है क्योंकि जहाँ दक्षांश गिरता वहाँ बहुत बड़ा पत्थर था और दक्षांश गिरता तो उस पत्थर पर उसका सर लगता..... लेकिन तब तक किसी मज़बूत हाथो ने उसे थाम लिया था। तीनों दोस्तों ने तो घबराहट मे अपनी आँखे बड़ी कर लिए थी। लेकिन दक्ष के बाहों मे, दक्षांश को देख तीनों ने राहत की सांस ली।हैंडसम अंकल... दक्षांश ने दक्ष को देखते कहाँ। दक्ष मुस्कुराते हुए.... हाँ जूनियर!!! उसे लेकर उठता है।
दस मिनट पहले.....
दक्ष...स्कूल मे पहुँचता है उसके साथ अतुल, अनीश, वीर भी.... अनीश " दस कान्वेंट स्कूल " बोलता हुआ अंदर आते है. स्कूल वहाँ के दस बेस्ट स्कूल मे से एक था। चारों गेट से अंदर आते है.... तो ग्राउंड मे बहुत लोगो इकट्ठा देख..... अनीश... अतुल से.... यें क्लास मे पढ़ाई छोड़ मैदान मे क्या कर रहे है और अलनी घड़ी देख कर... वो भी सुबह के दस बजे। दक्ष उसी तरफ आगे बढ़ जाता है... की दीक्षा को देख उसके कदम तेज हो जाते है। ज़ब दक्षांश को, उन लडको के पिता धक्का देते है और दक्षांश पत्थर पर गिरता तब तक दक्ष कूद कर उसे अपनी बाहों मे थाम लेता है।
दक्ष, दक्षांश को संभालते हुए कहता बच्चा तुम्हें चोट तो नहीं लगी। और उसके हाथ पैर को देखने लगता है और उसे बाहों मे ले कर अपने बेटे को महसूस करता है।दीक्षा.... दक्ष की आखों मे दक्षु के लिए फ़िक्र साफ देख पा रही थी। नहीं हैंडसम अंकल मुझे कहीं नहीं लगी क्योंकि आप ने बचा लिया ना....दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगते है।
अब दक्ष के चेहरे का भाव बदल कर गहरा और कठोर हो जाता है..... वीर। इस शब्द मे ही इतनी कठोरता थी वहाँ के सभी लोगो यें आवाज़ सुन सहम जाते है।
"जी भाई सा "......। दक्षांश को आप बाहर ले जाईये। जूनियर आप इनके साथ जाओ। दीक्षा बिच मे आती है कुछ कहने..... दक्ष उसे आँखे दिखा देता है.... उसकी आँखे देख.... दीक्षा एक पल सहम जाती है।
वीर दक्षांश को लेकर जाने लगता है की..... प्रिंसिपल, कुछ टीचर और उन चारों लडको के पेरेंट्स....उनमे से एक का पिता . गुस्से मे आकर कहता है.... आप है कौन और ऐसे केसे इस नाजायज बच्चे को... पूरी लाइन होती तब तक अनीश एक पंच लगा देता है। दक्ष यें लाइन सुनकर अपनी मुट्ठी को कस देता है..... अभी वो अपना भयानक रूप... दक्षांश के आगे नहीं लाना चाहता इसलिए इशारा दिया और वीर, दक्षांश को लेकर चला गया।
दक्ष अब गुस्से मे... किसकी इतनी हिम्मत हुई जो दक्षांश दक्ष प्रजापति से ऐसी बात करे। अनीश इस स्कूल को खरीद लो। यहाँ के एक एक स्टाप जो इसमें शामिल था उसे ऐसी सबक सिखाओ की..... इन सबको मालूम हो की स्कूल मे शिक्षा देना और पूरी ईमानदारी से एक शिक्षक का काम होता है। इनको बताओ की एक शिक्षक के लिए हर बच्चा सामान होता है.... ना कोई बड़ा... ना कोई छोटा। और इस प्रिंसिपल..... उसके पास आकर.....दक्ष अभी गुस्से में बहुत डरवना लग रहा था... पुरे स्कूल में सभी उसके क्रोध के आगे कांप रहे थे.... प्रिंसिपल हाथो को जोड़ कर.... हकलाते हुए..... ग... गगगगगगगग... ललललललल... ती..... हो गयी.... ररारा... जाजजा.... स्साहब...।दक्ष गुस्से मे सभी की तरफ देखते हुए.... अपने एक शब्दों को चबाकर कहता है....
उन चारों बच्चों के पेरेंट्स को और उन बच्चों को..... मेरे बेटे के लिया इतनी वाहियात बातें करने वाले को... मै इस धरती पर रहने का हक्क नहीं देता..... लेकिन तुम सब अपने बच्चे को अच्छी परविश दो और यें सिखाओ की किसी को बुली करना गलत है.... क्योंकि हर बार बुली करने वाला गीदर नहीं होता कभी कभी शेर भी होता है।जितनी जल्दी हो सके यहाँ से दूर चले जाओ।
चारों उनकी कदमो मे गिर कर.... माफ कर दे हमें..... राजा साहब.... गलती हो गयी हमसे और हमारे बच्चों से..... हम दूर चले जायेगे। आज ही कहते हुए तेजी से सभी अपने बच्चे को लेकर निकल जाते है।
प्रिंसिपल हाथो को जोड़ कर कांप रहा है। दक्ष उसकी तरफ बिना देखे..... कहता है.... इन सभी उस जगह भेजो जहाँ यें सब अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाना सिख ले।
अंदर एक साथ बहुत सारे गार्ड आ जाते है... इतने सारे गार्ड्स को देख कर सबके पसीने छूट रहे होते है और दक्ष को देख कर... दक्ष दीक्षा का हाथ पकड़ जाने लगता है। पीछे से तूलिका और रितिका कुछ कहने को होती है तो अनीश और अतुल दोनों को यें कहते हुए रोक देते है..... आप दोनों हमारे साथ चलिए और फिक्र मत कीजिये.... आपकी दोस्त सही हाथों मे है।
वो दोनों भी निकल जाते है.....
तूलिका उन दोनों पर अपनी ऊँगली पॉइंट करती हुई कहती है, "देखो mr. बताओ हमारा बच्चा और दिक्षु किधर हैं। अगर उन्दोनो को कुछ हुआ ना तो मै.... तुमदोनों का हाल करुँगी.....तुम जानते नहीं मुझे कहती हुई.... अतुल की तरफ बढ़ी जा रही थी। देखो मिस.... इस तरह से आगे मत बढ़ो.... वो दोनों ठीक है। लेकिन तूलिका को इस तरह खुद की तरफ बढ़ता देख अतुल थोड़ा पीछे होता है।
अनीश तो मौका देख रितिका का हाथो पकड़ अपनी तरफ कर लेता.... रितिका धीरे से कहती है.... हाथ छोड़िये मेरा। अनीश उसकी मीठी आवाज़ मे खो कर उसे देखते हुए कहता है.... धीरे से कहता है.... हाय!!!!क्या आवाज़ है..यें भूरी आँखे... यें घुंघराले बाल... उफ्फ्फ.... अब तो .. यें हाथ तो अब जिंदगी भर नहीं छूटेगा.....। क्या कहा आपने। कुकुकू.....कुछ नहीं। मै तो बस आपको इधर कर रहा था... क्योंकि उन दोनों को देखिये। फिर उसे अपनी तरफ खींच लेता है। रितिका ना समझी मे उसे देखती है। अनीश मुस्कुरा कर उसे सामने देखने को कहता है। अरे यें तो... वो बोलती है की अनीश उसे चुप करवा कर कहता है... आपकी दोस्त संभाल लेगी और अतुल को देख कर वो और वीर मुस्कुराते है।
अतुल को इस तरह पीछे होते देख... तूलिका अपनी आँखे छोटी करती हुई इधर -उधर देखती है....। अतुल भी उसकी नजरों का पीछा करते हुए देख रहा है की वो क्या ढूढ़ रही है। तभी उसकी नजर एक डंडे पर जाती है, जिसे देख अतुल की आँखे बड़ी हो जाती है और तूलिका की आखों मे चमक आ जाती है... वो जल्दी से डंडा उठा लेती है।..... ऐ.... पागल.... लड़की.... यें.... यें.... क्या कर रही हो तुम। अतुल पीछे होते हुए बोल रहे होता है..... तूलिका अपनी आकर छोटी करके कहती है..... क्या कहा तुमने मगरमच्छ... मै पागल.... अरे तु पागल सांड.... रुक... अभी बताती हूँ.....।
अनीश रोको इस चुड़ैल को.... वीर बचाओ इस पिचाशनी से मुझे और वो भागता है...। मै.... चुड़ैल.... मै पिचाशनी..... रुको अभी तुम्हारा खुन पी कर दिखाती हूँ.... रुक भागता कहाँ है... क्या समझा है.... कमजोर हूँ मै..... दौड़ती हुई..... अतुल के पीछे जाती है
सुनिये उसे रोकिये वो आपके दोस्त को जरूरत हॉस्पिटल पंहुचा देगी। अनीश उसकी भूरी आखों मे देख कर.... सुनिये नहीं मोहतरमा.... अनीश ना है मेरा। और उन्दोनो को रहने दीजिये। मेरा दोस्त अतुल आपकी दोस्त को संभाल लेगा। अभी हमें चलना चाहिए। वीर.... के पास दक्षांश सभी कुछ देख रहा था लेकिन उसके दिमाग़ मे सिर्फ दक्ष की कही बातें चल रही थी इसलिए वो शांत था क्योंकि उसे सिर्फ दक्ष से ही बात करनी थी। वो अनीश से पूछता है, "हम कहाँ जा रहे है..... हैंडसम अंकल के पास। अनीश उसके पास आकर प्यार से.... उसे गले लगता हुआ कहता है की... हाँ, हमें आपके घर जा रहे है तो चले।वो आगे बढ़ने को होता है तो दक्षांश कहता है.... मै आपको और बीर की तरफ देख कर..... आप दोनों को क्या बुलाऊ।
दोनों घुटने पर एक साथ बैठ जाते है और उसका हाथ पकड़ कर कहते है.... मै आपका अनी चाचू.... और मै आपका काका सा। अब चले कुंवर सा। यें सुन रितिका और दक्षांश वीर का मुँह देखने लगते है। अरे वो वीर यहां के है ना तो यहाँ इस तरह ही बुलाया जाता है। वीर को भी अहसास हुआ की भावनाओं मे बह वो क्या कह गया। चारों निकल जाते है और पीछे छोड़ जाते दो तलवारो को।
इधर अतुल के पीछे पीछे तूलिका भागते हुए.... दोनों बगीचे मे पहुंच जाते है.... और उसे मारने को जैसे ही डंडा उठाती है.... पत्थर से उसका पैर टकड़ा जात है और गिरने को होती है की तब तक अतुल उसे पकड़ लेता है लेकिन अतुल का भी ब्लेंस बिगड़ाता है और वो तूलिका को लिए निचे घास और फूलों के बिच गिर जाते है।
दोनों एक दूसरे के आखों मे देख रहे होते है। अतुल के दोनों हाथ तूलिका के कमर पर थे और तूलिका के दोनों हाथ, अतुल के सीने पर थी।दोनों के लिए यें थोड़ी अलग परिस्थिति थी। जहाँ अतुल की आखों मे.... तूलिका के लिए कुछ खास था, वही तूलिका की आखों मे घबराहट ।वो दोनों इतने करीब थे की दोनों की सांसे एक दूसरे को महसूस हो रही थी। दोनों की आखों मे एक अलग बेचैनी थी। अतुल लगातार उसकी आखों मे देख रहा था.... जहाँ उसकी आखों मे सिर्फ दर्द और अकेला पन था। तूलिका थोड़ा संभाल कर उठने लगी, लेकिन अतुल ने उसकी कमर इतनी जोड़ से पकड़ रखी थी की.... वो उठ नहीं पा रही थी। जिससे थोड़ी खिझ कर कहती है.... आप छोड़ेंगे.... लेकिन अतुल जैसे सुन ही नहीं रहा था। तूलिका चिढ कर.... उसके सीने पर जोर से चुटकी काट लेती है।.... आउच... जंगली बिल्ली.....अतुल बोलते हुए.....। तूलिका घूर कर कहती है.... छोड़ो मुझे। अतुल उसे और अपनी करीब करके.... कहता है.... अगर ना छोरु तो..... अपनी भोहों को ऊपर कर उसे देखता है। वो भी अपनी आखों को छोटी करके.... बिना उसे सोचने का मौका दिए..... उसके गले पर जोर से काट लेती है।..... अतुल.... दर्द से चिल्लाते हुए... आअह्ह्ह..... और उसे अपने निचे पलट देता है। वो उसी तरह उसे घूर कर कहती है... हटो मेरे ऊपर से..... नहीं तो.....। अतुल मुस्कुराते हुए उसके माथे को चुम लेता है.... उसके इस छुवन से तूलिका की आँखे.... ना जाने क्यों लेकिन सुकून से बंद हो जाती है। उसकी बंद आखों को देख.... अतुल मुस्कुरा कर.... उसकी दोनों आखों को चुम लेता है..... फिर भी वो आँखे नहीं खोलती..... फिर दोनों गालों को प्यार से चुम लेते है।.... उसकी आँखे अब भी बंद देख..... अतुल धीरे से उसके होठों पर अपने होठों को रख देता है और बहुत प्यार से.... छोटा सा प्यारा किश देते हुए कहता है... ज़ब ज़ब तुम इस तरह मुझे काटोगी... मै भी इस तरह से तुम्हें प्यार करुँगा।
तूलिका उसकी बातें सुन आँखे खोल देती है.... और आँखे बड़ी करते हुए देखती है.... क्योंकि उसे खुद नहीं समझ मे आ रहा था की.... क्यों वो अतुल को रोकने की जगह उसे महसूस कर रही थी। उसकी चेहरे के भाव को उलझा देख अतुल कहता है..... ज्यादा मत सोचो.... जंगली बिल्ली। मै गाँधी के नक्शे कदम पर चलता है..... तुम्हारे हर हिंसा का जवाब मैं प्यार से दूँगा। यें कहते हुए फिर से उसके होठों को हल्का चुम लेता है। लेकिन इस बार तूलिका उसे अपने उप्रवसे जोर से धका दे कर..... उठ जाती है। अतुल भी मुस्कुराते हुए ही उठता है..... लेकिन उसकी मुस्कान..... सॉक्ड मे बदल जाती है। ज़ब तूलिका उसे एक थप्पड़ मारती है।
तूलिका आगे बढ़ने लगती है तो अतुल उसके हाथों को पकड़ लेता है, और उसके पास आकर कहता है, "माफ कर दो "।
तूलिका बिना जवाब दिए जाने लगती है, तो अतुल उसके पीछे पीछे होता है। यें रितिका और आपके दोस्त कहाँ है। अतुल बिना जवाब दिए गाड़ी ले आता है... और कहता है.... चलो। तूलिका अपनी आँखे छोटी कर उसे देखती है। घूरना बंद करो और अंदर बैठो। नहीं मै नहीं बेठूगी, तुम मुझे बता दो कहाँ गयी मै वहाँ खुद चली जाउंगी।
अतुल गाड़ी से निकल कर उसे खींच कर गाड़ी मे बिठा देता और खुद ड्राइविंग के लिए बैठ जाता है। तूलिका गुस्से मे कहती है.... यू... इडियट.... बतमीज....हर चीज मे जबरदस्ती कर रहे हो.... लॉक खोलो मै उतुरुँगी.... अभी के अभी... थोड़ी तेज आवाज़ मे बोलती है।वो बस बोलती जा रही थी और इधर अतुल का सब्र टूटता जा रहा था। थोड़ा कठोर आवाज़ मे कहता है... एनफ 🙏चुप हो जाओ नहीं तो...। तूलिका अपनी भोंए चढ़ाते हुए बोली..... नहीं तो क्या.... Mr....।
अतुल थोड़ा टेढ़ा मुस्कुराते हुए..... उसके करीब होकर कहता है की... नहीं तो अभी जिस बात की माफ़ी मांग रहा था..... वो इस बार करुँगा और माफ़ी भी नहीं मांगूगा।
तूलिका अपनी आँखे बड़ी करके.... कहती है.... तुम मगरमछ तुम्हारी.... बात पूरी करती की अतुल उसकी तरफ झुकने लगता है..... वो तुरंत अपने मुँह पर हाथो को रख खिड़की की तरफ घूम जाती है। अतुल मुस्कुराते हुए... बेटर!!!! और झुकने लगता है।..... तु... तु... तुम.... अब। तब तक अतुल उसकी सीट बेल्ट लगा देते है। और गाड़ी अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाती है।
रितिका अनीश से यें कौन सी जगह है...बाहर बहुत बड़े बड़े अक्षरों मे लिखा हुआ था..... पार्वती मेंशन। अनीश कहता है यें आपकी दोस्त का घर है। रितिका हैरान होकर अनीश की तरफ देखती है। दक्षांश मेंशन मे आते ही कहता है..... वाव रितिका मौसी यें कितना सुन्दर है... बहुत बड़ा गार्डन उसके बिच मे फाउंटेंन..... और चारों तरफ रंग बिरंगे फूल.... साथ मे फलों के बगीचे और उन सभी के बिच मे आलिशान मेंशन जो बेहद खूबसूरत बना हुआ था।
दक्षांश अनीश के पास आकर कहता है, "अनी चाचू के मै यें मेंशन देख सकता हूँ।"अनीश प्यार से उसके माथे पर हाथो को फेर कर कहता है... यें आपका ही घर है... आप जहाँ चाहे घूम सकते है, देख सकते है। फिर वीर की तरफ देख कर कहता है... और यें आपके काका सा आपको आपका कमरा दिखाएंगे।
दक्षांश आश्चर्य होकर कहता है...क्या सच मे। अनीश मुस्कुराते हुए हाँ कर देते है।
इधर दक्ष बहुत तेजी से जंगलो के बिच गाड़ी चलाते हुए जा रहे था..... उसके अंदर बहुत गुस्सा भरा हुआ था.... स्कूल मे बोली गयी बातें दीक्षा और दक्षांश के लिए.... वो उसे बर्दास्त नहीं हो रही थी।
सर... सर.... काँपते हुए दीक्षा बोल रही थी..... सर गाड़ी धीरे चलाइये डर लग रहा है मुझे..... हम कहाँ जा रहे है..... सर प्लीज। लेकिन दक्ष को तो अभी कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था।
दीक्षा डर से आँखे बंद कर लेती है। और दक्ष एक लकड़ी के घर के अंदर अपनी गाड़ी रोकता है।
दीक्षा जो डर के मारे अब भी अपनी आँखे बंद किये बैठी थी की उसे पता ही नहीं चला दक्ष ने गाड़ी रोक दी है। दक्ष गाड़ी रोकने के बाद ज़ब दीक्षा की तरफ कुछ कहने के लिए मुड़ता है तो..... दीक्षा का डर की वजह से चेहरे का रंग उड़ा हुआ और आँखे बंद देख... दक्ष के चेहरे दर्द उभर आती है। उसे खुद से अफ़सोस होता है की अपनी गुस्से मे उसने दीक्षा को डरा दिया।
दक्ष... दीक्षा की तरफ का दरवाजा खोल कर उसे गोद मे उठा लेता है। उसके गोद मे उठाते ही, दीक्षा अपनी आँखे खोल देती है.... उसकी आँखे आंसूओ से भरी, लाल देख.... दक्ष को अपने अंदर चुभन महसूस होती है, लेकिन बिना कोई भाव अपने चेहरे पर लाये वो दीक्षा को लेकर अंदर आने लगता है।
दीक्षा जिसके अंदर अब हिम्मत नहीं बची थी कुछ कहने की..... दक्ष के सीने मे अपना मुँह छिपा कर आँखे बंद कर लेती है।
दक्ष के अंदर आते ही... खम्माघणी राजा सा.....।
बसंती काकी कुछ हल्का सा बना दीजिये हम आपसे कुछ देर मे मिलते है।
"जो हुकुम राजा सा "।
दक्ष सीधे दीक्षा को लेकर अपने बैडरूम मे आता है।बैडरूम मे दीक्षा को लेकर बेड पर सुला देता है, दीक्षा अब भी अपनी घबराहट और डर से खुद को निकाल नहीं पायी थी। दक्ष उसे सीधे अपने बाहों मे लेकर... उसके पीठ को सहलने लगता है..... और धीरे धीरे कहता है...."स्वीट्स...!!! मेरी शेरनी इतने मे घबरा गयी। जिसने इतनी सारी मुश्किल को अकेले ही संभाला। दीक्षा जो उसके सीने मे अपने सर को छिपा रखा था। उसे सर उठा कर अपनी नासमझी भरी आखों से देखती है।
दक्ष उसकी मासूमियत देख मुस्करा देते है। ज्यादा मत सोचो "स्वीट्स "। सुन दीक्षा उसकी बाहों से निकलने लगती है।
दक्ष उसे जोर से अपनी बाहों मे समां लेता है...और अपना चेहरा उसके बालों मे घुसा कर,....अपनी मदहोशी भरी आवाज़ मे कहता है.... मत जाओ स्वीट्स!!!!सात साल से तड़पा हूँ तुम्हारे लिए। कहाँ कहाँ नहीं ढूढ़ा तुम्हें।
दीक्षा उसकी बात सुन बहुत हैरान होती है। और दक्ष से हल्का अलग हो उसकी तरफ देखती है..... आप किस बारे मे,बात कर
रहे है।
दक्ष उसे परेशान होता देख.... उसके चेहरे को अपनी हाथों मे भर कर कहता है की.... मै हमारे बारे मे बात कर रहा हूँ स्वीट्स!!!! मै तुम्हें पिछले सात सालों से ढूढ़ रहा हूँ।
लेकिन क्यों आप मुझे ढूढ़ रहे है?????
क्योंकि स्वीट्स मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुम्हारी एक झलक देखने के बाद..... तुम यकीन नहीं करोगी की.... मैने तुम्हें किस हद तक ढूढ़ा है।
दीक्षा उसके हाथो को अपने चेहरे से हटा कर.... उठ जाती है और खिड़की पास खड़ी होकर कहती है... देखिए सर मुझे नहीं मालूम की आपने मुझे कब और कहाँ देखा है। आप इतने बड़े खानदान के वारिश है, होने वाले राजा है। आपको मेरी जैसी लड़की के साथ नहीं होना चाहिए। स्कूल मे आकर आपको मालूम हो गया होगा की मेरा एक सात साल का बेटा है। उसके पिता के बारे मे, मै किसी को कुछ नहीं बताना चाहती, क्योंकि दक्षु सिर्फ दीक्षा राय का बेटा है। और आप एक सात साल के बच्चे की माँ से केसे प्यार कर सकते है। हो सकता है... ज़ब आपने मुझे देखा हो तब मै एक लड़की थी और आज मै एक माँ हूँ। मै सम्मान करती हूँ आपके प्यार का.... की सिर्फ एक झलक देखने पर आप जैसा हैंडसम इंसान मेरी जैसी लड़की का इंतजार कर रहा था और मुझे ढूढ़ रहा था।
आपको तो दुनिया की एक से एक खूबसूरत लड़की मिल जाएगी। और माफ कीजिये मेरे जीवन मे, मेरे बेटे के अलावा कोई नहीं आ सकता।
दक्ष जो उसकी बात सुन रहा था और समझ चूका था की दीक्षा ने उसे नहीं पहचाना!!!! कुछ देर दोनों ख़ामोश रहते है। फिर दीक्षा को ज़ब, दक्ष की तरफ से कोई जवाब नहीं आता तो वो कमरे से जाने को होती है। तभी दक्ष कहता है...
तो क्या आपकी जिंदगी मे दक्षांश के पिता के लिए भी कोई जगह नहीं है। दीक्षा के बढे कदम रुक जाते है और एक घबराट उसके चेहरे पर आ जाती है, दक्षांश के खोने की। वो मुड़कर बहुत बेचैनी से दक्ष को गौर से देखती है। दक्ष सिर्फ उसके चेहरे के भावों को समझ रहे होता है।
दीक्षा बहुत हिम्मत से अपनी शब्दों को कहती है की..... तो क्या आप..... वो.... होटल.... इससे आगे नहीं बोल पाती।
दक्ष इशारे से अपना सर हिलता है और कुछ कहता नहीं क्योंकि वो जानना चाहता है की दीक्षा के दिमाग़ मे क्या चल रहा है।
दीक्षा जल्दी से उसके पास आकर उसके दोनों हाथों को पकड़ लेती है..... दक्ष इससे पहले कुछ कहता.... की दीक्षा की बात सुन कर..... आवाक हो जाता है।
दीक्षा दक्ष के दोनों हाथों को पकड़ कर कहती है... प्लीज हमें आपके आगे हाथ जोड़ते है.... हमारे बच्चे को हमसे मत छिनिये। उस दिन हमें गलती से आपके कमरे मे चले गए थे, खुद को बचाने के लिए। और हमें आपसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि हमें आपको कुसूरवार नहीं मानते, परिस्थिति ही कुछ ऐसी थी.... बोलती हुई रोने लगती है।
दक्ष उसके हाथों से अपने हाथों को छुड़ा लेता है....इस तरह हाथों को छुड़ाने से दीक्षा का दिल टूट जाते है और वो हिचूक हिचूक कर रोने लगती है।
दक्ष उसे तेजी से अपनी तरफ खींचता है.... ज़ब तक दीक्षा को कुछ समझ मे आता.... दक्ष अपने होठों को उसके होठों पर रख कर चूमने लगता है.... अपने दोनों हाथों के अंगूठे से उसकी गालों पर गिरे आंसूओ को पोंछ देते है। दीक्षा वैसे भी उसकी छुवन से खुद को सयमित नहीं कर पाती.... वो भी उसे चूमने लगती है... उसके दोनों हाथ दक्ष के शर्ट को मजबूती से पकड़ी होती है। दक्ष उसके किश करने से मुस्कुरा देता है और उसके कमर को अपनी तरफ खींच लेता है। उन्दोनो के बिच हवा बहने तक की कोई गुंजाईश नहीं बचती। दक्ष किश करते हुए अब उसकी मुँह मे अपनी जुबान को अंदर करता है..... उन्दोनो की किश बहुत ज्यादा रुमानी होती जाती हो।
दक्ष दीक्षा को सीधे बेड पर सुला देते है, इस बिच उसने एक बार भी दीक्षा को चूमना नहीं छोड़ा। दोनों के दिलो को एक दूसरे के साथ का सात सालों से इंतजार था। और आज वो इंतजार खत्म हुआ तो दोनों एक दूसरे को नहीं छोड़ते है। दीक्षा के दोनों हाथो अब दक्ष की शर्ट को छोड़, उसके बालों पर घूम रहा होता है और दक्ष के हाथ.... दीक्षा की पूरी बदन पर चल रही होती है। लगभग बीस मिनट की गहरी चुबन के बाद दीक्षा को सांस लेने मे परेशानी होती है.... दक्ष उसके लबों को छोड़.... उसके गले को चूमने लगता है.... दीक्षा बस मदहोश होती जा रही थी।
दक्ष धीरे धीरे उसके टॉप को खसखाने लगता है और उसके कंधे को चूमने लगता है.... आज वो खुद को बिल्कुल नहीं रोकना चाहता। आज उसके अंदर सात साल की उसकी तरप, उसकी बेचैनी, दर्द सभी कुछ वो दीक्षा से प्यार करके बताना चाहता है।
दीक्षा को भी उसकी इस तरह करने से अहसास हो जाता है की दक्ष के लिए वो क्या मायने रखती है। वो भी उसे नहीं रोकती... क्योंकि उसने भी वही अहसास किया है बीते सात सालों मे जो दक्ष ने किया है।
फर्क दोनों के अहसास मे सिर्फ इतना था की दक्ष को दीक्षा याद थी और दीक्षा को दक्ष याद नहीं था।
दक्ष धीरे धीरे उसके कंधे को चूमते हुए निचे आने लगता है.... फिर अचनाक वो रुक कर उसी तरह उसे गले लगाए हुए लेटा होता है। दीक्षा कोई हरकत ना देख उसकी तरफ मुड़ती है.... दक्ष अपना चेहरा उसकी गर्दन मे छीपाये हुए था, दीक्षा के हाथ उसके सर पर चल रहे होते है। दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं कहते कुछ देर..... फिर दक्ष उठ कर, दीक्षा को अपनी बाहों मे ले, बिस्तर पर टेक लगा कर बैठ जाता है। दीक्षा अपने सर को ऊपर करके उसे देखती है। दक्ष उसकी आखों मे देखते हुए कहता है, "स्वीट्स अब तो समझ गयी होगी की मैं कौन हूँ। दीक्षा अपना सर हाँ मे हिलाती है। दक्ष अपनी बात जारी रखते हुए। उस रात हमारे बिच चाहे जो हुआ चाहे जिस वजह से हुआ, लेकिन वो रात मेरी यादगार रात थी। उस पल के बाद से ही मैं तुम्हारा हो गया था, अगर तुम सुबह सुबह यु बिना बताये नहीं गयी होती तो अलगे दिन ही मैं तुमसे शादी करने वाला था। दीक्षा उसकी बात सुन हैरानी से देखती है..... दक्ष उसके भाव को समझ कर हँस देता है।
"स्वीट्स मुझे तुमसे पहली नजर का प्यार हो गया था, ऐसे नहीं था की तुम मेरे करीब आयी और मैं नशे मे था तो फ़िसल गया..... दक्ष प्रजापति को खुद पर काबू करना आता है और औरतों मे मालमो मे तो बिल्कुल। लेकिन तुम्हारी यें हरी और गहरी आँखे जो उस रात मुझे दीवाना बना रही थी, तुम्हारे बदन की खुशुब मुझे खुद को खोने पर मज़बूर कर रही थी। और बार बार तुम्हारा मुझे चूमना, मुझसे लिपटना.... मेरा कंट्रोल मुझ पर से खत्म होता जा रहा था और वो पहली बार था"। दीक्षा उसकी बात सुन कर शरम से पानी हुई जा रही थी और अपने चेहरे को उसके सीने के अंदर छीपाये जा रही थी।
दक्ष इस तरह उसे शर्माते देख जल्दी से अपनी निचे पलट देते है, दीक्षा निचे थी और दक्ष उसके ऊपर.... दोनों एक दूसरे को आखों आखों मे देखे जा रहे थे।
दक्ष उसकी आखों मे देख कर बहुत प्यार से कहता है,"स्वीट्स मेरी जिंदगी मे तुम पहली और आखिरी लड़की को जो मेरे करीब आयी और जिससे यें दक्ष प्रजापति बेहद मोहब्बत करता। मैंने तुम्हे कहाँ कहाँ नहीं ढूढ़ा लेकिन.... मैंने मैंने यें नहीं सोचा था की मेरी छोटी बीबी दिमाग़ की इतनी तेज होगी।
अपनी आँखे छोटी करती हुई.... आपने छोटी किसे कहा।.... तुम्हें और किसे।.... क्या मैं छोटी हूँ।.... तो क्या तुम मुझसे छोटी नहीं हो। दीक्षा अपना सर झुका लेती है।
मेरी तरफ देखो दीक्षा। दीक्षा उसकी तरफ देखती है। दक्ष थोड़ा गंभीरता से कहता है..... तुम्हें मुझे कोई सफाई देनी की जरूरत नहीं है क्योंकि मैं जानता हूँ की मेरे से पहले और मेरे बाद कोई तुम्हारी जिंदगी मे नहीं आया। और दक्षांश हमारा बेटा है। उस रात की निशानी। दीक्षा के आखों नम हो जाती है और वो अपना सर हिला देती है।
दक्ष उसे रोता देख अपनी सीने से लगा लेटा है.... दक्ष के सीने पर सर रखते ही दीक्षा रोने लगती है.....।दक्ष उसके बालों को सहलाते हुए उसे रोने देते है। फिर आराम से कहता है आज रो लो स्वीट्स.... आज के बाद कभी तुम्हारी आखों मे आंसू नहीं आने दूँगा। दीक्षा कुछ देर रोने के बाद सुबुकते हुए कहती आपको मालूम है इन सात सालों मे, आपको बिना देखे हुए भी आपको अपने करीब महसूस करती थी, उस दिन का अफ़सोस हर दिन करती थी की काश मैंने आपका चेहरा देख लिया होता। लेकिन ज़ब दक्षांश को देखती हूँ तो सिर्फ आखों को छोड़ उसका सब कुछ आपकी तरह है.... उसे देख इस बात का सुकून था की मैं किसी अच्छे इंसान के साथ ही अपनी जिंदगी की सबसे कीमती चीज लुटाई।
दक्ष... दीक्षा को कहता है..... शायद हमारी जिंदगी मे यें बिछरना लिखा हुआ था। लेकिन अब बस स्वीट्स मैं बहुत तड़पा इन सात सालों मे और ज़ब से मुझे मालूम हुआ की तुम मेरी हो.... मैं नहीं रख पाया खुद को तुमसे दूर। अब बस..... मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। मुझे ज्यादा प्यार जताना नहीं आता इसलिए सीधी बात तुमसे की।
लेकिन दक्ष हमारी शादी केसे हो सकती आप यहाँ के होने वाले राजा है और मैं और लोगो को क्या कहेगे।
दक्ष उसके चेहरे को हाथो मे लेकर कहता है... तुम उसी दिन दक्ष प्रजापति की पत्नी बन गयी थी जिस दिन हम एक हुए थे। अब तो बस सामाजिक तरीके से बांधना है। नहीं तुम मेरी हो यें मेरी अंतरात्मा ने उसी दिन मैन लिया था। इसलिए इन सात सालों मे तुम्हारे अलावा ने किसी को सोचा, ना चाहा, ना जाना।
दीक्षा उसकी बाहों मे आ गयी.... सच मे दक्ष आप मुझसे इतनी मोहब्बत करते है।
"स्वीट्स तुम्हारे बगैर दिल कहीं लगता नहीं मेरा "। फिर वो भी उसे बाहों मे भर लेता है।
कुछ देर बाद खुद को अलग कर के कहता है चलो जल्दी से कुछ खा लो हमें घर निकलना है। लेकिन दक्ष हम अभी आये है। और दक्षांश... रितिका.... तूलिका.... यें सब कहाँ आये है।
दक्ष उसे देखते हुए कहता है..... वो सब घर पहुंच गए और.... यहाँ हमें बाद मे आएंगे। तब आराम से रहना। दीक्षा को अंदाजा हुआ की वो फ्लो फ्लो मे क्या बोल गयी। अपनी बात याद आते ही उसने शरमा कर सर झुका लिया। दक्ष को उस की इस हरकत पर बहुत प्यार आ रहा था, मुस्कुराते हुए, वो उसे अपनी बाहों मे खींच कर ले लेता है.... और कहता है... तुम्हें शर्माने की जरूरत नहीं स्वीट्स..... दक्ष प्रजापति की सब कुछ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा है यहाँ तक मेरी सांसे और जिंदगी भी।
अब चले।
कंटिन्यू....