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Chapter 2 - Chapter 1 ब्लैकमेलिंग

"मॉम, ये तो सरा सर ब्लैकमेलिंग है। आप हमेशा एक ही बात लेकर क्यों बैठ जाती हैं? आपको बात करने के लिए कोई और टॉपिक नही मिलता? आप जानती हैं ना ये नही हो सकता।" कबीर अपनी नाराजगी जता रहा था।

"मैं तेरी मां हूं। तुझे ब्लैकमेल करूंगी? कबीर की मां सुमित्रा बोली।

"तोह फिर क्या है ये सब मॉम?

"तुझसे बात ही तो कर रही हूं।"

"पर मुझे नही करनी।"

"तुझे करनी पड़ेगी। बहुत हो गया तेरा।"

"मॉम!"

"सिर्फ एक बार मिल ले बेटा। शायद तू अपना फैसला बदल दे।"

"यह कभी नही हो सकता, मॉम, कभी भी नही।

इतना कह कर कबीर अपनी मां के कमरे से तेज़ कदमों से बाहर चला गया।

उसके जाते ही इंद्रजीत मैहरा कमरे में आए और अपनी पत्नी सुमित्रा मैहरा को देखते ही उस ओर बढ़ गए। अपनी पत्नी को इतना मायूस देख कर उन्हे भी दुख हो रहा था। वोह अपनी पत्नी सुमित्रा के साथ ही उसके बगल में बैड पर बैठ गए।

"वोह नही मान रहा है।"

"मानेगा। आप परेशान मत होइए।"

"कैसे ना परेशान होऊं। हर मां का सपना होता है ये।"

"हम फिर से कोशिश करेंगे। चलिए अब नाश्ता कर लीजिए। फिर सोचते हैं आगे क्या करना है।" इंद्रजीत जी ने बात खतम करनी चाही ताकि सुमित्रा जी ज्यादा इन सब के बारे में सोच सोच कर बीपी न बढ़ा ले।

नाश्ते के वक्त घर के सभी लोग डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। इंद्रजीत मैहरा, उनकी पत्नी सुमित्रा मैहरा, उनका मंझला यानी दूसरा बेटा इशान मैहरा और सबसे छोटा और नटखट बेटा साहिल मैहरा।

तोह कुल मिला कर उनके तीन बच्चे थे। सबसे बड़े से तो आप मिल ही लिए, कबीर मैहरा।

"मॉम! भाई कहां है। आज नाश्ता नहीं करेंगे।" इशान ने पूछा।

"वोह ऑफिस जा चुका है।" सुमित्रा जी ने चुपचाप नाश्ता करते हुए जवाब दिया।

इशान ने अपनी मां को खोया हुआ देख कर अपने पिता की तरफ देखा। उसके पिता इंद्रजीत जी ने अपनी पलके झपका दी।

"तो भईया ने फिर मना कर दिया।" इस बार साहिल बोला।

इशान ने उसे आंख दिखाई तो वो चुप हो गया।

उसके बाद दो दिन नॉर्मल गुज़रा। इस टॉपिक पर किसी ने कबीर से कोई बात नही की।

दो दिन बाद रात को कबीर देर से घर आया। तब तक घर के सभी लोग खाना खा कर सोने जा चुके थे। क्योंकि कबीर ने पहले ही इनफॉर्म कर दिया था की उसे देर हो जायेगी। जब कबीर घर में घुसा तो लिविंग रूम में कोई नही था फिर वो अपने रूम की तरफ बढ़ गया। जब वो कपड़े चेंज कर के वापिस नीचे हॉल में आया तो सोफे पर बैठा इशान दिखा।

कबीर को वोह थोड़ा परेशान लगा। हालांकि इशान उस वक्त फोन पर बात कर रहा था। कबीर की आदत नही थी किसी की बातें छुप कर सुनने की लेकिन कुछ ऐसा हुआ जिससे उसके कदम वहीं रुक गए। वोह रुक कर बात सुनने लगा।

"मुझे माफ करदो, आई एम रियली वैरी सॉरी!" इशान फोन पर किसी से बात करते वक्त कह रहा था।

"मुझे यह करना ही होगा, तुम भूल जाओ मुझे।"

कबीर को समझ नही आ रहा था की वोह ऐसी बात क्यों कर रहा है, आखिर क्या हुआ है। उसने देखा की इशान ने फोन काट दिया है क्योंकि वोह आगे बोल ही नहीं पा रहा था। उसने देखा की इशान की आंखे बिलकुल लाल थी उसकी आंखों के कोरों में नमी तो थी लेकिन आंसू नहीं बहे थे जैसे वो अपने अंदर उमड़ रहे तूफान को अपने अंदर ही समा रहा हो।

जब इशान उठ कर जाने लगा तो उसकी नज़र सामने खड़े कबीर पर गई। तो वो झट से अपने आप को नॉर्मल करके उसके पास आ गया इस उम्मीद से की उसने कुछ नही सुना होगा शायद।

"तू किस्से बात कर रहा था?" कबीर ने सीधे सीधे ही सवाल पूछा दिया।

"अ... अ... क....किसी से नही भाई," इशान को इस सवाल की उम्मीद नही थी।

"मैंने देखा, अब झूठ मत बोल।"

"भाई....वोह...."

"क्या बात है इशान, मुझे नही बताएगा।"

इशान ने कोई जवाब नही दिया।

"तू तारा से बात कर रहा था?"

"हां! भाई।"

"क्या हुआ है तुम्हारे बीच?"

"मैंने शादी तोड़ दी!"

"व्हाट?" कबीर को शॉक लगा सुन कर।

कुछ पल के लिए एकदम सन्नाटा पसरा रहा।

"ये क्या बकवास कर रहा है तू। तुझे होश भी है की क्या कह रहा है।"

"हां! भाई!"

"क्या हां भाई! एक महीने में तेरी शादी होने वाली है और तैयारी लगभग हो चुकी हैं और तू कह रहा है की शादी तोड़ रहा है।"

"मैं... मैं शादी तोड़ नही रहा भाई, तोड़ चुका हूं।"

"इशाननन!...वजह जान सकता हूं इसकी।" कबीर ने तेज़ आवाज़ में चिल्लाया, किसी और को तो नही लेकिन उनके डैड मिस्टर इंद्रजीत मैहरा को सुनाई पड़ गया।

"मैं तारा को बहुत प्यार करता हूं भाई। उसे छोड़ने की तो मैं सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन उससे ज्यादा प्यार मैं अपने मॉम डैड और भाई को करता हूं। ऐसा कैसे हो सकता है की एक ही मां का एक बेटा हमेशा तकलीफ सहता रहे और दूसरा खुशियां मनाए। आप ही के कहने पर मैंने शादी के लिए हां कर दी थी लेकिन मैं अपनी मां को और दुखी नहीं देख सकता। जब तक आप शादी नही करेंगे मैं भी नही करूंगा। वोह मेरी शादी से बहुत खुश हैं लेकिन वो बहुत बहुत बहुत खुश तब होंगी जब मेरे साथ साथ आप की भी दुल्हन वोह देख लें।"

"तू जानता है यह नही हो सकता। मेरी पत्नी की जगह में किसी और को दे चुका हूं और अब दूसरा कोई उसकी जगह नहीं ले सकता।"

"तो मैं भी अपने भाई का ही भाई हूं, जब तक आप शादी नही करेंगे मैं भी शादी नही करूंगा।"

"तू समझ नही रहा है इशान।"

"समझ तो आप नही रहें हैं भाई। वोह मर चुकीं हैं, और अब आपको भी आगे बढ़ना चाहिए।"

"यह नही हो सकता, कभी भी नहीं।"

इतना कह कर कबीर अपने कमरे में वापस चला गया। इशान थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा फिर वो भी कुछ सोच कर वापिस कमरे में चला गया। उन दोनो की नज़रों से बच कर सीढ़ियों के नीचे और अपने कमरे से थोड़ी दूर पर खड़े इंद्रजीत जी सब सुन रहे थे। उन्हे बहुत चिंता होने लगी। घर का माहौल तो पांच साल पहले हुई एक घटना से कुछ बदल गया था। लेकिन आज का नज़ारा देख कर उन्हे लगा की उन्हे फिर एक बार कबीर से बात करनी चाहिए। यही सोच कर वोह उसके कमरे की ओर बड़ गए। उसके कमरे के बाहर पहुँच कर उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया। कबीर ने दरवाज़ा खोला सामने उसके डैड दिखे। उसके डैड अंदर आए।

"डैड, इतनी रात गए आप जाग रहें हैं?"

"जिसके बाप के बच्चे जाग रहें हो उस बाप को नींद कहां आ सकती है।"

"हम्मम! तो सब सुना आपने, डैड।"

"हां"

"आप सब को पहले से पता था ना?"

"हां"

"फिर भी किसी ने मुझे नही बताया और ना ही उसे रोकने की कोशिश की।"

"क्योंकि वोह सही है।"

"यह गलत है डैड। उस लड़की के बारे में तो सोचिए जो कबसे अपनी शादी के सपने सजाई हुई है। ऐसे एक झटके में कोई फैसला नहीं होता डैड। उस लड़की की हाय लगेगी इसे।"

"ये उन दोनो का फैसला है, कबीर।"

"और आप लोगों ने मान लिया। रोका भी नही दोनो को।"

"हम सब बस यह चाहते हैं की तुम दोनो का घर एक साथ बस जाए।"

"क्यों बेकार की कोशिश कर रहें हैं आप लोग, आप जानते हैं ना नही हो सकता है ये।"

"तुम भूल क्यों नही जाते, पांच साल बीत चुका है।"

"मैं नही भूल सकता। वोह मेरी जिंदगी है।"

****************

अगले दिन सुबह जब कबीर उठा तोह उसका मन बहुत बेचैन था। वोह ऑफिस जाने के लिए रेडी होने लगा लेकिन मन उसका बार बार कल रात की घटना पर ही जा रहा था।

तभी उसके कमरे महेश आया। महेश उस घर का नौकर है। महेश के हाथ में चाय का कप था। कबीर ने चाय लेने के बाद पूछा मां कहां है।

"कबीर भईया, वोह बाहर गार्डन में बैठी हैं।" महेश ने जवाब दिया।

"उन्होंने नाश्ता कर लिया?" कबीर ने फिर पूछा।

"नही, भईया।"

"क्यों?"

"उन्होंने कहा अभी मन नहीं है। वोह बाद में कर लेंगी।"

"ठीक है। तुम जाओ।" कबीर ने कहा।

कबीर ने खिड़की से नीचे देखा। पूरे गार्डन का नज़ारा दिख रहा था। वहीं बेंच पर उसकी मां बैठी थी। एक दर्द सा उसके दिल में उठा। उसने बिना चाय पीए ही नीचे गार्डन एरिया में आ गया। और अपनी मां के नज़दीक जा कर बैठ गया।

"अरे तुम कब आए बेटा?"

"यह सब क्या है मां? क्यों आप सब बात नही समझते हैं?"

"हम तोह सिर्फ तेरी खुशी चाहते हैं।"

"अपने बच्चे की खुशी चाहना गुनाह है क्या?"

"पर मैं खुश हूं। मुझे वाइफ की जरूरत नहीं है खुश रहने के लिए।"

"तुम समझते क्यों नही बेटा।"

"आप लोग क्यों नही समझते? इशान को क्यों नही समझाते? मैं सब समझता हूं उसकी हरकत। मुझे शादी के लिए राज़ी करने के लिए उसने अपनी शादी तोड़ दी।" कबीर अपनी मां से अपने छोटे भाई के लिए थोड़ी नाराज़गी , थोड़ा गुस्सा और थोड़ी शिकायत कर रहा था।

"उसने सच में शादी तोड़ दी है, कबीर। लेकिन उसने यह सब जानबूझ कर नहीं किया। उसने तोह उसकी मॉम से भी कह दिया है।

"क्या! लेकिन क्यों?" कबीर ने चौंकते हुए पूछा।

"कबीर तुम तोह जानते ही हो नमिता कितनी अंधविश्वासी है और कुंडली पर कितना विश्वास रखती है। उसके गुरुजी ने कहा है जो एक महीने बाद तारिक उन्होंने निकली थी अगर उस दिन इशिता की शादी नही हुई तोह फिर तीन साल तक कोई योग नही है शादी का। और अगर वोह तीन साल रुकती है तो फिर अमायरा की शादी भी लेट हो जायेगी। और फिर उसकी दिल की बीमारी, वोह चाहती है की दोनो बच्चों की शादी अपनी आंखों से देख ले। मनमीत के जाने के बाद एक तोह अकेले उसने दोनो बच्चों को पाला है। ऊपर से इशान ने मना कर दिया, अब वोह दूसरा लड़का देखे नही तोह क्या करे।"

"और इशिता उसने किसी और से शादी के लिए इतनी आसानी से हां कर दिया? और सिर्फ चार हफ्तों में दूसरा लड़का कैसे मिलेगा? वोह भी अच्छा लड़का?

"मनमीत के एक फ्रेंड का बेटा है जो इशिता से शादी करना चाहता था लेकिन नमिता हमेशा उसे मना कर देती थी क्योंकि इशिता इशान से प्यार करती थी। पर इशिता इशान से भी ज्यादा अपनी मॉम को प्यार करती है। वोह कभी भी उनकी इच्छा के खिलाफ़ नही जायेगी।"

"मुझे तोह यकीन ही नहीं हो रहा है मां, यह सब क्या हो रहा है। आप क्यों नही नमिता आंटी से बात करते? मुझे पूरा यकीन है आप अपनी बचपन की दोस्त को ज़रूर मना लेंगी। वोह क्यों इशान और इशिता की जिंदगी खराब कर रही है? यह सब सही नही हो रहा है मां।"

"यहां पर उसे मनाने की बात नही है, कबीर। वोह अपनी जगह बिलकुल ठीक है। उसको डॉक्टर ने कहा है की उसका दिल बहुत कमज़ोर है और अपने जीते जी वोह दोनो बच्चों को सैटल्ड देखना चाहती है। यह इशान है जिसकी वजह से शादी रुकी और उसने मना सिर्फ तुम्हारे लिए किया है, बेटा।"

"यह क्या बकवास है, 'वैल सैटल्ड'? इशिता पढ़ी लिखी लड़की है और एक अच्छी कंपनी में नौकरी भी करती। अच्छा कमाती है, और क्या चाहिए। क्या वोह अभी भी वैल सैटल्ड नही है? अगर आप कहो तोह मैं एक बार इशिता और ईशान से बात कर लेता हूं?" कबीर ने परेशान होते हुए पूछा।

"तुम अभी नहीं समझोगे बेटा। एक मां के लिए उसके बच्चे कितना भी पैसा कमा ले लेकिन उसको असली संतुष्टि तभी मिलती है जब वोह अपना घर बसा ले और खुश रहें। एक तरह से वोह अपने आप को आश्वस्त करना चाहती है की जब वोह दुनिया छोड़ कर जाए तोह कोई हो जो उसके साथ हर कदम पर खड़ा रहे, उसका सहारा बन कर, उसका साथी बन कर। पैसा ना ही खुशियां खरीद सकता है और ना ही किसी की मौत को रोक सकता है। तुम तोह सब जानते समझते ही हो।" सुमित्रा जी दूसरी तरफ करते हुए कहा और कबीर की आंखों में अब नमी तैरने लगी थी।

"और मनमीत के जाने के बाद नमिता ने सब कुछ खुद किया, बच्चों को अकेले संभाला बिना किसी की मदद के। और अब अगर वोह कुछ चाहती है अपने बच्चों से तो मुझे नही लगता इशिता मना करेगी।"

"तोह इशिता अपनी मॉम की बात मान कर इशान को ऐसे ही छोड़ देगी?"

"इशिता खुशी खुशी तोह किसी और से शादी के लिए हां नही कर रही है। यह तोह इशान है जिसने मना किया शादी के लिए। वोह तुमसे पहले शादी नही करना चाहता। और तुम अभी तैयार नहीं हो।"

"मैं कभी तैयार नहीं होंगा, मां। मैं उसकी जगह कभी किसी को नही दे सकता। तोह फिर इसका मतलब इशान कभी शादी नही करेगा?"

"हां। अगर आप पूरी जिदंगी उनकी यादों में बीता सकते हो तोह मैं इशिता की याद में अपनी जिंदगी क्यों नही बिता सकता? कम से कम मैं इतना तोह जनता होंगा की वोह जिंदा है और अपनी जिंदगी में बहुत खुश है उसके साथ जो उसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करता हो। वोह जानती है मुझे सबसे ज्यादा प्यारा मेरा परिवार है और मैं सबसे पहले अपने परिवार, अपने भाई को चुनूंगा। शायद मैं उसके लायक हूं ही नही वोह एक ऐसा पार्टनर डिजर्व करती है जो उसे सबसे पहले अहमियत दे अपनी जिंदगी में जो मैं नही दे सकता।" इशान की आवाज़ सुनाई पड़ी सुमित्रा जी और कबीर को जो गार्डन में उनके पास आ कर खड़ा हो गया था।

"इशान तुम ऐसा नहीं कर....." कबीर की बात पूरी हुए बिना ही इशान वहां से चला गया था।

"बहुत अच्छा! यही तोह मुझे चाहिए था। मेरे दो बच्चे जो जिंदगी भर बिना शादी किए अपनी अपनी यादों में दुखी होते रहेंगे। भगवान ही जाने यह साहिल क्या करेगा अब अपनी जिंदगी में। अगर तुम दोनो भाइयों के नक्शे कदम पर वोह चल पड़ा तो मुझे नही पता मैं क्या कर जाऊंगी।" सुमित्रा जी गुस्से से तिलमिला उठी।

और कबीर, उसने फ्रस्ट्रेशन से अपनी आंखे बंद कर ली।

कुछ पल ऐसे ही आंखे बंद किए हुए बैठे रहने के बाद कबीर ने पूछा, "कौन है वोह लड़की जिससे मिलने की बात आप कर रहे थे, मां?"

उसकी मां सुमित्रा जी हैरत से कबीर की तरफ देखने लगी थी।

"अ...आ...हां.. तुम सच कह रहे हो?"

"हां मां।"

"मुझे तोह अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हो रहा। तू सच में मिलने जायेगा?"

"हां मां। अगर आप सब यही चाहते हो तोह ठीक है मैं शादी के लिए तैयार हूं। अगर इशान मेरे लिए अपनी खुशियां छोड़ सकता है तोह मैं कम से कम खुश रहने की एक्टिंग तोह कर ही सकता हूं ताकि उसे उसकी खुशियां मिल सके।"

"ओह कबीर, वोह यह बिल्कुल नही चाहता की तुम खुश रहने की एक्टिंग करो।"

"प्लीज़ मां। मेरी खुशियां तोह उसी के साथ मर गई थी। अब तोह सिर्फ दिखावा है। मैं किसी भी लड़की को कोई धोखे में नही रखना चाहता जबकि मैं जानता हूं की कभी उसको खुश नहीं रख पाऊंगा। मेरे लिए मेरा भाई सबसे पहले है। तोह बताइए कौन है वोह लड़की? असल में मैं उससे मिलना ही नही चाहता। अगर आप को लगता है वोह मेरे लिए सही है तोह मैं तैयार हूं शादी के लिए।" कबीर ने कहा।

"पर मैं चाहती हूं की तुम उससे एक बार मिल लो।"

"क्यों?"

"क्योंकि मैं नही चाहती तुम अपनी इच्छा के बिना उससे शादी करो। और शायद यह हो सकता है की उससे मिलने के बाद तुम मना कर दो।"

"मैं क्यों अब मना करूंगा? जब मैं उससे बिना मिले ही शादी करने को तैयार हूं तो क्या दिक्कत है। अब चाहे वोह गूंगी, बहरी या फिर लंगड़ी हो, मैं शादी के लिए तैयार हूं।" कबीर अब इरिटेट होने लगा था।

"उसका नाम अमायरा है।" सुमित्रा जी ने कबीर से नज़रे चुराते हुए कहा।

"क्या? अमायरा?"

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(कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद🙏)

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©पूनम शर्मा