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Chapter 53 - गीता अध्याय के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

श्रीमद भगवद गीता

गीता अध्याय

अर्जुनविषादयोग- नामक पहला अध्याय

01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन।

12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन

20-27 अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग

28-47 मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन

सांख्ययोग-नामक दूसरा अध्याय

01-10 अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद

11-30 सांख्ययोग का विषय

31-38 क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण

39-53 कर्मयोग का विषय

54-72 स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महिमा

कर्मयोग- नामक तीसरा अध्याय

01-08 ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण

09-16 यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण

17-24 ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता

25-35 अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा

36-43 काम के निरोध का विषय

ज्ञानकर्मसंन्यासयोग- नामक चौथा अध्याय

01-18 सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय

19-23 योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा

24-32 फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन

33-42 ज्ञान की महिमा

कर्मसंन्यासयोग- नामक पाँचवाँ अध्याय

01-06 सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय

07-12 सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा

13-26 ज्ञानयोग का विषय

27-29 भक्ति सहित ध्यानयोग का वर्णन

आत्मसंयमयोग- नामक छठा अध्याय

01-04 कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण

05-10 आत्म-उद्धार के लिए प्रेरणा और भगवत्प्राप्त पुरुष के लक्षण

11-32 विस्तार से ध्यान योग का विषय

33-36 मन के निग्रह का विषय

37-47 योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा

ज्ञानविज्ञानयोग- नामक सातवाँ अध्याय

01-07 विज्ञान सहित ज्ञान का विषय

08-12 संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन

13-19 आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा

20-23 अन्य देवताओं की उपासना का विषय

24-30 भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा

अक्षरब्रह्मयोग- नामक आठवाँ अध्याय

01-07 ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर

08-22 भक्ति योग का विषय

23-28 शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय

राजविद्याराजगुह्ययोग- नामक नौवाँ अध्याय

01-06 प्रभावसहित ज्ञान का विषय

07-10 जगत की उत्पत्ति का विषय

11-15 भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और देवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का प्रकार

16-19 सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन

20-25 सकाम और निष्काम उपासना का फल

26-34 निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा

विभूतियोग- नामक दसवाँ अध्याय

01-07 भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल

08-11 फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन

12-18 अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना

19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन

विश्वरूपदर्शनयोग- नामक ग्यारहवाँ अध्याय

01-04 विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना

05-08 भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन

09-14 संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन

15-31 अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना

32-34 भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना

35-46 भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना

47-50 भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना

51-55 बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन।

भक्तियोग- नामक बारहवाँ अध्याय

01-12 साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय

13-20 भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण

क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग- नामक तेरहवाँ अध्याय

01-18 ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय

19-34 ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय

गुणत्रयविभागयोग- नामक चौदहवाँ अध्याय

01-04 ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्ति

05-18 सत्‌, रज, तम- तीनों गुणों का विषय

19-27 भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण

पुरुषोत्तमयोग- नामक पंद्रहवाँ अध्याय

01-06 संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय

07-11 जीवात्मा का विषय

12-15 प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का विषय

16-20 क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय

दैवासुरसम्पद्विभागयोग- नामक सोलहवाँ अध्याय

01-05 फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन

06-20 आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन

21-24 शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा

श्रद्धात्रयविभागयोग- नामक सत्रहवाँ अध्याय

01-06 श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय

07-22 आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद

23-28 ॐतत्सत्‌ के प्रयोग की व्याख्या

मोक्षसंन्यासयोग- नामक अठारहवाँ अध्याय

01-12 त्याग का विषय

13-18 कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन

19-40 तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद

41-48 फल सहित वर्ण धर्म का विषय

49-55 ज्ञाननिष्ठा का विषय

56-66 भक्ति सहित कर्मयोग का विषय

67-78 श्री गीताजी का माहात्म्य

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