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A gift of chappal

Raj_Singhaniya_7776
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Chapter 1 - डॉक्टर के शब्द

डॉ० ●रमन के पास मरीज़ बीमारी के आखिरी दिनों में ही आते थे। वे अकसर चिल्लाते, "तुम एक दिन पहले नहीं आ सकते थे!" इसका कारण भी साफ़ था- डॉक्टर की बड़ी फ़ीस और इससे भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह कि कोई यह नहीं मानना चाहता कि आखिरी समय आ गया है, डॉ० रमन के पास जाना चाहिए। आखिरी समय और डॉक्टर रमन जैसे एक-दूसरे से मिल-जुल गए थे, इस कारण वे उनसे डरने भी लगे थे। इस तरह जब वह महापुरुष मरीज़ के सामने प्रकट होते, तब इस पार या उससे पार, निर्णय तुरंत करना होता था। तब कोई लापरवाही या चालबाज़ी काम नहीं आती थी। अब वे राय देने वाले डॉक्टर मात्र न रहकर फ़ैसला सुनाने वाले जज बन गए थे। उनके शब्दों पर मरीज़ की जिंदगी निर्भर रहने लगी थी। लेकिन डॉक्टर साहब इन सबसे परेशान नहीं होते थे। वे नहीं मानते थे कि मीठे शब्द बोलकर जिंदगी बचाई जा सकती है। वे नहीं सोचते थे कि झूठ बोलकर दिलासा देना उनका कर्तव्य है, जबकि प्रकृति कुछ ही घंटों में फ़ैसला सुना देगी। लेकिन जब भी उन्हें उम्मीद की कोई ज़रा-सी किरण नज़र आती, तो वे कमर कसकर मैदान में उतर पड़ते और चाहे जितने घंटे या दिन भी लग जाएँ, वे सब कुछ भूलकर मरीज़ को यमराज के पंजे से छुड़ा लाने के प्रयत्न में लग जाते।

आज एक मरीज़ के सिरहाने खड़े उन्हें खुद को दिलासा देने वाले ऐसे लोगों की ज़रूरत महसूस रही थी, जो झूठ बोलकर भी उन्हें ढाढ़स बँधा सकें । बिस्तर पर उनका जिगरी दोस्त गोपाल निढाल पड़ था। उनकी दोस्ती चालीस साल पुरानी थी, जो किंडरगार्टन स्कूल से शुरू हुई थी। अब परिवार और काम-धंधे की बातों को लेकर उनका मिलना-जुलना काफ़ी कम हो गया था, पर प्यार में कमी नहीं आई थी। इतवार के दिन शाम को अकसर गोपाल उनके पास पहुँच जाता और अस्पताल के एक कोन चुपचाप बैठा प्रतीक्षा करता रहता कि डॉक्टर साहब कब खाल होते हैं। फिर दोनों साथ खाना खाते, फ़िल्म भी देखते और देश-दुनिया की जमकर बातें करते । 

अपनी व्यस्तता के कारण डॉ० रमन ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि गोपाल पिछले तीन महीने से उनसे मिलने नहीं आया है। एक दिन सुबह जब उन्होंने मरीजों से भरे अस्पताल की एक बेंच पर उसके बेटे को इंतज़ार करते देखा, तब उन्हें यह याद आया। वे उसके पास जाकर बोले, "क्यों आए हो बेटा?" लड़का झेंपता हुआ धीरे-से बोला, KY बीमार हैं। " 'पापा

आज ऑपरेशन करने का दिन था और तीन बजे तक वे फ़ुरसत नहीं पा सके। इसके बाद वे तुरंत लॉली एक्सटेंशन में स्थित मित्र के घर चल पड़े।

गोपाल बिस्तर पर पड़ा सो रहा था । डॉक्टर साहब उसके सिरहाने जा खड़े हुए और पत्नी से पूछा, "कब से बीमार है?' ""

" डेढ़ महीना हो गया, डॉक्टर साहब । " "किससे इलाज चल रहा है ?"

"एक पड़ोसी डॉक्टर से, वो हर तीसरे दिन आते हैं और दवा देते हैं। "

"नाम क्या है उसका ? " नाम उन्होंने कभी नहीं सुना था। बोले, "इसे मैं नहीं जानता। लेकिन मुझे तो कुछ बताना था। तुमने खुद क्यों ख़बर नहीं की?"

"हमने सोचा आप व्यस्त होंगे और बेकार में आपको परेशान करना होगा । " गोपाल की पत्नी ने बड़ी दयनीयता से कहा। वह काफ़ी परेशान नज़र आ रही थी। डॉक्टर साहब समझ गए, अब गँवाने लायक वक्त नहीं बचा है। उन्होंने कोट उतारा और बक्सा खोला। इंजेक्शन ट्यूब निकाली, सुई खौलते पानी में रख दी। गोपाल की पत्नी उन्हें यह सब करते देखकर और भी परेशान होने लगी और सवाल पूछने लगी।

 'अब सवाल मत करो," डॉक्टर ने ज़ोर से कहा। उन्होंने बच्चों पर नज़र डाली, जो खौलते पानी में सुई को उछलते देख रहे थे। वे बोले,"बड़े लड़के को यहीं रहने दो, बाकी सबको किसी और कमरे में भेज दो।"

मरीज़ की बाँह में इंजेक्शन लगाकर वे कुरसी पर बैठ गए और घंटेभर उसे देखते रहे। मरीज़ शांत पड़ा था। डॉक्टर के चेहरे पर पसीना निकल आया और थकान से आँखें मुँदने लगीं। मरीज़ की पत्नी कोने में खड़ी चुपचाप सब कुछ देख रही थी। फिर धीरे-से बोली, "आपके लिए कॉफ़ी बनाऊँ?"

"नहीं", हालाँकि भूख से वे बेहाल हो उठे थे। उन्होंने दोपहर का खाना नहीं खाया था। थोड़ी देर बाद वे उठे और बोले, " मैं बहुत जल्द लौट आऊँगा। इन्हें बिलकुल मत छेड़ना।" थैला उठाया और बाहर खड़ी कार में जा बैठे। पंद्रह मिनट में वे वापस आ गए, साथ में एक नर्स और सहायक भी थे। मरीज़ की पत्नी से बोले, "मैं एक ऑपरेशन करूँगा।" "क्यों? क्या हुआ है?" मरीज़ की पत्नी ने घबराकर पूछा ।

" बाद में बताऊँगा। अभी तुम लड़के को यहाँ छोड़ दो और पड़ोसी के घर चले जाओ, और जब तक मैं बुलाऊँ नहीं, वापस मत आना ।"

मरीज की पत्नी बेहोश होकर ज़मीन पर गिरने को हुई, लेकिन नर्स ने उसे सँभाल लिया और बाहर जाने 4 मदद की। रात को करीब आठ बजे मरीज़ ने आँखें खोली और बिस्तर पर धीरे से हिला सहायक बहुत खुश हुआ और कहने लगा, 'अब ये जरूर ठीक हो जाएँगे।" डॉक्टर ने भावहीन आँखों से उसे देखा और धीरे-से कहा, "इसे ठीक करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ, लेकिन इसके दिल का क्या होगा.... "

 'नाड़ी में तो सुधार हुआ है। "

'ठीक है, लेकिन इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों में शुरू में हलका सुधार दिखाई देता है लेकिन वह टिकता नहीं है .... वह झूठा साबित होता है।" फिर थोड़ी देर बाद सोचकर बोले, "अगर नाड़ी सवेरे आठ बजे तक चलती रहती है, तो यह अगले चालीस बरस तक चलती रहेगी। लेकिन मुझे शक है कि रात के दो बजे के बाद भी यह इसी तरह चलती रहेगी!'

चुप इसके बाद उन्होंने सहायक को वापस भेज दिया और मरीज़ के पास बैठ गए। 11 और डॉक्टर की ओर देखकर मुसकराया। उसमें हलका सुधार हुआ था और उसने कुछ खाना भी खाया। घरभर में चैन और खुशी की लहर दौड़ गई। सब डॉक्टर के पास आ खड़े हुए और कृतज्ञता प्रकट करने लगे। लेकिन वे बैठे मरीज़ की ओर देखते रहे, लगता था कि वे किसी की बात सुन नहीं रहे हैं। मरीज़ की पत्नी पूछने लगी, "अब ये ख़तरे से बाहर हैं?"

बजे के करीब मरीज़ ने आँखें खोलीं बिना सिर घुमाए, उन्होंने कहा, "इन्हें हर चालीस मिनट पर ग्लूकोज़ और ब्रांडी देती रहो। दो चम्मच काफ़ी होगी।"

मरीज़ की पत्नी रसोईघर में चली गई। वह बेचैन हो रही थी। वह चाहती थी कि जो भी सच्चाई हो, अच्छी या बुरी, उसे पता चल जाए। डॉक्टर साहब कुछ स्पष्ट क्यों नहीं बता रहे? दुविधा उसके लिए असह्य होती जा रही थी। शायद वे मरीज़ के सामने कुछ न कहना चाहते हों। इसलिए रसोई के दरवाज़े से उसने उन्हें इशारे से बुलाया। वे चले गए, तो उसने पूछा, अब ये कैसे हैं? बच तो जाएँगे?"

डॉक्टर ने होंठ काटे और ज़मीन की ओर देखते हुए धीरे-से कहा, "अपने पर काबू रखो। इस वक्त कोई सवाल मत करो। " भय से मरीज़ की पत्नी की आँखें फैल गईं। उसने उनके हाथ कसकर पकड़ लिए और कहने लगी, "मुझे सच बता दीजिए | " "इस वक्त मैं तुमसे बात नहीं करूँगा।" यह कहकर वे कुरसी पर जाकर फिर बैठे तो मरीज़ ने धीरे-से पूछा, "क्या मैं जा रहा हूँ? मुझसे मत छिपाओ।"

डॉक्टर ने अस्पष्ट-सी कुछ ध्वनि की और कुरसी पर बैठे रहे। उनके जीवन में ऐसी स्थिति कभी नहीं आई थी। लीपापोती उनके स्वभाव में नहीं थी। इसी कारण लोग उनके शब्दों को बहुत महत्त्व देते थे। उन्होंने मरीज़ की तरफ़ एक नज़र डाली। उसने इशारे से उन्हें पास बुलाया और धीरे-से कहने लगा, "मैं जानना चाहता हूँ कि और कितना जिऊँगा, मुझे वसीयत पर दस्तखत करने दो। "

डॉक्टर बोले, "इस वक्त अपने पर दबाव मत डालो, शांत रहने की कोशिश करो।" लेकिन यह कहते हुए वे स्वयं को मूर्ख महसूस कर रहे थे। सोचने लगे- "कितना अच्छा हो, मैं इन सबसे बचकर किसी ऐसी जगह चला जाऊँ, जहाँ मुझसे कोई सवाल न पूछा जा सके! " -

फिर वे उठे और बाहर अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए। सोचने लगे। घड़ी देखी, आधी रात हो चुकी थी। वसीयत पर दस्तखत होने हैं तो दो घंटे में हो जाना चाहिए, नहीं तो.....। वे संपत्ति के बारे में ज़िम्मेदार नहीं होना चाहते थे। घर समस्याओं का उन्हें अच्छी तरह ज्ञान था।

किन इस वक्त वे क्या कर सकते थे? अगर वे वसीयत पर दस्तखत करने की सुविधा उसे दे देते हैं तो यह उसकी मौत का परवाना भी हो सकता है, क्योंकि इस कारण जीवित रहने की उसकी कोशिश एकदम ख़त्म हो जाएगी।

वे गाड़ी से निकले और घर की ओर चल पड़े। फिर कुरसी पर जाकर बैठ गए। मरीज़ बराबर उनको देखे जा रहा था। डॉक्टर ने खुद से कहा, "अगर मेरे शब्द इसे बचा सकते हैं तो इसे मरना नहीं चाहिए। वसीयत की फिर क्यों ज़रूरत है?"

वे बोले, "सुनो गोपाल!" यह पहली दफ़ा वे अपने मरीज़ के सामने नाटक करने जा रहे थे, झूठ बोलकर जीवन जीने की उसकी इच्छा जगाने। मरीज़ के ऊपर झुककर वे ज़्यादा ज़ोर देकर बोले, "वसीयत की फ़िक्र मत करो। तुम जियोगे. • तुम्हारा दिल बहुत मज़बूत है। "

यह सुनते ही मरीज़ के चेहरे पर चमक आ गई | संतोष की साँस भरकर उसने कहा, "तुम कह रहे हो यह? तुम्हारे मुँह से निकली बात ज़रूर सच होगी..... ।"

डॉक्टर ने कहा, "हाँ, मैं कह रहा हूँ। तुम हर क्षण ठीक हो रहे हो । अब सो जाओ। गहरी नींद में सो जाओ। मन से सब परेशानियाँ निकाल दो। मैं सवेरे तुमसे मिलूँगा | "

मरीज़ ने कृतज्ञ-भाव से डॉक्टर की ओर देखा और फिर आँखें बंद कर लीं। डॉक्टर ने अपना बैग उठाया और धीरे-से दरवाजा बंद करके बाहर निकल गए।

घर जाते हुए रास्ते में वे अस्पताल में रुके, सहायक को बुलाया और बोले, "तुम लॉली एक्सटेंशन वाले मरीज़ के पास चले जाओ, दवा की एक ट्यूब साथ ले जाना। अब किसी भी क्षण वह जा सकता है। कष्ट ज़्यादा हो तो यह ट्यूब दे देना। जल्दी करो, जाओ।"

दूसरे दिन दस बजे वह फिर वहाँ पहुँच गए। कार से निकलते ही मरीज़ के कमरे की ओर तेज़ी से गए। मरीज़ जाग रहा था। सहायक ने बताया कि - नब्ज़ सही चल रही है। उन्होंने स्टेथेस्कोप मरीज़ के दिल पर रखा, कुछ देर तक सुना और उसकी पत्नी से बोले, "देवी, अब खुश हो जाओ। तुम्हारा पति नब्बे साल तक जिंदा रहेगा। " 

अस्पताल लौटते हुए सहायक ने पूछा, "सर, क्या वे जीवित रहेंगे?"

" अब मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि गोपाल नब्बे साल तक जिंदा रहेगा। लेकिन मेरे लिए हमेशा यह पहेली रहेगी कि वह यह हमला कैसे झेल गया?"