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The INVINCIBLE RING

VINAY_JAGLAN
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Chapter 1 - Welcome to create on WEBNOVEL

लॉर्ड ऑफ द रिंग्स तो आपने पढ़ी होगी , खैर वह सिर्फ एक कहानी है । यहां हम बात कर रहे हैं एक ऐसी अजय अमर अंगूठी कि जोकि भारत में पुराणों और प्राचीन इतिहास से चलती आ रही है जिसको भी अंगूठी की शक्ति मिली वह सर्वशक्तिमान हो गया या तो वह अमर और अजेय सिद्ध हुआ या फिर अंगूठी का श्राप उसे मिला और दुर्गम मृत्यु भी । जिसका इतिहास में नाम पड़ गया THE INVINCIBLE RING ( अजेय अँगूठी )

हिंदुस्तान का नाम पुराणों जादू ताकत दिव्य हथियारों में सबसे आगे रहा है पिछले युगों में धरती पर जब पाप पूरे जोरों शोरों से चल रहा था। धरती पर पाताल के राक्षसों और दैत्यों ने अपना आधिपत्य जमा लिया था तब उस समय के महान राजा विक्रमादित्य का शासन था। जोकि खूब साहस के साथ राक्षसों से युद्ध कर रहे थे लेकिन राक्षसों के राजा कालकासूर को मारने का सामर्थ्य उनके पास ना था , क्योंकि उसके पास महादेव का वरदान था, महाराज की हार होते देख सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्ति से एक अंगूठी बनाई जोकि इतनी ताकत रखती थी कि वह राक्षसों को खत्म कर नर्क का द्वार फिर से बंद कर सके, तो देवताओं ने वह सुनहरी अंगूठी जिस पर पंच भूतों के चिन्हों की नक्काशी की हुई थी महाराज विक्रमादित्य को शॉप दी , जिससे वह कालकासुर को फिर से नरक में कैद कर सकें और नर्क का दरवाजा बंद कर सके । क्योंकि कालकासुर अमर था, महादेव के द्वारा उसे अमृत्व का वरदान प्राप्त था, इसलिए उसे सिर्फ कैद ही किया जा सकता था। अँगूठी लेकर महाराज विक्रमादित्य ने राक्षसों को अपने कदमों में झुका दिया । सभी राक्षसों को नर्क लौटने का आदेश दिया और बदले में उनकी जान बख्शने का सौदा किया । राक्षसों को मजबूरन उनका प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा और वे नर्क में दोबारा लौट गए। फिर महाराज ने नर्क के दरवाजे को अंगूठी की सहायता से बंद कर दिया, और कालकासुर के आतंक को समाप्त कर दिया। 

राजा विक्रमादित्य एक कुशल राजा थे जिनके रोम रोम में साहस , वीरता , धैर्य , करुणा बसी हुई थी। इस युद्ध के पश्चात महाराज ने अंगूठी को वापस देवताओं को लौटाने का फैसला लिया लेकिन देवताओं ने उसे लेने से मना कर दिया क्योंकि उसे देवलोक में संभाल कर रखना मुमकिन ना था देवताओं की शक्ति से बनी अंगूठी अब धरती पर ही सदा सदा के लिए कैद रहेगी । इसीलिए देवताओं ने महाराज को खुद ही इसके बारे में विचार करने के आदेश दिए । अब उनकी अंगूठी के लिए चिंताएं बढ़ रही थी । उनकी मृत्यु का समय करीब आ रहा था। अंगूठी बेशक ही अजय हो , जिसके हाथ लगे उसको मारना असंभव हो जाए , परंतु मृत्यु एक कड़वा सच है जिसने जन्म लिया है उसका मरना निश्चित है । इसीलिए अंगूठी की सुरक्षा की चिंता उन्हें खाए जा रही थी जिससे यह किसी के गलत हाथ में ना पड़ जाए । महाराज विक्रमादित्य खुद एक कुशल युवक थे। उनके अपने बेटे और संसार के होने वाले राजा वीरजहाँ उनकी तरह साहसी और नरम दिल नहीं था । उसके ऊपर अंगूठी के ताकत का नशा छाया हुआ था वह अपने पिता से वह अंगूठी विरासत में चाहता था। ताकि दुनिया पर राज कर सके लेकिन महाराज को इसकी भनक लग चुकी थी एक शाम उन्होंने अंगूठी को अपने हाथ में रखकर आदेश दिया "हे महाशक्तिशाली मायावी अजेय अंगूठी, जा इस जमाने की गहराइयों में कहीं खोजा, तुझ पर मैं विक्रमादित्य यह श्राप लगाता हूं , जो भी इस अंगूठी को गलत मन से और इसका दुरुपयोग करने के लिए इसका इस्तेमाल करेगा , यह अंगूठी स्वयं उसका नाश कर देगी और जो साहसी और सदी का नायक इसे किसी अच्छे काम के लिए धारण करेगा यह अंगूठी उसके हुकुम के अधीन होगी, उसकी सदा गुलामी करेगी " इतना कहकर महाराज ने उस अंगूठी को हवा में उछाल दिया और वह वहां से गायब हो गई । 

कुछ समय पश्चात महाराज विक्रमादित्य चल बसे फिर युग का यह दौर समाप्त हुआ और कलयुग प्रारंभ हुआ । तरक्की करता यह संसार विज्ञान में इतना आगे बढ़ चुका था कि अपने पुराणों और इसकी दिव्य अदाओं को भूल चुका था । यह अंगूठी भारत के प्राचीन मंदिरों में दफन हो गई जिसे उसके श्राप अनुसार ढूंढना बहुत ही कठिन था और धारण करना उससे भी ज्यादा । 

आज के समय के महान विशेषज्ञ और पुरातत्व वैज्ञानिक डॉक्टर विजय आनंद जिनको इस अंगूठी के बारे में पुराणों और प्राचीन कहानियों से पता चला, यूं तो इसकी कहानियां पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध थी लेकिन सभी इन्हें सिर्फ मनगढ़ंत प्राचीन कहानियां ही मानते थे। लेकिन डॉ आनंद को पूर्ण विश्वास था कि यह अंगूठी हकीकत में है और भारत के एक प्राचीन मंदिर में यह दफन है जिसकी सुरक्षा स्वयं अंगूठी ही करती है, जिसके उपयोग से संपूर्ण दुनिया जीती जा सकती है जिसके सामने सभी अस्त्र-शस्त्र परमाणु हथियार व्यर्थ है। अंगूठी का सामना केवल त्रिदेवों के अस्त्र और इंद्र का वज्र ही कर सकता है । आधुनिक हथियार अंगूठी की ताकत के सामने ना काबिल है । 

तभी डॉ आनंद ने इसकी खोज शुरू कर दी उनका मकसद नरक के द्वार को फिर से खोलना नहीं था ना ही संसार को जीतना था क्योंकि वह यह भी जानते थे की अंगूठी सर्व शक्तिशाली होने के साथ-साथ दिव्य शक्तियों से पूर्ण चमत्कारी भी है जिसका प्रयोग हर तरह से अच्छे कामों और जनकल्याण के लिए लोगों को स्वस्थ करने के लिए भी किया जा सकता है , यह खोज संसार की सबसे बड़ी खोजो में से एक सिद्ध होगी । डॉ आनंद बचपन से उस अँगूठी की खोज में दिलचस्पी रखते थे। डॉ आनंद ने अपनी जिंदगी के 40 वर्ष इस खोज को दे दिए थे और आखिरकार उनको अंगूठी के सही ठिकाने का पता चल गया था।

अपनी पढ़ाई और ज्ञान से उन्होंने पता लगाया कि यह अंगूठी हरियाणा के एक प्राचीन शिव मंदिर में दफन है जोकि लोगों के लिए सरकार द्वारा बंद किया हुआ है क्योंकि सरकार को लगता है, कि इस शिव मंदिर में कुछ ऐसे राज और असीम शक्तियां छुपी हैं जो पूरे इतिहास , वर्तमान और भविष्य को बदलने के लिए काफी हैं।