केहते हैं प्यार करने वालो का अंत कभी नही होता... उनके शरीर का अंत तो हो जाता है पर उनकी आत्माओं का नही..... जो लोग आत्माओं से जुड़े होते हैं... उनका एक जन्म मे प्यार पुरा हों ना हों... पर वो अपने प्यार को पुरा करने के लिए वापस जन्म ले कर आते है... वो अपने प्यार के लिए वापस आते है....ये बात सिर्फ इंसानो पर लागू नहीं होती..... ये बात हर उस जुवित परानी पर लागू होती है जिन्होनें रूह से प्यार किया हों....
मेरी भी कहानी ऐसे ही दो लोगो की है जिनका जन ही एक दूसरे के लिए होता है.....
तो चलिये मेरे साथ भी एक ऐसी रोमांचक कहानी मैं जहाँ उन्होंने कई जन्म लिए अपने ईश्क को मुकम्बाल करने के लिए... पर हर बार उन्हे एक ऐसे खतरे का सामना करना पड़ता था..... जिनसे वो बच कर निकल तो आते थे... पर लक्ष्य के अंतिम पडाव पर आते आते उनकी मौत से मुलाकात हों ही जाती थी....
पर वो कहते है... जालिम ये इश्क़ नहीं आसां ...
ये इश्क़ नहीं आसां ...
इतना तो समझ लीजिय....
एक आग का दरिया है....
और डूब के जाना है.....
🤭 ऐसा ही हाल यहाँ पर भी है.....
तो चलिये मेरे साथ इस कहानी की सुरुआत करते है..... . . .
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एक बहोत से बड़े ग्राउंड मे.... बहोत सारे सुंदर सुंदर फूल थे... जंगल थे पाहाड़ थे झरने थे.... उस झरने से लाल रंग का पानी गिर रहा था... देख कर ऐसा लग रहा की वाह से पानी नहीं खून की झरने बेह रहे हो.... पुरे जगह पहले किसी सुंदर लोक की तरहा था... जैसे वहाँ कोई अय तो वहीं का बन कर रे जाए....
पर आज उस जगहे मे मानो मंहुसियात फ़ेलि हो... ऐसे लग रहा था मानो किसी बुरी शक्ति का डेरा जम सा गया हो वहाँ पर.... उसी झरने के पास एक घायल लड़का जो किसी भी वक़्त नींद की आघोष मे जा सकता था....
वो एक लड़की बाते कर रहा था.... और वो लड़की सिर्फ रोये जा रही थी..... लड़के ने अपनी उखाड़ती हुए सांसो को सम्हलते हुए उस लड़की से कहा.... चन्द्रा आप रोये ना ये तो होना ही था...
हमारे साथ आपको पता था ना... हमे.... हमे हमें छामा कर दे चंद्रा हम आपका साथ इस जन्म मैं भी नहीं दे पाए.... हमे बहोत दुख हो रहा की हम अपना वा.... वादा नही नहीं पाए.... चंद्रा सिर्फ रोये जा रही थी... उसकी आखे पूरी तरहा से लाल हो गई थी.....
चोट तो चन्द्रावती को भी आई थी.... उसके पीठ पर पंख थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी तेज धार तलवार से काट दिये हो.... उसकी पीठ से माथे से हाथों से लगातार खून बहे जा रहे थे.... चन्द्रा ने उस लड़के को अपनी बाहों मे पकड़ते हुए कहा.... नही.. नही सूर्यांश तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकते.... आप... आप हमे यू छोड़ कर नही जा सकते.... रुके आप हम अभी.... हम अभी आपके घाओ को भरते है.....
बस कुछ छन् और सब्र रखे आप..... इतना केह कर चन्द्रावती सूर्यांश के सीने पर अपना हाथ रखती है जिससे लगातार खून निकले जा रहा था... चंद्रवाति की हथेलिया भी पूरी खून से लाल हो गई.... चन्द्रावती ने अपनी आखे बन्द कर कुछ मन्त्र पढ़ने लगी... थोड़ी देर बाद उसने आखे खोली तो देखा...
सुरियांश की सीने से खून निकलना बन्द नही हो रहा था.... चन्द्रा ने सर पर हाथ रखा और खुद से ही रोते हुए बोली... ये... ये... खून निलकलना बन्द क्यों नही रहा है.... हम..... हमारी शक्तियां काम क्यों नही कर रही.... चन्द्रा को अपने दर्द का ऐहसास बिल्कुल नही हों रहा था.... उसे तो बस अपने आखो के सामने सूर्य का मरता हुआ चेहरा दिख रहा तो जो किसी भी वक़्त उसे छोड़ कर जाने ही वाला था....
आखिर वो कैसे अपने प्यार को अपने आखो के सामने मरता देख सकती थी..... पर सूर्यांश को चन्द्रा की तकलीफ दिख रही थी..... उसने परेशान चन्द्रा को देखा और उसे सन्त करते हुए कहा.... चन्द्रा... चन्द्रा.... सुने आप हमारी बात आप शांत हों जाए.... देखे हमारे पास जादा समय नही है....
चन्द्रा शुर्यांश की बात सुन कर शांत हो गई और उसकी नीली और गेहरि आको मे देखने लगी.... सूर्या अपनी सांसो को थाम्ते हुए बोला.... देखे चन्द्रा आपको पता है .... हम नही गए तो ये युध नही रुकेगा.... हमारे जाने के यहाँ सब शांत हो जायेगा.... आपको ये भी पता तो... आप बच्चों की तरहा जिद नां करे आप तो हमारी समझदार सी चन्द्रा है ना....
और देखे आपको भि तो कितनी चोट लगी है.... हमारे पास जादा वक़्त नही बचा हुआ है... सूर्या ये केहते केहते चन्द्रा के घाओ को अपनी शक्तियों की मदद से ठीक कर रहा था..... चन्द्रा उसे बीच मे टोकते हुए केहती है... शान्त हों जाये आप.... क्या अनाब शनाब बोले जा रहे है.... हमने कहा न हम आपको ठीक करेगे... ठीक है ना अगर हमरे पास हमारी शक्तिया नही हैं....
लेकिन हम आपको गुरुदेव आनंत के पास ले कर जायेंगे... हम आपको कुछ नही होने देंगे... भरोसा रखे अपनी चन्द्रा पे... ये केहते हुए चन्द्रा के आखो से लगातार आँसू बहे जा रहे थे.... उसकी बाते सुन कर सूर्यांश दर्द मे भी मुस्कुरा दिया.... जैसे मानो उसे ऐहसास हो गया हो की उसके प्राण उसके शरीर को छोड़ने ही वाले हो... उसने चन्द्रा का देखा...
जो खुद से बाते कर रही थी... जिसके चेहरे पर दुख की रखाये थी.... सूर्या न चन्द्रा को एक बार बहोत देखा उसका नाम लिया.... चन्द्रा....
ये बोल कर उसने अपनी आखे बन्द कर ली..... उसके आखे बन्द करते ही.... सूर्यांश के शरीर से एक ऊर्जा बाहर निकली और पुरे वातावरण को उस ऊर्जा ने अपने भीतेर समहा लिया....
ऐसा करते ही उस ऊर्जा से एक भीयानक् विस्पोर्ट हुआ और वाह पर जितनी भी बुरी शक्तिया युद्ध कर रही थी... उस ऊर्जा के चपेट मे आने से उनकी वही मोत हो गई.... जहाँ युद्ध छेत्र मे अभी जहां मोत का मातम छाया हुआ था...
वो स्थान अब बिल्कुल शान्त हो चुका था.... जब वो सफेद ऊर्जा छट्टी तो चन्द्रा देखती है की उसकी बाहों मै जो सुरियांश है उसकी मोत हों चुकी है... और उसका शरीर हवा मैं गायब होता जा रहा है.... सूर्यांश का शरीर गयाब होता देख चन्द्रा उसे रोकना चाहती थी उसे थामान चाहती थी.....
पर वो ऐसा कुछ नही कर पा रही थी.... जब सूर्यांश का शरीर पूरी तरह से हवा मे गायब हो गया... तो चन्द्रा जैसे टूट सी गई.. उसने आसमान की तरफ देख देख कर जोर जोर चीखे जा रही.....
शुर्यांश.... शुर्यांश.... शुर्यांश
लौट आये आप.. . हम आपके बिना जीवित नही रेह सकते.... शुर्यांश
चन्द्रावती इतनी जोर जोर चीख रही थी की पुरा युध छेत्र भी काप रहा था.... जब रेवती और शुक्ल ने चन्द्रा की चीखने की आवाज सुनी... तब...
to be continued...