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‌‌#अकेलापन एक वैवाहिक औरत का#

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Synopsis

Chapter 1 - ‌‌#अकेलापन एक वैवाहिक औरत का#

Shobha Arya

‌‌#अकेलापन एक वैवाहिक औरत का#

औरत पुरे दिन भर लोगों से घिरी रहती है। फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

जीवन में उसके साथ सब है। मां, पिताजी, भाई,बहने,पति, बच्चे और कभी हाल-चाल लेने

वाले कुछ दोस्त।फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

उसके घर में बहुत काम रहता है सुबह-शाम तक

वो रखती है खुद को व्यस्त सुबह-शाम तक।

फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

उसके जीवन में कमी किसी को लगती नहीं।

लोगों की नाजरो से वो कभी बचती नहीं।

फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

जिम्मेदारीयो का बोझ वो मां के पेट से लाई है।

उसका सारा जीवन उसकी मां की परछाईं है।

फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

उसके दुःख का पाता ना चलने दे वो कभी किसी को।

कहती हैं, ये गुण अपनी मां से माइक से लाई है।

ख़ुश हूं मैं हर हाल में वो उस मां को बाराती है।

फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

कभी छोटी कहकर रोका गया।कभी बड़ी बाता। कर टोका गया।फिर भी आपने मां पिताजी भाई बहनों की।लाड़ली हु,

ऐसा कहकर सासुराल में रोब जामाती।

फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

मेरा जीवन कभी तो बदलेगा कहेकर खुद को।सबसे साहसी दिखाती, और सुन ले बेटा डरती तो।

में किसी के बाप से नहीं, खुद को सबसे मजबूत दिखाती है।

फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

खुद की जंग में रोज लडती है खुद से।

तो कभी दुसरो से,ना जाने कब भुल गाई वो।

आपने किस्से पुराने, वो खुलकर खेलना।

खुद के लिए जीना। सबको अपनी काबिलियते आई है।फिर भी

वो महसूस करती है अपने जीवन मे ।

अकेलापन

नऐ-पुराने किस्सों को बार-बार सुनाना।दोस्तों में सबसे ज्यादा जिम्मेदार,

होसियां और कामियाब।ये कहकर सबको चिढ़ाना, फिर कुछ मिनटों में महफ़िल की जान।

बनकर महफ़िल में जान डाल देती आई है।फिर भी वो महसूस करती है अपने जीवन मे।

अकेलापन

लेकिन नाजाने अब आया है याद उसे। अपने जीवन मे वो।

अकेलापन

अब आया क्यो महसूस उसे अपने जीवन का |

अकेलापन

लेखिका

शोभा आर्य