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Chapter 2 - मीरा का अतीत

भोपाल के मालवीय नगर में घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी। सावित्री देवी का आज सुबह- सुबह निधन हो चुका था। परिवार के नाम पर उनकी एक मात्र बेटी मीरा राजपूत थी। सावित्री पिछले कई सालों से गंभीर बीमारी से जूझ रही थी और आज उन्होंने अपनी आखरी सांसे लेते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया । मीरा की उम्र इक्कीस वर्ष थी । वो कॉलेज के अंतिम वर्ष में थी। सावित्री का निर्जीव शरीर उसकी आँखों के सामने सफेद चादर से ढका हुआ पड़ा था। मीरा की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे, पास बैठी औरतें उसे सांत्वना दे रही थी लेकिन माँ को खो देने का दुख सिर्फ मीरा ही जान सकती थी , अपना कहने के लिए सिर्फ वो ही तो थी इस दुनिया में। सावित्री ने मीरा को उसकी पढ़ाई के लिए इंदौर भेज दिया था। जिसकी खास वजह सिर्फ सावित्री ही जानती थी। इंदौर में मीरा नेशनल कॉलेज में पढ़ती थी और उसी कॉलेज के एक होस्टल में रहती थी। मीरा बहुत ही काम बोलने वाली लड़की है। वह अपना अधिकतर समय किताबों में ही बिताया करती थी। कॉलेज में उसकी एकमात्र दोस्त थी निधि व्यास, जो कि इंदौर में रहती थी अपने परिवार के साथ। निधि और मीरा दोनो बहुत अच्छी दोस्त थी। कॉलेज के दो साल दोनो ने साथ- साथ ही पूरे किए थे। लेकिन निधि मीरा को बहुत कम जान पायी थी , वजह थी मीरा का अंतमुर्खी होना या शायद हालातों ने उसे उम्र से पहले ही परिपक्व बना दिया । मीरा इस बार बिना निधि को बताए भोपाल आ गयी थी। सावित्री की अंतिम संस्कार की तैयारी हो चुकी थी। जब उनके पार्थिव शरीर को ले जाया जाने लगा तो मीरा ज़ोर- ज़ोर से रोने लगी । औरतों ने उसे सम्भाला लेकिन कोई उसे रोक नही पाया । वो दौड़ कर बाहर आई और कहने लगी हम भी साथ जाएंगे। बिटिया औरत शमशान में नही जाती है, वहां खड़े एक बुजुर्ग ने कहा। हमे कुछ नही सुनना हम भी साथ जाएंगे, मीरा ने कहा। चलने दीजिये काका मुख अग्नि के लिए किसी अपने का होना भी जरूरी है, और आज कल क्या लड़का और क्या लड़की चलने दीजिये, पास खड़े विश्वनाथ ने बुजुर्ग आदमी से कहा। सभी वहा से सावित्री का पार्थिव शरीर लेकर निकले। आंखों में आंसू भरे , हाथ मे अग्नि का पात्र पकड़े मीरा चले जा रही थी। उसके बेजान पैरों में जैसे हिम्मत ही नही थी। माँ के साथ उसने बहुत कम वक्त गुज़रा था । न जाने वो कौन सी वजह थी जिससे माँ ने उसे हमेशा खुद से दूर रखा था , सोचते हुए और बीती बातों को याद करते हुए शमशान आ चुका था । सावित्री का अंतिम संस्कार किया गया। इकलौती वारिस होने के कारण उसी ने मुख अग्नि भी दी, उन पलों में मीरा को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था। वहां मौजूद सभी की पलकें नम हो गयी।

एक महीने बाद मीरा इंदौर आयी , उसने कपड़े बदले और अपने बुक्स (books) उठाये कॉलेज आ गयी। कॉलेज आकर उसने प्रिंसिपल से बात की और उन्हें अपनी माँ के देहांत के बार मे बताया, क्योंकि मीरा कॉलेज की सबसे होनहार स्टूडेंट थी इसलिए प्रिंसिपल ने उसकी एक महीने की लीव(leave) को मान लिया। मीरा प्रिंसिपल का शुक्रिया अदा करके बाहर आ गयी। क्लास शुरू होने में अभी वक़्त था इसलिए वो आकर बेंच पे बैठ गयी और उदास आंखों से बेंच को निहारने लगी तभी एक जानी पहचानी आवाज़ उसके कानों में पड़ी, ओ मैडम जी कहाँ थी इतने दिन न फ़ोन न मैसेज आखिर चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग में। मीरा आवाज़ की दिशा में पलटी सामने निधि खड़ी थी। मीरा ने कोई जवाब नही दिया तो निधि उसके पास बैठ गयी और प्यार से कहा क्या, क्या हुआ मीरा सब ठीक तो है ना। निधि की बात सुनकर मीरा की आंखें डबडबा गयी उसने नीचे ज़मीन की ओर देखते हुए कहा, माँ नहीं रही निधि। क्या! ये कब हुआ और तुमने मुझे बताया क्यों नहीं, निधि ने चौंकते हुए कहा। क्या बताते निधि हम खुद भी नही जानते थे माँ किस दर्द से गुज़र रही थी, हम कुछ जान न पाएं इसलिए उन्होंने हमेशा हमे खुद से दूर रखा और देखो वो हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर चली गयी कहते- कहते मीरा की आंखों में आंसू भर आये। निधि ने मीरा का हाथ अपने हाथ मे लिया और उसकी आँखों मे देखते हुए कहा , तुम अकेली नहीं हो मीरा मैं हूँ न तुम्हारे साथ दोबारा ऐसी बात मत कहना। मीरा ने निधि को गले लगा लिया। निधि उसे हिम्मत बँधाती रहती । क्लास का वक़्त हुआ तो दोनों उठ कर क्लास की ओर चली गयी।

मीरा को अपना ख्याल रखने को बोल कर निधि अपने घर चली गयी लेकिन आज उसका मन बहुत उदास था वो बस मीरा के बारे में ही सोचती रही। अगली सुबह होस्टल वार्डन ने मीरा से उसका कमरा खाली करने को कहा । पिछले एक महीने से उसके कमरे का किराया नहीं आया था। मीरा ने कुछ दिन की परमिशन(permission) मांगी पर वार्डन ने उसे साफ शब्दों में कमरा खाली करने को कह दिया, किसी ने उसकी मदद नहीं की। मीरा ने अपना सामान समेटा और बैग में जमाने लगी। उसके पास जो पैसे थे वो माँ के अंतिम संस्कार और उसके बाद के कामों में खर्च हो गए थे। अनजान शहर में आखिर मदद भी ले तो किसकी । मीरा बहुत ही स्वाभिमानी लड़की थी और इसलिए उसने अपनी परेशानई निधि को नहीं बताई। भोपाल वापास जाने के अलावा मीरा के पास और कोई रास्ता नही था। अपने बैग लेकर वो होस्टल से निकल गयी।

निधि जब कॉलेज आयी तो मीरा को क्लास में न देखकर उसने अपने साथ बैठी रागिनी से पूछा जोकि उसी होस्टल में रहती है। ए रागिनी मीरा कहाँ है वो कॉलेज क्यों नही आई। अरे तुझे नहीं पता क्या आज वार्डन मैडम ने उसे होस्टल से निकाल दिया ,रागिनी ने फुसफुसाते हुए कहा। व्हाट(what), पर क्यों? निधि ने हैरानी से कहा । क्योंकि उसने होस्टल के रूम का किराया नही दिया था, अब मुझे डिस्टर्ब (disturb) मत करो पढ़ने दो, रागिनी ने कहा और बुक्स में नज़र गढ़ा ली। निधि ने सुना तो सोचने लगी इतना सब हो गया और मीरा ने मुझे बताया तक नहीं, ये लड़की भी न इसे समझाना बहुत मुश्किल है पता नहीं इस वक़्त वो कहा होगी, मुझे जाना होगा, निधि ने अपने बैग और बुक्स उठाई और वहां से निकल गयी। कॉलेज से सीधा वो होस्टल आयी और मीरा के रूममेट(room mate) से पुछा । रूम मेट ने बताया कि मीरा वापस अपने घर जाने की बात कर रही थी। निधि वहां से निकली और तुरंत रेलवे स्टेशन आयी। ट्रेन जा चुकी थी , निधि हताश हो गयी। उसने उदास नज़रों से ट्रेन को जाते हुए देखा और जैसे ही वापिस जाने को मुड़ी उसकी नज़र बेंच पर बैठी मीरा पर गयी। निधि खुशी से दौड़ कर उसके पास आई लेकिन अगले ही पल उसकी खुशी गुस्से में बदल गयी और उसने कहा ,समझती क्या हो अपने आप को और ये इस तरह मुँह छुपा कर कहा जा रही हो। मुँह छुपा कर नही जा रहे बता कर आये थे रागिनी को, मीरा ने धीमे स्वर में कहा। और तुम्हे लगता है मैं तुम्हे जाने दूंगी, निधि ने गुस्से से कहा। पर अब यहां करेंगे भी क्या वार्डन ने भी हमे होस्टल से निकाल दिया है, मीरा ने कहा । वार्डन की तो मैं, तुम ये बताओ तुमने मुझे क्यों नही बताया, निधि के इस सवाल पर मीरा खामोश हो गयी। निधि उसके बगल में बैठी और कहने लगी, मीरा तुम सिर्फ कहने के लिए मेरी दोस्त नहीं हो। कॉलेज में बहुत सी लड़कियां है लेकिन मैंने तुम्हें अपना दोस्त चुना जानती हो क्यों, क्योंकि तुम बहुत अच्छी हो और समझदार भी हो। तुम बहुत स्ट्रांग( strong ) लड़की हो मीरा। फिर ऐसे कैसे जा सकती हो, आंटी का सपना कैसे भूल सकती हो, तुम्हे पढ़ना है एक बड़ी अधिकारी बनना है , ये कैसे भूल गयी तुम। निधि हम कुछ नही भूले हैं, सब याद है हमें पर इस शहर से हमने एक बात सीखी है कि अगर जीना है तो पैसे ज़रूरी है और वो हमारे पास नहीं है निधि। घर जाएंगे वहा रहने के लिए कम से कम अपना घर तो है, मीरा ने उदास हो कर कहा। हो गयी तुम्हारी आदर्श वाली बातें तो चलें, निधि ने उठते हुए कहा। कहाँ? मीरा ने कहा । कोई सवाल नही उठो और चलो, कहकर निधि ने एक बैग खुद उठाया और दूसरा मीरा को थमा दिया। दोनो बाहर आई , निधि पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाल लाई और मीरा को साथ लेकर चल पड़ी। निधि के पीछे बैठी मीरा के मन में सैकड़ों सवाल उथल पुथल मचाये हुए थे। मीरा जब भी इस शहर से जाने के बारे में सोचती ये शहर उसे वापस खींच लाता। सवाल बहुत थे लेकिन जवाब नहीं। निधि उसे कहा लेकर जा रही है इस बात का भी उसे अंदाज़ा नही था। स्कूटी सड़क पर दौड़ाते हुए निधि ने अचानक से ब्रेक लगाए और गाड़ी को यु टर्न घुमाया। क्या हुआ इधर कहा जा रही हो, पीछे बैठी मीरा ने सवाल किया। होस्टल, निधि ने कहा। लेकिन क्यों,मीरा ने कहा। तू चल तो बताती हूँ, कहकर निधि ने स्पीड बढाई और कुछ वक्त बाद दोनों होस्टल के सामने थे,निधि ने स्कूटी साइड में लगाई उसने मीरा का हाथ पकड़ा और अंदर चली आयी। वार्डन सामने ही खड़ी मिल गयी। निधि उसके सामने आई उसने अपने जेब से कुछ पैसे निकाले और वार्डन के हाथ में थमाते हुए कहा, ये रखो अपने पैसे और आज के बाद किसी लड़की को इस तरह से होस्टल से मत निकलना। वक़्त पर किराया दें तो कोई क्यों निकालेगा, पर ये लड़कियाँ तो घर वालों के पैसे ऐश में उड़ा देतीं हैं और फिर किराये के नाम पर रोने बैठ जाती हैं, वार्डन ने मुँह बना कर रुपये गिनते हुए कहा। चुडैल तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दोस्त के लिए ऐसा बोलने की, मैं तेरा मुँह नोच लुंगी, निधि ने वार्डन से उलझते हुए कहा लेकिन ऐन वक्त पर मीरा ने उसे रोक लिया और कहा, निधि ये क्या कर रही हो छोड़ो उन्हें। मैं मुँह तोड़ दूंगी इसका इस होस्टल की लड़कियाँ चाहे जो करती हूं लेकिन तुम ऐसी नहीं हो, निधि ने गुस्से से मीरा से कहा। तुम प्लीज़(please) यहां से चलो प्लीज, मीरा ने लगभग निधि को खींचते हुए कहा। निधि वहां से चली गयी तो मीरा वार्डन के पास आई और धीमे स्वर में कहा, निधि ने जो किया उसके लिए हम माफी मांगते हैं मैंम , एक बात और हर लड़की यहां ऐश करने नहीं आती है।