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Chapter 4 - Gay sex story with my Straight Friends part 3

उस रात मेरा और नवीन का दारु का प्लान बना.

वो मोहित और उमंग से ये सब डिस्कस नहीं करना चाहता था इसलिए बहुत ही छुपकर दारु लाया.

'अबे तो क्या हुआ मोहित कौन सा बच्चा है जो शिकायत करदेगा' मैंने कहा तो नवीन बोला 'तू नहीं जानता वो साला बहुत चुटिया है जो छोटी छोटी बात इधर की उधर कर देता है...उसके साथ चांस लेना ठीक नहीं...कल को साले ने कह दिया तो बहुत रायता फैल जायेगा...अपुन दोनों चुपचाप पियेंगे' खैर मुझे क्या था...दार का मतलब था कि दरवाज़ा बंद और बंद दरवाज़े का मतलब था कि नवीन के साथ एक और रात पूरा मज़ा. उमंग तो अभी हाथ नहीं आया था मगर अभी नवीन के साथ नया नया संबंध था जिसका मुझे अपना अलग मज़ा मिल रहा था.

बाकी बचे दिन मैं और उमगं बस एक दूसरे को ठंडी आहें भर कर देखते रहे. इतना कुछ होने के बाद तो वो मुझे और भी ज़्यादा ज़बरदस्त खूबसूरत लग रहा था. फिर खाने के बाद सबने कुछ देर बैठकर टीवी देखा और फिर लेट हो गया तो मैं और नवीन किसी नयी नयी शादी वाले कपल की तरह अपने रूम में आ गए.फिर हमने दारु शुरू करी और उस दिन नवीन ने पहली बार मेरे सामने ही अपनी पैंट उतार कर पास के बेड पर रख दी.

'मेरे बेड पर क्यूँ रख रहा है साले मैं कहाँ सोऊंगा' मैंने मजाक में कहा...मगर मेरी नज़र उसकी सुडौल कटावदार मस्क्युलर जवानी पर थी. अब तो नवीन भी मुझे बारूद की तरह मस्त लग रहा था. उसके जिस्म के रेशमी बाल चमचमा रहे थे और चड्ढी से उसकी गांढ़ कि गोलाई और आगे लण्ड का पूरा साइज़ उभर रहा था.

मेरे ये कहने पर उसने अपना लण्ड सहलाया और बोला 'क्यूँ मादरचोद...वहाँ अलग सोयेगा क्या?हाहाहा' उसकी बात ने मुझे तुरंत गर्म करदिया...मैं सुबह से सेक्स के लिए तड़प तो रहा ही था...मैं तुरंत गया और उसका लण्ड सहलाने लगा 'बड़ा हरामी है साले जब देखा बस लण्ड चाहता है' 'इतना तगड़ा है यार' 'क्यूँ इतना तगड़ा पहले नहीं खाया क्या?' 'उनहू नहीं' फिर मैं तो दो पेग के बाद वही उसकी नंगी जांघ पर उसके लण्ड की तरफ मुंह करके उसको सहलाता हुआ लेट गया और वो बैठा बैठा दारू पीता रहा...कुछ देर में उसको काफी चढ़ गयी...मगर मैं अब भी होश में था...

मैंने भी लेटे लेटे अपने कपडे उतार फेंके और सिर्फ अंडरवियर में हो गया. ये पहली बार था जब नवीन के साथ मस्ती की शुरुआत इतनी फ्रैन्क्नेस से हुयी थी...इसका अपना ही मज़ा होता है. उसका लण्ड अब चड्ढी के अंदर मेरी नज़रों के सामने उछाल मार रहा था...मैं उसकी जाँघों के बालों को अपने होठों से सहला रहा था...उसने अपना हाथ मेरे सर पर रख दिया और मेरे बालों और कंधे को सहलाने लगा...देखते देखते वो काफी दारु गटक गया...कुछ देर में उसके होश बिलकुल ही उड़ गए और वो पूरा टल्ली हो गया...टल्ली मर्द बड़े ही सेक्सी लगते हैं. चेहरे के हाव भाव उड़े हुए, आँखों के सामने एक पर्दा पद हुआ, चेहरा हल्का सा एक्स्प्रेशंलेस...और उसपर से नवीन की कातिल जवानी...वैसे तो कोई भी जवान मर्द उस ढंग से मस्त लगता है मगर नवीन की तो बात ही अलग थी. वो तो कुछ ज़्यादा ही क़यामत लग रहा था. मैंने उसके लण्ड को चड्ढी के साइड से बाहर किया...हद से ज़्यादा नशे का असर उसके लण्ड पर दिखने लगा था...वो अब पूरी तरह टाईट नहीं था...मैंने उसके सुपाड़े को खोला और जीभ से चाटना शुरू किया तो लण्ड सख्त होने लगा...मैंने नवीन की जांघ सहलाते हुए नशे की हालत में उसकी चड्ढी उतरवा दी...अब वो दीवार पर टेक लगाकर बैठ गया...मतलब आधा लेट गया और आधा बैठ गया...उसकी जांघें पूरी तरह चिर गयीं....मैंने उसके लण्ड को चाटना शुरू किया और हाथों से उसके टट्टे सहलाने लगा...मेरी उंगलियां फिर उसकी गांढ़ के बालों तक थीं...मैंने वहाँ भी सहलाना शुरू कर दिया...कुछ देर बाद मैंने उसके टट्टे मुंह में ले लिए...नवीन अब बस केवल सिस्कारियां भर रहा था और आँखें बंद करके मज़ा ले रहा था...मैं भी उसका लण्ड वगरह चाटने में केवल सिस्कारियां भर रहा था. मुझे बिलकुल नशा नहीं था...नवीन पूरा टल्ली था...ये भी मस्त बात थी क्यूंकि मुझे पूरी तरह पता था क्या हो रहा है और उसको कुछ होश नहीं था.

मैं तो उस दिन सुबह से ही सेक्स के लिए तड़प रहा था. उमंग ने मेरे अंदर सेक्स की ने उमंग भर दी थी. मुझे अब नवीन पहले से कहीं ज़्यादा मस्त और सुंदर लग रहा था.

अब वो बैठ भी नहीं पा रहा था और उसका लण्ड रह रह कर नशे के कारण मुरझा जा रहा था. बात करने में उसकी ज़बान ज़बरदस्त तरह से लड़खड़ा रही थी...मैं कई बार उसका लण्ड मुंह में लेकर चूसा मगर वो खड़ा होता और फिर मुरझा जाता...मैं तो उस दिन हमेशा की तरह कामुक था...मुरझाते लण्ड के कारण मुझे फफ्रस्टेशन होने लगा. मैंने सोचा उसको अलग तरीके से जोश में लाऊं...मैंने नवीन को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके सामने लेटकर अपने जिस्म से उसके जिस्म को सहलाने लगा...मुझे उम्मीद थी कि वैसे में शायद उसको अपनी गर्ल फ्रेंड की याद आये और उसके अंदर काम की आग भड़के. उस दिन मुझे पता चला की शराब का मज़ा एक हद तक ही सही रहता है...उसके बाद वो बेकार हो जाता है. मैंने नवीन के होठों पर अपने होंठ रखे और उनको चूसने लगा और साथ में अपने जिस्म की गर्मी उसको देता हुआ उसके जिस्म को अपने हाथों से सहलाने लगा...मगर उसके लण्ड में कुछ खास हलचल नहीं हुयी...फिर भी मैं लगा रहा क्यूंकि मेरे पास तो पूरी रात थी...बस येही तसल्ली थी कि उस दिन लाइफ में पहली बार मैं बंद कमरे में नवीन के साथ नंगा था. मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए उसकी कमर सहलाना शुरू करऔर अपनी जांघ से उसकी जांघ सहलाने लगा...वो मेरी तरफ मुंह करके करवट से था और मैं उसकी तरफ मुंह किये हुए था और मैं आराम से उसके मुंह का गहरा चुम्बन ले रहा था...

उसके जिस्म की गर्मी से मेरा अपना लण्ड भी ताव में आ गया और मैंने अपनी चड्ढी उतार दी...अब हम दोनों पूरे नंगे हो गए...फिर धीरे धीरे मेरे दिमाग में खुराफात आने लगी...मैंने मैंने उसके टट्टे के बहुत पास दोनों जाँघों के बीच अपना लण्ड फंसा दिया और वहाँ हलके हलके धक्के देकर मज़ा लेने लगा...मुझे बहुत मस्त लग रहा था...किसी मर्द की मर्दानी जांघ का अपना अलग नशा और मज़ा होता है...लण्ड पर जब उसके मर्दाने जिस्म के रेशमी बाल सहला रहे थे तो बेहद गुदगुदी हो रही थी....फिर साथ में मैंने उसकी गांढ़ पर हाथ फेरना शुरू किया और देखते देखते उसकी दरार में हथेली फेरते हुए उसके छेद के आसपास के बालों से खेलने लगा...मुझे उमंग की चिकनी गांढ़ याद आने लगी. नवीन की गांढ़ में मर्दानापन और मजबूती थी जबकि उमंग की गांढ़ उसकी ऑपोजिट थी...चिकनी,मखमली और मक्खन जैसी...परन्तु दोनों का अपना अपना मस्त मज़ा था. मैं उससे लिपट लिपट कर अपने लण्ड को उसकी जाँघों के बीच मसल रहा था और उसके लण्ड को अपने पेट पर महसूस कर रहा था...अब जब नहीं रहा गया तो मैंने उसकी गांढ़ पर पहली बार अपनी अंगुलियां दबाना शुरू कर दिन. उसकी गांढ़ बहुत टाईट थी. उसकी सिलवटें आपस में टाईट होकर पूरी तरह गुथी हुयी थीं...उस समय तक उनमे ऊँगली तक जाने की ज़रा भी गुंजाइश नहीं थी. वैसे सही है...लौंडा जब स्ट्रेट हो तो उसकी गांढ़ हमेशा वर्जिन ही रहती है...मैंने उसकी उम्र के लड़के की पहली बार इतनी टाईट गांढ़ देखी थी...मुझे उसको सहलाने में बहुत मज़ा आ रहा था और मेरी वासना बढ़ रही थी.

काफी देर बिना रोक टोक वो सब किया तो मज़ा और बड़ा...अब मैंने भी एक पेग और पीया...नवीन तो अब एक तरह से चुपचाप लेटा था...शायद सो रहा था. दारू पीने के बाद मैंने उसको पलट दिया...वो बिना कुछ कहे या रेजिस्ट किये पलट गया...मैंने उसकी जांघें चीरीं और उनके बीच बैठ कर दोनों हाथों से कुछ देर उसकी जांघें और गांढ़ दबाई मगर अब मेरे दिमाग में फुतूर आने लगा था...मैंने पहली बार दोनों हाथों के अंगूठों से उसके टाईट छेद को फैलाया और फिर उसको जब नाक घुसा करसूंघ तो मेरे अंदर भरपूर मस्ती छा गयी और उमंग फिर याद आ गया...मैंने तुरंत उसको अपनी जीभ से सहलाया...अगर नवीन जगा होता तो शायद कुछ रिएक्शन देता...मगर यस हालत में उसकी गांढ़ में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी...मैंने जीभ से उसका छेद और ज़्यादा चाटा...चाटने से उसका छेद अब कुलबुलाया और सिलवटें मचलने लगीं...जब सिलवटें कुल्बुलायीं तो मैंने जेबेह से और चाटा...अब और मज़ा आया...और मैंने उसकी दोनों फांकें फैलाकर उसकी गांढ़ मस्तीसे चाटना शुरू करदिन...वैसे ही जैसे मउझे अपनी चटवाने का शौक़ है और जैसे मैं गांडू लड़कों की चाटता हूँ...गांढ़ चाटने से दिल नहीं भरा तो मैंने अब चाटने के साथ साथ उसको उन्ग्लिस इ सहलाना भी शुरू किया और जब पहली बार उसके छेद में ऊँगली घुसाई तो ऐसा मज़ा आया जिसको मैं बता नहीं सकता....

उसकी गांढ़ की सिलवटों का छल्ला बिलकुल टाईट था...उसमे एक मजबूती थी, एक मर्दानगी थी...मैंने थूक लगाकर ऊँगली डाली तो गांढ़ मचलकर मेरी ऊँगली से लिपट गयी...इस बार बस नवीन ने हलके से अंगड़ाई ली...और फिर मैं कुछ देर कभी जेबेह और कभी ऊँगली को उसकी गांढ़ में घुसेड़ता रहा. अब मैं ठरक में आ गया था. फिर मैं उठा. मुझे पिशाब आ रहा था. मैंने खड़े लण्ड से मुश्किल से मूता फिर वापस लौटा तो फोन पर नज़र पड़ी. नवीन अब भी वैसे ही गांढ़ खोले हुए लेटा था...मैंने फोन हाथ में लेकर उसकी गांढ़ में उँगल करते हुए उसकी कुछ पिक्स लीं और वीडियो भी रेकोर्ड किया...फिर मैंने उसकी अजन्घों में बैठ गया और एक हाथ से लण्ड थाम कर जब मैंने उसकी दरार में लण्ड मसलना शुरू किया तो मेरे अंदर एक जवालामुखी भडकने लगा...मैं जोश से भर गया. ये वो हो रहा था जो मैंने कभी नवीन के बारे में सोह्कर मुठ मारते हुए भी नहीं सोचा था...मैंने अपने सुपाडे को उसके छेद पर बहुत बार मसला और खूब वहाँ रगड़ करउसको दबाया...उसका छेद मेरे प्रीकम से लिसलिसा गया...मैंने फिर ऐसी पिक्स लीं जिसमे नवीन का चेहरा दिख रहा था और गांढ़ पर लगा हुआ लण्ड. फिर मैंने फोन साइड में रख दिया और उसके दोनों कंधे थामकर उसकी गांढ़ की दरार में अपना लण्ड खूब देर तक रगड़ने लगा. रह रह करमेरा सुपाड़ा उसके छेद पर अटक जाता...मेरे लण्ड में भयंकर गुदगुदी के कारण झनझनाहट हो रही थी और लगातार प्रीकम निकल रहा था...मैं अब अलग मस्ती की दुनिया में था. नवीन की मर्दानी गांढ़ की मजबूती मेरी वासना को और भड़का रही थी...उसकी गांढ़ के रेशमी बाल मेरे सुपाड़े को प्यार से सहला रहे थे और अब अपनेआप ही उसकी गांढ़ के छेद की कसी हुयी सिलवटें कुलबुला रही थीं...मैं कभी उसका कंधा, कभी पीठ और कभी कमर सहला रहा था और उसके कान, गर्दन और कंधे पर अपने होठों से सहला कर कभी कभी चूम रहा था.

एक बार जोश में भर कर मैंने जब उसके कंधे के पीछे की तरफ दांतों से पकड़कर चुसा तो वहाँ लाल निशान बन गया...नवीन अब भी होश में नहीं था...बात जब आगे बढ़ी तो मेरी कामुकता भी बढ़ी...और उसके साथ मेरी हिम्मत. ये बात तो मैं जानता था कि जो मौका मुझे उस समय मिला हुआ था वो लाइफ में कभी कभार ही मिलता है इसलिए मैं उसका पूरा फायदा उठाना चाहता था. मेरे अंदर तूफ़ान मचा हुआ था और लण्ड में भूचाल. पहले तो मन हुआ कि वैसे ही नवीन की गांढ़ की दरार और छेद के ऊपर लण्ड रगड़ रगड़ कर अपना माल झाड़ दूं...मगर अंदर तो अब और तमन्ना जग गयी थी...दिल और दिमाग आपस में अलग अलग सोच रहे थे. नवीन की गांढ़ के छेद के आसपास अब मेरा काफी प्रीकम था जिसके कारण वहाँ ठीकठाक लुब्रिकेशन हो गया था...उसकी गांढ़ भीग कर लिसलिसा रही थी...मेरा सुपाड़ा वहाँ फिसल रहा था. मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था और साँसें भाग रही थीं. मेरा लौड़ा अब हुल्लाढ़ भर रहा था. मैंने अपनी गांढ़ थोड़ी उचकाई और अपने सुपाड़े को नवीन के छेद पर टिकाया...कुछ देर तो मैंने उसको वहीँ रखे रखा...क्यूंकि मैंने गांढ़ उचकाई हुयी थी और लण्ड को हाथ से थामा हुआ था इसलिए वो वहाँ से फिसला नहीं...कुछ साँसें लेने के बाद मैंने अपनी गांढ़ को हलके से भींचा और सुपाड़े को नवीन के छेद पर दबाया...अगर वो नोर्मल होता तो ज़रूर वैसे में अपनी गांढ़ भींच लेता...मगर उस समय वो नशे में टल्ली था.

जब सुपाड़ा दबाया तो उसकी सिलवटें मचलने लगीं...वैसे भी प्रीकम से अच्छा ख़ासा लुबिकेशन तो था ही...मैंने जैसे ही दबाव बनाए रखा मेरे सुपाड़े ने उसकी सिलवटों को थोड़ा फैलाना शुरू किया और सुपाड़ा उसके छेद के बीचोबीच धंसने लगा...वो अंदर की तरफ स्लिप करने लगा...जैसे जैसे जैसे वो अंदर होने लगा वैसे वैसे मुझे अपने लण्ड पर उसके छेद की कसी हुयी सिलवटों का मज़ा मिलने लगा...किसी भी वर्जिन गांढ़ की तरह नवीन का छेद भी मेरे लण्ड पर काफी जोर से दबाव बनाने लगा...नए छेद में जब लण्ड डालो तो काफी रगड़ महसूस होती है...उस दबाव से ऐसे लगता है जैसे लण्ड को किसी ने बहुत जोर से पकड़ कर दबा रखा हो. मैंने एक हाथ से अपना लण्ड थाम रखा था और दूसरे से नवीन का कंधा. अब जैसे ही मेरा सुपाड़ा उसकी गांढ़ के अंदर घुसा मेरे जिस्म में बिजली दौड़ने लगी...शुतु में एक दो बार तो ऐसा लगा जैसे मेरा माल झड जायेगा मगर मैंने अपने आपको कंट्रोल किया. और फिर जब जोर लगाया तो मेरा लण्ड लगभग आधा उसकी गांढ़ में घुसा, शायद आधे से थोड़ा कम. और तब पहली बार नवीन ने कोई प्रतिक्रिया दिखाई...वो बस एक हलकी सी अंगड़ाई और हलकी सी आवाज्ज़ 'आंह' उसने कहा तो मैं तुरंत अपनी उसी पोजीशन पर रुक गया और कुछ बोला नहीं. उसके बाद नवीन फिर पहले की तरह खामोश हो गया तो मैंने फिर अपने लण्ड को अंदर दबाया...उसकी सिलवटें तेज़ी से इस नए प्रहार के लिए अडजस्ट हो रही थीं...मुझे लण्ड पर उनकी कुलबुलाहट महसूस हो रही थी. उनसे एक मस्त सी गुदगुदी का अहसास हो रहा था.

अब मुझे बहुत मज़ा आने लगा. मैंने अपने घुटनों से नवीन की जाँघों को और फैलाया. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं उस समय अपने एक स्ट्रेट टॉप दोस्त की गांढ़ के अंदर अपना लण्ड घुसा रहा हूँ. उस बात से भी मेरी मस्ती बहुत बढ़ रही थी.

जब लण्ड थोड़ा और घुसा तो वो अब एक जगह अटक गया. मैंने और घुसाना बंद कर दिया. फिर लण्ड को थोड़ा बाहर खींचा. जब लण्ड नवीन की गांढ़ के छेद से रगड़ खाया तो ऐसा मस्त अहसास हुआ की मेरे अंदर फिर बिजली सी कौंध गयी. मैंने लण्ड वापस अंदर घुसाया. वो फिर वहीँ तक अतं गया जहाँ पहले रुका था. इस बार लण्ड में उछाल आया और मुझे काफी प्रीकम निकलता महसूस हुआ. प्रीकम सीधा नवीन की गांढ़ के अंदर रहा. मैंने लण्ड फिर खींचा और फिर घुसाया. उसके बाद एक दो बार फिर उसको बाहर करके वापस अंदर घुसाया. फिर दिमाग में आइडिया आया. मैंने इस बार लण्ड को काफी बाहर खींचा. मतलब बस सुपाड़ा अंदर घुसाए रहा और बाकी लण्ड के पूरे तने को बाहर खींच लिया. फिर मैंने अपनी हथेली पर थूका और उसको लण्ड पर लासेढ़ दिया...फिर थोड़ा और थूका और उसको भी लण्ड पर डाल दिया...फिर मैंने थूक से भीगा वो हाथ नवीन के कंधे पर रखा और अपने दूसरे हाथ की दो उँगलियों से बस लण्ड का डाइरेक्शन बनाए रखा और लण्ड को वापस अंदर घुसेड़ा. थोड़ा सा घ्सुएदने के बाद बाहर किया. फिर अंदर घुसाया. इस तरह मैं हलके हलके धक्कों से लण्ड को अंदर बाहर करता रहा और अपने लण्ड पर नवीन की गान्ढ़ की सिलवटों का मज़ा लेता रहा.

इस बीच मैंने लण्ड पर दो बार और थूक गिरा दिया. अब तो लण्ड उसके छेद पर सटासट फिसलने लगा...फिर जब मैंने सांस रोक कर लण्ड पर जोर दिया तो वो अंदर घुसने लगा...और जल्दी ही वो उस लेवल को पार कर गया जहां वो पहले अटक रहा था....अब वो लगभग पूरा अंदर घुसने लगा तो मैंने मस्ती के कारण कुछ देर लण्ड पूरा अंदर देकर नवीन के एक कंधे पर मुंह रख कर दोनों कन्धों को हाथों से पकड़ लिया और लण्ड अंदर डाले डाले उस अहसास का मज़ा लेता रहा.

अब मेरे अंदर कामुकता अपने उफान पर थी और लण्ड भी पूरे फॉर्म में आ चुका था. प्रीकम भी धड़ाधड़ निकल रहा था और मेरा दिमाग वासना के आनंद से घूमा हुआ था. मैंने अब अपने धक्कों की स्पीड अब्धा दी तो और मज़ा आने लगा. मेरे लण्ड से नवीन की कुंवारी गांढ़ का छेद अब खुल गया था. अब धड़ल्ले से चुदाई का मज़ा आ रहा था. मेरी हिम्मत भी अब बढ़ चुकी थी. मैंने फिर पूरा लण्ड बाहर खींचा और इस बार पूरे फ़ोर्स से उसको अंदर घुसाया तो मुझे गलती का अहसास हुआ क्यूंकि वैसा करने पर नवीन कह्राया और उसकी नींद भी हलकी सी टूटी...बस नशे के कारण वो ज़्यादा कुछ करनहीं पाया 'उन्ह...' उसको शायद दर्द हुआ 'क्या...कर रहा है बहनचोद....उह' उसने नशे से भरी ज़बान में कुछ कहना चाहा जो उसके मुंह से उस समय साफ़ नहीं निकल पाया 'बस थोड़ा सा यार...'

मैंने लण्ड हलके से अंदर घुसाते हुए कहा. 'उसने उस नशे और नींद में मुझे अपने ऊपर से हटाने की कोशिश भी करी मगर फिर वो पस्त होकर वैसे ही लेट गया. अब मुझे लगा कि अगर वो जग गया तो ज़्यादा मज़ा किरकिरा कर देगा इसलिए मैंने उसको पकड़ कर जल्दी जल्दी धक्के देना शुरू कर दिए और झाड़ने का मूड बना लिया तो मेरा लण्ड भी उछालने लगा. झाड़ने वाली फाइनल चुदायी में अक्सर धक्कों की स्पीड और ताकात बढ़ जाती है. जब भी कोई तेज धक्का लगता नवीन की हलकी सी आवाज़ आती...मगर वो क्रिया ज़्यादा देर नहीं चली और जल्दी ही मैंने नवीन की स्ट्रेट गांढ़ का कुंवारापन तोड़ कर उसके अंदर शायद उसकी लाइफ में पहली बार मैंने अपना गर्म गर्म वीर्य भर दिया. उसके बाद भी मस्ती के कारण मेरा लण्ड बहुत उछलता रहा. मैंने नवीन के ऊपर लेता रहा. फिर जब मेरी साँसों की स्पीड सही हुयी तो मैंने 'फचाक्क्क' से लण्ड बाहर खींचा और उसको नवीन की चड्ढी से पोछ लिया. फिर मैंने उसको वोही चड्ढी पहना दी. खुद भी चड्ढी पहनी और नवीन के बगल में लेट गया.

उस दिन मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. मैंने उस रात बहुत कुछ हासिल कर लिया था. कुछ ऐसा जिसकी मुझे खुद कभी उम्मीद नहीं थी. मैंने करवट लेकर नवीन को अपनी बाहों में लिया और जल्दी ही मैं भी सो गया.

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