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Chapter 3 - Gay sex Story with my Straight Friends part 2 ka 2

फिर कुछ देर बाद एक ज़िप खुलने की आवाज़ ने ख़ामोशी को चीरा...'क्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र' की आवाज़ गूंजी. मगर मैं चुपचाप लेटा रहा. थोड़ी देर में नवीन के बेड से कुछ हलचल सी महसूस हुयी. मैं आँखें बंद किये लेटा रहा...फिर नवीन की आवाज़ आई 'ओए...सो गया क्या?' मैं कुछ नहीं बोला...उसने फिर कहा 'जुनैद...जुनैद...' इस बार मैंने कहा 'उह...क्या है?' 'सो गया क्या?' उसने पूछा 'हाँ' 'बड़ा झूठा है साले...हाहाहा...' 'इसमें हँसने की क्या बात है रात में सभी सोते हैं' मैंने छिड़ कर कहा 'अब तू जगा हुआ है साले तू नहीं सोया था...' फिर थोड़ी ख़ामोशी रही 'आजा...चूसेगा क्या?' मेरे मन में उमंग भर गयी फिर भी नाटक करता रहा 'नहीं...मैं तो छक्का हूँ...तेरा लण्ड गन्दा हो जायेगा' 'अबे गुस्से में कह दिया था...आजा न चूस ना' उसने मुझे खुला इन्विटेशन दिया...अब मैं भाव खाने लगा. मगर अंदर से डर था कि कहीं वो अपना इरादा न बदल दे...मगर नवीन तो अब शायद अलग मूड में ही था.

'आजा ना बहुत मूड हो रहा है आजा करचूस ना' उसने मुझे पुचकारते हुए कहा 'नहीं' मैंने बनावटी गुस्से से मना किया' इस बार नवीन बोला 'आजा देख पूरे ताव में टनाटन खड़ा है...आजा वरना मुठ मारनी पड़ेगी आजा ना' मैंने उसकी तरफ देखा...उसने अपनी जेंस उतार दी थी और पूरा नंगा लेता अपने लण्ड को सच में मुठ मार रहा था...अब मैं घबराया कि कहीं वो सच में माल ना झाड़ दे...मगर अब मैं उसके फाइनल बुलावे का वेट कर रहा था...वो भी मूड में था 'अबे आजा न यार...आ ना...आ चूस दे...मुठ मारने में मज़ा नहीं आ रहा है...तू चूसता बहुत बढ़िया है आजा' कहते हुए वो उठा और पूरा नंगा मेरी तरफ आया...उसका लण्ड उसके हाथ में था...वो मेरे बगल में लेता और अपना लण्ड मेरे हाथ में दे दिया...अब उसका लण्ड थाम करमेरी साँसें थमने लगीं 'अभी तो गालियाँ दे रहा था अब क्या हुआ' मैंने उसका लण्ड पकड़ते पकड़ते कहा 'अब चुसवाने का मूड हो गया' कहते हुए उसने मेरे सर को नीचे अपने लण्ड की तरफ दबाना शुरू करदिया...फिर जो अगली कुछ देर मैंने नवीन का लण्ड चुसा और उसने गांढ़ हवा में उठा उठा कर अपना लण्ड मेरी हलक में फंसाया तो बस मज़ा आ गया. इस बार उसके अंदर नयी ताक़त का अहसास हुआ. कुछ देर बाद उसने खुद ब्रेक ले लिया. मैं उसकी जांघ पर सर रखकर लेटा रहा. अब मैं चाहता था कि मेरे और नवीन के बीच वो रिश्ता जिंदगी भर बना रहे. मगर वो साला स्ट्रेट था.

'मुंह में लेने में कैसा लगता है?' उसने मुझसे पूछा मैं जवाब देने के लिए उठा तो अपना सर उसकी जांघ से हटा कर उसके बगल में लेट कर उसकी बाजू पर रख दिया और अपनी उँगलियों से उसके पसीने से महकते बाजू के बालों से खेलते हुए जवाब दिया 'बहुत मस्त'

'इसमें क्या मस्त लगता है...गन्दा नहीं लगता?'

'नहीं बिलकुल नहीं...'

'फिर भी' उसने कहा 'नहीं लगता यार अच्छा लगता है' मैंने जवाब दिया

'और जब माल झड़ता है तब?' उसने पूछा 'तब भी अच्छा लगता है मज़ा आता है'

'तूने गांढ़ भी खूब मरवा रखी है ना?' उसने पूछा 'हाँ...' मैंने जवाब दिया 'तू मारेगा क्या?' मैंने पूछ लिया

'उह...नहीं...गन्दा लगता होगा' 'नहीं...अच्छा लगता है' मैंने कहा 'तुझे दर्द नहीं होता?' 'नहीं मज़ा आता है' 'कितनो से मरवा चूका है' उसने पूछा 'तू मारेगा क्या?' मैंने फिर पूछा 'नहीं गन्दा लगेगा...तू कॉन्डोम लगवा के मरवाता है?' उसने पूछा 'हाँ कभी कभी...तू मारेगा कॉन्डोम लगा के?' मैंने पूछा जब वो सोचने लगा तो मैंने कह दिया 'चल रहने दे तेरे बस कि नहीं हाहाहा' मेरे इस तरह कहने परा उसकी मर्दानगी जग गयी 'बेटा बस में क्या है वो तो मौका मिलने पर दिखा दूँगा' 'कहाँ दिखा पा रहा है' 'अबे मैं इस लाइन का नहीं हूँ' 'उससे क्या हुआ...लण्ड में जान होनी चाहिए...कौन सा जिनसे जिनसे मैंने मरवाई हैं सब इस लाइन के होते हैं'

'अच्छा...नोर्मल लड़के भी करते हैं ये सब?' उसने पूछने में सरप्राइज़ था 'हाँ यार चूत मिलती नहीं...और मुठ मारने से तो ज़्यादा मज़ा आता है इसमें...लौंडे टाइम पास करते हैं और चुदाई का एक्सपीरियंस भी हो जाता है...तू जाने दे' मैंने फिर उसको भड़काया मगर उसने बस एक और सवाल किया 'बहनचोद गांढ़ गन्दी होती है...लण्ड नहीं होता गन्दा अंदर घुसाने में?' 'नहीं यार बिलकुल नहीं' वो अब थोड़ा शांत हुआ फिर बोला 'अच्छा ये बता' 'क्या?' मैंने पूछा 'तूने मारी किसी लड़के की?' 'हाँ मुझे भी मज़ा आता है...' 'जब लण्ड बाहर निकालता है तो गन्दा नहीं होता?' 'नहीं यार' 'साले तू झूठ बोल रहा है' उसने कहा 'अबे रहने दे जिनको शौक़ होता है उनको ही मज़ा आता है'

बात करते करते मैंने नवीन की तरफ करवट ले ली और अपनी जांघ उसकी जांघ पर चढ़ाकर उसके लण्ड को सहलाने लगा 'तुझे चुसवाने में अच्छा लगता है?' मैंने पूछा 'उह...हाँ' 'पहले कभी सोचा था चुसवाने का?' 'यार वो जो मेरी फ्रेंड है उससे बोला था वो रेडी नहीं हुयी चूसने को' उसने बताया 'तो उसके साथ क्या होता है?' 'बस किसिंग विसिंग...ऊपर से दबाना वगेराह' मुझे मज़ा आने लगा था...उससे ये सब बातें करने में मुझे उसके दिल के अंदर जाने का अहसास हो रहा था...मैं नवीन को अपना बना लेना चाहता था'

'हाँ लड़किया सुना है नहीं चूसतीं हैं आसानी से' मैंने उसकी हाँ में हाँ मिलाई तो वो बोला 'मगर तू साले बहुत चकाचक चूसता है' उसने कहा तो मैंने उसके लण्ड को थोड़ा सहलाया कुछ देर हम चुपचाप रहे फिर कामुकता भड़कने लगी. अब बस हमारे जिस्म आपस में बातें कर रहे थे. मैं फिर नीचे खिसका और मैंने फिर से नवीन के हथोड़े को अपने मुंह में ले लिया और उसको चपचप करके चूसने लगा...नवीन जांघें फैलाकर लेट गया और गांढ़ उठा उठा कर मुझे अपना लण्ड देने लगा...उसने अब दोनों हाथों से मेरा सर थाम लिया और मेरे मुंह को अपने लण्ड पर दबाने लगा. उसका सुपाड़ा मेरी हलक तक जाकर फूल जाता तो बहुत मज़ा आता...काफी देर बाद उसने बात करी 'झाड़ दूं?' 'रुक जा ना' 'अबे इतनी देर से चुसवा रहा हूँ' उसने कहा 'कैसे झाड़ू?' 'जैसे तेरा दिल करे...तू क्या चाहता है?' 'उस दिन की तरह?' उसने पूछा 'जैसे तेरी मर्ज़ी' मैंने कहा 'मुंह में पिएगा?' उसने फाइनली खुलकर अपने दिल की बात कही 'आह हाँ पिला दे ना यार' 'तुझे अच्छा लगता है माल?' 'म्म्म बहुत अच्छा'

'अच्छा ले' कहकर उसने मेरे सर को अपनी जाँघों के बीच फंसा लिया और जाँघों को जोर से जकड़ करउसने फिर से मेरे मुंह में लण्ड देना चालु कर दिया...मैंने भी मस्ती से भरकर अब उसकी कमर सहलाते हुए उसकी गांढ़ का छेद और दरार दबाना और सहलाना शुरू कर दिया...और दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए...वो बस साँसें ले ले कर तेज़ी से अपने लण्ड को मेरे मुंह में देने लगा...उसका लण्ड मेरे होठों को सटाक सटाक रगड़ रहा था...फिर उसने अपनी जांघें और भींचीं...उसका लण्ड मुंह में उछला...उसने गांढ़ भींच ली और सर जोर से पकड़ते हुए तेज सिसकारी भरी 'उह्ह्ह्ह्ह आःह्ह्ह्ह हाँ हाँ हाँ आः जुनैद उह्हह हाँ' मैंने अपने होंठ उसके लण्ड पर कस दिए...फिर उसके लण्ड से वीर्य की धार किसी तेज रफ़्तार गोली की तरह निकलने लगी जिसको मैं सीधा पीता चला गया...वो उसके काफी देर बाद भी वैसे ही चुसवाता रहा...उसका लण्ड मुरझाया नहीं...बस हल्का सा ढीला हुआ और फिर वैसे ही टाईट हो गया जैसा शुरू में था...उसको वीर्य के स्वाद के साथ चूसने में और ज़्यादा मज़ा आने लगा.

बहुत देर के बाद उसने लण्ड मुंह से निकाला और उठ कर बाथरूम चला गया...मैं पलट कर लेट गया और बिस्तर पर अपना लण्ड रगड़ कर मज़ा लेता रहा. नवीन ने उस दिन सच बहुत मस्त कर दिया था मुझे. उसके मुंह से तो गालियाँ भी अच्छी लगी थीं...उसके बाद से ही मुझे सेक्स के दौरान गालियों की आदत सी पड़ने लगी थी. मैं हमेशा नवीन की मर्दानगी का मज़ा लेना चाहता था मगर अफ़सोस बस ये था कि मुझे पता था कि उस जैसे लड़के जल्दी ही चूत के चक्कर में पड़कर हम जैसों को भूल जाते हैं. वो वापस आकर अपने बेड पर लेट कर सो गया...कुछ देर में मुझे भी नींद आ गयी. मेरी गांढ़ अब भी नवीन के लण्ड की प्यासी रह गयी थी. वो साला किसी भी तरह गांढ़ मारने को राज़ी ही नहीं हो रहा था और मुझे बेतहाशा तड़पाए जा रहा था. मेरी गांढ़ अब नवीन के मर्दाने लण्ड के लिए तड़प रही थी.

अगली सुबह मेरा तो ऑफ था मगर नवीन जल्दी उठ गया था क्यूंकि उसको मोहित को किसी काम से कहीं लेकर जाना था. दोनों तैयार होकर चले गए. उस दिन नाश्ते पर भाभी के अलावा बस मैं और उमंग थे. सुबह के खुमार के बाद नहा धो करचिकना बना बैठा उमंग बहुत नमकीन लग रहा था. मैं खाते खाते उसको भी देख रहा था. वो थोड़ा सा परेशान सा भी लग रहा था. कभी मुझे देखता, कभी जब ये देखता कि मैं उसको देख रहा हूँ तो नज़र हटा लेता...उसके बाद फिर देखने लगता.

मैं कभी भाभी को देखता कभी उनसे कुछ कहते कहते उमंग को देखता. उसके बाद मैं उमंग को बोर होने के बहाने से अपने ही रूम में ले गया. वो ग्रे रंग की पैंट और वाईट टी शर्ट पहने थे. मैंने ऐसे ही मजाक में कहा 'ये स्कूल का यूनिफॉर्म क्यूँ पहने हो हाहा' तो वो भी हंसा 'हाँ बिलकुल वैसा ही लग रहा है ना भईया...मगर मेरे स्कूल में नेवी ब्लू पैंट होती है' 'अच्छा' फिर मैंने ऐसे ही बात कुछ आगे बढ़ाई...'वैसे बौडी अच्छी बना ली है तुमने...एक्सरसाइज़ करते हो क्या?' कहते हुए मैंने उसकी बाज़ू सहलाई.

'नहीं भईया...अपने आप है' 'अच्छा' कहते हुए मैंने इस बार हाथ उसकी जांघ पर रखा और वहाँ सहलाते हुए कहा 'तब तो सही बौडी है...बड़े होते होते बिलकुल सलमान जैसी हो जायेगी' 'हाहाहा भईया वैसी कहाँ होगी' उसने मेरा हाथ हटाया तो नहीं मगर कनखियों से उसको देखा ज़रूर. उसका टीनेज जिस्म गर्म और मखमली था...लौंडा अभी शायद ताज़ा ताज़ा जवान हुया था...मेरी तारीफ से थोड़ा शर्मा रहा था, थोड़ा खुश हो रहा था. 'सही है' मैंने इस बार उसकी पीठ पर हाथ रखकर कहा 'बौडी सही रहनी चाहिए' और मैंने वो हाथ उसकी पूरी पीठ पर फेरते हुए कमर पर जाकर टिका दिया. मगर जब उँगलियों से उसकी कमर हलकी सी रगड़ खायी तो वो मचल कर खिलखिलाने लगा 'हेहेहेहे' 'क्या हुआ' मैंने पूछा 'भईया गुदगुदी हो रही है' 'इतनी तगड़ी बौडी है गुदगुदी क्यूँ हो रही है' कहते हुए मैंने पहले फिर उसकी बाज़ू सहलाई और फिर हाथ को वैसे ही बातों बातों में जांघ पर रख दिया...बिलकुल ऐसे जैसे उसका कोई मतलब ही ना हो.

मगर वो उसको बार बार देख रहा था.

'आप यहाँ कबसे हैं' उसने पूछा 'दो दिन' मैंने जवाब दिया 'यहीं सोते हैं?' उसने पूछा 'हाँ...इस बेड पर' फिर मैंने उसको बताया कि दो दोस्त और थे. वो मेरी बातें बहुत इंटरेस्ट लेकर सुन रहा था. 'तुम कहाँ रहते हो?' मैंने उससे पूछा 'वैसे तो पटना में रहते हैं हम...मगर यहाँ मोहित भैय्या के रूम पर' 'अच्छा है...अभी रहोगे?' 'कुछ काम से आये हैं...अब वापस चले जायेंगे' 'दिल्ली घूमा?' 'कहाँ भैय्या...मोहित भैय्या बिज़ी रहते हैं कहीं ले नहीं जाते' 'कोई बात नहीं मैं घुमा दूंगा तुमको' 'सच?' उसका चेहरा खिल गया और वो खुश हो गया.

'चलो छत पर चलोगे?' 'क्यूँ भईया?' उसने पूछा'

'यार सिगरेट पीनी है...यहाँ नहीं पी सकता ना' 'आप सिगरेट पीते हैं?' उसने कहा 'हाँ...क्यूँ तुम भी पीते हो क्या?' 'उह...नहीं नहीं भईया कैसी बात कर रहे हैं मैं अभी छोटा हूँ' 'वैसे उतने छोटे भी नहीं लगते...जवान तो हो गए हो' मैंने कुछ नहीं कहा मगर जब मैं छत के लिए उठा तो वो साथ हो लिया. हम लिफ्ट से पहले टॉप फ्लोर पर गए और फिर सीडियों से ऊपर छत पर. सीड़ी चढ़ने के टाइम वो जब थोड़ा आगे हुआ तो मुझे उसकी गांढ़ का मस्त सीन दिखा. ग्रे पैंट में उसकी गांढ़ कि गोलाई मस्ती से दिख रही थी...उसके ऊपर उसकी पतली कमर और नीचे सुडौल गठीली जांघें...फिर हम ऊपर पहुँच गए. लौंडा मस्त था. मैं सिगरेट पीने लगा और उससे बातें करने लगा. मैं उसको फ्रैंक कर लेना चाहता था ताई उसपर हाथ मारने में आसानी रहे. वैसे तो उस समय तक कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था मगर मुझे पूरा यकीन था की उसने रात में काफी देर मुझे नवीन का लण्ड चूसते हुए देखा था.

मैं किसी तरह उससे जानना चाह रहा था.

'ले लो पीते हो ना?' कहकर मैंने अपनी सिगरेट उसकी तरफ बढ़ायी 'अरे नहीं भईया...अभी नहीं पीते' 'अभी मतलब बाद में पियोगे हाहाहा' मैंने कहा 'देखा जायेगा' 'हाँ सही है अभी छोटे हो' 'जी भईया' उसने कहा. उसकी मुस्कराहट बहुत कातिल थी...वो जब मुस्कुराता मुझे उससे प्यार हो जाता. मैंने फिर उसकी बाज़ू पकड़ी 'वैसे बाज़ू अच्छी है तुम्हारी' 'थैंक्स भईया' 'सच बाद में बौडी और मस्त हो जायेगी तुम्हारी...देखना लड़कियां खूब फंसेगी' 'क्यूँ?' उसने पूछा...अब वो फिर मुस्कुरा रहा था 'अरे लड़कियों को तगड़ी बौडी पसंद आती है ना' 'अच्छा' उसने कहा 'रात में ग्लास मिल गया था ना?' मैंने अचानक पूछा तो उसके हाव भाव हलके से बदले 'उह...आह...उह जी भईया...नवीन भईया दे दिए थे आकर' इस बार उसकी आँखों में एक सवाल सा था ...शायद वो कुछ पूछना चाह रहा था 'क्या हुआ' मैंने पूछा 'कुछ पूछना चाह रहे हो क्या?' मैंने पूछा तो वो झेंप गया. अब मुझे कंफिर्म हो गया कि उसने रात में काफी सीन देखा था. 'उह नहीं तो...नहीं भईया' उसने जवाब दिया. उसके चेहरे पर हलकी सी शर्मिंदगी थी.

'हाहाहा चलो रहने दो' मैंने भी मुस्कुराते हुए टॉपिक ऐसे बदल दिया कि मुझे पता था उसके अंदर एक कीड़ा दौड़ ही गया होगा. हम दोनों चुपचाप वहाँ से शहर का नज़ारा देखते रहे. वैसे वहाँ से काफी दूर तक खुला खुला दिखता था और हवा भी तेज चलती थी जिसमे उमंग के बाल उड़ रहे थे....उड़ते बालों के साथ अपने आपको संभालता हुआ वो और मस्त लग रहा था. मैंने सिगरेट की कश ली और पूछा 'तब बता यार कोई लड़की वडकी पटा राखी है कि नहीं' जवाब में वो मुस्कुराया 'नहीं भईया' 'हाहहाहा क्यूँ यार ये काम तो कर लेना चाहिए था ना अब तक' 'अभी इस सब में थोड़ा डर लगता है' 'डर किस बात का' मैंने कहा 'घर पर पता चला तो' 'कोई कुछ नहीं कहेगा...ये सब कोई थोड़ी मना करता है...ये तो नोर्मल चीज़ है...कौन सा लड़का पटाने को कह रहा हूँ...लड़की की बात कर रहा हूँ हाहाहा' मेरी बात से उसके चेहरे पर शरारत के भाव आये, हलकी सी भीनी मुस्कराहट के साथ उसकी आँखों में एक चमक सी आई...'जब टाइम आएगा तो देखा जायेगा हाहाहा' उसने उसी मुस्कराहट के साथ कहा 'अब कब टाइम आएगा' 'अरे जब कॉलेज में आयेंगे तब' 'तब तक वेट करता रहेगा...जवानी तो आ गयी होगी' मैंने कहा 'अभी टाइम नहीं मिलता' 'किस बात में बिज़ी रहते हो?' 'स्कूल जाते हैं, फिर ट्यूशन, स्पोर्ट्स' 'क्या खेलते हो?' मैंने पूछा 'क्रिकिट और फुटबॉल' उसने जवाब दिया 'अच्छा इसलिए बौडी तगड़ी हो गयी है'

'जी भईया शायद' उसने जवाब दिया 'हाँ तुम्हारी जांघ सौलिड है देख कर लगा था कि कोई ना कोई एक्सरसाइज़ करते होगी...फुटबॉल से तो जाँघों की सही एक्सरसाइज़ होती है' कहते हुए मैंने एक हाथ से सिगरेट होठों पर लगाते हुए दूसरे हाथ को उसकी कमर पर रख दिया. उसने कुछ नहीं कहा 'कैसा खेलते हो?' मैंने पूछा 'ठीकठाक' 'देखकर तो लगता है बढ़िया खिलाड़ी होगे' 'हो सकता है अब अपने बारे में खुद क्या बताऊँ' उसकी पतली कमर सहलाने में बहुत मस्ती चढ़ रही थी...वो बातें तो कर रहा था मगर मेरा ध्यान उसकी कमर सहलाने पर था.

'कभी मुझे भी फुटबॉल सिखा दो' मैंने कहा तो वो हँसने लगा 'हाहाहा....आप इतने बड़े हैं...आपको तो खुद ही आती होगी' 'नहीं...नहीं आती बड़े होने का ये मतलब थोड़ी कि तुम जैसे लड़कों से कुछ सीख न पाऊं' 'क्यूँ मजाक करते हैं भैय्या' उसने फिर मुस्कुराते हुए कहा 'आप भी मस्त बातें करते हैं बड़ी' 'हाहाहा...' मैं भी हंसा 'नहीं मैं सीरियस हूँ यार मजाक में मत लो...बोलो सिखाओगे' 'आपको खुद सब कुछ आता होगा' 'वैसे आता तो बहुत कुछ है मगर फुटबॉल नहीं' 'तो क्यूँ सीखना चाहते हैं?' उसने कहा 'तुम्हारे साथ खेलने का मौका मिलेगा' मैंने जवाब दिया 'हाहाहा...हमारे साथ खेल कर क्या करेंगे हाहाहा' वो हंसा 'क्यूँ तुम्हे मैं अच्छा नहीं लगा?' 'नहीं नहीं...वो बात नहीं है भैय्या' 'तो फिर क्या बात है' 'अच्छा आपके ऊपर है' उसने कहा 'तुम मुझे बहुत स्मार्ट लगे' वो थोड़ा शरमाया, हल्का सा ब्लश किया 'ओह क्यूँ' उसने कहा 'क्यूँ क्या...तुम हो काफी स्मार्ट...मतलब सुंदर हो...उह...दिखने में स्मार्ट हो' मैं उसको बातों में फंसा कर समझाना चाह रहा था. 'स्मार्ट तो सभी होते हैं' उसने कहा...अब तक मुझे पता नहीं था कि वो कुछ चाह रहा था या नहीं. वो बस बातें कर रहा था और मेरी हर बात का जवाब दे रहा था.