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Chapter 2 - Gay Sex Story with My Straight Friends Part 2

अगले दिन जब आँख खुली तो मेरा तो काम पर जाने का मन नहीं हुआ...नवीन भी घर पर ही था इसलिए मैं भी रुक गया. शिबली और सौरभ काम पर चले गए. हम बस आलस में रूम में पड़े रहे. तब उस दिन वो बात पता चली जो पहले मुझे नहीं मालूम थी. वो ये थी कि नवीन के भाई ने नवीन को बुलाने से पहले भाभी से कहा था कि वो अपने छोटे भाई को बुला ले. जब भाभी ने अपने भाई को फोन किया तो पता चला कि वो अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए शिमला गया हुआ है. तब उन्होंने भैय्या से कहा कि वो नवीन को फोन कर दें. एक तरह से अच्छा ही हुआ कि मैं उस दिन काम पर नहीं गया. एक तो मुझे तबियत से नवीन को देखने का मौका मिला और दूसरा थोड़ा आराम करने का.

कुछ देर बाद नवीन भाभी के साथ मार्केट चला गया तो मैं घर पर अकेला ही था. तभी दरवाज़े कि घंटी बजी तो बस मैं उन दोनों को देखता का देखता रह गया. उस दिन पहली बार मेरी मुलाक़ात भाभी के छोटे भाई मोहित से हुयी...और उसके साथ उसका एक रिश्ते का छोटा कजिन उमंग था जो ऐसा था कि बस मैं उसपर से नज़र ही नहीं हटा पा रहा था. वो अभी स्कूल में ही पढता था और बातों में पता चला कि कि कुछ दिन पहले ही घूमने के लिए पटना से दिल्ली आया हुआ था. वो ब्राउन कलर की कार्गो और हाफ स्लीव की टी शर्ट पहने था...उसका रंग मीडियम था, जिस्म भरा हुआ था, बाल काले थे, आँखें छोटी और होंठ तो बस ऐसे की देखते ही चूसने का मन करने लगा था. जब वो सोफे पर बैठा तो मैंने उसकी मस्त जाँघों को देखा. लड़का मेरे इस तरह घूरने से कुछ कुछ झेंप रहा था मगर मैं उस पर से नज़र नहीं हटा पा रहा था. रह रहकर मैं उसके पूरे जिस्म को देख रहा था. मेरी नज़रें कभी उसकी जाँघों पर, कभी उसकी ज़िप और कभी उसके होठों पर जा रही थी. ये उससे मेरी बिलकुल चांस मीटिंग थी. लड़का वैसे तो शरीफ बना बैठा था और बहुत इज्ज़त से बात कर रहा था मगर पता नहीं क्यूँ उसको देखकर ही लग रहा था कि वो शायद उतना शरीफ नहीं जितना वो दिखने की कोशिश कर रहा था. उसकी आँखों में और एक्सप्रेशन में कुछ तो ऐसा था जो मुझे लग रहा था कि मैं उसको उस तरह से क्यूँ देख रहा हूँ. भाभी का भाई मोहित भी मस्त माल था. वो जामिया से सेकण्ड ईयर एन्जिनीरियिंग कर रहा था. मुझसे छोटा था इसलिए काफी लिहाज़ से इज्ज़त के साथ बात कर रहा था. उसमे में भी काफी कशिश और सेक्स भरा हुआ था. वो उमंग से गोरा, लंबा और उम्र में तो बड़ा था ही. वो जींस और लाल रंग कि शर्ट पहने था. मौका मिलने पर मैं उसको भी ताड़ रहा था. दोनों की जवानियाँ मस्त थीं. वैसे भी उन दिनों दो दिन में तीन लण्ड पाकर मेरी खुराक खुली हुयी थी...मैं तो कुछ नंगई से लड़कों को देखने लगा था. मैंने मोहित को भी खूब प्यार से देखा. एक दो बार बात करते करते जब उसका हाथ अपनी ज़िप तक गया तो मेरी नज़र उसी पर रही. उसके होंठ और मुस्कराहट भी मादक थे. मोहित की कमर तीस के आसपास रही होगी और उमंग कि उससे भी थोड़ी कम. जब तक नवीन और भाभी वापस आये तब तक मैंने उन दोनों से अच्छी खासी दोस्ती कर ली थी. भाभी ने करउमंग को लिप्त लिया 'अरे किट्टू भी आया है...अच्छा किया आ गए' तब मुझे पता चला कि उमंग का प्यार का नाम किट्टू है. भाभी ने जब उसको लिपटाया तो वो थोड़ा झेंपा.

जब इतने लोग हो गए तो नवीन ने फोन करके शिबली और सौरभ को वापस आने के लिए मना कर दिया 'कोई बात नहीं यार अब बहुत लोग हो गए हैं...देखूंगा अगर भाभी कहेंगी तो रुकुंगा वरना मोहित रुकेगा तो मैं और जुनेद वापस आ जायेंगे' अच्छा हुआ कि उस दिन भाभी ने नवीन को जाने से मना कर दिया. अब मेरे ताड़ने के लिए फिर तीन लड़के थे. मैं अब तक नवीन का मन नहीं पढ़ पाया था. पता नहीं था कि वो हमारे संबंधों को आगे जारी रखना चाहता है कि नहीं. मगर मेरी नज़रें उसपर से हट नहीं पाती थीं. उसकी जवानी में कुछ ऐसी ही कशिश थी. मैं हमेशा उसकी तरफ एक खिंचाव महसूस करता था. और अब उसका लण्ड चूसने के बाद और अपने चेहरे पर उसके वीर्य का मज़ा लेने के बाद तो नवीन मेरे दिमाग पर बुरी तरह से छाया हुया था. मुझे बस नवीन का लण्ड चाहिए था. वैसे देखा जाए तो मोहित की शक्ल और जवानी अलग थे, मगर उमगं के अंदर नवीन वाले बहुत से गुण थे...उसके अंदर भी नमक और कशिश थे, एक मर्दानगी थी...कुछ ऐसा था कि बस उन दोनों को पाने की चाहत जग जाती थी. उमंग और नवीन मर्द थे...मोहित खूबसूरत था!

उस रात ये डिसाइड हुआ कि मैं उसी रूम में सोऊंगा जिसमे पहले सोया था, नवीन मेरे साथ रहेगा...मोहित और उमंग दूसरे गेस्ट रूम में सोयेंगे. मेरा दिल तो उन तीनों के साथ एक साथ सोने का कर रहा था! मगर हर चीज़ मिलती तो नहीं. फिर मैंने सोचा कि अगर मैं उमंग और मोहित के साथ सोऊंगा तो शायद उनमे से किसी को फंसा लूं...नवीन तो साला अब हाथ रखने नहीं देगा. खैर ये मेरे लिए कोई नयी या अब्दी बात नहीं थी. मुझे हमेशा कोई न कोई लड़का पसंद आ जाता था...मगर हर पसंद आने वाला लड़का मिलता नहीं था इसलिए बाद में उसको याद करके मुठ मार लेता था. वैसे जो भी था उमंग भी था ऐसा कि मेरे दिमाग पर चढ़ गया था. मुझे उसमे नवीन के टीनेज दिन दिख रहे थे.

उस दिन नवीन चाह कर भी मुझे अवोइड नहीं कर पा रहा था क्यूंकि ग्रुप में से बस वो और मैं बचे थे. वैसे भी अब उसने मुझसे फिर से बातें शुरू कर दी थीं.

उस रात हमने दारु नहीं पी क्यूंकि नवीन को डर था कि कहीं मोहित भाभी से शिकायत न कर दे! नवीन को टीवी देखने की काफी लत थी...उस दिन भी वो खाने के बाद गमछा बांधकर बनियान पहनकर टीवी के सामने सोफे पर लेट गया. मैं कुछ देर रूम में बैठा और फिर वहीँ पहुँच गया. मोहित और उमंग अपने रूम में थे. भाभी भी शायद सो गयी थीं. मुझे देखकर नवीन ने कोई खास रिएक्शन नहीं दिया. वो लंबे वाले सोफे पर लेटा था. उसने सर के नीचे कुशन लगा रखा था और एक पैर का घुटना मोड़ कर तलवा सोफे पर ही रखा हुआ था और दूसरे पैर को सीधा करके सोफे के हत्थे पर रखे था. पैर मुड़ा होने के कारण अगर दूसरी तरफ से कोई देखता तो उसको नवीन की गांढ़ दिखती...और शायद लण्ड और टट्टे भी. मगर जहाँ मैं था वहाँ से मुझे वो सीन तो नहीं दिख रहा था मगर फिर भी आराम से बैठे बैठे नवीन का जिस्म ताड़ने को मिल रहा था. टीवी पर कोई मैच आ रहा था जिस में मुझे इंटरेस्ट नहीं था...वैसे भी नवीन को फुटबॉल बहुत पसंद था थी...मुझे तो बस नवीन पसंद था!

वैसे तो खाना खाते खाते ही काफी देर हो गयी थी और फिर काफी देर टीवी देखने में निकल गया तो मुझे भी नींद आने लगी मगर नवीन के पास से हटने का दिल नहीं कर रहा था.

'चल यार सोने नहीं चलेगा क्या?' मैंने पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया...इसलिए मैंने दोबारा पूछा 'अबे नवीन...सोयेगा नहीं क्या चल' तब मैंने देखा कि वो इसलिए जवाब नहीं दे रहा था क्यूंकि उसकी आँख लग गयी थी. मैं उठा और उसके करीब गया. फिर उसको पुकारा 'नवीन...नवीन...चल ना' मगर वो आँखें बंद करके सोया रहा. मैं वहीँ उसी सोफे के पास नीचे कारपेट पर बैठ गया. मेरे अंदर एक आंधी चल रही थी. मैंने सोचा कि थोड़ा उसके सोने का फायदा उठा लिया जाए. मैंने उसको एक दो बार और पुकारा और जब श्योर हो गया कि वो सो रहा है तो मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखा. मेरे हाथ में फिर बिजली दौड़ गयी. उसकी जवानी में कुछ ऐसी बात थी. जब वो जांघ पर हाथ रखने पर भी नहीं उठा तो मेरी हिम्मत और ठरक दोनों बढ़ने लगे. मैंने उसकी जांघ कुछ और सहलाई और फिर वहीँ सोफे पर थोड़ी सी जगह बना करअपनी गांढ़ टिका ली...और अपनी हथेली इस बार उसकी जांघ पर काफी ऊपर रख दी...वो अब भी सोया रहा मगर अंदर की आग भड़कने लगी...

मेरे अंदर फिर एक उम्मीद जागने लगी और दिल रुक रुककर धड़कने लगा...मैंने फिर सीधा उसके लण्ड पर हाथ रख दिया...उस समय तक उसका लण्ड पूरा खड़ा नहीं था...मैंने उसको हलके से अपनी हथेली से सहलाया...सहलाने से उसमे जान आने लगी और वो सख्त होने लगा...मेरी हिम्मत और बढ़ी तो मैंने अपनी उँगलियों को उसपर लपेट दिया और फिर हथेली के साथ साथ उसको अपनी उँगलियों से सहलाने लगा और देखते देखते नवीन का लण्ड अपने पूरे प्रचंड रूप में आ गया. नवीन अब भी चुपचाप लेटा हुआ था...उसकी आँखें अब भी बंद थीं...बस उसका लण्ड मेरे हाथ में जगा हुआ भूचाल मचा रहा था...मुझे कुछ डर तो था मगर फिर भी नवीन के लण्ड से हाथ हटाने की हिम्मत नहीं थी जो अब जवानी के पूरे जोश में था. थोड़ी देर मैंने उसको गमछे के ऊपर से थामे रखा मगर मेरा सब्र भी खत्म हो रहा था...तब मैंने उसके गमछे को ऊपर कर के उसके लण्ड को खोल लिया...टीवी से आ रही रौशनी में वो बहुत मनचला और खूबसूरत मरदाना लग रहा था...उसने शायद कुछ दिन पहले अपनी झांटें शेव करी थीं क्यूंकि अब वो लगभग एक सेंटीमीटर की थीं...उसके नीचे उसके मस्त मर्दाने काले टट्टे टाईट हो रखे थे...मर्दानी गदराई जाँघों के बीच जोशीला लण्ड और जानदार टट्टे बहुत मस्त लग रहे थे. मैंने जब फिर उसके नंगे लण्ड को अपने हाथ से पकड़ कर दबाया तो उसमे भूचाल मचा और उसका सुपाड़ा अपने आप खुल कर प्रिकम से चम्चामचाने लगा...मैंने अपने अंगूठे से उसके प्रिकम को उसके सुपाड़े पर लसेढ़ दिया...सुपाड़ा दबाने पर उसके लण्ड ने खूब हुल्लाढ़ मारी...मुझसे अब और नहीं रुका गया...मैं वहीँ सोफे पर बैठा बैठा झुका और मैंने उसके सुपाड़े को अपनी जीभ से सहलाया...इस बार मुझे नवीन की हलकी सी सिसकारी सुनाई दी...अब मेरा जोश और बढ़ गया.

शायद नवीन चुपचाप लेटा मज़ा ले रहा था...मेरे अंदर इस बात से जोश बढ़ा...मैंने इस बार उसके पूरे लण्ड पर अपनी जीभ फेरी. उस दिन उसके लण्ड से जोश भरी तीखी मर्दानगी भरी खुशबू आ रही थी. उस दिन वो सुबह के बाद नहाया नहीं था...उसके लण्ड से पिशाब, पसीने और जिस्म की मर्दानगी की मिलीजुली खुशबू का मरदाना कॉकटेल जैसा था जो मुझे मुग्ध कर रहा था. मैंने कुछ देर उसके लण्ड पर अपनी जीभ रखकर उसकी सख्ती को महसूस किया और गहरी साँसें लीं. मुझे उसके जिस्म की खुशबू मदहोश कर रही थी...मैं रात भर उसके लण्ड और टट्टों को सूंघना चाहता था.

कुछ देर लण्ड चाटने के बाद मैंने उसके टट्टे थोड़ा ऊपर करे और उनके नीचे जहाँ से उसकी गांढ़ के रेशमी बाल शुरू हो रहे थे वहाँ अपनी नाक घुसा दी तो उस जगह की खुशबू से तो मैं जैसे पागल ही हो गया था...वो मर्दानी खुशबू चुम्बक का काम अक्र्तेय हुए मुझे अपने आप से चिपका रही थी. मैंने अपना मुंह वहाँ और घुसाया...उसकी दोनों जांघें मेरे गालों से रगड़ खा रही थीं...मैंने वहाँ हलके से जीभ फेरी और वहाँ के बालों को अपने थूक से गीला किया तो नवीन हलके से मचल गया...और फिर उसका एक हाथ नीचे हुआ और उसने उसको मेरे सर पर रख दिया...मेरे लिए ये सिग्नल था की उसको एतराज़ नहीं है...मेरा मन चाहत और खुशी से भर गया और जल्दी से उसके टट्टे चाटता हुआ उसके लण्ड को पूरा चाटने लगा...फिर अचानक नवीन करवट लेकर लेट गया...मैं खिसक कर वापस नीचे बैठ गया...उसका लण्ड अब मेरी नज़रों के सामने था...मैंने अपना मुंह खोला और उसको मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया...फिर जब नवीन भी मेरे मुंह में अपने लण्ड के धक्के देने लगा तो मैंने उसकी जांघ और कमर भी सहलाना शुरू कर दिए...फिर एक हाथ से कभी मैं उसका लण्ड थाम लेता और कभी उसके टट्टे सहलाने लगता और और उनके नीचे उसकी उँगलियों से उसके बाल सहलाने लगता. कुछ देर में नवीन पूरे जोश से भरकर मेरे मुंह में अपना मरदाना मस्त लोहे का लौड़ा चोदने लगा तो मेरी आँखें बंद होने लगीं. मगर कहते हैं ना कभी कभी जोश में इंसान अपने होश में नहीं रहता. उस दिन भी कुछ वैसा ही हुया था...

वासना की मस्ती में मैं और नवीन ये भूल गए थे कि हम खुले हुए ड्राविंगरूम में थे और एक और कमरे में दो नए लड़के भी थे...शायद हमें पहले अपने रूम में जाकर दरवाज़ा बंद कर लेना चाहिए था क्यूंकि अचानक वहाँ लॉबी में फ्रिज के पास कुछ खटपट हुयी. आवाज़ सुनते ही नवीन ने बिजली कि तेज़ी से अपने लण्ड को मेरे मुंह से निकला और पीछे हुआ...तब मैंने देखा कि वहाँ परदे के पास उमंग खड़ा था. वो शायद आया ही था...या पता नहीं कुछ देर पहले से सब देख रहा था...मेरी उससे पूछने की हिम्मत नहीं हुयी.

'क्या हुआ किट्टू?' नवीन ने पूछा 'जी भईया पानी का ग्लास चाहिए' उसने कहा

'उह...वो किचेन में होगा...अच्छा रुको मैं देता हूँ' कहकर नवीन उठ कर चला गया और मैं रूम में चला गया.

कुछ देर बाद वो वापस आया और इस बार उसने दरवाज़ा अंदर से लॉक किया और पहले बाथरूम चला गया...फिर जब वो वापस निकल कर काफी देर मेरे पास नहीं आया तो मैंने देखा तो अपने बेड परलेटा था और उसने बाथरूम से जाकर जींस पहन ली थी जो मेरे लिए अच्छा संकेत नहीं था. मगर मैं अब पूरी कामुक तड़प में था...मैं उठा और फिर से उसके पास जाकर जब मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखा तो उसने मेरा हाथ झटक दिया.

'अबे हट गांडू साला' उसने कहा 'उह क्या हुआ यार...चूसने दे ना' मैं तो उस समय उसके लण्ड को बिना चुसे रह नहीं पा रहा था.

'साले तू छक्का है मादरचोद मुझे भी बदनाम करवाएगा गांडू हट नहीं पसंद मुझे ये सब' अब मेरा दिल थोड़ा टूटा और उदासी सी छाने लगी फिर भी मैंने ट्राई मारा 'चूसने दे ना यार...उसने थोड़ी कुछ देखा होगा...आवाज़ आते ही तो हम रुक गए थे'

'अब वो उठ कर बैठ गया 'देख भाई' उसने मुझसे कहा 'तू तो हिजड़ा है साले, मगर मुझे इस सब छक्केगिरी में नहीं पड़ना...तू जा साले अपनी टोली में ये सब कर मादरचोद मेरे साथ कुछ किया तो अब मैं तुझे मारूंगा' उसके चेहरे पर नफरत सी थी और उसके बोलने के तरीके में ज़हर. वो तो अगर वो मुझे इतना पसंद नहीं होता तो मैं भी कुछ उल्टा जवाब देता मगर मुझे तो उसके लण्ड से प्यार था इसलिए मैंने फिर उसकी बातों को टालने की कोशिश करी 'अरे क्या हो गया यार...चुसवाने में तेरा क्या चला जायेगा' मैं तो बस चाह रहा था कि हमारा प्रोग्राम जल्द से जल्द फिर शुरू हो जाए...मगर मुझे अब लगने लगा था की नवीन अब मेरे साथ कुछ भी नहीं करने का मूड बना चुका था फिर भी मैंने फिर कहा 'चूसने दे ना... अच्छा बस आज' 'अबे हट' उसने फिर चिढ़ कर रहा 'साले बोला ना अब बहनचोद तू ये सब धंदा बंद कर दे...जिसके साथ करना है कर मादरचोद...मुझे अपनी तरह छक्का नहीं समझ...साला गांडू...हिजड़ा कहीं का साला हट और तू कल चला जा साले' उसने कहा और फिर जैसे उसे याद आया 'क़सम से अगर तुने फिर कभी ये सब कोशिश करी तो मार मार कर तेरी बहन चोद दूँगा...साले तेरे कारण खानदान में बदनाम हो जाऊँगा तेरी अपनी तो कोई इज्ज़त है नहीं...साले पता नहीं किससे किससे मरवाता फिरता होगा...साले क़सम से अब मेरे से मत करियो कभी ट्राई...बता रहा हूँ अच्छा नहीं होगा फिर मत कहना.' उसने मुझे खुली धमकी दी...अब मुझे भी गुस्सा आया...वासना से लिप्त हो और मुंह लगा लण्ड इस तरह छीन जाए तो और ज़्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.

'ठीक है साले मत चुसा...मगर ये मत भूल कि तू कल खुद क्या कर रहा था'

'चल जा जा' उसने मुंह बनाते हुए कहा 'जा मुठ ही तो मार रहा था जा कह दे जिससे कहना है कह दे गांडू साला छक्का' अब मुझे गुस्सा आया 'ठीक है अब मेरे से बात मत करियो कभी...मैं सुबह सब कुछ मोहित से कह दूंगा और चला जाउंगा...कह कर मैं अपने बेड पर वापस आ गया और चुपचाप लेट गया. नींद तो शायद दोनों को अब नहीं आनी थी. कुछ देर हम लेटे रहे. कमरे में सन्नाटा था.

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