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Chapter 152 - *जय मसीह की*

*💓 हमारे प्रेमी परमेश्वर पिता और प्रेमी परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह जी और प्रेमी परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु जी के अति पवित्र और सामर्थ्यी नाम में आप सभी को 💓*

🌻 *जय मसीह की* 🌻

*🗓 दिनांक :-> शुक्रवार 12 नवंबर 2021 🗓*

*📓 मुख्य विषय :-> 1. परमेश्वर पिता के बारे में अध्ययन। इसे यूनानी में पैट्रोलॉजी भी कहते हैं।*

कृपया ध्यान दें अभी हम जो सीख रहे हैं उसे *सिस्टमैटिक थियोलॉजी {SYSTEMATIC THEOLOGY}* कहते हैं मतलब अपने परमेश्वर और अन्य विषयों *के बारे में एक क्रम से अध्ययन करना।*

*📋 आज का विषय :-> [22] परमेश्वर का क्रोध [भाग 12] 😡*

*📕 परमेश्वर के क्रोध के विषय में परमेश्वर का वचन हमें मुख्य 21 बातें सिखाता है जिनमें कुल 56 बातें हैं, 12 बात हम देख चुके थे आज उसके आगे 2 और बात देखेंगे…*

*😡 [13]परमेश्वर का क्रोध सुसमाचार का विरोध करने वालों के खिलाफ बहुत ज्यादा भड़कता है।*

📖 भजन संहिता 2:2-3,5 📖

[2] *यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरूद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं, कि*

[3] *आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियों अपने ऊपर से उतार फेंके॥*

[5] *तब वह उन से क्रोध करके बातें करेगा, और क्रोध में कहकर उन्हें घबरा देगा।*

📕 इस भजन में हमें प्रभु यीशु मसीह का राज्य दिखाई देता है। इस पद में उल्लिखित शासकों के विरोध और षडयंत्रों का संबंध विशेष रूप से प्रभु यीशु मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने के समय से था (प्रेरितों के काम 4:25-26), लेकिन सामान्य तौर पर यह पद उन सभी लोगों पर लागू होता है, जिन्होंने किसी भी युग में खुद को प्रभु यीशु के खिलाफ खड़ा किया था।

📖 1 थिस्सलुनीकियों 2:16 📖

[16]और *वे अन्यजातियों से उन के उद्धार के लिये बातें करने से हमें रोकते हैं, कि सदा अपने पापों का नपुआ भरते रहें; पर उन पर भयानक प्रकोप आ पहुंचा है॥*

📕 आज भी बहुत से ऐसे लोग पाए जाते हैं जो खुद तो प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास नहीं करते और ना ही उनकी बातों को मानते हैं पर इसके साथ ही दूसरों से प्रभु यीशु मसीह के बारे में बात करने देते हैं इस प्रकार वे अपने पापों को और बढ़ाते जाते हैं, वचन भी कहता है कि वे अपने भयानक प्रकोप के पास आ पहुंचे हैं।

*😡[14] परमेश्वर के क्रोध को भड़काना मूर्खता है…*

📖 यिर्मयाह 7:16-19 📖

[16] *इस प्रजा के लिये तू प्रार्थना मत कर, न इन लोगों के लिये ऊंचे स्वर से पुकार न मुझ से बिनती कर, क्योंकि मैं तेरी नहीं सुनूंगा।*

[17] *क्या तू नहीं देखता कि ये लोग यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों में क्या कर रहे हैं?*

[18] *देख, लड़के बाले तो ईधन बटोरते, बाप आग सुलगाते और स्त्रियां आटा गूंधती हैं, कि स्वर्ग की रानी के लिये रोटियां चढ़ाएं; और मुझे 😡 क्रोधित करने के लिये दूसरे देवताओं के लिये तपावन दें।*

[19] *यहोवा की यह वाणी है, क्या वे मुझी को क्रोध दिलाते हैं? क्या वे अपने ही को नहीं जिस से उनके मुंह पर सियाही छाए?*

📕 परमेश्वर यिर्मयाह से बात करता है कि लोग पाप और विद्रोह में इतनी दूर चुके हैं कि परमेश्वर अब उनके लिए प्रार्थना भी नहीं सुनेगा (यिर्मयाह 15:1; 1 यूहन्ना 5:16)।

वचन 19 को इस प्रकार पढ़ा जा सकता है क्या वे मुझे ही क्रोध नहीं दिलाते हैं ?

📖 1 कुरिन्थियों 10:19-22 📖

[19] *फिर मैं क्या कहता हूं क्या यह कि मूरत का बलिदान कुछ है, या मूरत कुछ है?*

📕 मसीह में शामिल होना उन सभी के साथ संगति को दिखाता है जो ऐसा करते हैं और उस सत्य को स्वीकार करना जो मसीह का बलिदान दिखाता है। इसी प्रकार मूर्ति के मंदिर के सामने एक भोज में भाग लेना एक झूठी आराधना में शामिल होना है। यह दुष्टात्माओं के साथ संगति करना है।

[20]नहीं, वरन यह, कि अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्वर के लिये नहीं, परन्तु दुष्टात्माओं के लिये बलिदान करते हैं: और मैं नहीं चाहता, कि तुम दुष्टात्माओं के सहभागी हो।

📕 मूरतें अपने आप में कुछ नहीं है। परन्तु मूर्तियों के पीछे दुष्टात्माएँ हैं (वे 1 कुरिन्थियों 8:5 के झूठे प्रभु हैं)।

❌ और वे लोग, जो उनकी उपासना करते हैं, सोचते हैं कि परमेश्‍वर की आराधना कर रहे हैं, किंतु ऐसा नहीं है। इस संसार में बहुत से लोगों की आराधना के बारे में यह एक बहुत महत्वपूर्ण कथन है। व्यव. 32:17 भी देखें।

✅ साथ ही मूर्ति के साम्हने चढ़ायी वस्तुओं को खाना उनके पीछे की दुष्टात्माओं के साथ एक होना है। यह उनको दी गई उपासना के साथ सहमति दिखाना है।

[21] *तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्माओं के कटोरे दोनों में से नहीं पी सकते! तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्माओं की मेज दोनों के साझी नहीं हो सकते।*

📕 "प्रभु के कटोरे …प्रभु की मेज़"- यह प्रभु भोज को दिखाता है। वहाँ वह नेवता देने वाले हैं, और उसमें भाग लेने वाले विश्‍वासी मेहमान हैं।

👉🏻 इसी तरह दुष्टात्माओं की मेज़ का अर्थ है :- दुष्टात्माएँ नेवता देने वाली हैं और उसमें भाग लेने वाले मेहमान। इस भाषा का उपयोग कर के पौलुस दिखाना चाहता है कि विश्‍वासियों के लिये यह कितना मुश्किल है कि इन दोनों को एक करें, या सोचें कि "मूर्ति-भोज"- में भाग लेने से कुछ नहीं होता है।

[22] *क्या हम प्रभु को रिस दिलाते हैं ?क्या हम उस से शक्तिमान हैं?*

😨 क्या हम यह सोचने का साहस कर सकते हैं कि वह करना चाहें जिसे परमेश्‍वर मना करते हैं और क्या उस समय खड़े रह पाएँगे, जब उनका क्रोध भड़कता है? निर्ग. 20:5; व्यव. 32:21; भजन 78:58 ।

🌻 आगे कल 🌻

*🤗… प्रेमी परमेश्वर इस 💘 प्रेम संदेश 💘 के द्वारा हम सभी को बहुत-बहुत और बहुत आशीष दे ! आमीन।…🤗*

*✍ Sermon By Evg. Ravi Dinkar*

*Yeshron Ministry India*