*🍞जीवन की रोटी 🍞*
*14 सितंबर 2021*
*विषय ✦ धर्मी पर अनुग्रह होता है।*
*सवाल यह उठता है की ये धर्मी कौन हैं और धर्म क्या है ???*
क्योंकि सनातन सत्य और जीवंत वचन उद्घोषणा करता है कि - *यहोवा (परम प्रधान सृजनहार परमात्मा परमेश्वर) की आंखे धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उसकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं*।
*(भजन संहिता 34:15)*
*अतिप्रिय बन्धुओ परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिये उसकी महिमा का गुणानुवाद युगानुयुग तक होता रहे क्योंकि वो भला है और उसकी करुणा सदा की है lll*
◉➦ प्रियजनों जब कभी हम किसी धर्मी जन की अथवा धर्मियों के समूह की जिन्हें इस जगत में संत या संत गण भी कहते हैं,चर्चा करते हैं,तो निःसंदेह हमारे जहन में कुछ सवाल खड़े हो जाते हैं कि हक़ीक़त में ये धर्मी जन कौन हैं किस धर्म के अनुयायी हैं और फिर किस धर्म को हम सच मान लें और किसे झूट और यह धर्म वास्तव में है क्या???
क्योंकि कोई कहता है हिन्दू धर्म तो कोई इस्लाम धर्म तो कोई सिख धर्म तो कोई ईसाई धर्म ऐसे ही अनेकों हैं अर्थात बौद्ध, जैन ऐसे ऐसे कई और मानव निर्मित धर्म कर्म जिन्हें लिखते जाएं तो हम विषय वस्तु पर नहीं लौट पाएंगे, इसीलिए हम अब मुद्दे कि बात पर लौटते हैं, और मुद्दे की बात तो यह है कि ये धर्म है क्या और क्या हैं इसके मायने एवं मानव जीवन में इसका महत्त्व ही क्या है ???
इन तमाम प्रश्नों के सच्चे और एक दम सटीक उत्तर हमें सिर्फ और सिर्फ पवित्र शास्त्र बाइबिल में ही मिलेंगे अन्यत्र और कहीं भी नहीं lll
आप पूछ सकते हैं कि सर जी आप इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हैं क्या कोई प्रमाण है आपके पास इस बात का ??
तो मैं उत्तर में सिर्फ इतना कहूंगा कि, सत्य को सिद्ध करने हेतु प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि सत्य तो स्वमेव सिद्ध होता है lll
दरअसल विश्व में जितने भी धर्म पुस्तकें हैं उन सबमें पवित्र शास्त्र बाइबिल ही पुख्ता तौर पर प्रमाणित है ऐसा सारे रीसर्च स्कालर कई कई बार ऊद्घोषणा कर चुके हैं और तो और विश्व की सबसे पहली हस्तलिखित और प्रिंटेड अर्थात मुद्रित (छपी हुई) पुस्तक भी यही एक मात्र है ऐसा वैज्ञानिक रीति से भी प्रमाणित हो चुका है, भले ही हम भारतीय लोग हमारे धर्म ग्रंथों को सनातन,सनातन चिल्लाते रहें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जो प्रमाणित है सो प्रमाणित है lll दरअसल इस जगत के कुछ चालाक और धूर्त किस्म के अक्ल के अंधों का ये भी मानना है कि बाइबिल की कई प्रतिलिपियाँ तो गुम हो गयीं हैं,और जो अभी मौजूद है वो भी आधी अधूरी है, परन्तु उन्हें जानकारी के लिये मैं बता दूँ, कि पवित्र शास्त्र बाइबिल की मौजूदा प्रतिलिपि अपने आप में सम्पूर्ण है, और स्मरण रखें कि इस अद्भुद रहस्य को केवल वही मनुष्य जान और समझ सकता है जिसने हक़ीक़त में पवित्रात्मा का विधिवत रूप से बपतिस्मा लिया है lll
क्योंकि सत्य का आत्मा अर्थात परमेश्वर का आत्मा अर्थात पवित्रात्मा ही समूचे ब्रम्हाण्डों का एक मात्र राजदार है क्योंकि सच तो यह है कि जो कुछ भी सृजा गया है देखी अनदेखी सब कुछ को स्वयं परमेश्वर ने अपने इसी आत्मा और शब्द से मिलकर ही बनाया है अर्थात जो बातें जगत के अंदर या जगत से परे हुई हैं उन सारी की सारी सच्चाईयों का भी रहस्य मय तरीके से मौजूदा पवित्र शास्त्र बाइबिल में उल्लेख किया गया है अर्थात सारी की सारी पुस्तकें भी परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर स्वयं के द्वारा सुनियोजित तरीके से विधिवत रूप से पिरोई गयी पुस्तकों की ही श्रँखलायें हैं जिनमें से ना तो एक भी पुस्तक को यहाँ से वहाँ खिसकाया जा सकता है और ना ही उनमे की किन्हीं भी शब्दों अथवा लाइनों को बदला अथवा घटाया बढ़ाया जा सकता है क्योंकि इस सम्पूर्ण शास्त्र का अद्भुद रहस्य तो यह है कि बाइबिल की मूल प्रति हिब्रू भाषा में एक एक शब्द न केवल गिने हुए हैं वरन उन्हें अद्भुद रीति से 7 से गुणा भी किया जा सकता है, और जानकारी के लिए बता दूँ कि यह 7 अंक परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर की अमेजिंग सील है मुद्रा है और इस जगत के महान गणितज्ञों ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए परमेश्वर के अगम्य बुद्धि की तारीफ़ करी है, क्योंकि ऐसा कोई गणितज्ञ तो समूचे ब्रम्हाण्डों में भी नहीं है जो यूँ इस तरह से शब्दों को जमा सकता है की वे सिर्फ 7 से ही गुणा की जा सके और इन सब बातों का एक और मतलब यह भी है कि, अभी के मौजूदा पवित्रशास्त्र बाइबिल में से एक शब्द भी एक रत्ती भर भी घटाया और बढ़ाया नहीं जा सकता, परन्तु इस तरह की अद्भुद बाते हमें इस धर्म शास्त्र के अनुवादों में देखने में नहीं आती हैं इसका मतलब यह भी नहीं है की अनुवाद सभी गलत हैं इसीलिए मैं पहिले भी कई बार कह चुका हूँ कि पवित्रात्मा को पाए बिना इसके एक शब्द को भी ठीक तरह से समझ पाना तो मुश्किल ही नहीं अनहोना है lll
बेशक लिखी तो और भी बहुत सी किताबें थीं परन्तु परमेश्वर ने इस पवित्र शास्त्र बाइबिल के अंदर रखीं सिर्फ वही पुस्तकें जो 100 प्रतिशत उसकी मर्जी से पवित्रात्मा की स्पष्ट अगुवाई और प्रेरणा से ही लिखी गयीं थीं और जिसमें मनुष्य का किंचित मात्र भी दिमाग ना खपा हो,जैसे कि उदाहरण के लिये कहना चाहूँगा कि आपने समय के सबसे ज्ञानी व वैभवशाली राजा सुलैमान (सालोमन) जो राजा दाऊद का बेटा भी था, जिसे वरदान के रूप में परमेश्वर ने ही बुद्धि और ज्ञान से भरा था और परमेश्वर से प्राप्त बुद्धि और ज्ञान के द्वारा ही उसने भी दाऊद की ही तरह कई गीतों और भजनों को लिखा था,परन्तु पवित्रशास्त्र बाइबिल के भजन संहिता में उसके सिर्फ दो ही भजन शामिल किये गए हैं जिन्हें उसने पूर्णतः पवित्रात्मा में होकर गाया और लिखा था, ऐसी और भी कई बातें हैं जिन्हें अभी में यहाँ लिख नहीं सकता परन्तु वे बातें प्रमाण हैं कि निःसंदेह बाइबिल ही एक मात्र धर्म शास्त्र है जो किसी जाति या विशेष मतावलंबियों के लिये मनुष्यों की अपनी खोज अथवा बुद्धि और ज्ञान की पराकाष्ठा नहीं है इस जगत के सम्पूर्ण मानव जातियों के वास्तविक उद्धार से सीधे सम्बन्ध रखने वाली वह अद्भुद पुस्तक है जिसमें परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन ही हैं उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं वरन इस युग के बहुत से रिसर्चरों और स्कालरों ने जब इस पवित्र पुस्तक की मूल भाषा की न्यूमेरिक वेल्यूस अर्थात अंक गणितीय मूल्यांकन के आधार पर और गहराई से खोज की तो उन्हें पता चला की नए नियम की अधिकांश पुस्तकें पूर्वकाल से ही नियोजित थी जिन्हें रहस्यमय और अद्भुद रीति से पुराने नियम की पुस्तकों में पिरोया जा चुका था अर्थात नए नियम की पुस्तकें किसी समय या संयोग के वश में अथवा मानव बुद्धि की पराकाष्ठा नहीं थी सब कुछ अद्भुद रीति से पूर्व नियोजित थीं अर्थात जो कुछ भी इस जगत की उत्पत्ति के भी पहिले हो चुका था और जो अब होने वाला था सब कुछ परमेश्वर ने स्वयं ही अपने होनहार के ज्ञान के अनुसार पवित्रात्मा के द्वारा पहिले से ही उल्लेख कर दिया था जिन्हे आज के शब्द ज्ञानी भी अर्थात भाषाओँ के विशेषज्ञों द्वारा अथवा सवर्ण पदक प्राप्त भाषा के ज्ञानियों के द्वारा भी समझ पाना अथवा समझकर व्याख्या करना असंभव है, जब तक की वह व्यक्ति परमेश्वर के ही अनुग्रह से पवित्रात्मा को भलीभांति प्राप्त ना कर ले,इसी लिये तो यह धर्म पुस्तक कई बार पढ़ लेने या रट लेने के बाद भी अधिकांशतः अच्छे अच्छे मसीही विश्वासियों के भी पल्ले नहीं पड़ती, और लोग अपनी ही बुद्धि से कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा लगाकर व्याख्या करते हुए पाए जाते हैं,परन्तु वह व्यक्ति जो सचमुच में पवित्रात्मा से भरा हो उसके लिये इस पुस्तक की मूल और गूढ़ बातों को समझना और व्याख्या करना आसान होता है इसमें कोई दो राय नहीं है lll
प्रिय जनों ये तो मैंने पवित्र शास्त्र बाइबिल को ही क्यों चुना धर्म की व्याख्या करने को उसका जवाब दे रहा था और स्मरण रहे इस अद्भुद परालौकिक पुस्तक की सच्चाइयों के बारे में लिखने जाऊँ तो प्रभु कृपा से लिखता ही चला जाऊँ परन्तु मैं समझता हूँ यह एक इशारा काफी है उन शैतान के बन्दों के लिये जो कहते फिरते हैं बाइबिल आधी अधूरी है lll
अतिप्रिय बन्धुओ अब हम विषय वस्तु की ओर उन्मुख होंगे कि *धर्म* क्या है??
अर्थात सनातन सत्य और जीवंत वचन पवित्र शास्त्र बाइबिल के अनुसार धर्म जैसा कि लिखा है -
*और यदि हम अपने (सृजनहार, परम प्रधान, सर्वशक्तिमान, अद्वितीय सत्य, और जीवित,) परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में उसकी "आज्ञा" के अनुसार इन सारे "नियमों " को "मानने में चौकसी करें", तो वह हमारे लिये "धर्म "ठहरेगा॥*
*(व्यवस्थाविवरण 6:25)*
अब यहाँ पर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई बौद्ध, जैन, इत्यादि मनुष्यकृत घृणित और निकृष्ट विचारों के लिये कोई जगह बचती ही कहाँ है???
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि उपरोक्त सारी बातें मनुष्यों को आपस में ही एक दूसरे के साथ भिढ़ाने हेतु परमेश्वर विरोधी शैतान की गन्दी और गहरी राजनैतिक चाल है???
यहाँ मैंने राजनैतिक चाल इसीलिए कहा क्योंकि वही धूर्त शैतान हमें आपस में भिड़ाकर राज्य करना चाहता है और वह हम मनुष्यों के अक्ल के अंधेपन के कारण आदिकाल से ही सफल भी होता जा रहा है lll
क्योंकि वह आदिकाल से ही ख़ुद को परमेश्वर सा ठहराकर आपने चेले चपाटियों को कुलदेवता अथवा देवी देवता गण के रूप में प्रस्तुत कर बौद्धिक और आत्मिक रूप से कमजोर मनुष्यों पर अपनी दुष्टता और अंधकार की शक्तियों का प्रयोग करके राज्य करता आ रहा है lll
परन्तु उपरोक्त वचन
*(व्यवस्थाविवरण 6:25)* में हमें इस तरह की कोई बकवास नहीं दिखती है वरन वहाँ तो साफ साफ लिखा है कि "सम्पूर्ण मानव जातियों का इस ब्रम्हाण्ड और सारे ब्रम्हाण्डों का एक ही सृजनहार परमात्मा परमेश्वर जिसने सम्पूर्ण मानव जाती को आपने ही स्वरूप और समानता में सृजा *(उत्पत्ति 1:26)* फिर मनुष्य ने पाप किया और अनन्त मृत्यु को प्राप्त हो गया, अब यही पाप उसके जन्म स्वभाव के रूप में मनुष्यों पर राज्य करने लगा है परन्तु यह सब जानकर ही उद्धारकर्ता अभिषिक्त एक अर्थात येशु मसीह के आने के दिन तक मनुष्य इस पृथ्वी पर भलीभांति बना रहे इसके लिये ही उसने पवित्रात्मा के द्वारा कुछ लोगों को चुनकर अपनी *आज्ञाएं* सम्पूर्ण मानव जातियों के लिये दीं थीं और कहा इन आज्ञाओं को सम्पूर्ण आत्मा जीव और बल से मानना ही मनुष्य का *धर्म* है अब यहाँ हिन्दू धर्म इस्लाम धर्म ईसाई धर्म सिख धर्म बौद्ध धर्म कहाँ लिखा है???
परमेश्वर की वही आज्ञाएं तो इस जगत कि सबसे पहली पुस्तक पवित्रशास्त्र बाइबिल में लिखी हुई हैं, जो कि इसके अतिरिक्त दुनिया की किसी भी पुस्तक में नहीं हैं,अगर किसी और पुस्तक में इन्हें तोड़ मरोड़ कर अथवा मिलता जुलता सा लिख भी दिया है तो वे सब इसी पवित्रशस्त्र बाइबिल की ही फूहड़ नक़ल है, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं llll
परन्तु कालांतर में जब परमेश्वर ने देखा की मनुष्य अपने ही जन्म स्वभाव रूपी पाप से ग्रसित होने के कारण परमेश्वर के सारे नियम कानूनों और आज्ञाओं में स्थिर ना रह सका और वह जब तब अपने पतित स्वभाव के कारण जानबूझकर अथवा अनजाने ही परमेश्वर के नियम कानून और आज्ञाओं का उल्लंघन करने लगा है तो फिर हम मनुष्यों के प्रति आपने अथाह सागर से भी गहरे प्रेम के कारण सिर्फ उन्हें अपने ही दण्ड विधान से बचाने के लिये अपने ही अनुग्रह को बीच में लेकर आया अर्थात अपनी दया करुणा और प्रेम को जिसका आधार बना *विश्वास* अर्थात जो भी मनुष्य अपने सृजनहार परमेश्वर पर आपने सम्पूर्ण आत्मा सारे जीव और बल से विश्वास करेगा अर्थात प्रेम करेगा वह उसके लेखे *धर्म* गिना जायेगा और इस *धर्म* की शरुआत स्वयं परमेश्वर ने आपने ही चुने हुए पात्र *अब्रहाम* (इब्राहीम) से किया जिसे आगे चलकर परमेश्वर ने अपना *मित्र* भी कहा और वही इस जगत के अंत तक के लिये सारे विश्वासियों के विश्वास का पिता भी कहलाया क्योंकि वचन कहता है कि -
*और उसने उसको (अर्थात परम प्रधान सृजनहार परमेश्वर ने अब्रहाम को) बाहर ले जाके कहा, आकाश की ओर दृष्टि करके तारागण को गिन, क्या तू उन को गिन सकता है? फिर उसने उससे कहा, तेरा वंश ऐसा ही होगा।उसने यहोवा (परम प्रधान, सर्वशक्तिमान, सृजनहार,परमात्मा परमेश्वर) पर विश्वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में "धर्म" गिना।*
*(उत्पत्ति 15:5-6)*
अर्थात निर्जल बंजर भूमि पर फल आने कि बात कही परमेश्वर ने और अब्रहाम ने बिना किसी शंका के मान भी लिया अर्थात उसकी पत्नी सारा बाँझ थी और बूढी भी परन्तु परमेश्वर ने कहा उससे उत्पन्न होने वाली संतान ही तेरा वंश होगी और अब्रहाम ने मान भी लिया और सम्पूर्ण आत्मा से भरोसा (विश्वास) भी किया और अब्रहाम के इसी अटूट विश्वास को परमेश्वर ने *धर्म* भी गिना अर्थात जब कोई भी मनुष्य आज्ञाओं पर स्थिर ना रह सका तभी प्रेमी परमेश्वर ने आपने ही अनुग्रह के द्वारा विश्वास को धर्म ठहरा दिया परन्तु स्मरण रहे यहाँ पर भी हिन्दू,मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध जैसी किसी भी प्रकार कि गन्दी राजनैतिक विभाजन या विभिदता की बदबू नहीं आ रही है *क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्यों का अपने ही सृजनहार परमेश्वर पर विश्वास करने को ही "धर्म" ठहरा दिया और विश्वास करने वाले को "धर्मी" lll*
और फिर परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन ऐसे विश्वासियों के लिये अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि -
*यहोवा की आंखे धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उसकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं।धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उन को सब विपत्तियों से छुड़ाता है। धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।यहोवा अपने दासों का प्राण मोल लेकर बचा लेता है; और जितने उसके शरणागत हैं उन में से कोई भी दोषी न ठहरेगा॥*
*(भजन संहिता 34:15-22)*
अर्थात वे मनुष्य जो अब्रहाम कि तर्ज पर आपने ही एक मात्र सृजनहार परमात्मा परमेश्वर यहोवा पर विश्वास करते थे उन्हें परमेश्वर ने धर्मी ठहराया परन्तु यह भी हमें स्मरण रखना है कि मसीह के इस जगत में आकर मनुष्य के जन्म स्वभाव रूपी पाप से मुक्त करने तक उन धर्मियों को भी अन्य मनुष्यों की ही तरह से परमेश्वर ने अपनी ही व्यवस्था अर्थात नियम कानून और आज्ञा के अधीन कर दिया था ताकि इस जगत की व्यवस्था ना गड़बड़ा जाये और धर्मी जन भी बिगड़कर अधर्मी ने बन जाएं lll
अतिप्रिय बंधुओं इस सन्देश को भली भांति समझ लेने के बाद, धर्म कर्म के नाम पर उत्पात मचाने वाले अधर्मियों के लिये अब कोई बहाना नहीं ही नहीं रह जाता है किसी राजनैतिक पाखंड के द्वारा अपना उल्लू सीधा करने का ll क्योंकि सम्पूर्ण मानव जातियों का एक ही सृजनहार परमेश्वर है वह है यहोवा परमेश्वर वो न केवल इस्राएलियों का और न ही केवल मसीहयो अर्थात मसीह के अनुयायियों का है वरन वह तो समस्त भूमि और उसमें की वस्तुओं का वरन सम्पूर्ण मानव जातियों का भी वास्तविक स्वामी अर्थात एक ही परमेश्वर है और उसी ने आपने ही शब्द को देह धारण करवाकर येशु मसीह अर्थात उद्धारकर्ता अभिषिक्त एक के नाम से इस जगत में भेजा अर्थात शब्द परमात्मा येशु मसीह के अतिरिक्त ऊपर से इस जगत में दूसरा कोई अवतार आया ही नहीं है तो फिर ये देवी देवता गण और कुलदेवता गण आखिर हैं कौन जिनके नाम से इस जगत में बेतुका कोहराम मचा हुआ है दक्षिण भारत के पेरियार ने इनके ईश्वर या अवतार होने का इनकार किया तो कोहराम मच गया उन्हें नास्तिक कह दिया और जिसने भी इनके अस्तित्व को नकारा उन्हें दुश्मन मान लिया अरे इन अक्ल अंधों शैतान के एजेंटों को मैं पूछना चाहता हूँ कि इन लोगों की अक्ल या तो शैतान चुरा कर ले गया है या फिर बे तुकी बातों के लिये ज्यादा उछल कूद करने की वजह से घुटने के भी नीचे खिसक गयी है???
क्योंकि किसी भी रीति से कितना भी समझाओ कि सम्पूर्ण मानव जाती का एक ही कुल और गोत्र एवं धर्म है और हम सबका एक ही सृजनहार परमात्मा परमेश्वर है, इनकी समझ में अति ही नहीं और चंद मुट्ठी भर धूर्त चालाक और शैतान के एजेंटों के बहकावे में आकर मनगढ़ंत धर्म के नाम पर फसाद करने वाले निःसंदेह नरक के भीषण, असहनीय अग्नि कुंड में डाल दिये जायेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं lll परन्तु इस जगत के समझदारों से मेरी अपील है कि पूरी ईमानदारी से अपने अपने मन फिराओ और अपने एक मात्र सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के पास लौट आओ, क्योंकि एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य का दुश्मन हो ही नहीं सकता, और ये सब उस धूर्त शैतान की गन्दी राजनीति है और कुछ नहीं,समय रहते समझ गए तब तो ठीक वार्ना नरक का द्वार तो मुँह पसारे इसी इंतजार में खड़ा है की आप कब शैतान के जंजाल में फंसकर उसके मुँह में जा पड़ोगे llll
अब फैसला आपके हाथ में है क्योंकि मैं तो अति स्पष्ट रीति से कह चुका हूँ कि परमेश्वर ने तो हिन्दू धर्म नहीं बनाया और ना तो इस्लाम और ना ही ईसाई धर्म एवं ना ही सिख धर्म और ना ही कोई जैन या बौद्ध धर्म का निर्माण किया उसने तो सिर्फ इंसान का निर्माण किया और इंसानियत से जीने की हिदायत दी थी जब मनुष्य इंसानियत को ही भूलकर हैवानियत पर उतर आया तब ही अपने ही शब्द परमात्मा को इंसान बनाकर भेज दिया ताकि उसे देखकर शायद इंसानियत समझ में आ जाये हम सबको, परन्तु अफ़सोस कि मनुष्यों ने उसे लेकर ही मसीहियत शुरू कर दी, आज मसीहियों कि दुर्दशा का कारण भी यही है कि प्रभु येशु मसीह इंसान बनकर इंसानियत का पाठ पढ़ाने यहाँ आये और मसीही लोग इंसान बनने के पहिले ही मसीही बन गए और मसीही धर्म बना लिया अब मसीहियत से भी इंसानियत गायब हो गयी है और तो और चंद मुट्ठी भर लोग मसीह के आगमन के रहस्य को समझकर इंसान बनकर जीने कि कोशिश करते भी हैं तो ये अक्ल के अंधे हैवान लोग उन्हें जीने नहीं देते हैं llll
याद रखें वही मसीह अब न्याय करने आने वाला है चाहे आप ईसाई धर्म में भी सिख से नख तक डूबे हों अगर समय रहते मन ना फिराया तो निःसंदेह नर्क में जाना तो सुनिश्चित है lll
इसीलिए आज परमेश्वर स्वयं अपने इस सन्देश के द्वारा आपके ज्ञान चक्छुओं को खोल दे और सद्बुद्धि दे llll
प्रभु परमेश्वर आपको बहुतायक की आशीष भी दे lll
आमीन आमीन फिर आमीन lll