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Chapter 34 - जीवन की रोटी

*🍞जीवन की रोटी🍞*

*19 मार्च 2022*

*विषय - मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा;... क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है.....;(मत्ती 7:7-8)*

*(भाग 2)*

*तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि "बुरी इच्छा" से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो।*

*(याकूब 4:3)*

*अतिप्रिय बंधुओं परम प्रधान, सृजनहार,परमात्मा परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अद्भुद वचन के लिए और उसकी महिमा कि स्तूति युगानुयुग तक होती रहे क्योंकि वो भला है,और उसकी करुणा सदा की है आमीन lll*

प्रिय जनों पहिले भाग में हमने देखा था कि परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर से कुछ भी पाने के लिए हमें अपने मौन व्रत को तोड़कर मुंह खोल कर अर्थात अपनी जुबान से बोलना बातचीत करना अत्याधिक आवश्यक पहलु होता है, अर्थात हमें एक सफलतम प्रार्थना योद्धा बनने के लिये अपने मुँह से अंगीकार करना और ह्रदय से विश्वास करना सीखना ही होगा, कुलमिलाकर अपने ही सृजनहार को हाजिर नाजिर जानकर उसके समक्ष मुद्दे की बात को अर्थात टू दी पॉइन्ट अपनी बात को पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ कह देना अर्थात पवित्रात्मा की स्पष्ट अगुवाई से परमेश्वर की सिद्ध इच्छा के अनुसार हमें अपना मुँह खोलकर मांगना सीखना ही होगा lll

परंतु प्रियजनों आज हम प्रार्थना जैसी अति गंभीर विषय के *भाग 2* में जिस अति महत्वपूर्ण बात को लेने जा रहे हैं वह प्रत्येक मानव मात्र के निज ज़िन्दगी के लिये बहुत ही गम्भीर विषय है, क्योंकि इस जगत में अधिकांशतः यहीं पर आकर हर एक इंसान की जिंदगी की गाड़ी अटक जाती है, क्योंकि वे परम पिता परमेश्वर पर पूरा भरोसा तो करते हैं कि जो कुछ भी वे मांग रहे है वो उन्हें 100 प्रतिशत मिल ही जायेगा और वे इसी विश्वास के साथ अति दीन होकर अपना मुँह खोलकर गिड़गिड़ाकर मांगते भी हैं ,परंतु विडम्बना ही कहलें या कि कुछ और कि प्रतिदिन हजारों मनुष्य ऐसे भी मिलेंगे जो उस परमात्मा से मांगते तो हैं परन्तु पाते कुछ भी नहीं हैं, इससे भी बड़ी विडंबना तो यह है कि वे अंत तक यह नहीं समझ पाते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा उनके साथ कि इतना गिड़गिड़ाने चीखने चिल्लाने के बाद भी उनकी सुनी नहीं जा रही है अंत में वे निराश होकर परमेश्वर के अस्तित्व को ही नकारने लगते हैं घोर अंधकार में चले जाते हैं और प्रार्थना के प्रति उदासीन होकर ख़ुद का ही अनिष्ट कर जाते हैं, परन्तु उन्हें इस कड़वी सच्चाई से अवगत कराना मैं अपना फ़र्ज मानते हुए कहना चाहता हूँ कि हमारे परम पवित्र और सिर्फ भला ही करने वाले सच्चे और जीवित, सृजनहार, परमात्मा, परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत एवं सिद्ध वचन अति स्पष्ट रीति से यह उद्घोषणा करता है कि-

*तुम मांगते तो हो परंतु पाते नही क्योंकि तुम "बुरी मनसा" से मांगते हो (याकूब 4:3) lll*

और सचमुच में इस अंतिम युग में हजारों लाखों ऐसे लोगों को देखा और सुना है जो प्रार्थना के इस अद्भुद और गहिरे रहस्य को भलीभांति समझे बगैर ही, बार बार मांगने पर भी ना मिलने पर अत्याधिक निराश हो जाते हैं, और प्रार्थना जैसी अद्भुद परालौकिक प्रक्रिया के प्रति अत्याधिक उदासीन हो जाते हैं और नास्तिकता का झूटा लबादा ओढ़ लेते हैं, और ऐसे ही लोगों को मैंने कुछ समय पश्चात् ही यह तक कहते सुना है कि अरे भैया अब बंद करो अपनी ये बकवास, क्योंकि मैं पिछले 25 सालों से मांग रहा हूँ कि मेरा चचेरा भाई मर जाए और पूरी की पूरी जायदाद का वारिस में अकेला हो जाऊं, परंतु मेरी प्रार्थना परमेश्वर सुनता ही नही, उल्टा मेरा भाई तो और भी फल फूल रहा है, मस्त होता जा रहा है, भाई मेरा तो अब परमात्मा पर से विश्वास ही उठ गया है lll

और तो और इस घोर कल युग में जहाँ एक इंच ज़मीन को लेकर या फिर जरा सी बात को लेकर एक भाई ही अपने ही सगे भाई अथवा अपने माता पिता हत्या कर देने तक से हिचकिचाते नहीं हैं, ऐसे में उपरोक्त तरह की दुष्टता पूर्ण बुरी मानसिकता से की गयी बेहूदी और बेतुकी प्रार्थना तो सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण ही है ऐसी ऐसी अनेकों प्रार्थनाएं हैं जिन्हें मनुष्य *स्वार्थवश* या *क्रोधवश* या अपनी *ईर्ष्या* और *घ्रणा, द्वेष* और *बदले की भावना* से या *घमंड से भरकर* करते हैं, अर्थात अपनी गन्दी, ओछी और घटिया मानसिकताओं के अनुसार, यह जाने बगैर ही कि परम पवित्र, परम प्रधान सर्व शक्तिमान ईश्वर जो सिर्फ भलाई करने हारा है और सब कुछ का जानने वाला है अर्थात हमारे मन और हृदय की सारी गूढ़ से गूढ़ बातों का ज्ञाता अर्थात मन और मर्म का वास्तविक ज्ञाता अर्थात मन को जांच और परख कर सब कुछ को जान लेने वाला जीवित परमेश्वर आखिर है कौन???

और उसका वास्तविक स्वभाव क्या है???

क्योंकि वह तो प्रत्येक मनुष्यों के सिर्फ और सिर्फ पाप से ही घृणा करता है, इस जगत के किसी भी पापियों से वह घृणा करता ही नहीं है ऐसे में हमारे मांगने पर भी वह अपनी ही सृष्टी अर्थात किसी भी मनुष्य का अनिष्ट कैसे कर सकता है? क्योंकि वह तो स्वमेव अपने समूचे स्वभाव *प्रेम* जिसमें किंचित मात्र भी बुराई अथवा घृणा तो है ही नहीं, इसीलिए तो वह केवल भला ही करने वाला परमेश्वर है और ऐसे में एक मनुष्य की दुष्ट मनसा से की गयी अनिष्ट कारी प्रार्थनाओं अर्थात बेतरतीब बेतुकी दुष्टता से भरी प्रार्थनाओं का कैसे भला वो प्रतिउत्तर अथवा प्रति फल दे सकते हैं???

*क्योंकि वो तो हम मनुष्यों को भी अपने शत्रुओं से भी प्रेम करने की आज्ञा देते हैं* और तो और *अपने सतानेवालों के लिए भी आशीष और सुधर जाने की प्रार्थना करने को कहते हैं lll*

ऐसे में भला वो ऐसी घोर सांसारिक दुष्ट मानसिकता से की गयी प्रार्थनाओं को कैसे सुन सकते हैं और हम कैसे उस प्रेमी पिता परमेश्वर से किसी का बुरा करने की मांग कर सकते हैं ???

क्योंकि हमारा अति पवित्र सामर्थी और जीवित परमेश्वर तो प्रत्येक उन मनुष्यों की प्रार्थनाओं को सुनते हैं, जो अपनी सम्पूर्ण आत्मा और सच्चाई से अपने सृजनहार परमेश्वर से प्रेम करते हैं, और उसी एक की आज्ञा के अनुसार अपने समस्त पापों से *मनाफिराव का बपतिस्मा* लेकर अर्थात जल और आत्मा से नए जन्म की परालौकिक परम आनंदमई अद्भुद अनुभूति को पाकर, पवित्रात्मा में होकर ही, अपनी पूरी पवित्रता और सत्यनिष्ठा एवं श्रद्धा के साथ अर्थात शुद्ध मन से प्रार्थना करते हैं, अर्थात कुल मिलाकर हमारे सृजनहार परमात्मा परमेश्वर के साम्हने साफ साफ अर्थात अति स्पष्ट रीति से बिना किसी छल कपट और स्वार्थ एवं बिना किसी दुर्भाव के प्रस्तुत की गयी बातें अर्थात बिनती और निवेदन के साथ की गयी प्रार्थना ही उस अगम्य ज्योति में बसने वाले परम प्रधान, परम पवित्र, परमात्मा परमेश्वर तक पहुँच सकती हैं, हर एक तरह की प्रार्थनायें नहीं, इसीलिए सचमुच में उपरोक्त तरह की प्रार्थनायें मूर्खतापूर्ण एवं हास्यापद तो हैं ही साथ ही ऐसी बेतुकी दुष्ट मनसा से की गयी प्रार्थनाएं हैं जो कि अत्यधिक गम्भीर रूप से चिंता जनक हैं और अति विचारणीय भी हैं, वह भी सिर्फ अपनी गन्दी मानसिकताओं को सुधारने और बदलने के लिए lll क्योंकि इस जगत में तमाम प्रकार की अंधकार से भरी, अंधी शक्तियां भी हैं अर्थात तांत्रिक, मांत्रिक, अघोरी, और बाबाओं के नाम से मशहूर जो कई तरह के टोना टोटका एवं काला जादू, भूत साधना, और सम्मोहन विद्या जैसी शैतानी बातों में पारंगत होते हैं जो सृजनहार परमेश्वर का परम विरोधी अति धूर्त, हर एक झूट का जनक अति घमंडी और विनाशकारी शैतान के ज़िन्दा एजेंट के रूप में इस जगत में विचरण करते रहते हैं जिन्हें यह दुनिया अंग्रेजी में *कल्ट* के नाम से जानती है, और इन लोगों के पास वे ही मनुष्य जाते हैं जो ख़ुद बुरी मनसा से आच्छादित होता है अर्थात जो स्वयं अनिष्ट कारी दुष्ट और दुराचारी होता है, या फिर वे लोग भी अज्ञानता वश इनके चंगुल में फंस जाते हैं जो अपने ही सृजनहार सर्वशक्तिमान परमात्मा परमेश्वर को नहीं जानते अथवा वे भी जो निरे अज्ञानी, भोले, और बज्र मूर्ख प्रकार के होते हैं ऐसे लोग ही सिर्फ और सिर्फ अज्ञानतवश ही इन्हें अपने सुखों का मूल जानकर अपने छणिक सुखों एवं छणिक लाभ के लिये ही उपरोक्त दुष्टात्माओं से ग्रसित निरे मनुष्यों के पास अपनी दुष्कामनाओं को लेकर जाते हैं ll

अतिप्रिय बंधुओं दरअसल अंधकार से आच्छादित अंधे लोगों के पास ही ऐसी शैतानी अर्थात अनिषष्टकारी ताकतें होती हैं, जिसे हम पवित्रशास्त्र बाइबिल के अनुसार *अंधकार की सामर्थ* कहते हैं, और निःसंदेह मनुष्य सिर्फ और सिर्फ अपने वास्तविक और एकमात्र सृजनहार, परमात्मा परमेश्वर का *ज्ञान* न होने के कारण ही, इन दुष्ट दुराचारी *(परन्तु बाहर से भक्ति का भेष धरने वाले और अध्यात्म की पराकाष्ठा दिखने वाले)* लोगों के चक्कर में फंसकर अपना खुद का ही अनिष्ट करता जा रहा है जो कि अति गंभीर और चिंताजनक विषय है lll

क्योंकि बार बार हम ये भूल जाते हैं कि प्रत्येक मनुष्य का चाहे वो बुरा हो या भला हो पापी हो या पवित्र हो धर्मी अधर्मी सबका सृजनहार केवल और केवल परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर है जिसका नाम *सेनाओं का यहोवा* है अर्थात सेल्फ एक्सिस्ट वन अर्थात उसका सृजनहार कोई भी नहीं, वह तो अपने आप से है, उसके पहिले कोई भी ना था और ना ही उसके बाद कोई होगा, अर्थात वही आदि है और वही अंत है वह सर्व ज्ञाता सर्व ज्ञानी और सर्वक्तिमान सब कुछ का सृजनहार है उसने सब कुछ को अपने ही समय चक्र से अद्भुद रीति से बाँध रखा है (सभोपदेशक 3) परन्तु वह स्वयं सारे कालों अर्थात समय चक्र एवं बंधनों से मुक्त है क्योंकि वह तो परमात्मा है परम प्रधान परमेश्वर है, वह अगम्य ज्योति में वास करने वाला परम पवित्र परिशुद्ध आत्मा है, और क्योंकि वह तो स्वभाववत सम्पूर्णतः *प्रेम* है, इसीलिए उसका प्रेम सबके लिए एक समान है, और इसीलिए तो वो सिर्फ भला है और केवल भलाई करने वाला है क्योंकि उसमें किंचित मात्र भी बुराई नहीं है और उसकी करुणा तो प्रतिभोर नई होती जाती है, इसीलिए वह निःसंदेह किसी का भी अनिष्ट कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह तो सिर्फ पाप से घ्रणा करता है किसी भी पापियों से नहीं ऐसे में भला वह मनुष्यों का अनिष्ट कैसे कर सकता है? और किसी अनिष्ट कारी दुराचारी दुष्ट मनुष्य की बुरी मनसा से की गयी प्रार्थना को कैसे सुन सकता है??? चाहे आप घोर तपस्या करें या फिर समाधिष्ट हो जाएं या फिर अपने आप को अत्याधिक दुःखी कर लें अथवा अपनी देह को चीर फाड़ लें या कुछ भी क्यों ना कर लें, हाँ ऐसा सब कुछ करके आप उस अति धूर्त, दुराचारी और अति दुष्ट, घमंडी और हर तरह की मक्कारी से भरे, हर एक झूट के जनक शैतान को अवश्य ही प्रसन्न कर सकते हैं ???

इसीलिए तो मनुष्यों का अनिष्ट होता हुआ हम देख ही रहे हैं इस जगत में निरंतर फिर भी मनुष्य सीखता अथवा चेतता नहीं है आखिर क्यों ???

और मनुष्य आज भी परीक्षाओं में पड़ता है और गिर जाता है आखिर क्यों ???

परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर के सनातन सत्य और जीवंत वचन के अनुसार तो उपरोक्त प्रश्नों का सटीक उत्तर सिर्फ और सिर्फ यही है कि, अपने ही जन्म स्वभाव रूपी पाप से ग्रसित होने के कारण किये गए पापाचरणों अर्थात बुरी आदतों, बुरे कार्यों और बुरी सोच या खुद की बुरी मानसिकतायें जो कि उसमे सिर्फ अपने ही वास्तविक सृजनहार *परमेश्वर का ज्ञान* ना होने के कारण से और *शैतान एवं उसकी अति दुष्ट सेना अर्थात दुष्टात्माओं के बहकावे में आकर* अपने ही इस बहुमूल्य जीवनों में *उन्हें काम करने हेतु अनुमति* देने से होती हैं llll

क्योंकि परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन भी यही कहता है कि - *"जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे कि मेरी परीक्षा परमेश्‍वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है। परन्तु प्रत्येक व्यक्‍ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।"*

*(याकूब 1:13‭-‬15)*

सो मनुष्य अपनी ही अज्ञानतावश अपनी अपनी बुरी मानसिकता अथवा बुरी मनसा और बुरी अभिलाषाओं में फंसकर ही तरह तरह की परीक्क्षाओं में पड़ जाता है और खुद अपना ही अनिष्ट कर लेता है, और दोष परमेश्वर पर मढ़ देता है जिसे वह मनुष्य ठीक से जानता भी नहीं है, फिर भी कहता है कि वो मेरी सुनता ही नहीं है अथवा मेरी प्रार्थना सुनी ही नही जा रही है lll

समरण रहे हमारा परमेश्वर कभी नहीं बदलता क्योंकि पवित्र शास्त्र बाइबिल अति स्पष्ट रीति से उदघोषणा करता है कि- *ईश्‍वर मनुष्य नहीं कि झूठ बोले, और न वह आदमी है कि अपनी इच्छा बदले। क्या जो कुछ उसने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उसे पूरा न करे?* *(गिनती 23:19)*

और यह भी कि- *"क्योंकि मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याक़ूब की सन्तान तुम नष्‍ट नहीं हुए।*

*(मलाकी 3:6)*

और यह भी कि - *यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है।* *(इब्रानियों 13:8)*

फिर भी जब भी हम मांगते है हमारी नहीं सुनी जाती और हम पाते भी नहीं हैं क्यों???

निसंदेह पवित्र शास्त्र बाइबिल के अनुसार हम यह कह सकते हैं कि यूँ तो मनुष्यों की प्रार्थना ना सुने जाने के और भी अनेकों कारण हैं ,परन्तु उन्हीं में से एक मुख्य कारण है *हमारी अपनी बुरी मनसा* या बुरी मानसिकता के साथ हमारा कुछ भी उस परम पिता से कहना अथवा प्रार्थना करना या मांगना lll

और फिर हम मनुष्यों की इस बुरी मनसा व बुरी मानसिकता का मूल कारण भी जैसा कि मैं पहिले भी कह चुका हूँ कि सिर्फ और सिर्फ *हमारा जन्म स्वभाव रूपी पाप से ग्रसित होना ही है* और मेरा ऐसा कहना कहीं से भी कोई अतिश्योक्ति ना होगी lll

परन्तु स्मरण रहे इसी जन्म स्वभाव रूपी पाप के कारण बचपन से ही हमारी मनसा या मानसिकता बुरी होती है, ऐसा मैंने नहीं वरन स्वयं सृजनहार परमेश्वर ने कहा है, जैसा कि हम पवित्र शास्त्र बाइबिल में लिखा हुआ पाते हैं क्योंकि लिखा है कि- *यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है।*

*(उत्पत्ति 6:5)*

और यह भी लिखा है कि-

*इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, "मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूँगा, यद्यपि मनुष्य के मन में "बचपन से" जो कुछ उत्पन्न होता है वह बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उनको फिर कभी न मारूँगा।*

*(उत्पत्ति 8:21)*

परंतु एक बात और आपको स्मरण रहे कि आरम्भ से ही अर्थात मनुष्य अपने सृजन के समय से ही बुरी मनसा से भरा हुआ अर्थात पापी था ऐसा कहीं भी नहीं लिखा गया है, परंतु निसंदेह अदन की वाटिका में अपने ही सृजनहार की *वाचा* को तोड़कर अपने ही परमेश्वर के विरुद्ध *विश्वासघात* जैसा महापाप करने के पश्चात ही सम्पूर्ण मानव जाति जो प्रथम पुरुष आदम में बीजाणु के रूप में सृज दिये गए थे सब के सब *जन्म स्वभाव रूपी पाप स्वभाव* से ग्रस्त हो गए थे, इसीलिये तब ही से उसकी मानसिकता इतनी भृष्ट हो गयी है कि परमेश्वर उनकी इसी बुरी और भ्रष्ट मानसिकता से की गई प्रार्थना को सुनता ही नहीं इसमें बुरा मानने योग्य बात कहीं है ही नहीं क्योंकि आज भी अगर प्रत्येक मनुष्य इस गंभीर सत्य को भलीभांति समझकर अपना मन फिराकर शब्द परमात्मा अर्थात अपने एक मात्र उद्धारकर्ता प्रभु येशु मसीह को सम्पूर्ण आत्मा से आत्मसात करके अपने इस अति घृणित जन्म स्वभाव रुपी पाप से मुक्त होकर, अपने ही वास्तविक और एकमात्र सृजनहार परमात्मा परमेश्वर से पुनर्मेल कर ले, जो कि निःसंदेह मनुष्यों के अपने ही द्वारा किये गए अथक प्रयासों से तो ना केवल असंभव है, वरन अनहोना है, (स्मरण रहे इस सम्पूर्ण सत्य को प्रत्येक तथाकथित धर्मों की धर्म पुस्तकों का भलीभांति अध्ययन करने से भी हम जान सकते हैं, क्योंकि उनमें भी आंशिक रूप से इस सच्चाई को जान सकते हैं यद्यपि पवित्र शास्त्र बाइबिल में तो इस बात की अति स्पष्ट रीति से उद्घोषणा एवं पुष्टि प्रारम्भ से ही अनेकों बार की जा चुकी है)

परंतु अतिप्रिय बंधुओं आप लोग इस बात को लेकर चिंता न करें और ना ही आप का मन व्याकुल हो, क्योंकि जो मनुष्यों से और प्रधानों से भी नहीं हो सकता वह परमेश्वर से तो हो सकता है, और इसीलिए तो स्वयं परमेश्वर ने इस अभूतपूर्व सच्चाई को भली भांति जानकर ही, अपने होनहार के ज्ञान के अनुसार इस समस्या का समाधान निकाल कर सम्पूर्ण मानव जाति को दे दिया है, क्योंकि केवल सृजनहार परमेश्वर ही इस सच्चाई को भली भांति जानते थे कि किसी भी मनुष्य मात्र के लिए यह असंभव है अनहोना है कि वो खुद ही अपने आप को अथवा किसी भी दूसरे मनुष्य को पापों से मुक्त अर्थात पवित्र और शुद्ध कर सके, और अपने ही सृजनहार परमात्मा परमेश्वर से पुनर्मेल कर सके, इसीलिए तो वह स्वयं मनुष्यों के प्रति अपने अथाह सागर से भी गहिरे प्रेम के कारण ही इस रहस्य को हम मनुष्यों पर इस तरह से प्रगट करते हुए कहता है कि -

*क्योंकि तुम भी पहले निर्बुद्धि, और आज्ञा न माननेवाले, और भ्रम में पड़े हुए और विभिन्न प्रकार की अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्व में थे, और बैरभाव, और डाह करने में जीवन व्यतीत करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे। पर जब तुम्हारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की कृपा और मनुष्यों पर उसका प्रेम प्रगट हुआ, तो उसने तुम्हारा उद्धार किया; (अर्थात इस जन्म स्वभाव रूपी पाप से मुक्ति दी) और यह (तुम्हारे अपने) धर्म के कामों के कारण नहीं, जो तुमने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार नए जन्म के स्‍नान और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ। (अर्थात जल और आत्मा से नया जन्म लेने के द्वारा) जिसे उसने तुम्हारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा तुम पर अधिकाई से उंडेला। जिस से तुम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार उसके वारिस बनो।(तीतुस 3:3‭-‬7)*

प्रियजनों उपरोक्त वचनों का यदि हम पवित्रात्मा में होकर अत्याधिक ध्यान पूर्वक अध्ययन करें तो हम भलीभांति समझ सकते हैं कि सम्पूर्ण मानव जाति जन्म स्वभाव रूपी पाप से ग्रसित है, जिनसे मुक्त होना किसी भी मनुष्य के लिए स्वबुद्धि एवं स्वप्रयासों से तो असंभव है अर्थात अनहोना है, परंतु स्वयं सृजनहार, परमात्मा, परमेश्वर ने इस असंभव को संभव बनाते हुए अपने ही *सनातन सत्य जीवंत वचन* अर्थात *शब्द परमात्मा* को आज से 2000 साल पूर्व इस अंतिम युग में अपने ही पूर्व नियोजित समय के अनुसार देहधारण करवाकर सम्पूर्ण मानव जातियों के महापाप का प्रयाश्चित करने हेतु *पाप बलि* के रूप में इसी जगत में भेजा और कलवारी के क्रूस पर उसकी हमारे ही पापों के प्रयाश्चित के रूप में पाप बलि की आहुति देकर इस महायज्ञ को सम्पन्न किया था इसीलिए अब मनुष्य मात्र को सिर्फ करना यह है कि इस अद्भुद सच्चाई पर सम्पूर्ण हृदय से *विश्वास* करके उसी विश्वास के द्वारा अपने समस्त *जन्म स्वभाव रूपी पाप* को उसी उद्धारकर्ता येशु मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाकर अपने समस्त पापों के लिए उसी एक के साथ मर जाना है, और फिर उसी एक के साथ गाड़े जाकर उसी एक के साथ जी उठना है (अर्थात प्रभु येशु के नाम से या पिता पुत्र पवित्रात्मा के नाम से जलमग्न अर्थात में डूब जाना है जो कि हमारे मारे जाकर गाड़े जाने का प्रतीक है और फिर जल से बाहर आना जो उसी प्रभु येशु के साथ जी उठने का प्रतीक है, कुल मिलाकर जल का बपतिस्मा अर्थात अपने पाप स्वभाव के साथ मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाये जाना पाप के लिए मर जाना है फिर उसी के साथ गाड़े जाना है (इस तरह से अपने सारे पापों को दफ़न कर देना है) फिर उसी के साथ जी उठना है अर्थात एक नया जन्म लेने का प्रतीक है, अर्थात हमें एक पाप रहित नया जन्म को प्राप्त कर लेना है, और अपने इसी अद्भुद पाप रहित परिशुद्ध अवस्था में अपने परम पवित्र सृजनहार परमात्मा परमेश्वर से पुनर्मेल कर लेना है, अर्थात अनन्त जीवन के भागी हो जाना है, *(wow कितनी अद्भुद और महान है परमेश्वर की यह योजना, इस जगत के सम्पूर्ण मानव जाति के लिए समझ से परे इसीलिये यहाँ समझ नहीं परन्तु केवल विश्वास काम आता है, हल्लेलुइयाह आमीन आमीन फिर आमीन )lll* प्रियजनों यही तो एक मनुष्य के द्वारा लिया जाने वाला अद्भुद और आश्चर्य जनक पाप रहित नया जन्म है, जो विश्वास के द्वारा हमें स्वयं हमारे सृजनहार परमेश्वर ठीक प्रभु येशु मसीह की तरह पाप रहित एक नया जीवन हमें प्रदान करता है,और पवित्रात्मा अर्थात परमेश्वर का आत्मा जिसे प्रत्येक नया जन्म पाए हुए लोगों को सेंत मेंत देने का वायदा स्वयं परमेश्वर ने किया है *(ताकि मनुष्य उस पवित्रता में स्थिर रह सके और सिद्ध हो सके)* उसे विधिवत रूप से पा लेना है, अर्थात आत्मसात कर लेना है यह सम्पूर्ण प्रक्रिया पहले आदम में से हमें निकालकर दूसरे आदम (प्रभु येशु मसीह) में फिर से सृज देने की अद्भुद परालौकिक प्रक्रिया है अर्थात ऐसे ही हमारा समूचा डी.एन.ए.ही बदल जाता है और हम एक नई सृष्टि बन जाते हैं lll

तादोप्रान्त ही मनुष्य बदल कर परमेश्वर के स्वभाव और मानसिकता अर्थात शुद्ध मनसा से भर जाता है, और जब भी जो भी मनुष्य अपनी इसी शुद्ध मनसा से परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को जानकर उसी के अनुसार प्रार्थना करता है तब परम पवित्र परमात्मा परमेश्वर उसकी प्रार्थना को सुनकर सर्वथा उचित प्रतिफल प्रदान करते हैं lll

अर्थात यदि मनुष्य उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के नाम से मन फिराव का बपतिस्मा लेकर, पवित्रात्मा के द्वारा नए जन्म की परालौकिक अनुभूति के साथ परम प्रधान परमात्मा परमेश्वर का वारिस और मसीह का संगी वारिस बन जाये, और फिर परमेश्वर की भली और सिद्ध इच्छा के अनुसार परमेश्वर से प्रार्थना करे, मांगे तो निसंदेह उसकी प्रार्थना सुनी जाएगी और वह जो कुछ भी मांगेगा उसे निसंदेह मिलेगा इसमें किसी भी तरह के संदेह कि गुंजाइश ही नहीं है lll

अतिप्रिय बंधुओं इसी अद्भुद सच्चाई की पुष्टि करने के लिए ही परमेश्वर का सनातन सत्य और जीवंत वचन प्रत्येक मनुष्यों से कहता है कि-

*इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो॥*

*(रोमियो 12:1-2)*

हाँ प्रिय जनों यदि प्रत्येक मनुष्य खुद को उसी एक के पवित्र चरणों में पूरी आत्मा और सच्चाई से अर्पित करके उसकी भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा को, पवित्रात्मा के द्वारा मालूम कर लें और उसी एक की सिद्ध इच्छा के अनुसार प्रार्थना भी करें तो निसंदेह कभी भी हम निराश न होंगे क्योंकि हम जो कुछ भी मांगेंगे वो हमको मिल जायेगा lll

*अगला भाग अति शीघ्र,* तब तक अपने इस अद्भुद संदेश के द्वारा परमेश्वर स्वयं ही आपको हर प्रकार की आशीषों से भर दे lllआमीन,आमीन फिर आमीन lll

*ACM Ministries (Chennai),*

*Apostle Paul Sudhakar,