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प्लानर्स

🇮🇳Anuj_Negi
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Synopsis

Chapter 1 - अंतिम इच्छा

नमस्कार मैं हूँ अखिल, अपने बारे में बाद में बताउंगा, वैसे तो सबकी ज़िंदगी में एक न एक खलनायक तो जरूर होता है ,मेरी जिंदगी में भी हैं और वो हूं मैं खुद , फिल्हाल आगे पता चल जाएगा यह कैसे हुआ।

जब मैं छोटा था तकरीबन 8 साल का तब मुझे और मेरे दोस्तों को फिल्में देखने का बड़ा शौक था हम जब भी कोई फ़िल्म देखते उसके हीरो की नकल करने लगते, एक दिन एक फिल्म में एक किलर लोगों को मारने से पहले उनकी आखिरी इच्छा पूचता था, मेरे दोस्तों में भी इसका जुनून चढ़ गया, (मारने का नहीं आखरी इच्छा का) हर कोई अपनी आखिरी इच्छा ज़ाहिर करने लगा (बताओ धंड से पैदा हुए नहीं आखरी इच्छा बताएंगे), पर मेरे मन्न में कुछ नी था, सब पर इसका जुनून ख़तम हुआ पर मेरे मन्न में कहीं यह बात रह गई कि मैं चाहता क्या हूं।

दिन एैसे ही बीतते गए और मैं इसी बात पे रहा कि अगर कोई मुझे मारते समय मुझसे पूछे की "तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है"? तो मैं क्या बोलता , क्या मै मांगता मुझे चॉकलेट चाहिए सबसे महंगी वाली या मै मांगता की मुझे चाहिए एक बड़ा चॉकलेट केक, मुझे चॉकलेट पसंद है इसलिए यही दिमाग में। आ रहा है। खैर छोड़ो आगे बढ़ते हैं।

मैं घर गया और मेरी नजर घर में रखे एक छोटे से दुनिया के नक्शे पे पड़ी मेरे दिमाग में कुछ खयाल आया और मैं उसे अपने कमरे में ले गया और उसे दीवाल में चिपका दिया, और उसपे अपनी कारीगरी करने लगा हां वो बात अलग है मेरे पापा ने मुझे बाद में दो तीन थप्पड़ दिए क्यूंकि वो उनके काम का था, खैर छोड़ो ।

मैं पापा से मार ना खाऊ इसलिए मैं अपना खुद का ही देश का नक्शा ले आया जिसमें मैं कुछ भी कर सकूं कोई रोकने वाला नहीं। सब कुछ ऐसा ही चलता रहा मेरे घर वालों ने भी मुझे कुछ नहीं कहा उन्हें लगा मै कोई स्कूल का काम कर रहा हूं।

जैसे - जैसे दिन बीतते गए मेरा पागलपन बढ़ता गया और मेरे घर वालों ने पूछ ही डाला कि मैं नक्शे का कर क्या रहा हूं और मैंने भी कहा एक प्लान बना रहा हूं । फिर क्या था उन्होंने सब कुछ देखा और दो थप्पड़ दिए और सब कुछ जला दिया ।

काफी साल बीत गए काफी से मतलब नौ साल, नक्शे का पागलपन ख़तम तो नहीं हुआ पर कम जरूर हो गया क्यूंकि पढ़ाई भी करनी थी और घर वालों के डर से कुछ कर भी नहीं पता था वैसे भी जो होने नहीं वाला उसे कर के क्या फायदा पर कहीं न कहीं उसमे मज़ा बड़ा आता था, अंदर से एक सुकून सा मिलता था लगता था किसी की हत्या की पहेली सुलझा रहा हूं।

मैंने अपनी कॉपी भी इन सब प्लान को बनाने में भर दी थी,। अब सब कुछ मेरे दिमाग में था, स्कूल में एक दिन मेरी एक दोस्त से लड़ाई हो गई , ज़्यादा कुछ नहीं हुआ बस नाक से खून आया दो मुक्के खाने के बाद, पर मेरे दोस्त को क्या पता कि मैंने अपने दिमाग में उसे मार कर दफना भी दिया है, शायद यह बचपन से प्लान बनाने का नतीजा है। खैर दोस्तो में लड़ाई तो होती रहती है।

इसी तरह हमने अपने स्कूल का सफर पूरा किया और कॉलेज का रुख किया, वहां मेरे साथ एक स्कूल का भी दोस्त था हमने साथ मे ही कॉलेज सुरु किया।

हमारा कॉलेज का पहला सेमेस्टर खतम हुआ, कॉलेज की 21वी सालगिराह पर कॉलेज ने एक उत्सव रखा, जम कर पार्टी चल रही थी मैं भी अपनी धुन में मस्त था तभी मुझे किसी ने कहा कि मुझे कोई क्लास में बुला रहा है मैं भी क्लास की तरफ चल दिया, वह जाते समय मै एक लड़के से टकराया जो थोड़ा घबराया हुआ था जैसे ही मैं क्लास की तरफ बढ़ा तभी वहा से एक हमारी क्लास की लड़की बाहर आई और मेरे ऊपर गिर गई मैंने उसे उठाया तभी मुझे उसकी पीठ पर कुछ गीला महसूस हुआ, जब मैंने देखा तो उसकी पीठ पर चाकू घुसा हुआ था मैं यह देख कर दंग रह गया मेरी सांसें फूलने लगी, लड़की नीचे फिर पड़ी मैंने उसका चाकू निकाला तभी उसने ने मुझ से हल्की आवाज में कहा "भाग जाओ वो तुम्हे फसा रहे हैं"। मैंने उस से पूछा कौन तब तक वो मर गई थी, लड़की मेरी गोद में थी उसके खून से मेरे हाथ सने थे पूरी दुनिया थोड़ी देर के लिए थम सी गई, समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूं मैं गिरते पढ़ते उठा अपने हाथ धोए, कपड़े साफ किए और कॉलेज की दीवाल फांद कर भाग गया।

मुझे फसा रहे हैं बोलने से अच्छा बोलती कौन फसा रहा है तो थोड़ा चिंता कम होती पर छोड़ो, मेरी यहां लगी पड़ी है।

जनता हूं मुझे ऐसे ही दिन का इंतज़ार था जब मेरा बनाया हुआ बरसों का प्लान मेरे काम आएगा, कभी कभी भगवान सच में सुन लेता है, हाथ पैर कांप रहे थे दिल की ध़कनें बढ़ी हुई थी हर पल मन्न में गलत विचार रहे थे।

दुआ करता हूं जैसा मेरे साथ हुआ है वैसा किसी के साथ ना हो। जो होना था हो गया अब बारी है अपने प्लान पर काम करने का और पता लगाना की यह काम किसका है।