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Rajiv :(soul of a dead person)

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Synopsis
एक आत्मा की शांति के लिए मोक्ष के लिए एक छोटी सी यात्रा
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Chapter 1 - Rajiv :(soul of a dead person)

( राजीव ) यह मेरी सच्ची घटनाओं में से एक है ।

                          

                   एक बार की बात है , गर्मियों के दिन थे ,रात्रि के ठीक साढ़े ग्यारह बजे थे ,मैं अपने कमरे में रोजाना की तरह ही रात को सोने से पहले स्नान कर अपने दिवान-बैड पर बैठा जगत जननी माँ जगदम्बा की आराधना में डूबा हुआ था , पर तभी कुछ ऐसा हुआ कि मेरे ध्यान में अँधेरा से छा गया । मैं डर गया था ,क्योंकि अचानक से मेरा ध्यान भंग हो गया था ,मैन काफी कोशिश की ,कि मैं किसी तरह इसका कारण पता लगा सकूँ  ,पर सब असफल रहा ।

         अंत में मैंने निश्चय किया कि मैं अब सो जाता हूँ । पर ये क्या अभी तो मैं नींद के कारण झूल रहा था  और अभी मुझे नींद नहीं आ रही है ।

मैं ध्यान लगाने की कोशिश करूं ,ध्यान ना लगे ,

मैं सोने की कोशिश करूं नींद ना आए ,

ऐस करते-2 रात के सवा बारह हो गए । मैं डरा हुआ था और बालाजी महाराज की चालीसा जप करने लगा ।

अब रात के ठीक 12 : 39 हो रहे थे कि जाप करते हुए मुझे प्यास लगने लगी । कुछ देर तक तो प्यास पर भी कंट्रोल हुआ   पर फिर मुझसे रहा ना गया । मैं बस अपनी पानी की केतली लेने के लिए उठा ही था कि मैंने एक आवाज़ को महसूस सा किया जैसे कोई कह रहा हो ," बिस्तर से मत उतरना , अगर बिस्तर से उतरे तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं , बिस्तर से मत उतरना "।

तब मुझे ऐसा लगा कि मेरा बिस्तर पर रहना ही खतरे से बाहर है । मैं फिर से जप करने लगा , और मुझे नींद आ गई ।

रात्रि के ठीक 1 बजे थे कि मेरी आंखें खुली  तो मेरे पैरों के निचे से ज़मीन खिसक सी गई ,क्योंकि मैं उस वक्त अपने बिस्तर पर नहीं बल्कि अपने कमरे के बिलकुल बीचोबीच लेटा था । मैं और भी डर गया जब मुझे अपने अंधेरे कमरे में अपने अलावा किसी और के होने का भी अहसास हुआ । मेरे पसीने छूट गए ।

चूँकि कमरे में अंधेरा हो रहा था इसलिए मैं स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं देख पा रहा था । परन्तु कुछ देर बाद जैसे ही मुझे कुछ-2 दिखने लगा तो मैं देखता हूँ कि कोई मेरे बिस्तर पर बैठा हुआ है ,कुछ कहने की कोशिश कर रहा है ,मैने तुरंत अपने मन को शांत किया और उससे पूछा ,

"कौन है वहां पर ,मुझसे क्या चाहते हो , मैं तुम्हारी मुक्ती नहीं कर सकता मैं तो सिर्फ नारायण पाठ करना जानता हूँ ।"

मुझे तुरंत उत्तर मिला -

" मेरी आत्मा को मुक्ती अपने आप ही मिल जाएगी ,बस आप मेरा एक काम कर दें तो  "

मैने कहा " देखो... "

उसने रोते हुए मेरी बात को काटते हुए कहा

" मेरा नाम राजीव दक्ष है मैं नगीने का रहता था मेरे जन्मते ही मेरी माँ की और उसके 10 साल बाद ही एक रोड एक्सीडेंट में मेरे पिता और एक बड़े भाई की मृत्यु हो गई  , मेरा पालन पोषण मेरी बहन और मेरी भाभी ने किया चाहे कितनी भी गरीबी मेरे घर मे क्यों न आ गई हो पर जब तक मैने इंटर नहीं कर लिया तब तक मुझे अपने घर में गरीबी का अहसास नहीं हुआ । जैसे ही मेरा इंटर हुआ मैं अपने मामा जी के यहां मुरादाबाद काम करने लिए चल गया मैं वहाँ पर 2 साल तक रहा और पैसे जोड़ता रहा । 2 साल बाद  मैं घर के लिये निकला बड़ा खुश था मैं की 2 साल बाद अपनी बहन ,भाभी से मिलूंगा ,अपने दोस्तों से मिलूंगा पर रास्ते मे कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी ,धामपुर की सीमा से ढाई किलोमीटर दूर  एक ट्रक से बस की टक्कर हो गई  ।

टक्कर इतनी भयानक थी कि बस में बैठे ड्राइवर सहित 10 लोगों की मौके पर ही मौत हो गयी । बस पलट चुकी थी मैं और एक लड़के में कुछ कुछ जान अभी थी  पर कुछ देर बाद ही वह भी चल बसा । सुनसान सड़क थी ,दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था मैं बड़ी मुश्किल से बस से निकला और जब सड़क पर आया तो एक बेकाबू जीप पहले तो मुझसे टकरा गई जिससे मैं पास की झाड़ियों के पीछे के गड्ढे में जा गिरा और फिर वो भी एक पेड़ से जा टकराई , इस बात को 5 साल हो गए और मैं किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ रहा था जो मेरी बात सुन सके मुझे देख सके और जब  आपने मुझे देखकर राम राम कहा तो मैं समझ गया था कि आप ही मेरी बात सुन सकते हैं ,आप ही इसका समाधान कर सकते हैं कुछ कीजिये पलीज  "

मैने कहा " देखो मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करूंगा पर पहले तुम्हे मेरी मदद करनी होगी ।"

मैंने उसे एक सच्चे मोती की माला में प्रवेश करवाया  और सब बात तय करके अपने एक मित्र के साथ  उसके लिए निकल पड़ा , मेरे मित्र ने मेरी पूरी मदद की और इसके बाद हम उसके घर तक गए और फिर शाम तक उसका अंतिम संस्कार कर हम अपने घर पर पहुंचे । जिससे लोगों को लगे कि हम बिना बताए घर से भागे थे इसलियेहमने एक मित्र को एक सिम, एक फ़ोन के पैसे ,और उसके साथ बात तय करके हरिद्वार भेज दिया ।

जब मुझे लगा कि इस घटना को बता देना चाहिए ,इस राज़ को जो हमने अपने घर वालों से छुपाया था ,बता देना चाहिए तो मैंने ये घटना को प्रकाशित करने का निश्चय किया ।