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Chapter 71 - Poem No 32 खुद को बनाते बनाते

खुद को बनाते बनाते

जवान से बूढ़ा हो गए

ये मेरा कसूर नाही

किसका कसूर था

काश मैं जिया होता

मौज मस्ती किया होता

तो ये नौबत नाही आता

तो ये गम ना सताता

तकदीर भी साथ न दिए

हर पल को तरसाये

खुशियाँ तो दूर रहा

काश हमें जीने देते

खुद को बनाते बनाते

जवान से बूढ़ा हो गए

ये मेरा कसूर नाही

किसका कसूर था

----Raj