अर्ज़ कुछ यूँ किया है जरा गौर फरमाइयेगा
शमशान की राख़ मे ज़िन्दगी ढूंढा नहीं करते
शमशान की राख़ मे ज़िन्दगी ढूंढा नहीं करते
सूरज को तो अस्त होना ही है बस वक़्त का इंतज़ार है
अर्ज़ कुछ यूँ किया है जरा गौर फरमाइयेगा
शमशान की राख़ मे ज़िन्दगी ढूंढा नहीं करते
शमशान की राख़ मे ज़िन्दगी ढूंढा नहीं करते
सूरज को तो अस्त होना ही है बस वक़्त का इंतज़ार है