Chapter 2 - chapter 2

कार्तिक गौतम सर को अपने साथ अपने घर ले गया ।

गौतम सर की हालत बहुत खराब थी।

कार्तिक ने तुरंत डॉक्टर को बुला कर गौतम सर को दिखाया।

डॉक्टर ने गौतम सर का चेकअप करने के बाद कार्तिक को बताया।

" गौतम सर नियमित रूप से खाना नहीं खाते हैं।"

"और ना ही आराम करते हैं।"

"इसीलिए उनकी हालत खराब हो गई है।"

" उनका शरीर कमजोर हो गया है ।"

"मैं कुछ दवाइयां दूंगा और कुछ डाइट बताऊंगा।"

" जिन्हें नियमित रूप से गौतम सर को देना होगा।"

"और आपको उनके आराम का ध्यान रखना होगा।"

" उन्हें पर्याप्त भोजन और पर्याप्त आराम करना चाहिए।"

"वरना गौतम सर खुद को बीमार कर लेंगे ।"

यह कहकर डॉक्टर के चले गए।

उसके बाद का कार्तिक ने उस बूढ़े व्यक्ति को नहलाया।

उन्हें साफ कपड़े पहनाए और उन्हें पर्याप्त भोजन खिलाया।

उसके बाद उन्हें मेहमानों के रूम में ले गया ।

उसने गौतम सर से कहा "सर आज से आप यहां रहेंगे?"

" जब तक मैं आपके बेटे के गुनहगारों को सजा नहीं दिलाता तब तक आप मेरे साथ रहेंगे ।"

"मैं अंश के साथ क्या हुआ, उसके बारे में पता लगा लूंगा।"

"और मैं उसको इंसाफ दिलाऊंगा।"

" और अगर वह जिंदा है तो मैं उसे ढूंढ कर लाऊंगा।"

" मैं आपसे वादा करता हूँ। "

"आप मुझ पर भरोसा करो सर ।"

"मैं उसके गुनहगारों को सलाखों के पीछे पहुंचाकर ही दम लूंगा।"

" इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े।"

" फिर भी मैं उनको सजा दिलवाकर रहूंगा।"

यह सब सुनकर बिचारा बूढ़ा व्यक्ति रोने लगा।

पिछले 2 साल से वह हर दरवाजे पर माथा टेक रहा था ।

वह हर किसी से इंसाफ की गुहार लगा रहा था ।

पर किसी ने भी उसकी मदद नहीं की।

जब कार्तिक ने उसकी मदद करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो वह विश्वास ही नहीं कर पा रहा था।

वह रोए ही जा रहा था।

बस रोए जा रहा था ।

कार्तिक ने गौतम सर को गले लगाया और उसकी पीठ थपथपाई ।

और उसने कहा "सर आप मुझ पर भरोसा रखिए ।"

" मैं उसे इंसाफ जरूर दिलाऊंगा ।"

"पर उससे पहले आपको मेरी मदद करनी होगी।"

"आपको मुझे सब बताना होगा।"

बूढ़े व्यक्ति ने रोते-रोते कहना शुरू किया।

"4 साल पहले उसे स्कॉलरशिप मिली और उससे यूनिवर्सिटी में भेजा गया।"

" इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप मिलना कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी। "

"हम सब बहुत खुश थे। "

वह हमारे गांव का पहला बच्चा था ।

जो इतने बड़े कॉलेज में पढ़ने जाने वाला था ।

हम सभी लोग मिलकर खुशियां मना रहे थे ।

सभी गांव वाले एक दूसरे को मुबारकबाद देने आए।

मैं इतना खुश था कि मैं बता भी नही सकता।

मुझे अपने बेटे पर इतना गर्व था कि मैं गर्व से सीना तान कर चल रहा था।

मुझे ऐसा लग रहा था ।

जैसे मैं हवा में उड़ रहा हूँ।

यह मेरी सबसे बड़ी भूल थी।

काश मैं अपने बेटे को नर्क में नहीं जाने देता ।

काश मैं उसे उस विश्वविद्यालय में एडमिशन नहीं लेने देता ।

काश मैं उसे उसकी स्कॉलरशिप वापस करने के लिए कहता ।

यह सब मेरी गलती थी ।

मैं अपनी खुशी के आगे कुछ देख ही नहीं पाया कि मैंने अपना बेटे को किस नरक में भेज दिया था ।

मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था ।

मैंने उसे उन बड़े लोगों के बीच में भेज कर।

अपने हाथों से खुद अपने बेटे की मौत मैं नहीं भेजता

मैं आपका खुद जिम्मेदार हूं

मुझे सब जांच परख करेगी ही उसे वहां भेजना था यह मेरी जिम्मेदारी थी।

हम लोग कितने खुश थे,।

हम लोगोंने मिलकर पूरे गांव में पार्टी की।

अंस के जाने के पहले।

अगले दिन हम सब मिलकर अंश को रेलवे स्टेशन तक छोड़ने गए।

उसको ट्रेन में बिठाकर ,अपने घर आ गए ।

मुझे यह नहीं पता था कि मैं आखरी बार अपनी बेटे को खुश देख रहा हूं ।

काश मुझे पता होता तो, मैं" उसी पल उसको रोक लेता।

उसे कभी उस ट्रेन में नहीं चलने देता ।

वह हर शाम फोन करता था।

उसने कभी भी मुझे यह नहीं बताया, कि वहां उसे कोई परेशान कर रहा है ।

वह हमेशा मुस्कुराते रहता , कभी-कभी जब मैं उससे मिलने जाता ।

तो वह हमेशा मुस्कुराता ही रहता था।

उसने कभी भी मुझे यह नहीं बताया ,कि वह परेशानियों से जूझ रहा था।

उसके गायब होने के बाद मुझे उसके सामान से उसकी डायरी मिली ।

उसकी डायरी पढ़कर मुझे सब पता चला।

तुम मेरे घर जाओ कबड़ मे तुम्हें वह डायरी मिलेगी ।

उसको पढ़कर तुम सब कुछ समझ जाओगे।

उसके साथ उन दिनों क्या हुआ।

मैं अपने मुंह से उसके साथ बीते हुए दर्द को नहीं बता सकता।

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" अक्सर इन चारदीवारी के अंदर घरोदे में बैठकर,

क्या पाया हमने यही सोचते हैं ।

"जिंदगी चलती रही, उमर बीती रही, क्या पाया हमने इस जिंदगी को देख कर ।

"वक्त बदलता रहा ,इंसान बदलते रहे ,पर बदलते नहीं जिंदगी के रास्ते ।

"दर्द पहले भी था,दर्द अभी भी है, दर्द बदलता नहीं जिंदगी के वास्ते।

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यह लाइन उसकी डायरी में लिखी थी।

मैं बार-बार इनको पढ़ता हूं ।

और रोता हूं कितना दर्द होगा, मेरे बेटे की जिंदगी में उन राक्षसों ने उसका शरीर ही नहीं उसकी आत्मा भी छलनी कर दी थी।

कार्तिक गौतम करके घर गया ।

उसने चाबी से ताला खोला ।

घर की हालत देखकर पता लगाया जा सकता था।

घर में अब कोई भी नहीं रहता है ।

छोटे से गलहारे से गुजरते हुए ।

मैं हॉल में पहुंचा ।

हाल की दीवारों पर अंश और उसके पिता की बहुत सी तस्वीरें लगी थी ।

उन तस्वीरों में पिता-पुत्र कितने खुश दिख रहे थे ।

अंश का मुस्कुराता हुआ चेहरा ।

मेरी आंखों के सामने घूमने लगा।

मुझे अभी भी याद है।

जब मैं स्कूल छोड़कर जा रहा था।

वह मुझे पकड़कर रो रहा था।

वह कितना मासूम और भोला बच्चा था।

मुझे अभी भी समझ में नहीं आ रहा ,किसी की उसके साथ क्या दुश्मनी थी ।

क्यों उस बेचारे को अपनी जान गवानी पड़ी ।

मेरे लिए यह जानना बहुत ही जरूरी है

कि उन दिनो उस के साथ क्या हुआ।

मैं हाँल से निकलकर गौतम सर के स्टडी रूम में गया।

वहां पर मैंने लकड़ी की एक कबड देखी।

मैंने कबड को खोला।

कबर में एक धूल भरी डायरी रखी हुई थी।

मैंने डायरी से धूल हटाई, और वही बैठकर उसको पढ़ने लगा।