बचपन से झेलता ही आ रहा हूं मैं ,
सभी को छोड़ना चाहता हूं मैं ।
खुद के जाल में अब खुद ही फस रहा हूं मैं ,
ना जाने क्यूं दुनिया बदलने की चाह में ,
खुद की ही दुनिया बदल रहा हूं मैं।
तू मेरा है नहीं , जान के भी अनजान बन रहा हूं मैं ,
धीरे धीरे दुनिया के रास्ते पर चलना सीख रहा हूं मैं ,
उम्र यूंही सोच सोच के बर्बाद कर रहा हूं मैं।