दिन भर से मन में व्याकुलता तो थी ही क्या होगा कैसा होगा, सब ठीक तो होगा ना। बार बार मन को बुझा रहा था अरे छोड़ो कुछ नही होता ये कोरोना सोरोना, ओर जबरदस्ती काम में खुद को मसगुल कर लेता। मध्यान्ह होने को आया और अब तक ऐसा कोई भी समाचार नही मिला, मन धीरे धीरे सामान्य होता चला। रोज की तरह काम मे कुछ देर की छुट्टी होती है भोजन के लिए। उस दिन घर जाने का पता नही क्यों मन न हुआ , इसलिए खाना वही आफिस में खा लिया। खाकर अब जैसे ही वापिस काम में पहुचा तो अचानक फोन की घण्टी बजी। सच बताऊँ तो तब तक मैं सब कुछ भूल चुका था और बिल्कुल ऐसी कोई उम्मीद भी नही थी। फोन देखा तो एक नया नम्बर था , सामान्यतः फोन उठा भी लिया और जैसे यहां से हेलो कहकर शुरुवात कही दूसरी ओर से मेरा नाम पूछकर एक व्यक्ति बोला आपकी जांच कोरोना पॉजिटिव आयी है। सुनते ही पहले तो हंसी आयी फिर अचानक से मन हतासा से भर उठा। बार बार एक ही सवाल अंदर ही अंदर उठ रहा था " क्यों" आखिर क्यों हुआ मैं पॉजिटिव। बिल्कुल चुप सा हो गया था मैं जैसे लकवा मार गया हो शरीर को।कुछ न कहे बन रहा था न करते। आखिर कुछ तो लक्षण होते मुझमे फिर औरों को क्यों नही हुआ केवल मुझे ही क्यों। परसों दीवाली है फिर भाई की शादी ...उफ्फ क्या इन सबसे वंचित हो जाऊंगा क्या। नही नही ये सब झूठ है , अच्छा भला तो हूं मैं कुछ नही होगा । और मैं इसके बारे में किसी को कुछ नही बताऊंगा। जैसे तैसे हिम्मत जुटा ही रहा था कि पता चला अन्य 11 लोग भी संक्रमित हैं। अब थोड़ा साहस बड़ा।चलो मैं खुद अकेला नही हूं। अब बारी थी घर में इसकी खबर पहुचाने की। अब जैसे तैसे घर फोन किया और हिम्मत करके एक सांस में बता के फोन काट दिया।
क्रमशः.....