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lover of poem

Puja_Chaturvedi
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Chapter 1 - हृदय रुपी (खिड़की )

मकान की उस खिड़की का बखान कैसा हो,

जो देखती है जिंदगी को रोशनदान के झरोखो से ।

खिड़की जो चार दीवारों के बीच का केवल मात्र वो हिस्साहैं जो जीवन सवारने का ख्वाब बुन सकती है ।

कई दफा चिरागो ने भी खुब साथ दिया

मकान में रौशनी करने के लिए

पर वो केवल रात के अंधेरे में ही काम आयी

उस खिड़की ने तो जीवन के हर मौसम को जाना

कई मौसम के बदलते रुख को भी देखा उसने।

मकान के उस खिड़की की फिक्र किसे थी

सिवाय उस गृहपति के....

जग को क्या फर्क पडता है कि

खिड़की क्या महसूस करती हैं क्या सोचती है ...

बस एक खिड़की है न क्या फर्क पडता है टूट गई तो दूसरी लग जाएगी हर मौसम बदल दी जाएगी...

उस खिड़की पर बीती क्या कौन पुछता है.....

उसे काठ समझकर हर कोई तोडता और बदलता है...

एक बस खिड़की नहीं है वो उस मकान का हिस्सा भी है...

जिसे तोड़ने पर वो मकान भी हिलता होगा ...

मकान ही है वो बार बार खिड़की तोड़ने पर कब तक खड़ा रहेगा.....

आज नहीं तो कल वह भी टूट के बिखरेगा....

फिर तो पुरा का पुरा मकान ही बदलेगा.....

संभल जाओ अभी भी वक्त है...

न तोडो उसे न बदलो वह जैसा है.....

उसे उसी रंग में उसी साँचे मे रहने दो ...।

Pooja Chaturvedi