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Chapter 2 - तुम्हारा इंतज़ार

जब तुम उस दिन मेरे पास से चली गई थीं। मैं क्लास में तुम्हारा इंतज़ार करता रहा। तुम वापस आई और बैठ गई मैं पूरा दिन तुम्हें एक तस्वीर की तरह निहारता रहा । जितना देखू उनता ही और देखने का मन करता। तुम्हारी उस अदा को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता जैसे कल कल करता कोई झरना हो। वो कोमल हाथ जब किताब को छूते। न जाने मुझे क्यू ये एहशाह होता जैसे तुमने मेरे बदन को छुआ हो। उस दिन हमारी थोड़ी बोहोत ही बातचीत हुई तुमने मुझे तुम्हारा नाम बताया मेने अपना बताया, थोड़ा बोहोत हमने पढ़ाई के बारे में बात करी। तुमने जब पूछा "नोट्स हैं क्या तुम्हारे पास" और मेरा जानभूझ कर ना मैं सिर हिलाना। मुझे आज तक याद हैं। उसके बाद स्कूल की छुट्टी हुई हम घर चले गए। जब तुम जा रही थी मैं तुम्हे पीछे से देख रहा था, और तब तक देखता रहा जब तक तुम मेरी आंखों से ओझल नहीं होगायी। घर आया पर तुम्हारा चहरा अब भी सामने था जैसे अभी एक पल ही हुआ हो हमे मिले हुए। ना जानें कोनसा जादू था तुम्हारे अंदर। पूरा दिन तुम्हारे बारे में सोचते सोचते व्यतित होगया। लेकिन यादों को सजोना भी तो मुस्किल हैं अब बस अगले दिन का इंतजार था । कब सुबह हो मैं स्कूल जाऊ और तुम्हे देखू। अगली सुबह हुई। और दिन से आज कुछ जल्दी तैयार हुआ। बस को कोसने लगा की थोड़ा जल्दी अजाये स्कूल पहुंचा और बस करता रहा तुम्हरा इंतज़ार....