मेरा नाम मनीष कुमार गोलियां है मेरा जन्म 23/05/1988 रविवार को जयपुर के जनाना हॉस्पिटल में रात के समय हुआ था मेरे पिताजी का नाम श्री प्रकाश चंद जी गोलियां और माताजी का नाम श्रीमती रज्जो देवी गोलियां है मेरा जन्म नाम डोली राम था पर मेरे मा और पिताजी ने मेरा नाम मनीष रखा । मेरे जन्म के ठीक एक साल बाद मेरे एक भाई का जन्म हुआ । लेकिन उसे ठीक से नहीं देखे जाने के कारण मरा हुआ मान लिया गया। और उसे जिंदा ही दफना दिया। उसके कुछ ही समय बाद मेरी मा का देहावसान हो गया । मेरे पिताजी की सूनी पड़ी जिंदगी में मेरे अलावा अब सिर्फ मेरे बाबा और अम्मा और दो चाचा और एक बुआ रह गए। कुछ समय बाद मेरे पिताजी के रिश्ते की बात शुरू हुई। और 17/02/1990 को शादी हो गई। मेरी मा का नाम श्रीमती सुनीता देवी जी गोलियां है। सच मेरी जिंदगी भगवान कृष्ण की तरह हो गई। जन्म देने वाली मा मुझे और मेरे पापा को छोड़कर भगवान को प्यारी हो गई। अब मुझे पालने की जिम्मेदारी मेरी इन मा के कंदो पर आ गई। सच मुझे यशोदा से भी बढ़कर मा का प्यार मिला। मेरी मा ने आते ही मेरी जिम्मेदारी को अपने हाथ में ले ली। मै अपनी जिंदगी के दुख से परे होकर मा की छाया में पल रहा था। मेरी जिंदगी में अब कोई कमी नहीं रही। बस खेलने को और साथ निभाने को भगवान ने मेरे भाई और बहन की कमी छोड़ रखी थी। एक के बाद एक मेरे 2 भाई बहन जन्म के साथ मौत को प्यारे हो गए। पर भगवान के यहां पर देर है लेकिन अंधेर नहीं। भगवान की कृपा से 10/09/1993 को एक खुशी ने दस्तक दी। इस दिन भगवान ने मेरी जैसे सुन सी ली हो। और मुझ अभागे को एक दोस्त जैसा छोटा भाई मिल ही गया। उसका नाम कृष्णा अवतार गोलियां है। मुझे भी भाई का प्यार मिल ही गया। लेकिन अब धीरे धीरे एक बहन की कमी महसूस होने लगी। लेकिन इस जगह पर शायद भगवान भी मेरा साथ देने को तैयार नहीं हुवे। हम दोनों भाई धीरे धीरे एक दूसरे की कड़ी बन गए। सच जिंदगी भाई के साथ से बहुत अच्छी लगने लगी। मेरे पिताजी और माताजी ने बहुत लाड प्यार से हम दोनों भाइयों को पाला पोसा है। कहते है कि भगवान ने जिंदगी के हर कदम पर बहुत कुछ हिम्मत भी दी और बहुत दुखो का सामना भी करवाया। अभी जिंदगी के कुछ ही तो कदम निकल रहे थे। मैंने मेरी बेसिक शिक्षा विवेकानंद सीनियर सैकंडरी स्कूल से की थी। बात मेरी चौथी कक्षा की थी। मेरे जन्म से ही बहुत हलचल मेरी जिंदगी मै कुछ ना कुछ निशानी छोड़ रही थी। मै अपने गली के साथियों के साथ बाहर ही खेल रहा था। पिताजी बाहर गए हुवे थे। मै और पास ही के जैन परिवार की लड़की पिंकी हम दोनों खेल रहे थे। अचानक उसके हाथ से धक्का लगा गया और मै हमारे सामने वालो की चौखट पर गिर गया। गिरने के बाद मै तुरंत खड़ा हो कर अपना सर पकड़कर उसे दबाने लगा। पर पिंकी ने मुझे कहा मनीष तुझे तो बहुत खून बह रहे है। मैं डर गया क्योंकि अब बात घरवालों को मालूम चलने की हो गई और मेरे पिताजी घर पर सब को का कर जाते थे कि बच्चों का ध्यान रखना। और पिताजी से हम सब बहुत डरते थे। क्यूकी वो जितने सरल थे उससे ज्यादा कठोर भी थे। पिंकी ने डरते हुवे मेरी मा को ये सब बता दिया। मा और मेरी अम्मा दोनों ये सुनकर डर गए की आज उन्हें अब लड़ाई मिलेगी। क्युकी अगर पापा को ये बात पता चली तो वो मुझे कुछ हल्का फुल्का कहकर घरवालों को जबरदस्त लड़ेंगे । उस समय मेरी अम्मा और मेरी मा को कुछ नहीं सूझा। उन्होंने तुरंत मुझे अंदर लाकर पापा के द्वारा बनाया हुआ मंजन मेरे सर में भर दिया और मुझे सुला दिया। शाम को जब पिताजी काम से वापस आए तो उन्हें ये बात पता चल गई बस अब क्या था पहली क्लास मेरी और दूसरी मेरे मा और अम्मा की शुरू। बाद में उन्होंने मेरा सर देखा तो उसमे खुरंट भर गया था। राम जी की कृपा से दिन निकल गया। एक बात जो कि मै बताना भूल गया कि बच्चों के लिए खास दिन उसका जन्मदिन होता था और सच ये दिन मेरी लाइफ के यादगार हुआ करते थे। मेरे हर जन्मदिन पर पापा कभी मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन करने जाते थे तो कभी किसी और धार्मिक जगह पर। शाम को रिस्तेदारो से घर भरा होता था। शाम को पूरी गली मोहल्ले में बुलाव लगता था सगुन में बर्तन बांटे जाते थे। और फिर खाना और केक काटना।